येल विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में द्विवार्षिक पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (Environmental Performance Index – EPI) 2020 निर्गत किया गया.
विदित हो कि इस बार इस सूचकांक को बनाने में 11 अलग-अलग मुद्दों से सम्बंधित 32 संकेतकों पर विचार किया गया है. ये 11 मुद्दे इस प्रकार हैं – जैव विविधता और आवास (15%), पारिस्थितिकी सेवाएँ (6%), वायु गुणवत्ता (20%), स्वच्छता और पेयजल (16%), मत्स्यन (6%), जल संसाधन (3%), जलवायु परिवर्तन (24%), प्रदूषक उत्सर्जन (3%), कृषि (3%), अपशिष्ट प्रबंधन (2%) एवं भारी धातु (2%).
साथ ही, सूचकांक ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरणीय प्रदर्शन पर 10 वर्ष का अवलोकन किया है.
सूचकांक में विश्व का प्रदर्शन
- इस सूचकांक में डेनमार्क और लक्जमबर्ग को क्रमशः प्रथम और द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ है.
- भारत के पड़ोसी देशों जैसे चीन को 120वाँ स्थान, पाकिस्तान को 142वाँ स्थान, श्रीलंका को 109वाँ स्थान, भूटान को 107वाँ स्थान, नेपाल को 145वाँ, बांग्लादेश को 162वाँ और मालदीव को 127वाँ स्थान प्राप्त हुआ है.
सूचकांक में भारत का प्रदर्शन
- इस बार के सूचकांक में भारत ने 180 देशों में से 168वाँ स्थान प्राप्त की .
- 2018 में, भारत ने 100 में से 6 स्कोर के साथ 177वाँ स्थान प्राप्त किया था.
- भारत जलवायु परिवर्तन के मामले में 106वें स्थान पर और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में दूसरे स्थान पर है.
- सूचकांक से ज्ञात होता है कि भारत को वायु और जल की गुणवत्ता, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के लिए अत्यंत प्राथमिकता के साथ स्थिरता के मुद्दों पर व्यापक रूप से ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.
- अफगानिस्तान को यदि छोड़ दें तो शेष सभी दक्षिण-एशियाई देश भारत से कहीं आगे हैं. साथ ही, सतत विकास लक्ष्यों के मामले में भी भारत का स्थान अन्य देशों की तुलना में कम है.
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक के विषय में
- इस सूचकांक को येल विश्वविद्यालय के ‘सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल लॉ एंड पॉलिसी’ तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय के ‘सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इंफॉर्मेशन नेटवर्क’ द्वारा संयुक्त रूप से निर्गत किया जाता है.
- पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक को ‘विश्व आर्थिक मंच’ (World Economic Forum- WEF) के सहयोग से तैयार किया जाता है.
- EPI विश्व के अनेक देशों की सतत् स्थिति का आकलन विभिन्न आँकड़ों के आधार पर करता है.
मेरी राय – मेंस के लिए
पर्यावरणीय समस्याओं का वास्तविक समाधान विकास की पर्यावरणीय लागतों की पहचान करने और इन लागतों को तार्किक बनाने में है. सौर ऊर्जा की ओर तीव्र संक्रमण हेतु सब्सिडी देने के साथ ही अधिक प्रदूषणकारी ईंधनों, जैसे – पेट्रोल और डीजल के दाम के उचित निर्धारण से भी इसे पूरित किया जा सकता है. कोयला-आधारित संयंत्रों द्वारा उत्पादित बिजली की लागत, आंशिक रूप से ही सही उपभोक्ताओं से वसूली जाने वाली कीमत में प्रतिबिंबित होनी चाहिये. धीरे-धीरे हम लोग बिजली से चलने वाले वाहनों का अधिक से अधिक उपयोग करने वाले हैं. ऐसी स्थिति में इनके मूल्य निर्धारण में इनकी सामाजिक लागत का समावेशन किया जाना चाहिये. यह सच है कि पर्यावरण की गुणवत्ता को अचानक बहाल करना असंभव है. परन्तु यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरण सम्बन्धी लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में हम किसी से पीछे नहीं रहें और निरंतर आगे ही बढ़ते रहें.
प्रीलिम्स बूस्टर
बजट 2020: पर्यावरण मंत्रालय को 2020-21 के बजट में 3100 करोड़ रु. की राशि आवंटित की गई है. इस बार राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन के लिए बजटीय आवंटन पिछले वित्त वर्ष में 240 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 311 करोड़ रुपये कर दिया गया है.