देश में हर साल लाखों लावारिश लाशें मिलती हैं पर लापता लोगों और लावारिश लाशों को मिलने का न तो कोई सरकारी तंत्र है और न ही कोई आँकड़ा उपलब्ध है. सवाल यह है कि इन लाशों की पहचान कैसे हो? देश में आपदाओं से सैंकड़ों लोगों की मौत हो जाती है और हजारों लोग लापता हो जाते हैं. इनमें से कई मामलों में न तो व्यक्ति की पहचान हो पाती है और न ही उनके परिचित की जानकारी मिल पाती है. देश में इस वक़्त सैंकड़ों ऐसे आपराधिक मामले होंगे जो अनसुलझी हैं. उनकी गुत्थी आखिर कैसे सुलझेगी? इन सभी सवालों का जवाब DNA जाँच बहुत हद तक दे देते है. चलिए जानते हैं DNA Profiling Bill के बारे में.
भूमिका
1985 में भारत में पहली बार कानूनी कार्रवाई में DNA जाँच को मान्यता मिली लेकिन तब से लेकर आज तक इसके लिए कोई ठोस कानूनी ढाँचे का विकास नहीं हो पाया. शुरुआत तो वैसे 2003 से ही हो गई थी लेकिन उस दौरान कई सवाल उठे थे. सवाल निजता (privacy) का था, सवाल मानवाधिकार का था, सवाल अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का भी था. इन्हीं सवालों में DNA Profile को कानूनीजामा पहनाने में सरकार की कोशिशें बेकार चली गयीं.
सरकार आगामी मानसून सत्र में DNA profiling से सम्बंधित विधेयक (DNA profiling bill) संसद में लाना चाह रही है. ये मामला इतना पेचीदा है कि सरकार 2007, 2012, 2015, 2016 और फिर 2017 में कई drafts संशोधन कर चुकी है. ऐसे में यह जानना जरुरी है कि क्या नया मसौदा पुरानी चिंताओं को दूर करने में सक्षम होगा? क्या हैं इस bill के प्रावधान (provisions)? DNA profiling है क्या और यह कितना जरूरी है?
DNA Profiling क्या है?
DNA profiling किसी व्यक्ति की पहचान की फोरेंसिक तकनीक है जिसके जरिये जैविक नमूनों जैसे त्वचा, बाल, रक्त या लार की बूँदें लेकर किसी भी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है. DNA Sample के आधार पर DNA profile बनाई जाती है.
99.9% DNA सभी व्यक्तियों में एक जैसा होता है. केवल 0.1% अंतर के कारण प्रत्येक व्यक्ति का DNA एक-दूसरे से अलग होता है और इसी के आधार पर किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है.
2015 में UP में हुआ हादसा
जनवरी 2015, उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले से दो बड़ी खबरे आयीं. यहाँ परियर घाट पर करीब 200 लाशें गंगा में तैरती मिलीं. यह मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि इसी जिले की पुलिस लाइन से करीब 100 नरकंकाल बरामद हुए. इसके कुछ ही दिन बाद UP के मुरादाबाद और बहराइच जिले में भी पुलिस लाइन से कंकाल बरामद हुए. इसके बाद तमाम कोशिशें की गईं पर पता नहीं चल पाया कि ये कंकाल किसके थे? बाद में कहा गया कि ये वो लावारिश लाशें थीं जो postmortem के बाद अपने वारिशों का इंतज़ार कर रही थीं. अब तो इन लाशों की पहचान भी नामुमकिन थी.
डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए कानून – जरुरत
- इस कानून के बनने के बाद DNA के नमूने लेना और DNA Bank को स्थापित करना आसान हो जाएगा.
- DNA नमूनों का गलत इस्तेमाल रोका जा सकेगा.
- गलत इस्तेमाल करने वालों को सजा दिलाई जा सकेगी.
- इसके साथ ही यह कानून लावारिश लाशों की पहचान करने में मददगार साबित होगा.
- यौन हमले जैसे गंभीर आपराधिक मामलों में अपराधियों की पहचान की जा सकेगी चाहे यह मामला कितना भी पुराना क्यों न हो!
- आपदा में शिकार हुए लोगों की पहचान की जा सकेगी.
- गुमशुदा लोगों की तलाश, अपराध नियंत्रण और अपराधियों की पहचान की जा सकेगी.
आपको बता दें कि भारत में 1985 में पहली बार DNA sample कोर्ट में पहुँचा और 1988 में पहली बार DNA जाँच के बाद किसी अपराधी को जेल की सजा मिली लेकिन तब से लेकर आज तक इसके लिए किसी ठोस कानून की शुरुआत नहीं हुई है. लेकिन सरकार अब इसके लिए बिल (dna profiling bill) संसद में पेश करने जा रही है.
बिल के प्रावधान
DNA profiling को लेकर कानून बनाने का प्रावधान देश में सबसे पहले 2003 में शुरू हुई. उस वक्त अपराधों के मामले में DNA sample के इस्तेमाल को कानूनी दायरे में लाने के लिए bio-technology विभाग ने एक समिति का गठन किया. इस समिति का नाम था – “The DNA Profiling Advisory Committee”. इस समिति का काम DNA profiling bill 2006 के लिए अपनी सिफाराशें देना था. हालाँकि 2007 में यह बिल Human DNA Profiling के नाम से आया और इसका draft Bio-technology विभाग ने Center for DNA Fingerprints Diagnosis के साथ मिलकर तैयार किया था. 2007 में यह draft bill सार्वजनिक कर दिया गया जिसपर देश-भर में व्यापक बहस हुई. हालाँकि यह bill उस वक़्त संसद में पेश नहीं हो सका. बाद में इसमें कुछ और बदलाव किये गए पर 2012 में नए मसौदे की कुछ बातें leak हो गयीं और एक बार फिर इस पर बहस शुरू हो गयी. इसमें निजता (right of privacy) का मुद्दा काफी महत्त्वपूर्ण था. लोगों का कहना है कि किसी की अनुवांशिक जानकारी इकठ्ठा करना किसी के निजिता को भंग करना है. हालाँकि DNA profiling की शरुआत करने वाला आंध्र प्रदेश भारत का सबसे पहला राज्य बन गया. आंध्र प्रदेश में DNA profiling का इस्तेमाल अपराधों पर रोक लगाने के लिए किया गया.
ISFG
ISFG का full-form है – International Society for Forensic Genetics. ISFG द्वारा DNA आयोग ने कड़े दिशा-निर्देश जारी किये हैं. इसके अनुसार –
- अपातकालीन स्थिति में प्रयोगशाला को सम्बंधित अधिकारी को सूचित करना होगा.
- घायल या मृत व्यक्ति का नमूना लेने से पहले परिवार से राय लेना जरुरी है.
- अगर किसी व्यक्ति का DNA लिया जाता है तो इस परिस्थिति में वहाँ मौजूद अधिकारी का नाम स्पष्ट रूप से लिखा रहना जरूरी है.
- DNA को सुरक्षित रखने की गारंटी देना जरुरी है और साथ ही उसके रखरखाव का उचित प्रबंध किया जाना चाहिए.
- किसी लापता व्यक्ति का DNA परीक्षण किसी मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला से करने का सख्त प्रावधान है.
DNA की खोज
- DNA की खोज पहली बार जेम्स वाटसन और फ्रांसिस क्रिक ने 1953 में की.
- इस खोज के लिए उन्हें 1962 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
- समय के साथ DNA की तकनीक में विकास होता गया.
- 1985 में ब्रिटिश वैज्ञानिक एलेक जेफ्रीज ने DNA profiling की आधुनिक तकनीक की खोज की.
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