[Sansar Editorial] प्रवासी सांसद सम्मेलन 2018 के विषय में जानकारी

Sansar LochanSansar Editorial 2018

भारत सरकार ने 9 जनवरी, 2018 को प्रवासी भारतीय दिवस (Pravasi Bhartiya Diwas) का आयोजन किया. दरअसल महात्मा गाँधी 9 जनवरी के दिन ही दक्षिण अफ्रीका से 1915 में स्वदेश वापस लौटे थे. आजादी के बाद से ही बनारसी दास चतुर्वेदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को प्रवासी भारतीय केंद्र बनाने का सुझाव दिया था. लेकिन यह सपना बहुत बाद में पूरा हो पाया. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2003 से प्रवासी भारतीय सम्मेलन की शुरुआत की. इसके बाद मनमोहन सिंह सरकार ने अलग प्रवासी मंत्रालय बनाया जिसे नरेंद्र मोदी सरकार ने विदेश मंत्रालय का अंग बना दिया.

प्रवासी भारतीय सम्मेलन

अब तक कई प्रवासी भारतीय सम्मेलन हो चुके हैं लेकिन 2018 का प्रवासी भारतीय सम्मेलन कुछ अलग रहा. भारत सरकार ने 9 जनवरी को दिल्ली में भारतीय मूल के सांसदों और मेयरों का एक सम्मेलन बुलाया. इसमें 24 देशों के करीब 140 प्रवासी जन-प्रतिनिधियों (121 सांसद + 18 मेयर) ने हिस्सा लिया. इन प्रतिनिधियों का मानना है कि इस कार्यक्रम से अलग-अलग देशों से भारत के सांस्कृतिक, व्यापारिक और द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत होंगे. सरकार की ओर से पहली बार इस तरह का आयोजन किया गया. जानकार मानते हैं कि पूरी दुनिया में भी यह अपनी तरह का पहला सम्मेलन था.

यह सम्मेलन प्रवासी भारतीयों से संपर्क के जरिये दुनिया भर के देशों से रिश्ते मजबूत करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया. सम्मेलन में परिचर्चा के लिए दो सत्र रखे गए थे. इनमें पहले सत्र में प्रवासी भारतीय सांसदों के संघर्ष से लेकर संसद तक की यात्रा पर चर्चा हुई. दूसरे सत्र में प्रवासी भारतीय सांसदों की उभरते भारत में भूमिका पर बात हुई.

प्रवासी भारतीय सम्मेलन में मलेशिया, स्विट्ज़रलैंड, ब्रिटेन, कनाडा, फिजी, केन्या, मोरिशस, न्यूज़ीलैण्ड और श्रीलंका से आये प्रतिनिधि शामिल थे. हालाँकि सेनेट के सत्र की वजह से अमेरिका के प्रतिनिधि सम्मेलन में शिरकत नहीं कर पाए. सम्मेलन में श्रीलंका के अलावा किसी दक्षेस देश (SAARC countries) को आमंत्रण नहीं भेजा गया था.

Some Facts about PIO

  1. आबादी के लिहाज से प्रवासी भारतीय दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं.
  2. इनकी संख्या करीब 3 करोड़ 12 लाख है.
  3. लगभग सभी देशों में भारतीय मूल के लोग रहते हैं.
  4. आज 30 देशों में 285 से अधिक सांसद भारतीय मूल के हैं.
  5. आयरलैंड और पुर्तगाल में भारतवंशी प्रधानमंत्री के पद तक पहुँच चुके हैं.

प्रवासी भारतीय और भारतीय मूल के विदेशियों में फर्क

दुनिया के तकरीबन हर देश में भारतवंशी मौजूद हैं. हालाँकि लोग अक्सर प्रवासी भारतीय और भारतीय मूल के विदेशियों में फर्क नहीं समझ पाते हैं.

विदेश जाना भारतीयों के लिए कोई नयी बात नहीं है. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बड़ी संख्या में भारतीय विदेशों में जाकर बसे. आजादी के बाद से लेकर अब तक यह पलायन जारी है. इस वक्त दुनिया में करीब 2.5 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनकी जड़ें भारत से जुड़ी हैं लेकिन वे विदेशों में रह रहे हैं. ऐसे लोगों को दो भागों में बाँटा जा सकता है.

  1. वे लोग जो भारत का पासपोर्ट रखते हैं और भारत के नागरिक हैं लेकिन विदेश में रह रहे हैं –  प्रवासी भारतीय
  2. वे लोग जो कई पीढ़ियों से विदेशों में ही रह रहे हैं और वहीं के नागरिक बन गए हैं – भारतीय मूल के विदेशी अर्थात् भारतवंशी

NRI, PIO और OCI कौन हैं?

NRI

विदेश में रहने वाले भारतीय NRI यानी Non Resident Indians नौकरी, शिक्षा या किसी दूसरी वजह से अस्थाई तौर पर दूसरे देशों में रहते हैं.

PIO

विदेशी मूल के भारतीय भारत के नागरिक नहीं होते. उनके पूर्वज भारतीय थे.

OCI

OCI यानी Overseas Citizens of India वे हैं जो 26 जनवरी, 1950 के बाद भारत से जा कर विदेशों में बस गए हों. दुनिया के 48 देशों में रह रहे प्रवासियों की जनसंख्या करीब 2 करोड़ है. इनमें सबसे ज्यादा प्रवासी भारतीय अमेरिका में रहते हैं जहाँ इनकी संख्या 34 लाख से अधिक है. सऊदी अरब में करीब 30 लाख भारतीय हैं. मलेशिया में करीब 25 लाख प्रवासी और संयुक्त अरब अमीरात में 22 लाख प्रवासी हैं. इनके अलावा ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में भी इनकी संख्या अच्छी-खासी है.

प्रवासी भारतीयों का योगदान

ये देश के अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान अदा कर रहे हैं. विश्व बैंक के अनुसार पिछले दशक में प्रवासी भारतीयों ने लाखों डॉलर कमाकर भारत भेजे हैं. साल 2002 से 2012 के बीच घर भेजे गए धन में 3 गुणा वृद्धि दर्ज की गई थी. विश्व बैंक की मानी जाए तो भारतीय अब तक 70 billion dollars से अधिक अपने घर भेज चुके हैं.

फिजी, मोरिशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, टोबैगो में तो प्रतिशत के लिहाज से भारतीय मूल के लोग प्रभाव डालने के हालत में हैं. मोरिशस में 68% लोग भारतीय मूल के हैं. इनमें से कई देशों में भारतीय मूल के लोग प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से लेकर मंत्री रह चुके हैं.

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