आज हम ईरान और भारत के बीच राजनीतिक सम्बन्ध के विषय में चर्चा करेंगे. आपको पता होगा कि हम जल्द से जल्द इंटरनेशनल रिलेशन के मटेरियल को तैयार करने में लगे हैं ताकि 2019 के Prelims परीक्षा के पहले भारत और विश्व के अन्य देशों के बीच सम्बन्ध को लेकर एक अच्छा नोट्स तैयार हो जाए. आप अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध (IR) से सम्बंधित नोट्स इस लिंक से प्राप्त कर सकते हैं >> IR Notes in Hindi
भारत और ईरान संबंधों का महत्त्व
ऊर्जा सुरक्षा
ईरान, भारत के लिए कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश बन चुका है. ईरान के पास प्राकृतिक गैस का विश्व का दूसरा बड़ा भंडार भी है जिसका भारत द्वारा ऊर्जा सुरक्षा के लिए लाभ उठाया जा सकता है.
कनेक्टिविटी
चाबहार बंदरगाह भारत द्वारा पाकिस्तान को रणनीतिक रूप से बाईपास करने में सहायता कर सकता है और यह स्थलरुद्ध अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों तक पहुँच प्रदान कर सकता है. भारत इसे पाकिस्तान में चीन द्वारा विकसित ग्वादर बंदरगाह के लिए रणनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में देखता है और यह चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प प्रदान करता है.
भारत, वर्तमान में 560 मील लम्बी रेलवे लाइन का निर्माण कर रहा है. यह ईरान के बंदरगाह को दक्षिण अफगानिस्तान में हाजीगाक से जोड़ती है जोकि जनरांज-डेलाराम राजमार्ग के समीप स्थित है.
इंटरनेशनल नार्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) के माध्यम से मध्य एशिया और यूरोप से कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए ईरान एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है.
व्यापार और निवेश
- भारत, चाबहार मुक्त व्यापार क्षेत्र (FTZ) में उर्वरक, पेट्रोकेमिकल्स और धातु विज्ञान (metallurgy) जैसे क्षेत्रों में संयंत्र स्थापित करेगा. यह ईरान को वित्तीय संसाधनों और रोजगार के अवसर प्रदान करते हुए भारत की ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि करेगा.
- फरजाद बी गैस क्षेत्र का उपयोग करने पर चर्चा चल रही है.
- भारत, ईरान-पाकिस्तान-इंडिया (IPI) गैस पाइपलाइन परियोजना को मूर्त रूप देने का सक्रिय रूप से प्रयास कर रहा है.
- भारत के कृषि उत्पादों, सॉफ्टवेयर सेवाओं, ऑटोमोबाइल, पेट्रोकेमिकल उत्पादों के लिए ईरान एक बड़ा बाजार है और इनके व्यापार कि मात्रा में तीव्र वृद्धि हो सकती है. यह महत्त्वपूर्ण है कि तेहरान लगातार गैर-डॉलर मुद्रा में तेल के निर्यात सहित नई दिल्ली को बहुत-सी अनुकूल शर्तों की पेशकश करता रहा है.
भू-राजनीतिक
ईरान समग्र पश्चिम एशियाई क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक प्रमुख देश है तथा विशेषकर भारत के सम्बन्ध में, शिया-सुन्नी संघर्ष और अरब-इजरायल संघर्ष के मध्य संतुलन बनाये रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है.
हिन्द महासागर क्षेत्र में जहाँ ईरान एक प्रमुख हितधारक है, समुद्री डकैती का सामना करने के लिए समुद्री संचार मार्ग (SLoC) को सुरक्षित करने हेतु भारत एक प्रमुख सुरक्षा प्रदाता बनने की महत्त्वकांक्षा रखता है. हिन्द महासागर में चीन के स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स का सामना करने में भी इरान एक महत्त्वपूर्ण सहयोगी है.
आतंकवाद
अल-कायदा, ISIS, तालिबान जैसे अन्य वैश्विक आतंकवादी समूहों का सामना करने में ईरान एक महत्त्वपूर्ण सहयोगी है. इसके साथ ही साइबर आतंकवाद का सामना करना भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जिसमें दोनों देश एक-दूसरे का सहयोग कर सकते हैं. इसके अलावा ईरान अन्य संगठित अपराधों जैसे कि नशीली दवाओं की तस्करी, हथियारों के अवैध व्यापार आदि से निपटने में एक प्रमुख निभा सकता है.
चाबहार परियोजना के अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु
- पाकिस्तान के प्रतिरोध की उपेक्षा – भारत ने रणनीतिक रूप से पाकिस्तान के प्रतिरोधी को विफल कर दिया है जिसके माध्यम से अफगानिस्तान के साथ व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिला है.
- यूरोप और मध्य एशिया के साथ कनेक्टिविटी – अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) से सम्पर्क स्थापित किये जाने के पश्चात् यह दक्षिण एशिया और यूरोप एवं मध्य एशिया को जोड़ देगा. इससे मध्य एशिया में भारतीय व्यापार के विस्तार के लिए बेहतर अवसर प्राप्त होंगे.
- भू-रणनीतिक अवस्थिति – इस बंदरगाह की अवस्थिति चीन द्वारा विकसित पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के अत्यंत निकट (लगभग 100 किमी.) है. इस प्रकार, “पर्ल्स ऑफ़ स्ट्रिंग” की नीति के माध्यम एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए इसकी अवस्थिति का रणनीतिक महत्त्व है.
- परिवहन लागत में कमी – भारत के कांडला बंदरगाह और चाबहार बन्दरगाह के मध्य की दूरी अत्यंत कम है, जिससे वस्तुओं और माल ढुलाई के परिवहन समय में कमी आएगी.
- क्षेत्र की स्थिरता के लिए महत्त्वपूर्ण – दीर्घ अवधि में इस परियोजना के नए अवसरों के सृजन के साथ क्षेत्र की आर्थिक स्थितियों में सुधार की आशा है.
चुनौतियाँ
राजनीतक अस्थिरता
ईरान में वर्तमान सरकार घरेलू मोर्चे पर राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ईरान के सम्बन्धों में अत्यधिक दबाव का सामना कर रही है. हाल ही में, विभिन्न कारणों से कई विरोधी प्रदर्शन हुए जैसे :-
आर्थिक :- ईरान की अर्थव्यवस्था (जो तेल निर्यात पर अत्यधिक निर्भर है) स्वयं को विविधता प्रदान करने एवं उद्यमिता को बढ़ावा देने में सक्षम नहीं है. इसके कारण बेरोजगारी, मुद्रास्फीति और प्रति व्यक्ति आय में गिरावट में निरंतर वृद्धि हो रही है.
राजनीतिक :- ईरान में सरकार की जटिल संरचना विद्यमान है और इसके कुछ ही भागों जैसे विधायिका और राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन किया जाता है. वर्तमान व्यवस्था में मूल अधिकारिता एक गैर निर्वाचित धार्मिक सर्वोच्च नेता खमेनेई के पास है.
- स्वतंत्र अभिव्यक्ति और विरोध के मूल अधिकारों को सख्ती से नियंत्रित किया जाता है, और जिन उम्मीदवारों को विरोधी व्यक्तित्व के रूप में देखा जाता है उन्हें सार्वजनिक कार्यालयों के सञ्चालन से वंचित कर दिया जाता है. इसके अतिरिक्त, राजनीतिक अपारदर्शिता और भ्रष्टाचार के अनेक मामले विद्यमान हैं.
- लोग विशेष रूप से युवा आधुनिक जीवन शैली तथा रुढ़िवादी इस्लामी शासन के स्थान पर अधिक स्वतंत्रता और अवसरों के समर्थक हैं.
- सीरिया और यमन में ईरान द्वारा किये गये भारी सैन्य व्यय के कारण जनसामान्य में अत्यधिक निराशा है, जबकि ईरान की अर्थव्यवस्था आर्थिक संकट का सामना कर रही है.
परमाणु समझौते पर अनिश्चितता
2015 में पश्चिम के साथ हस्ताक्षरित परमाणु समझौते के भविष्य पर अनिश्चितता भारतीय विदेश नीति के लिए एक बड़ी चुनौती है. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि समझौते से अमेरिका के बाहर निकलने से ईरान में भारत का नियोजित निवेश भी प्रभावित होगा.
द्विपक्षीय व्यापार
द्विपक्षीय व्यापार में सबसे बड़ी रुकावट बैंकिंग चैनल का अवरुद्ध होना है. दोनों पक्ष वर्तमान में यूको बैंकों के माध्यम से रुपये में भुगतान के साथ ही अन्य वैकल्पिक भुगतान तन्त्र की संभावना पर चर्चा कर रहे हैं.
ईरान में भारतीय निर्यात 2013-14 में 4.9 अरब डॉलर से घटकर 2016-17 में 2.379 अरब डॉलर रह गया है जिससे व्यापार घाटा बढ़ रहा है.
फरजाद-बी गैस और तेल क्षेत्र
एक और मुद्दा फरजाद-बी गैस और तेल क्षेत्र पर लंबित वार्ता है, जिस पर भारत ने अपनी रूचि व्यक्त की है.
भारत के इजरायल और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ सम्बन्ध
इस क्षेत्र में अमेरिका के निकटतम सहयोगियों में से एक इजरायल, परमाणु समझौते के खिलाफ रहा है और ईरान को अपनी सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है. संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत के सम्बन्ध और ईरान के बारे में अमेरिकी चिंताओं ने भारत-ईरान संबंधों को भी प्रभावित किया है.
भारत के खाड़ी देशों के साथ सम्बन्ध
ईरान का सऊदी अरब के साथ सम्बन्ध तनावपूर्ण है. भारत ने खाड़ी के दोनों गुटों के देशों के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को मजबूत किया है. यह भी एक मुद्दा हो सकता है.
कश्मीर का मुद्दा
ईरान के सर्वोच्च नेता या अयातुल्ला ख़मनेई द्वारा कश्मीर संघर्ष को यमन और बहरीन में चल रहे संघर्ष के समान बताना भी भारत में संदेह की भावना उत्पन्न करता है.
निष्कर्ष
ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जहाँ भारत और ईरान के हित एक समान हैं, जैसे कनेक्टिविटी, ऊर्जा, बुनियादी ढाँचा, व्यापार, निवेश, सुरक्षा, रक्षा, संस्कृति, लोगों के बीच आपसी संपर्क आदि. दोनों देशों को मजबूत और पारस्परिक रूप से लाभप्रद सम्बन्ध बनाने के लिए अपनी सामर्थ्य का उपयोग करना चाहिए.
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