हाल ही में सम्पन्न वार्षिक मैड्रिड जलवायु वार्ता से हटकर यूरोपीय संघ ने यह घोषणा की कि वह जलवायु परिवर्तन के विषय में कुछ और उपाय लाने जा रहा है. इन उपायों को यूरोपीय ग्रीन डील (European Green Deal) कहा जा रहा है.
यूरोपीय ग्रीन डील के मुख्य तथ्य
जलवायुगत तटस्थता (Climate neutrality): यूरोपीय संघ ने वचन दिया है कि वह एक ऐसा कानून लाएगा जो सभी सदस्य देशों पर बाध्यकारी होगा और जो 2050 तक यूरोपीय संघ को जलवायु की दृष्टि से तटस्थ बना देगा.
जलवायुगत तटस्थता क्या है?
जलवायुगत तटस्थता का अर्थ है शून्य उत्सर्जन. यह स्थिति तब आती है जब किसी देश में होने वाला उत्सर्जन और ग्रीनहाउस गैसों का वायुमंडल से निष्कासन दोनों संतुलित हो जाते हैं. इसके लिए जंगल जैसे कई कार्बन को आत्मसात करने वाले ठिकाने बनाने पड़ते हैं और साथ ही कार्बन को पकड़ने और जमा करने की तकनीकों को लागू किया जाता है.
2030 के उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्य को बढ़ाना
पेरिस समझौते में यूरोपीय संघ ने यह वचन दिया था कि वह 2030 तक अपने उत्सर्जन में 1990 के स्तर की तुलना में 40% कमी लाएगा. अब वह यह वचन दे रहा है कि यह कमी 40 के स्थान पर 50-55% की जायेगी.
यूरोपीय ग्रीन डील का महात्म्य
- यूरोपीय संघ में 18 देश हैं जो कुल मिलाकर चीन और अमेरिका के बाद तीसरे सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जक हैं. इसलिए यूरोपीय संघ की इस घोषणा के महत्त्व को कम करके नहीं आँका जा सकता.
- परन्तु, विश्व के हित में यह अच्छा होगा कि अन्य देश भी उत्सर्जन को घटाने में ऐसी ही तत्परता दिखाएँ. पिछले कई महीनों से इस पर बल भी दिया जा रहा है जो 2050 तक सभी देश शून्य उत्सर्जन की स्थिति में आ जाएँ. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने पिछले सितम्बर में एक विशेष बैठक भी बुलाई थी जिसमें यह आह्वान किया गया था कि उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त किया जाए. 60 से अधिक देश इसके लिए सहमत भी हुए थे, परन्तु ये सार देश उत्सर्जन के मामले में पीछे हैं अर्थात् कम उत्सर्जन करते हैं.
- यूरोपीय संघ के द्वारा इस डील से 2050 के लक्ष्य को पाना सरल हो जाएगा.
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