आजकल फ्लाई ऐश (fly ash) बहुत सुर्ख़ियों में है. हर जगह इससे उत्पन्न पर्यावरणिक और स्वास्थ्य सम्बंधित खतरों की बात चल रही है. सरकार ने हाल ही में एक वेब आधारित निगरानी प्रणाली और फ्लाई ऐप मोबाइल एप्लीकेशन का आरम्भ किया है. आइये जानते हैं क्या है फ्लाई ऐश और कैसे यह हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरा बन रहा है. यह भी जानेंगे कि किन चीजों में हम इसका उपयोग करने में मजबूर हैं?
Fly Ash की परिभाषा
फ्लाई ऐश एक बारीक पाउडर है जो तापीय बिजली संयंत्रों में कोयले के जलने से उप-उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है.
इसमें भारी धातु होते हैं और साथ ही PM 2.5 और ब्लैक कार्बन भी होते हैं.
इसमें पाया जाने वाला PM 2.5 गर्मियों में हवा के माध्यम से उड़ते-उड़ते 20 किलोमीटर तक फ़ैल जाता है. यह पानी और अन्य सतहों पर जम जाता है.
तो फिर खतरा कैसे?
फ्लाई ऐश में सिलिका, एल्यूमीनियम और कैल्शियम के ऑक्साइड की पर्याप्त मात्रा होती है. आर्सेनिक, बोरान, क्रोमियम तथा सीसा जैसे तत्त्व भी सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते हैं. इस प्रकार इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट उत्पन्न होता है.
फैक्ट्रियों से निकलने वाले कोयले के धुओं से फ्लाई ऐश तो वातावरण में फैलता ही है साथ ही साथ कई बार फैक्ट्रियाँ फ्लाई ऐश को जमा कर के बाहर उनका भंडार बना देती हैं. ये सारे कचरे जमा हो-हो कर कभी-कभी पहाड़ जैसा बन जाते हैं. वहाँ से फ्लाई ऐश वातावरण को प्रदूषित करते ही हैं और बहुधा नदी/नहरों में भी फ्लाई ऐश के अंश चले जाते हैं.
फ्लाई ऐश का उपयोग कहाँ किया जा सकता है?
- इसे कृषि में अम्लीय मृदाओं के लिए एक अभिकारक के रूप में, मृदा कंडीशनर के रूप में प्रयोग किया जा सकता है. इससे मृदा की महत्त्वपूर्ण भौतिक-रसायन विशेषताओं, जैसे जल धारण क्षमता, हाइड्रोक्लोरिक कंडक्टिविटी आदि में सुधार होगा.
- भारत अभी तक फ्लाई ऐश प्रयोग की अपनी संभावनाओं का पूर्ण प्रयोग कर पाने में सक्षम नहीं है. हाल ही के CSE के एक अध्ययन के अनुसार, उत्पादित की जाने वाले फ्लाई ऐश का मात्र 50-60% ही प्रयोग हो पाता है.
- फ्लाई ऐश का उपयोग सीमेंट, पूर्वनिर्मित भवन सामग्री, ईंटें, सड़कें, आवास एवं औद्योगिक भवनों, बाँधों, फ्लाईओवर, बंजर भूमि के सुधार, खानों के भराव और अन्य सभी निर्माण कार्यों के लिए किया जा सकता है. इन उपयोगों को उचित रूप से बढ़ावा देना चाहिए.
सरकार द्वारा उठाये गये कदम
इसकी सम्भावनाओं के पूर्ण प्रयोग के लिए सरकार द्वारा निम्नलिखित कदम उठाये गये हैं –
- MoEF (The Ministry of Environment & Forests) द्वारा 2009 में जारी की गई अधिसूचना में फ्लाई ऐश के उपयोग के विषय में दिशानिर्देश दिए गये हैं. उसमें यह लिखा है कि MoEF तापीय बिजली संयंत्र की 100 km. की परिधि में fly ash के प्रयोग का समर्थन करता है.
- IIT कानपुर और IIT दिल्ली ने NTPC के साथ मिलकर fly ash को लेकर नवाचारी उपयोग करने का प्रयास किया है. उन्होंने हाल ही में Pre-Stressed Railway concrete sleepers का निर्माण किया है.
- फ्लाई ऐश के उपयोग के लिए नीति बनाने वाला महाराष्ट्र देश का प्रथम राज्य बन गया है. महाराष्ट्र ने सिंगापुर व दुबई जैसे स्थानों से आने वाली माँग को देखते हुए फ्लाई ऐश के निर्यात की एक नीति भी बनाई है जिसमें तापीय बिजली संयंत्रों के आस-पास सीमेंट जैसे ऐश-आधारित औद्योगिक संकुलों के विकास की घोषणा की गई है.
- कोल ऐश (coal ash/fly ash) का उपयोग कृषि भूमि में उत्पादकता बढ़ाने के लिए किया जा सकता है. इसलिए किसानों के बीच फ्लाई ऐश के उपयोग को बढ़ावा देने के कार्यक्रम में कृषि विभाग को भी शामिल किया गया है.
- सरकार ने फ्लाई ऐश का निर्यात करने का भी निर्णय लिया है जिससे 1,500 करोड़ रुपये की राजस्व-प्राप्ति हो सकती है.
आगे की राह
फ्लाई ऐश के 100% उपयोग के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाये जा सकते हैं –
- आस-पास के बाजारों में फ्लाई ऐश आधारित भवन-उत्पादों को उपलब्ध कराना.
- रेलवे लाइनों को बिछाने के लिए स्लीपर-निर्माण में फ्लाई ऐश के उपयोग को प्रोत्साहित करना.
- कृषि और बंजर भूमि के सुधार में इसके उपयोग के बारे में जागरूकता में वृद्धि करना.
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