Budget से जुड़े तथ्य और बजट के प्रकार

Sansar LochanBudget, Economics Notes

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[stextbox id=”info”]क्या आप जानते हैं?[/stextbox]

१. भारत में वित्तीय वर्ष (financial year) 1 अप्रैल से 30 मार्च तक होता है.

२. बजट (budget) में सरकार इन मदों का ब्यौरा प्रस्तुत करती है – आय-व्यय (income and expenditure), ऋण (loans), अग्रिम राशि (advances) इत्यादि.

३. भारत में पहले एक ही budget पेश किया जाता था. रेल बजट पहले अलग से पेश नहीं किया जाता था. सन् 1921 से बजट के दो भाग कर दिए गए. एक सामान्य बजट (General Budget) दूसरा रेल बजट (Rail Budget). इस  बार के रेल बजट 2016 के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.

४. रेल बजट रेल मंत्री द्वारा लोक सभा में प्रत्येक वर्ष फरवरी मास के तीसरे सप्ताह में किसी दिन पेश किया जाता है और सामान्य बजट वित्त मंत्री (finance minister) द्वारा फरवरी मास के अंतिम कार्य दिवस (working days) को प्रायः 5:00 p.m. पेश किया जाता है (budget is presented).

५. बजट पेश करते समय वित्त मंत्री का भाषण होता है. इसके बाद बजट की एक प्रति राज्य सभा के पटल पर रखी जाती है. इसके बाद मंत्री वित्त विधेयक (finance bill aka budget) पेश करते हैं तथा सदन स्थगित कर दिया जाता है.

204. (2) The Budget shall be presented to the House in such form as the Finance Minister may, after considering the suggestions, if any, of the Estimates Committee, settle

 

बजट पर चर्चाएँ कितने प्रकार की होती हैं ? How many types of budgetary discussion?

Two types of budgetary discussion:

1. सामान्य चर्चा (General Discussion on Budget):– बजट पर पहले सामान्य चर्चा होती है, जो संसद् के दोनों सदनों में तीन या चार दिन तक चलती है. सामान्य चर्चा में सदस्य सरकार की राजकोषीय और आर्थिक नीतियों के सामान्य पहलुओं पर ही विचार करते हैं. राज्य सभा को बजट के सबंध में सामान्य चर्चा के अतिरिक्त कोई शक्ति प्राप्त नहीं है. माँगों पर मतदान केवल लोक सभा में होता है.

2. अनुदान माँगों पर चर्चा (Discussion on Supplementary grants):– प्रत्येक मंत्रालय के लिए प्रस्तावित अनुदानों के लिए अलग माँगें रखी जाती हैं. इन माँगों का सम्बन्ध बजट के व्यय वाले भाग से होता है. माँगों पर चर्चा के दौरान मंत्रालय की नीतियों और कार्यकरण की बारीकी से छानबीन की जाती है. प्रत्येक मंत्रालय  की माँगों के लिए अलग से समय नियत किया जाता है. अनुदान माँगों पर चर्चा के समय सदस्यों द्वारा मूल प्रस्ताव के सहायक प्रस्ताव के रूप में कटौती प्रस्ताव पेश किया जाता है. कटौती प्रस्ताव (Cut motion) तीन प्रकार के होते हैं:–

i) नीति आधारित कटौती प्रस्ताव (Disapproval of Policy Cut): इस प्रस्ताव के अंतर्गत सरकार की नीति का विरोध किया जाता है. इसमें कहा जाता है कि माँग की राशि में से उल्लिखित राशि घटाकर एक रूपया कर दिया जाए.

209.(a) ‘that the amount of the demand be reduced to Re.1/-‘ representing disapproval of the policy underlying the demand. Such a motion shall be known as ‘Disapproval of Policy Cut’.

असल में यह विरोध करने का एक तरीका हुआ.

विपक्ष तो कभी बहुमत में होता ही नहीं है. इसीलिए कटौती प्रस्ताव कभी सफल नहीं हो सकता.

ii) मितव्ययता कटौती प्रस्ताव (Economy Cut): इस प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार के व्यय को कम करना है. इसमें कहा जाता है कि माँग की राशि में से उल्लिखित राशि की कटौती की जाए. कटौती प्रस्ताव सामान्यतया विपक्ष के सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किये जाते हैं. इसका सीधा-सीधा मतलब है कि विपक्ष इस प्रस्ताव के जरिये सरकार की निंदा करना चाहता है.  

यदि कटौती प्रस्ताव किसी प्रकार पास हो जाता है तो यह सरकार की हार मानी जाती है और उसके इस्तीफे की माँग होने लगती है. संसद् की कार्य मंत्रणा समिति (business advisory committee) द्वारा सभी अनुदान माँगों को स्वीकृत करने के लिए एक दिन निर्धारित कर दिया जाता है. उस दिन सभी माँगों को चाहे उन पर चर्चा हुई हो या नहीं हो को मतदान के लिए रख दिया जाता है. इस प्रक्रिया को गिलोटिन (guillotine) कहते हैं. इसके साथ ही अनुदानों की माँगों पर चर्चा समाप्त हो जाती है.

शायद आपने कई बार यह scene टीवी पर देखा होगा:—

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Guillotine process

iii) सांकेतिक कटौती प्रस्ताव (Token Cut): इस प्रस्ताव का उद्देश्य बजट की किसी कमी की ओर संकेत करना है. इसमें कहा जाता है कि माँग राशि में से 100 रु. की कमी की जाए.

विभागों से सम्बंधित स्थायी समितियों द्वारा छानबीन (Role of Standing Committees)

पहले दो या तीन मंत्रालयों की अनुदान माँगों पर ही सदन में चर्चा हो पाती थी और सरकार के अन्य सभी अनुदान की माँगों को बिना किसी संसदीय छानबीन के स्वीकृति दे दी जाती थी. अतः इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए 1994-95 में विभागों से सम्बंधित 17 स्थायी समितियों (standing committees) को अन्य कार्यों के साथ-साथ सम्बंधित मंत्रालयों तथा विभागों की अनुदान माँगों पर विचार करने तथा माँगों पर मतदान होने से पहले सदन को रिपोर्ट करने का कार्यभार सौंपा गया है. अब हर वर्ष संसद् के समक्ष माँगें पेश की जाने के बाद दोनों सदनों को एक मास के लिए स्थगित कर दिया जाता है ताकि सम्बंधित स्थायी समितियाँ उनका निरीक्षण करके उन पर सदन में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकें.

विनियोग विधेयक (Appropriation Bill)

भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) में से कोई धन संसद् द्वारा विधि के अधिनियम के बिना (without passing an enactment) नहीं निकाला जा सकता. इसके लिए लोक सभा में एक विधेयक पेश किया जाता है जिसमें लोक सभा (Lok Sabha) द्वारा स्वीकृत अनुदानों की सब माँगों तथा संचित निधि पर प्रभारित व्यय (charged expenditure) सम्मिलित किया जाता है. इस विधेयक को विनियोग विधेयक कहा जाता है अर्थात् विनियोग विधेयक का अर्थ सरकार को भारत की संचित निधि में से व्यय के विनियोग के लिए कानूनी अधिकार देना है.

वित्त विधेयक (Finance Bill)

वित्त विधेयक वह होता है जिसमें आगामी वर्ष के लिए सरकार के सब वित्तीय प्रस्ताव सम्मिलित किए जाते हैं. यह विधेयक प्रति वर्ष बजट पेश किए जाने के तुरंत बाद पेश किया जाता है. यह विधेयक पेश किए जाने के पश्चात् 75 दिनों के भीतर संसद् द्वारा इस पर विचार करके पास किया जाना और उस पर राष्ट्रपति की अनुमति (permission of the President) लेना आवश्यक  है.

लेखानुदान (Vote on Account)

जब बजट संसद् (parliament) में पेश किया जाता है तब उस पर चर्चा काफी लम्बे समय तक चलती है. विनियोग विधेयक (Appropriation Bill) तथा वित्त विधेयक (finance bill) के पास होने की प्रक्रिया चालू वित्तीय वर्ष (current financial year) के आरम्भ होने के बाद तक चलती रहती है. अतः ऐसी स्थिति में आवश्यक है कि देश प्रशासन चलाने के लिए सरकार के पास पर्याप्त धन हो. इसके लिए लेखानुदान का उपबंध किया गया है जिसके द्वारा लोक सभा को शक्ति प्राप्त है कि वह बजट की प्रक्रिया पूरी होने तक वित्त वर्ष के एक भाग के लिए पेशगी (advance) अनुदान (grant) दे सकती है. लेखानुदान के अंतर्गत समूचे वर्ष के लिए माँगी गयी अनुमानित व्यय (Estimated expenditure) की राशि के 1/6 भाग के बराबर राशि दो माह के लिए ली जाती है. लेखानुदान तब पास होता है जब बजट पर सामान्य चर्चा हो चुकी हो तथा अनुदान माँगों आर चर्चा आरंभ हो चुकी हो.

अनुपूरक तथा अतिरिक्त अनुदान (Supplementary grant and Additional grant)

यदि किसी वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर उस वर्ष के लिए दी गयी राशि से अधिक राशि खर्च हो गयी हो तो राष्ट्रपति ऐसी राशि के लिए अतिरिक्त राशि की माँग लोक सभा में रखवाता है.

जैसे रेलवे को एक बल्ब Rs. 50 में खरीदना था

मगर रेलवे को एक बल्ब Rs. 100 में खरीदना पड़ा…… (100-50=Rs. 50…straight loss)

तो ….

ऐसे अतिरिक्त व्यय के सभी मामले नियंत्रक महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा विनियोग लेखाओं (Appropriation Accounts) पर अपने प्रतिवेदन (report) के माध्यम से संसद् की जानकारी में लाये जाते हैं तथा इन मामलों की जाँच लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee (PAC)) द्वारा की जाती है.

[alert-announce]अनुपूरक अनुदानों की माँगें वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पूर्व सदन में पेश की जाती हैं, जबकि अतिरिक्त अनुदानों की माँगें वास्तव में राशियाँ खर्च कर चुकने के बाद और उस वित्तीय वर्ष के बीत जाने के बाद पेश की जाती हैं.[/alert-announce]

प्रत्यनुदान और अपवादानुदान (Vote of credit and Exceptional grants)

किसी राष्ट्रीय आपात (emergency period) के कारण सरकार को धन की अप्रत्याशित माँग को पूरा करने के लिए निधियों की आवश्यकता हो सकती है जिसके पूर्व अनुदान देना संभव न हो ,ऐसी स्थिति में सदन बिना ब्यौरे दिए प्रत्यनुदान के माध्यम से एकमुश्त धनराशि दे सकता है.

Exceptional Grants के अंतर्गत ऐसी योजना के लिए धन माँगा जाता है जो बिल्कुल नई योजना (new scheme) हो तथा जिसका बजट में नामो-निशान न हो. ऐसी स्थिति में सदन उस विशेष प्रयोजन के लिए अलग से धनराशि दे सकता है.

 

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