पल्लवों के समकालीन राज्यों में एक गंग वश का साम्राज्य था. इसे तलनाड का गंग वंश भी कहा जाता है. अनुश्रुति के अनुसार, गंग राजवंश इक्ष्वाकु वंश से उत्पन्न हुआ था. इन्होंने अपनी ऐतिहासिक महत्ता स्थापित करने के लिए स्वयं को गंग वंश कहलवाया. क्योंकि वे प्राचीन काल में गंगा नदी के किनारे से आये थे.
इनकी दो शाखाएँ थीं. एक को पूर्वी शाखा तथा दूसरी को पश्चिमी शाखा कहा जाता था. पूर्वी शाखा कलिंग पर पांचवीं शताब्दी में तथा पश्चिमी शाखा मैसूर तथा कावेरी के बेसिन पर चौथी शताब्दी में शासन करती थी.
सर्वप्रथम कुलवुल या कोलार इनकी राजधानी थी लेकिन बाद में इन्होंने तलवनपुर अथवा तलवाड (कावेरी के तट पर स्थित) को अपनी राजधानी बनाया .
गंग वंश के राजा
सम्भवतः इस वंश के संस्थापक दिदिग था. इसका दूसरा महत्त्वपूर्ण शासक माधव था. इस वंश का सर्वाधिक वीर शासक दुर्विनीति था जिसने पल्लवों के साथ सफलतापूर्वक युद्ध किया. वह वीर होने के साथ-साथ साहित्य प्रेमी भी था. उसने भारवि रचित किरातार्जुनीयम् पर टीका लिखी तथा पैशाची ग्रंथ वृहत्कथा का भी संस्कृत में अनुवाद किया. इस राज्य का एक अन्य प्रसिद्ध शासक श्री पुरुष था. उसने पल्लवों तथा राष्ट्रकूटों को पराजित किया. इसके बाद चालुक्यों और राष्ट्रकूटों के आक्रमणों ने गंग वंश के राज्य के विघटन की प्रक्रिया को तीव्र कर दिया.
गंग वंश के राजा शिवमार राष्ट्रकूटों का बंदी रहा. परन्तु राजमल्ल गंग के काल में इस राज्य का पुनरुत्थान हुआ. चोलों ने 1004 ई० में इसकी राजधानी तलवाड को जीत लिया. गंग वंश के राजा अपने भूमि अनुदानों के लिए इतिहास में अधिक प्रसिद्ध हैं. उन्होंने जैन धर्म के अनुयायियों को उदार हृदय से खूब भूमि अनुदान दिये लेकिन ब्राह्मणों पर अपनी विशेष कृपा बनाये रखी. इनके काल में अनेक सुन्दर मूर्तियों का भी निर्माण हुआ.
इस वंश का पतन
संक्षेप में कहा जा सकता है कि दक्षिण भारत में 300 ई० से 750 ई० तक कई राजनैतिक वंशों तथा शक्तियों ने सत्ता सम्भाली जिसमें वाकाटक वंश, चालुक्य वंश, पल्लव वंश, इक्ष्वाकु वंश, कदम्ब वंश, गंग आदि प्रमुख थे.
पल्लव तथा उसके समसामयिक पड़ौसी राज्यों के विरुद्ध कालाभ्रों ने छठी शताब्दी में विद्रोह किया. कहा जाता है कि कालाभ्र बौद्ध मतावलम्बी थे तथा उनके विरुद्ध पाण्ड्य, पल्लवों और बादामी चालुक्यों ने संयुक्त प्रयासों द्वारा उनके विद्रोह को दबाया.
कालान्तर में चालुक्यों तथा कदम्बों का स्थान राष्ट्रकूटों एवं पल्लव तथा गंग वंश का स्थान चोलों ने ले लिया. राष्ट्रकूटों तथा चोलों के साथ- साथ होयसल, काकतीय तथा पाण्ड्य वंश तथा चोल वंश की सत्ता अपने-अपने शासन काल तक चलती रही. कालान्तर में दक्षिण में बहमनी तथा विजयनगर साम्राज्य का उदय हुआ. इन सभी शक्तियों का उल्लेख पूर्व मध्यकालीन भारत में यथास्थान किया जायेगा. अब दक्षिणी भारत की 300 ई०से 750 ई० तक सामान्य सामाजिक स्थिति की प्रमुख व्यवस्थाओं का अध्ययन कर लेना समीचीन होगा. यह सब चर्चा हम आगे की पोस्ट में करेंगे.