वैश्विक सामाजिक गतिशीलता प्रतिवेदन (Global Social Mobility Report)

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वैश्विक सामाजिक गतिशीलता प्रतिवेदन (Global Social Mobility Report)

विश्व आर्थिक मंच ने अपना पहला वैश्विक सामाजिक गतिशीलता प्रतिवेदन (Global social mobility report) प्रस्तुत कर दिया है.

भारत का प्रदर्शन

  • इस प्रतिवेदन में 42 देशों में भारत को 76वाँ स्थान मिला है.
  • इसमें भारत को उन पाँच देशों में रखा गया है जिनको बेहतर सामाजिक गतिशीलता अंक से सबसे अधिक लाभ हो सकता है.
  • आजीवन ज्ञानार्जन के मामले में इसे 41वाँ और कामकाज के परिवेश में 53वाँ स्थान मिला है.
  • कुछ क्षेत्रों में भारत का प्रदर्शन सुधरा है, जैसे – सामाजिक सुरक्षा (76वाँ) और न्यायोचित मजदूरी वितरण (79वाँ).

वैश्विक प्रदर्शन

  • प्रतिवेदन में दी गई सूची के पहले पाँच स्थान इन नॉर्डिक देशों को मिले हैं – डेनमार्क (85 अंक), नॉर्वे, फ़िनलैंड और स्वीडन (सभी 83 अंक) तथा आइसलैंड (82 अंक).
  • 78 अंकों के साथ 11वाँ स्थान पाने वाला जर्मनी G7 देशों में सबसे अधिक सामाजिक रूप से गतिशील है.

सामाजिक गतिशीलता क्या है?

  • किसी भी व्यक्ति की दशा में उसके अभिभावकों की तुलना में सुधार अथवा गिरावट आ सकती है, इसी को सामाजिक गतिशीलता कहते हैं.
  • दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सामाजिक गतिशीलता किसी बच्चे को अपने माता-पिता की तुलना में बेहतर जीवन जीने की क्षमता को कहते हैं.
  • दूसरी ओर, सापेक्ष सामाजिक गतिशीलता (relative social mobility) किसी व्यक्ति के जीवन पर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के प्रभाव के आकलन को कहते हैं.
  • सामाजिक गतिशीलता स्वास्थ्य से लेकर शैक्षणिक उपलब्धि एवं आय जैसी कसौटियों पर मापी जाती है.

वैश्विक-सामाजिक सूचकांक के निष्कर्ष

  • विश्व में ऐसे देश गिने-चुने हैं जहाँ सामाजिक गतिशीलता के लिए उपयुक्त दशाएँ उपलब्ध हैं.
  • अधिकांश देश इन चार क्षेत्रों में फिसड्डी सिद्ध हुए हैं – उचित मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, कामकाज की परिस्थितियाँ और आजीवन ज्ञानार्जन.
  • यह सूचकांक दिखलाता है कि हितधारकों पर आधारित पूंजीवाद के मॉडल की ओर बढ़ने के लिए सामाजिक गतिशीलता का उच्चतर स्तर अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है.
  • जो बच्चे अपेक्षाकृत कम धनी परिवारों में जन्मते हैं उनको सफलता के मार्ग में उन बच्चों से अधिक बाधाएँ झेलनी पड़ती हैं जिनका जन्म अधिक धनी घरों में हुआ है.
  • वैसे देशों में भी असमानताएं बढ़ रही हैं जहाँ तीव्र वृद्धि देखी गई है.
  • अधिकांश देशों में कुछ ऐसे समूह हैं जिनके लोग ऐतिहासिक दृष्टि से वंचित रहे हैं.
  • सामाजिक गतिशीलता ऐसी असमानताओं को न केवल शास्वत बनाती है, अपितु उसमें वृद्धि भी करती है. इस प्रकार की विषमताओं के कारण अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक व्यवस्था की एकरसता आहत होती है.
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