पहले तो आपको जान लेना होगा कि GDP क्या है? यदि आप नहीं जानते तो इन आर्टिकल को अवश्य पढ़िए >
👉आर्थिक सर्वेक्षण के अध्याय 10 से सम्बंधित मुख्य तथ्य
- इसमें कुल 30 पृष्ठ हैं
- GDP का आकलन गलत है या सही?
- $5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था
- आर्थिक सांख्यिकी संबंधी स्थायी समिति (Standing Committee on Economic Statistics – SCES)
- बहुत सारे डाटा हैं
- भारत और अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं में संरचनात्मक अंतर
🔍पूरे आर्टिकल को पढ़ कर हमारा संक्षिप्त विश्लेषण
- गत वर्षों में आम आदमी से लेकर देश के भी बुद्धिजीवी वर्ग और यहाँ तक कि नीति-निर्धारकों के मध्य अनवरत इस मुद्दे पर विवाद होता रहा कि क्या भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को जानबूझ कर बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है? क्या आँकड़ों के पीछे सरकार का दबाव रहता है कि अच्छे से अच्छे और भ्रामक आँकड़े जनता को दिखलाए जाएँ?
- 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात पर एक लंबा विश्लेषण किया गया है. दरअसल यह पूरा विश्लेषण सफाई देने में ही व्यतीत हो गया कि ये आँकड़े भ्रामक नहीं है. अध्याय के टाइटल में ही सवाल के साथ जवाब भी दे दिया गया – क्या भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाया जा रहा है?” – नहीं
- सर्वेक्षण में कहा गया है किएक सतर्क सांख्यिकीय विश्लेषण का प्रयोग किया गया है जिससे इस विषय के महत्त्व को उचित न्याय मिल सके.
- इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि भारत की जीडीपी वृद्धिका गलत अनुमान किया जाता है. यद्यपि विश्लेषण में इस बात को सहजता से स्वीकार किया गया है कि विश्व के देशों में प्रत्यक्षतः और अप्रत्यक्षतः अनेक प्रकार की परस्परिक भिन्नताएं पाई जाती हैं. ऐसी भिन्नताओं कुछ ऐसे चौंकाने वाले कारक हमारे समक्ष आ खड़े होते हैं जिनके कारण विभिन्न देशों की तुलना करने में गलत अनुमान का जोखिम हो जाना स्वाभाविक हो जाता है.
- आर्थिक सर्वेक्षण में सम्मिलित 95 देशोंमें से 51 के विषय में समान अवधि के दौरान सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि के गलत अनुमान प्रस्तुत किए गए हैं. सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि जो मॉडल 2011 के बाद भारत की जीडीपी वृद्धि के अनुमान में 2.77 प्रतिशत के गलत तरीके से अधिक अनुमान की बात करते हैं, वे सैंपल में शामिल 95 देशों में 51 के मामले में जीडीपी वृद्धि का गलत अनुमान व्यक्त करते हैं. निष्कर्ष यह है कि भारत की जीडीपी वृद्धि के अनुमान को लेकर जो चिंता जताई गई है, वह निराधार है.
- इस बार के आर्थिक सर्वेक्षण में देश के504 जिलों में औपचारिक क्षेत्रों के अंतर्गत नवीन फर्मों के सृजन से संबंधित विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है. इस संदर्भ में दिए गए दो उदाहरण महत्वपूर्ण हैं – पहला, किसी नये फर्म के सृजन में 10% वृद्धि से जिला स्तर की जीडीपी में 1.8% वृद्धि होती है. चूँकि औपचारिक क्षेत्रों में नये फर्म के सृजन की गति में वर्ष 2014 के पश्चात् विशेष रूप से बढ़ोतरी हुई है. अतः जिला स्तरीय वृद्धि पर क्या भारत के सकल घरेलू वृद्धि को बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाया जाता है?
- GDP का आकलन एक जटिल प्रक्रिया है. इसमें कुछ कारकों का तो माप लिया जा सकता है, परन्तु अधिकांश कारकों का माप लेना असंभव है. ऐसे में त्यक्त कारकों से अनुमान का गलत होना बहुत हद तक संभव है. इन्हीं छोड़े गए कारकों में अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार व बड़ी संख्या में नौजवान हैं जो बेरोजगार, अशिक्षित और अप्रशिक्षित हैं. इसके अतिरिक्त कृषि का देश के रोजगार में योगदान का अनुपात भी असंगत है.
- आर्थिक सर्वेक्षण 2019-2020 में किए गए विश्लेषण में देखा गया है कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के कारकों को पूर्ण रूप से समझने हेतु और अधिक कार्य किए जाने की आवश्यकता है. सिर्फ यही नहीं, सर्वेक्षण में यह भी बतलाया गया है कि इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि भारत के GDP का ढांचा समय के साथ कैसे बदला है, यह अब तक स्पष्ट नहीं है. इस महत्वपूर्ण घटना का और अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है. इसके अतिरिक्त यह भी जानकारी प्राप्त की जानी चाहिए कि भारत की जीडीपी का सटीक स्वरूप क्या है और समय के अनुसार विकसित होने से यह स्पष्ट रूप से दूर क्यों है. इस घटना के संबंध में गहन अध्ययन किया जाना आवश्यक है.
- इस साल के सर्वेक्षण में यह सुझाया गया है कि चूंकि जीडीपी भारत की अर्थव्यवस्था के आकार और स्वास्थ्य का एक बैरोमीटर है इसलिए यह आवश्यक हो जाता है किसकल घरेलू उत्पाद को जहाँ तक भी संभव हो वास्तविकता से मापा जाए. यही कारण है कि हाल के दिनों में बुद्धजीवियों, नीति निर्धारकों व नागरिकों के मध्य इस विषय पर बहुत अधिक बहस हुई है कि भारत की जीडीपी क्या बढ़ा-चढ़ा कर क्यों पेश किया जाता है?
😰अरविंद सुब्रमण्यम को क्यों देनी पड़ी सफाई?
- दरअसल, नरेंद्र मोदी सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने हाल ही में कहा था कि 2011-12 से 2016-17 के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि दर को करीब 5 प्रतिशत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है. इसका कारण जीडीपी आकलन के तौर-तरीकों में परिवर्तन है.
- अरविंद सुब्रमण्यम ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक शोध पत्र में कहा था कि देश के GDP वृद्धि दर इस अवधि में करीब 4.5% वार्षिक रहनी चाहिए थी जबकि इसके 7% के आसपास रहने का अनुमान जताया गया. इसके पश्चात् GDP आंकड़ों को लेकर एक बहस छिड़ गई और सरकार पर इन आँकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के आरोप लगे.
- इसके अतिरिक्त तिमाही और सालाना वृद्धि के आंकड़ों की गणना हेतु ‘बेस इयर’ (आधार वर्ष) भी 2004-05 से बदलकर 2011-12 कर दिया गया. इसके पश्चात् जीडीपी की गणना का ये तरीक़ा कई अर्थशास्त्रियों की पैनी नज़रों में आ गया.
💰5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था
घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय निवेशक, दोनों ही भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में देखते हैं और ऐसा अनुमान है कि हम 31/3/2025 तक USD 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनने के उद्देश्य को प्राप्त कर लेंगे.
इसे कैसे हासिल किया जा सकता है? इसके लिए सर्वेक्षण में कुछ कारकों का जिक्र किया गया है –
- एक सुदृढ़ निवेश वातावरण का तैयार करना
- माँग को बढ़ाना
- नई प्रौद्योगिकी को अपनाना
- रोजगार सृजन करना
- एफडीआई मानदंडों को शिथिल करना, ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नस पर काम करना
- कॉर्पोरेट दरों में कटौती करना
- कराधान में सुधार करना
- मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना.
- किसीनये फर्म के सृजन में 10% वृद्धि से जिला स्तर की जीडीपी में 1.8% वृद्धि होती है. और ऐसा MUDRA योजना, स्टैंडअप इंडिया आदि के कारण संभव हो पा रहा है. इसलिए हमारी जीडीपी में सुधार भी हो रहा है. अंतर्राष्ट्रीय विश्लेषक इस घटना को नहीं देख रहे हैं.
- भारत में पोषण और बिजली की पहुंच बढ़ गई है, जिसके परिणामस्वरूप एक कामगार की उत्पादकता तो बढ़ेगी ही, साथ-साथ उत्पादक फर्म की उत्पादकता में भी बढ़ोतरी होगी और अंततः सकल घरेलू उत्पाद बढ़ेगा.
👨🏻💼आर्थिक सांख्यिकी संबंधी स्थायी समिति (SCES)
समिति क्यों गठित की गई?
- विदित हो कि आरबीआई के पूर्व गवर्नर डॉ. रघुराम राजन और पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. अरविंद सुब्रमण्यन ने भारत की जीडीपी के आंकड़ों और इसकी डेटा गुणवत्ता पर संदेह जताया था.
- सकल घरेलू के आंकड़ों पर उठ रहे सवालों के पश्चात् मोदी सरकार को इसके गठन का फैसला लेना पड़ा. केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन की अध्यक्षता में 28 सदस्यीय स्थायी समिति (27 सदस्य + एक अध्यक्ष) का गठन किया. सरकारी आंकड़ों में राजनीतिक हस्तक्षेप को लेकर समय-समय पर हो रही आलोचना के मद्देनजर इस समिति का गठन हुआ है.
- एकल स्थायी समिति में चार स्थायी समितियां शामिल होंगी – श्रम बल सांख्यिकी पर स्थायी समिति (SCLFS), सेवा क्षेत्र पर स्थायी समिति (SCSS), औद्योगिक सांख्यिकी पर स्थायी समिति (SCIS) और सेवा क्षेत्र और गैर-निगमित क्षेत्र उद्यम पर स्थायी समिति (SCSSUSE).
- इसमें संयुक्त राष्ट्र, भारतीय रिजर्व बैंक, वित्त मंत्रालय, NITI आयोग, दो उद्योग मंडलों, टाटा ट्रस्ट एवं कई शैक्षणिक संस्थानों के अर्थशास्त्रियों व सांख्यिकीविदों के प्रतिनिधि होंगे.
- यह डेटा स्रोतों, संकेतकों व औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक की परिभाषाओं, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, समय उपयोग सर्वेक्षण, आर्थिक जनगणना एवं असंगठित क्षेत्र के आँकड़ों के मौजूदा ढांचे की समीक्षा करेगा.
- यह समिति संबंधित प्रशासनिक आंकड़ों की उपलब्धता व संकलन का अध्ययन भी करेगी, यदि कोई डेटा उचित रणनीतिक सुझाव देती है, तो स्थायी समिति द्वारा विषय क्षेत्र हेतु विषय विशेषज्ञ युक्त उप समिति गठित की जा सकती है.
📊भारत और अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं में संरचनात्मक अंतर
पिछले वर्ष की तुलना में वास्तविक विकास दर | 2017-18 | 2018-19 | 2019-20 | 2020-21 (अनुमानित) |
---|---|---|---|---|
भारत | 7.2% | 6.8% | 5.0% |
|
विश्व | 3.8% | 3.6% | 2.9% |
|
🔠UPSC Prelims के लिए MCQ
- जीडीपी [सिद्धांत] से संबंधित प्रश्न, जीडीपी से जुड़े विभिन्न सूत्र, विकास दर की प्रवृत्ति
- आर्थिक सांख्यिकी संबंधी स्थायी समिति [करंट अफेयर्स]: इस सांख्यिकी समिति के अध्यक्ष कौन हैं, वे किस मंत्रालय को रिपोर्ट करते हैं? इसके कार्य क्या हैं? आदि.
- कौन-सा संगठन किस रिपोर्ट को प्रकाशित करता है? जैसे – IMF का वर्ल्ड इकनोमिक आउटलुक, विश्व बैंक का ग्लोबल इकनोमिक प्रोस्पेक्टस.
✍️मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न
- भारत में जीडीपी की गणना से जुड़ी चुनौतियों पर संक्षिप्त चर्चा करें और इसमें सुधार के लिए अब तक क्या किया गया है?
- 2025 तक भारत के लिए पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हासिल करने से जुड़ी चुनौतियों पर संक्षिप्त चर्चा करें?
🗣️निष्कर्ष
भारत के समक्ष अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के अतिरिक्त, आँकड़ों को जुटाने एवं सांख्यिकी व्यवस्था में सुधार लाने की आवश्यकता है जिससे नीतियों का सही ढंग से विश्लेषण संभव हो सके. भारत सरकार का भी मानना है कि वह आँकड़ों को जुटाने के आधुनिक तरीक़ों को लागू करने के लिए विश्व बैंक के साथ मिलकर काम कर रही है.
वर्तमान सरकार ने रोज़गार सृजन करने और निवेश आकर्षित करने हेतु योजनाओं पर कार्य करने लिए विभिन्न समितियाँ गठित की हैं. अरविंद सुब्रमण्यम के अनुसार, देश की कमज़ोर पड़ती अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार को तीव्रता से कार्रवाई करने की आवश्यकता है.
पढ़ें – आर्थिक सर्वेक्षण 2020 अध्याय 11