बार-बार मिली असफलता से मैं अपने जीवन से हार गई हूँ. क्या करूँ? [Comment of the Week]

Sansar LochanComment of the Week, Success Mantra

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हमारे वेबसाइट की पाठिका रागिनी अग्रवाल ने कुछ दिन पहले मेरे ब्लॉग पर कमेंट किया जो मेरे दिल को छू गया. इसलिए उस कमेंट को मैंने Comment of the Week के लिए चुना. कमेंट कुछ इस तरह था –

सर, मेरा बचपन से IAS बनने का मन था. पर घर में बिल्कुल विपरीत परिस्थिति है. रोज-रोज के झगड़े-कलह से मेरा पढ़ाई से ध्यान भटक जाता है. फिर भी मैं किसी तरह से समय निकाल ही लेती हूँ. पर अन्दर से उत्साह की बहुत कमी हो जाती है. कभी-कभी लगता है कि सब छोड़-छाड़ दूँ. इस नरक जैसे माहौल को स्वर्ग कैसे बनाऊं? क्या यह संभव है? कृपया मेरी मदद करें.”

जिसने भी यह कमेंट किया है, उनकी परिस्थिति को  मैं भली-भाँति समझ सकता हूँ. रागिनी जी और आप सभी को मैं दो कहानियाँ सुनाना चाहूँगा. पुरानी बात है. गिरजाघर के पादरी को स्वर्ग के दूत लेने के लिए पधारे. दूत ने कहा कि पादरी जी, अब आपका समय पूरा हो गया है. आपको हमारे साथ चलना है. बेचारे पादरी साहब क्या करते? स्वर्ग के दूत के साथ चल पड़े. आखिर वे एक ऐसी जगह पहुँचे जहाँ की हवा सुहावनी थी. जल निर्मल था और वातावरण सुगंधमय था. पादरी ने पूछा, यह कौन-सा स्थान है? दूत ने कहा, यह स्वर्ग है. पादरी ने कहा, मेरा एक मित्र है विलियम. वह भी शायद स्वर्ग में ही होगा, क्या मैं उससे मिल सकता हूँ? दूत ने कहा, क्या वह भी कोई पादरी था? पादरी महाशय ने उत्तर दिया “नहीं, वह तो पूरी तरह से नास्तिक था. जैसे वह भगवान् लेने का नाम जानता ही नहीं था.”

“अच्छा-अच्छा, तो आप थॉमस विलियम की बात कर रहे हैं?”

“हाँ-हाँ. वही. थॉमस विलियम!” क्या आप उसे जानते हो? क्या आप मुझे उससे मिलवा सकते हो?

“लेकिन वह तो इस समय नरक में है.” दूत ने कहा. यह सुनकर पादरी का चेहरा उतर गया. पादरी बोले – “मैं उससे पहले ही कहा करता था. लेकिन उसने कभी मेरी बात मानी ही नहीं. आखिर उसे नरक में ही जाना पड़ा.” लेकिन मैं क्या उससे मिल सकता हूँ? हो सकता है नरक में रहते हुए वह मेरी बात समझ जाते. दूत पादरी को नरक में ले गया. वहाँ बड़ी बदबू थी और अँधेरा था. नरक की पाँच सीढ़ियाँ उतरने के बाद अचानक उन्हें खुशबू आई. पाँचवी मंजिल बड़ी ख़ूबसूरत थी. वहाँ के रहने वाले फूलों के हार पहने नाच रहे थे. एकाएक पादरी साहब चिल्लाए “विली, विली, तुमने मुझे पहचाना? मैं पादरी जॉसेफ!” और उन्होंने विली को गले से लगा लिया. पादरी ने कहा, विलियम मुझे तुम्हारे लिए बहुत दुःख है कि नरक में तुम कष्ट उठा रहे हो. विलियम हँस कर बोला, कष्ट? कैसा कष्ट? मेरे चारों ओर तो आनंद ही आनंद है. इस जगह का नाम नरक है तो क्या हुआ? तुम्हारे स्वर्ग से तो अच्छी है. मैं जब यहाँ आया था तो यहाँ के रहने वाले सब लोग काहिल थे, आलसी थे. लेकिन मैं काहिल नहीं था. मैंने इन्हें उठाया, समझाया और फिर फावड़े और कुदाली लेकर, बंजर जमीन को खोदना शुरू किया. उसमें फूलों के बीज डाले और चारों तरफ फूलों की वाटिका बनाई. पादरी साहब, मैं अपने पर भरोसा रखकर अपने हाथों से काम करना चाहता हूँ. जो काम करना जानते हैं वो नरक को भी स्वर्ग बना लेते हैं.

जीवन में श्रम करने से कभी घबराना नहीं चाहिए. जो लोग किसी काम को करने से पहले ही यह मान लेते हैं कि मैं इसे नहीं कर पाऊँगा, वे सफलता की मंजिल से हमेशा दूर रहते हैं. दरअसल इस तरह की सोच वाले व्यक्ति वे होते हैं, जिनका आत्मविश्वास कमजोर होता है. यदि हमारा आत्मविश्वास सुदृढ़ है तो हम बड़े साहस के साथ किसी काम को उठा लेते हैं और उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं.

एक और कहानी आपको सुनाता हूँ.

एक बार एक आदमी कहीं जा रहा था. उसने एक गधे से पूछा, “जीवन क्या है?” गधा बोला, “हरी हरी घास चरना और उसमें लोट लगाना ही जीवन है.” वह व्यक्ति आगे बढ़ा और उसने एक भिखारी को देखा. वह भिखारी के पास गया और उसे पूछा, “जीवन क्या है?” भिखारी ने कहा, “बिना श्रम किए अच्छा माल उड़ाने को मिल जाए यही जीवन का असली आनंद है.” वह व्यक्ति अभी कुछ और आगे को चला तो उसे खेत पर काम करता एक किसान मिला. उस व्यक्ति ने किसान से पूछा, “जीवन क्या है?” किसान ने उसकी बात को अनसुना कर दिया, और अपना काम करता रहा. उस व्यक्ति ने किसान के और भी नजदीक जा कर फिर से पूछा, “जीवन क्या है?” किसान ने फावड़ा एक ओर रखा और चिढ़ कर बोला, तुम्हारे पास कोई काम नहीं है क्या? वह व्यक्ति मुंह लटकाए चला गया.

दरअसल, जीवन का अर्थ ही काम है, श्रम है, गति है. जिन्होंने इस रहस्य को नहीं समझा है वे जीवन की सार्थकता को नहीं समझ पाते. जीवन में सफलता और असफलता दोनों का हमें सामना करना पड़ता है. असफलता मिलने का अर्थ यह नहीं है कि हम निराश होकर बैठ जाएँ और दूसरे किसी काम को शुरू करने के पहले ही यह मान लें कि हमें सफलता नहीं मिलेगी. किसी भी समय और किसी भी कार्य में हमें प्रतिस्पर्द्धा (competition) का सामना करता पड़ता है. किसी भी प्रतिस्पर्धा में उसका परिणाम (result) हार या जीत होता है. हार का अर्थ है कि हम में कहीं न कहीं कुछ कमी है. जब हम हारते हैं, असफल होते हैं तो हमें अपनी कमियों को जानने की कोशिश करनी चाहिए. हमें अपनी कमियों पर व्यापक ढंग से सोच विचार करना चाहिए. अपनी कमियों को इस प्रकार खोजने को ही तो अंतर्दृष्टि कहते हैं और अंतर्दृष्टि में हम अपनी गलतियों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र की तरह देखने का प्रयत्न करते हैं. यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम असफलता के कारणों को नहीं जान पाते. जो लोग सदैव अपनी कमियों को नजरअंदाज करके औरों के दोषों को निहार कर प्रसन्न होते हैं वे कभी न तो अपनी कमियों को जान पाते हैं, और न ही सफलता की मंजिल पहुँच पाते हैं.

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