TOPICS – भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध, भारत और अमेरिका के बीच सम्बन्ध
Syllabus, GS Paper III : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ, देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास.
- अपने उत्तर में अंडर-लाइन करना है = Green
- आपके उत्तर को दूसरों से अलग और यूनिक बनाएगा = Yellow
Q1. जीन सम्पादन से आप क्या समझते हैं? इसके संभावित लाभों का संक्षेप में उल्लेख करें.
उत्तर :-
गुणसूत्रों पर स्थित डी.एन.ए. (A.) की बनी वे अति सूक्ष्म रचनाएँ जो आनुवांशिक लक्षणों का धारण एवं उनका एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरण करती हैं, जीन कहलाती हैं. जीन, डी.एन.ए. के न्यूक्लियोटाइड का ऐसा अनुक्रम है, जिसमें सन्निहित कूटबद्ध सूचनाओं से अंततः प्रोटीन के संश्लेषण का कार्य संपन्न होता है. जीनों में कूटबद्ध सूचनाओं से ही आगामी पीढ़ी की सन्तान की कद, चमड़े अथवा बाल का रंग, अन्य शारीरिक विशेषताएँ और यहाँ तक की व्यावहारिक गुण आते हैं. वैज्ञानिक कभी-कभी विशेष तकनीक से एक प्राणी अथवा पौधे से दूसरे प्राणी अथवा पौधे में जीनों का हस्तांतरण करते हैं जिससे प्राणी के आनुवंशिक गुणों में रूपांतरण हो जाता है. इस प्रक्रिया को जीन सम्पादन कहते हैं.
जीन सम्पादन के लाभ
- जीन सम्पादन के कई समर्थकों ने उपयोगितावादी सिद्धांतों के आधार पर इसके उपयोग को उचित माना है अर्थात् रोगों का उपचार करना या उनकी रोकथाम करना भी हमारा कर्तव्य है.
- HIV/AIDS, हीमोफिलिया जैसे कई रोगों और आनुवांशिक विकारों के उपचार के लिए ह्यूमन जीनोम एडिटिंग का प्रयोग किया जा सकता है.
- वस्तुतः यह मनुष्यों में रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ा सकती है और उनकी आय में वृद्धि कर सकती है.
- यह अगली पीढ़ी की अत्यधिक कुशल और लागत प्रभावी एंटीबायोटिक दवाओं का आधार बन सकती है.
- जीन सम्पादन का प्रयोग लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण में भी किया जा सकता है. इसका प्रयोग विलुप्त प्रजातियों की पुनर्प्राप्ति के लिए भी किया जा सकता है.
- इसका उपयोग पोषक खाद्य पदार्थों (फोर्टिफिकेशन के जरिये) और कृषि उपज में वृद्धि के लिए किया जा सकता है.
- इसमें रोगों के प्रसार की गति को मंद (रोगों के संचरण के साधनों को समाप्त करके) करने की क्षमता है. उदाहरण के लिए जीन एडिटिंग का उपयोग पर्यावरण में अप्रजननकारी मच्छरों के प्रवेश हेतु किया जा सकता है.
जीन सम्पादन के उचित और अनुचित उपयोगों के विषय में निरंतर सार्वजनिक विचार-विमर्श जारी रखना चाहिए. जो लोग जीन सम्पादन तकनीक को खतरनाक बताते हैं, उनके भी तर्क को सुनना चाहिए. पर्याप्त शोध के साथ, आनुवंशिक परिवर्तन के सम्बन्ध में हमारी समझ को बढ़ाना अभी भी शेष है.
हमारे चश्मे से
वैसे तो आपके पास भी कई पॉइंट दिमाग में होंगे, आप कमेंट कर जरुर बताएँ. हर लोगों के पास अलग-अलग पॉइंट होता है, उसे कैसे और कब लिखना है यह हर व्यक्ति के लेखन क्षमता पर निर्भर करता है. मगर याद रखें कि यहाँ आपसे जीन सम्पादन की परिभाषा बताने को कहा गया है, इसलिए शुरुआत हम उसी से करेंगे. अंत में विश्लेषण देना जरुरी है. या कुछ ऐसा बात कहना जरुरी है जिसमें “चाहिए…चाहिए…ये चाहिए, वो चाहिए…” भरा पड़ा हो. यह आपकी विश्लेषणात्मक राय होती है जो परीक्षक का ध्यान आकृष्ट करती है. इसलिए जीन सम्पदान के लाभ को गिनाकर छोड़ न दें…भले ही लाभ के बारे में आप कह रहे हों, पर सकारात्मक और नकारात्मक पहलू दोनों का सम्मिश्रण अंत में जरुर लिखें.Syllabus, GS Paper III : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन.
Q2. वैश्विक ताप के कारण इस सदी के अंत तक समुद्र जल स्तर में अच्छी-खासी वृद्धि होने का अनुमान है. समुद्र जल स्तर में वृद्धि के प्रभावों की चर्चा करें.
हिम चादरों और हिमनदों के पिघलने से जल की मात्रा में होने वाली वृद्धि एवं तापमान में वृद्धि के परिणामस्वरूप समुद्री जल में होने वाला विस्तार समुद्र जल स्तर में वृद्धि के प्रमुख कारण हैं. विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की एक रिपोर्ट के अनुसार जनवरी से जुलाई 2018 तक वैश्विक रूप से औसत समुद्र स्तर में वर्ष 2017 की इसी अवधि की तुलना में लगभग 2 से 3 मि.मी. की वृद्धि हुई है.
समुद्र जल स्तर में वृद्धि के प्रभाव
बड़े पैमाने पर विस्थापन : विश्व की एक बड़ी आबादी (विश्व जनसंख्या का लगभग 10%) तटीय क्षेत्रों में निवास करती है, समुद्र जल स्तर में होने वाली वृद्धि के परिणामस्वरूप एक बड़ी आबादी को तटीय क्षेत्रों से पलायन करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा जिसके कारण भारी आर्थिक और सामाजिक क्षति होगी. सामाजिक-आर्थिक जीवन में व्यवधान और व्यापक स्तर पर आंतरिक एवं बाह्य प्रवासन के कारण राष्ट्रों के बीच सामाजिक संघर्ष उत्पन्न हो सकता है.
पेयजल की कमी : समुद्र जल स्तर में वृद्धि से तटीय क्षेत्रों में भूमिगत जल की लवणता में वृद्धि होगी, जिससे उपलब्ध पेयजल में अत्यधिक कमी आएगी.
खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव : बाढ़ और मृदा में लवणीय जल के प्रवेश के कारण, समुद्र के निकट कृषि भूमि की लवणता में वृद्धि हो जाती है. यह उन फसलों के लिए समस्या उत्पन्न करता है जो लवण-प्रतिरोधी नहीं हैं. इसके अतिरिक्त, सिंचाई के लिए प्रयुक्त ताजे जल में लवणीय जल के प्रवेश होने से सिंचाई वाली फसलों के लिए एक अन्य प्रकार की समस्या उत्पन्न हो सकती है.
अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष : समुद्र जल स्तर में वृद्धि के कारण राष्ट्रों के अनन्य आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) में परिवर्तन आएगा, जिससे संभावित रूप से पड़ोसी देशों के बीच संघर्ष उत्पन्न होगा.
द्विपीय राष्ट्रों पर प्रभाव : मालदीव, तुवालु, मार्शल द्वीप समूह और अन्य निम्न तटवर्ती देशों के समक्ष उच्चतर स्तर का जोखिम विद्यमान है. यदि यही स्थिति बनी रही तो मालदीव 21वीं सदी के अंत तक निर्जन हो सकता है.
भारत पर प्रभाव : मुंबई और अन्य पश्चिम तट के क्षेत्र जैसे गुजरात में खम्भात और कच्छ, कोंकण तट का कुछ भाग और दक्षिण केरल समुद्र जल स्तर में वृद्धि के प्रति सर्वाधिक सुभेद्य हैं. गंगा, कृष्णा, गोदावरी, कावेरी और महानदी के डेल्टाओं के समक्ष भी जोखिम विद्यमान है.
समुद्र जल स्तर में वृद्धि का प्रमुख स्रोत वायुमंडल में अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड के कारण होने वाला वैश्विक तापमान है. वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए अपनाए गये 2015 के पेरिस जलवायु समझौते को राष्ट्रों द्वारा लागू किया जाना चाहिए.
कमेंट करें
यदि आपके पास भी कुछ पॉइंट दिमाग में हैं तो कमेंट करके जरुर बताएँ, दूसरों को फायदा होगा.हमारे चश्मे से
सीधे समुद्र स्तर के वृद्धि से होने वाले प्रभाव को गिनाने की गलती न करें. पहले बताएँ कि कैसे होता है. फिर प्रभाव को गिनाएँ. भारत पर प्रभाव लिख देंगे तो उत्तर में चार चाँद लग जाएगा. और फिर से एक बार कहूँगा, प्रभाव गिना देने के बाद उत्तर को समाप्त न कर दें…”चाहिए चाहिए” वाला पार्ट लास्ट में लिखना अनिवार्य है.“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan