[Sansar Editorial] खाद्य सुरक्षा एवं मानक (लेवलिंग एंड डिस्प्ले) विनियमावली, 2019 का प्रारूप : एक स्वागतयोग्य पहल

Sansar LochanSansar Editorial 2019

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के खाद्य सुरक्षा एवं मानक (लेवलिंग एंड डिस्प्ले) विनियमावली 2019 के प्रारूप का स्वागत किया है. कानून बन जाने के बाद यह प्रारूप वर्तमान खाद्य सुरक्षा एवं मानक (पैकेजिंग एंड लेवलिंग) विनियमावली, 2011 का स्थान ले लेगा.

fssai

प्रारूप के विषय में मुख्य तथ्य

  • खाद्य कंपनियों को डिब्बाबंद उत्पादों पर ‘लाल रंग में’ उत्पाद में विद्यमान वसा, चीनी और नमक के उच्च स्तर का जिक्र करना होगा.
  • यह भी जिक्र करना होगा कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में कितनी मात्रा में क्या-क्या पदार्थ मिलाया गया है ताकि आम नागरिक को पता चले कि वे जो उत्पाद खरीदने जा रहे हैं उसमें किस मात्रा में क्या-क्या चीजें मिली हुई हैं.
  • इन नियमों को बनाने का उद्देश्य उपभोक्ताओं को स्वस्थ खाद्य पदार्थ का विकल्प देना है.
  • खाद्य सुरक्षा एवं मानक (लेबलिंग एवं डिस्प्ले) विनियमावली के प्रस्तावित प्रारूप के अनुसार खाद्य कंपनियों को अब पैकिंग के सामने के हिस्से में कैलोरी (ऊर्जा), वसा, ट्रांस वसा, चीनी और सोडियम की मात्रा जैसी पोषण से सम्बंधित जानकारियाँ लिखनी पड़ेंगी.
  • इन नियमों को तीन वर्ष के अन्दर-अन्दर चरणबद्ध प्रकार से लागू किया जाना है.
  • FSSAI ने अपनी वेबसाइट पर हितधारकों से प्रारूप जारी होने के 30 दिन के अन्दर-अन्दर अपने सुझाव और आपत्तियाँ भेजने की गुहार की है.
  • प्रस्तावित प्रारूप में यह भी बतलाया गया है कि कंपनियों को भोजन की मात्रा एवं एक बार में परोसे जाने वाले भोजन में पोषक तत्त्व की मात्रा क्या होगी आदि की जानकारी भी अनिवार्य रूप से देनी होगी. यह रेकमेंडेड डायट्री अलाउंस (RDA) के अनुसार होनी चाहिए.
  • आज की तिथि में कंपनियाँ उत्पाद का निर्माण कब हुआ और उसकी एक्सपायरी डेट कब है, इसकी जानकारी अलग-अलग जगह देती हैं. ग्राहकों को इसे ढूँढने और देखने में काफी समय लग जाता है, यहाँ तक कभी-कभी वे इन जानकारियों को ढूँढ ही नहीं पाते हैं. इसे देखते हुए नए नियमों में निर्माण और खराब होने की तारीख (एक्सपायरी) का उल्लेख एक ही जगह पर करने का प्रस्ताव किया गया है.

क्या फायदा होगा?

  • यह एक बड़ा कदम है जो लोगों को उच्च वसा, चीनी और नमक युक्त अस्वस्थ भोजन को पहचानने में सहयोग करेगा. इससे मोटापे के बढ़ते मामलों और गैर-संक्रामक रोगों को सीमित करने में मदद मिलनी चाहिए।
  • जैसा कि ऊपर बताया गया है कि इस प्रारूप में सोडियम की मात्रा, एडेड सुगर, सम्पृक्त वसा, ट्रांसफैट और कोलेस्ट्रॉल की जानकारी देने को अनिवार्य बना दिया गया है. अतः अब आम नागरिक उत्पाद खरीदने से पहले सोच सकेंगे कि वह उत्पाद उनके स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्यकर है भी या नहीं.
  • जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत में मधुमेह और उच्च रक्तचाप की बीमारी आजकल लगभग हर घर में है. इसलिए नमक, चीनी, वसा आदि की मात्रा की लेबलिंग अत्यावश्यक है. पैकेटबंद भोजन में इन चीजों की मात्रा बहुत ज्यादा रहती है और सामान्यतः इसकी जानकारी छुपा दी जाती है. इससे स्वास्थ्य पर सीधा प्रतिकूल असर पड़ता है.
  • प्रारूप जब कानून का रूप लेगा तो यह भारत के खाद्य सुरक्षा कानूनों में मील का पत्थर सिद्ध होगा.
  • सीएसई ने एफएसएसएआई को कुछ सुझाव दिए हैं जिनसे मसौदे को और भी प्रभावी बनाए जा सके.
  • फ़ास्ट फ़ूड उत्पाद को लाल रंग की चेतावनी से आसानी से पहचाना जा सकता है. इसलिए भारत देश, जहाँ साक्षरता अधिक नहीं है, के नागरिक के समक्ष भाषा आड़े नहीं आएगी.

FSSAI

  • भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India – FSSAI) की स्थापना खाद्य सुरक्षा तथा मानक अधिनियम, 2006 के अन्तर्गत की गई है.
  • इसका उद्देश्य खाद्य सामग्री के लिये विज्ञान पर आधारित मानकों का निर्माण करना तथा खाद्य पदार्थों के विनिर्माण, भण्डारण, वितरण, बिक्री तथा आयात आदि को नियन्त्रित करना है जिससे मानव-उपभोग के लिये सुरक्षित तथा सम्पूर्ण आहार की उपलब्धि सुनिश्चित की जा सके.
  • खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी भारत सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं.
  • अध्यक्ष भारत सरकार के सचिव के पद का होता है.

आगे की राह

ग्राहकों से यह कहना कि वह अपने खाने की आदत ही बदल दें या उपभोक्ताओं को अपनी खुराक और जीवनशैली के अनुरूप उपयुक्त खानपान को लेकर जागरूक करना संभव प्रतीत नहीं होता है. क्योंकि हममें ऐसे बहुत लोग हैं जो बिना सोच-विचार कर खाना खाते जाते हैं. हम स्वास्थ्यवर्द्धक और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले खाद्य पदार्थों के बीच भेद करने में असमर्थ रहते हैं. हम अगर कंपनियों से लेबल लगाने के नियमों का कड़ाई से पालन करने के लिये कहकर आपूर्ति पक्ष के स्तर पर इसका समाधान करते हैं तो कुछ बदलाव ला सकते हैं. फास्ट फूड आउटलेट्स में परोसा जाने वाला जंक फूड भी इस प्रारूप के दायरे में लाया जाना चाहिए. साथ ही जंक फूड का विज्ञापन भी बच्चों को लक्षित करने से रोका जाना चाहिए. देश में लगभग 1.44 करोड़ बच्चे अधिक वजन वाले हैं. मोटापा कई स्वास्थ्य समस्याओं का प्रमुख कारण है और विश्व स्तर पर लगभग दो अरब बच्चे और वयस्क इस तरह की समस्याओं से पीड़ित हैं. IMA का कहना है कि आजकल बच्चों में मोटापे की वृद्धि दर वयस्कों की तुलना में बहुत अधिक है. आंकड़े बताते हैं मोटे कि बच्चों के मामले में चीन के बाद दुनिया में भारत का दूसरा नंबर है.

जीवनशैली में परिवर्तन के साथ नमक, चीनी और वसा का उपभोग कम करने की आवश्यकता है. उद्योग जगत को इस बदलाव का समर्थन करना चाहिए जिससे सरकार, नागरिक और उद्योग के बीच तालमेल बैठ पाए.

Tags : New draft Food Safety and Standards (Labelling and Display) Regulations, 2019

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