Topics – Air Pollution, Furnace Oil and Petcoke
1st Question – Air Pollution
सामान्य अध्ययन पेपर – 3
भारत में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार द्वारा उठाये गए कदमों का उल्लेख करें. (250 words)
यह सवाल क्यों?
यह सवाल UPSC GS Paper 3 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप में लिया गया है –
संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन.
[no_toc]उत्तर :-
भारत में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार द्वारा उठाये गए कदम निम्नलिखित हैं –
ताप बिजली संयंत्र (TPP) द्वारा कार्बन उत्सर्जन
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दिसम्बर 2015 में पर्यावरण मानदंडों को अधिसूचित किया गया था तथा इन संयंत्रों को PM 10, SO2 और नाइट्रोजन के ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए निर्देशित किया गया था. हालाँकि, कोयले का दहन करने वाले 90% TPP ने इन मानदंडों का अनुपालन नहीं किया है. अतः, कुछ संयंत्रों को फ़्लू गैस डी-सल्फराइजेशन प्रणाली की रेट्रो फिटिंग में लगने वाली उच्च लागत के कारण अनुपालन की निर्धारित समय सीमा में विस्तार दिया गया है. TPP से होने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित करना आवश्यक है क्योंकि :-
SO2 का बढ़ता अनुपात :- विगत 10 वर्षों में, भारत के SO2 उत्सर्जन में 50% की वृद्धि हुई है और यह विषाक्त वायु प्रदूषकों का विश्व का सबसे बड़ा उत्सर्जक बन सकता है.
नागरिकों के लिए जोखिम :- लगभग 33 मिलियन भारतीय अत्यधिक सल्फर-डाइऑक्साइड प्रदूषण वाले क्षेत्रों में निवास करते हैं – इनकी संख्या 2013 के बाद से दोगुनी हो गई है. ऊर्जा की बढ़ती माँग के चलते यह संख्या और बढ़ सकती है.
प्रमुख कारण :- भारत, बिजली उत्पादन के लिए कोयले के दहन से हानिकारक प्रदूषकों को निर्मुक्त कर रहा है – जिसमें लगभग 3% सल्फर होता है. देश के कुल बिजली उत्पादन का 70% से अधिक भाग कोयले से उत्पादित किया जाता है.
स्वच्छ वायु-भारत पहल (Clean Air-India Initiative)
भारतीय स्टार्ट-अप और डच कंपनियों के बीच साझेदारी को बढ़ावा और स्वच्छ वायु के लिए व्यावसायिक समाधानों पर कार्य कर रहे उद्यमियों के नेटवर्क का निर्माण करके भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए इस पहल को प्रारम्भ किया गया है. इसके अंतर्गत, इंडस इम्पैक्ट (INDUS Impact) प्रोजेक्ट का लक्ष्य ऐसी व्यापार साझेदारियों को बढ़ावा देकर धान की पराली के हानिकारक दोहन को रोकना है जिससे पराली को “अप-साइकिल” (अर्थात् पुनर्प्रयोग करके उन्नत उत्पादों का निर्माण) किया जा सके. इसमें फीडस्टॉक के रूप में धान की पुआल का उपयोग करना शामिल है जिसका प्रयोग निर्माण और पैकेजिंग में किया जाएगा.
पेट कोक (कोयले से तैयार किया जाने वाला ठोस ईंधन) और फर्नेस आयल पर प्रतिबंध
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में फर्नेस ऑयल और पेट-कोक के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया है. 2017 में पर्यावरण संरक्षण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA) ने NCR क्षेत्र में फर्नेस ऑयल और पेट-कोक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने हेतु निर्देश दिए थे. हालाँकि, इसके प्रतिबंध से सम्बंधित विभिन्न चिंताएँ निम्नलिखित हैं –
- भारत एशिया में कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा शोधनकर्ता और इसने 2016-17 में 13.94 मिलियन टन पेट कोक उत्पादित किया था. यह देखते हुए कि निकट भविष्य में भारत में पेट कोक का उत्पादन जारी रहेगा, इसके निपटान का एक पर्यावरण अनुकूल तरीका खोजने की एक स्पष्ट आवश्यकता है और इस संदर्भ सीमेंट भट्टियाँ सबसे बेहतर विकल्प प्रदान करती है.
- कई सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने ईंधन की बढ़ती माँग को देखते हुए हाल ही में महत्त्वपूर्ण लागत पर पेटकोक क्षमता को सृजत किया है, इस पर प्रतिबंध इन कंपनियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा.
- आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात और कर्नाटक जैसे विभिन्न राज्यों में यह एक अनुमोदित ईंधन है.
2nd Question – Furnace oil and Petcoke
सामान्य अध्ययन पेपर – 3
फर्नेस ऑयल के बारे में आप क्या जानते हैं? पेट-कोक और फर्नेस ऑयल के बढ़ते उपयोग के कारण बताएँ. (250 words)
यह सवाल क्यों?
यह सवाल UPSC GS Paper 3 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –
संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन.
उत्तर :-
फर्नेस आयल के बारे में :-
- यह एक काला चिपचिपा अवशिष्ट ईंधन है जिसे मुख्य रूप से कच्चे तेल की आसवन इकाई के भारी घटकों, लघु अवशेष एवं कैटेलिटिक क्रैकर यूनिट से प्राप्त क्लेरीफाइड ऑयल (clarified oil) को मिलाकर प्राप्त किया जाता है.
- यह उपलब्ध सभी ईंधनों में से सबसे सस्ता ईंधन है और उद्योगों में बॉयलर, टर्बाइन इत्यादि चलाने के लिए बिजली उत्पन्न करने के लिए उपयोग किया जाता है.
पेट-कोक और फर्नेस ऑयल के बढ़ते उपयोग के कारण
- सस्ता विकल्प : कोयले की तुलना में पेट कोक के लिए प्रति यूनिट वितरित ऊर्जा बहुत सस्ती है जो इसे खरीददारों के लिए आकर्षक बनाता है.
- अनुकूल कर व्यवस्था : हालाँकि इन दोनों ईंधनों पर GST के तहत 18% कर लगाया जाता है, परन्तु वे उद्योग जो विनिर्माण के लिए इन ईंधनों का उपयोग करते हैं, ईंधन पर लगे पूरे कर को वापस प्राप्त करते हैं. दूसरी ओर, प्राकृतिक गैस पर, जो GST में शामिल नहीं है, कुछ राज्यों में 26% VAT है.
- कोयला पर 400 रु. प्रति टन क्लीन एनर्जी सेस लगाया जाता है, जो पेट-कोक के उपयोग को बढ़ावा देता है.
- पेट-कोक में शून्य एश सामग्री होती है जो कोयले की तुलना में एक सबसे बड़ा लाभ है जिसमें राख सामग्री की मात्रा अधिक होती है. यह सीमेंट फर्मों को कम ग्रेड के चूना पत्थर का उपयोग करने की अनुमति भी देता है. यह एक बड़ा लाभ है क्योंकि भारत में चूना पत्थर भंडार का लगभग 60% प्रकृति में निम्न श्रेणी (low grade) का है.
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