भारत और इजराइल दोनों ही देशों ने ब्रिटेन से कुछ महीनों के अंतराल में ही स्वतंत्रता प्राप्त की थी. पर लगभग चार दशकों तक ये दोनों एक-दूसरे की विपरीत दिशा में आगे बढ़ते रहे. एक ओर भारत ने NAM के एक नेता के रूप में अरब जगत और सोवियत संघ के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाए, वहीं दूसरी ओर इजराइल ने अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित किये.
यद्यपि भारत ने 1980 के दशक के अंत तक सार्वजनिक रूप से इजराइल से दूरी बनाए रखी, परन्तु विगत वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापक द्विपक्षीय गतिविधियाँ सम्पन्न हुईं हैं. 1992 से द्विपक्षीय संबंधों का स्तर लगातार बढ़ा है. रक्षा एवं कृषि क्षेत्र इन द्विपक्षीय संबंधों के प्रमुख स्तम्भ हैं. हाल ही में दोनों देशों के राजनयिक संबंधों की स्थापना को 25 वर्ष पूरे हुए हैं. पिछले 15 वर्षों में एरियल शेरोन (2003 में) के बाद किसी इजराइली प्रधानमन्त्री की यह दूसरी यात्रा (जनवरी, 2018) है. चलिए और भी गहराई से जानते हैं भारत और इजराइल के बीच सम्बन्ध (India-Israel relations in Hindi) के विषय में.
भारत और इजराइल सम्बन्ध – India-Israel Relations
आर्थिक और वाणिज्यिक सम्बन्ध
- पिछले 25 वर्षों में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 200 मिलियन डॉलर से बढ़कर 4 बिलियन डॉलर (रक्षा क्षेत्र के अतिरिक्त) हो गया है. इसके परिणामस्वरूप भारत इजराइल का 10वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है.
- भारत द्वारा इजराइल को कीमती पत्थरों एवं धातुओं, रासायनिक उत्पादों, टेक्सटाइल एवं टेक्सटाइल आर्टिकल्स, पौधों व वनस्पति उत्पादों तथा खनिज उत्पादों का निर्यात किया जाता है.
- भारत द्वारा इजराइल से कीमती पत्थरों एवं धातुओं, रसायनों (मुख्यतः पोटाश) और खनिज उत्पादों, बेस मेटल्स एवं मशीनरी तथा परिवहन उपकरणों का आयात किया जाता है.
कृषि
- दोनों देशों के बीच कृषि क्षेत्र में सहयोग देने के लिए एक द्विपक्षीय समझौता (भारत-इजराइल कृषि परियोजना) हस्ताक्षरित किया गया.
- द्विपक्षीय एक्शन प्लान (2015-18) का उद्देश्य डेयरी और जल जैसे नए क्षत्रों में सहयोग का विस्तार करना है.
- भारत को बाग़वानी के मशीनीकरण, संरक्षित कृषि, बाग़ और कैनोपी प्रबन्धन, नर्सरी प्रबन्धन जैसे क्षेत्रों में इजराइली विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकियों का लाभ हुआ है. हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों को सूक्ष्म सिंचाई एवं फसल कटाई के बाद के प्रबंधन में भी लाभ मिला है.
- भारत में अब इजराइली ड्रिप-इरीगेशन टेक्नोलॉजी और उत्पादों को व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है.
रक्षा क्षेत्र एवं सुरक्षा
- रूस और अमेरिका के बाद इजराइल भारत को हथियारों की आपूर्ति करने वाला तीसरा बड़ा देश है.
- भारत द्वारा इजराइल से महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों का आयात किया जाता है. दोनों देशों के सशस्त्र बलों और रक्षा कर्मियों के मध्य परस्पर नियमित सम्पर्क बना रहता है.
विज्ञान और प्रौद्योगिकी
दोनों देशों के बीच विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में कई प्रकार के समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर हुए (जैसे – अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी) हैं. जनवरी 2014 में, भारत और इजराइल द्वारा भारत-इजराइल सहयोग निधि (कोऑपरेशन फण्ड) को स्थापित करने के लिए गहन अध्ययन किया जा रहा है. इसका उद्देश्य संयुक्त वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग के जरिये नवाचारों को बढ़ाना है.
संबंधों का डी-हायफ़नेशन
- डी-हायफ़नेशन (De-hyphenation) का अर्थ है दो संस्थाओं को डीलिंक करना अर्थात् उन्हें एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप में देखना.
- अब इजराइल के साथ भारत के सम्बन्ध, फिलीस्तीनियों के साथ भारत के संबंधों में स्वंतत्र तथा अपने अलग आधारों पर विकसित होंगे.
- इससे भारत के राष्ट्रीय हितों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए नए बाजारों तथा प्रौद्योगिकियों तक विविधतापूर्ण पहुँच के अवसरों को बल मिलेगा.
- शीत-युद्ध के दौरान हायफ़नेशन एक अनिवार्यता थी, लेकिन बाद के दिनों में अरब जगत के रूठ जाने के डर से भारत द्वारा इस दृष्टिकोण को आगे बढ़ाया जाता रहा है.
- हालाँकि, अरब जगत में अशांति के कारण वे एक मजबूत विदेशी नीति को आधार प्रदान करने में असमर्थ रहे, जिससे भारत को इजराइल के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाने में सरलता हुई.
इजराइल फिलस्तीन मुद्दे का टू-स्टेट सोल्यूशन
यह जाॅर्डन नदी के पश्चिम में इजराइल के साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीन राज्य के निर्माण का प्रावधान करता है.
1937 : पील आयोग की रिपोर्ट के आधार पर प्रस्तावित किया गया, किन्तु अरबों द्वारा ठुकरा दिया गया.
1948 : संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना के अंतर्गत येरुशलेम को अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण में रखने को कहा गया.
ओस्लो एकॉर्ड, 1991 : इसमें वर्तमान राजनीतिक सीमाओं के निर्धारण का आधार प्रदान किया गया.
1991 के मैड्रिड सम्मेलन वार्ता के माध्यम से इजराइली-फिलिस्तीनी शान्ति प्रक्रिया को पुनः स्थापित करने के लिए अमेरिका और सोवियत संघ द्वारा सह-प्रयोजित एक शान्ति सम्मेलन था.
UNSC प्रस्ताव, 1973 : संयुक्त राज्य अमेरिका के समर्थन के साथ वर्ष 2000 में इसे स्वीकृति प्रदान की गई और यह टू-स्टेट सोल्यूशन पर सहमति के लिए प्रथम UNSC प्रस्ताव के रूप में स्वीकृत किया गया.
अन्य सम्बंधित तथ्य : फिलिस्तीन द्वारा इंटरपोल की सदस्यता प्राप्त की गई
- हाल ही में, इंटरपोल द्वारा फिलिस्तीन राज्य को संगठन का सदस्य बनाए जाने से सम्बंधित प्रस्ताव पर मतदान कराया गया जिसे 2/3 से अधिक बहुमत के आधार पर स्वीकार कर लिया गया. इंटरपोल अंतर्राष्ट्रीय पुलिस सहयोग की सुविधा प्रदान करने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है. इसमें 192 सदस्य देश हैं तथा इसका मुख्यालय लियोन, फ़्रांस में स्थित है.
- इजराइल द्वारा प्रस्ताव का इस आधार पर विरोध किया था कि फिलिस्तीन एक राज्य नहीं है और यह इंटरपोल की सदस्यता का पात्र नहीं हैं.
- अंतरिम इजराइल-फिलिस्तीन शान्ति समझौते के अंतर्गत, एक फिलिस्तीनी प्राधिकरण (अथॉरिटी) को अधिगृहित वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में सीमित स्वशासन की स्वीकृति प्रदान की गई थी.
- 2012 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीनी प्राधिकरण के पर्यवेक्षक के दर्जे में वृद्धि करते हुए उसे “निकाय” के बजाय से “गैर-सदस्यीय पर्यवेक्षक राज्य” (वेटिकन के समान) के रूप में मान्यता प्रदान की गई.
- इंटरपोल में अपनी सदस्यता के आधार पर, फिलिस्तीन इजराइल के नेताओं और IDF (इजराइल रक्षा बल) के सैन्य अधिकारियों के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय वैधानिक कार्यवाही शुरू करने के लिए इंटरपोल का प्रयोग कर सकता है.
सम्बंधित तथ्य
अमरीकी राष्ट्रपति ने येरुशलम को इजराइल की राजधानी के रूप में मान्यता प्रदान की और इजराइल के शहर तेल अवीव स्थित अपने दूतावास को येरुशलम (पवित्र शहर) में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया है.
येरुशलेम पर ट्रम्प के निर्माण का प्रभाव
- मध्यस्थ के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका की विश्वसनीयता में कमी : संयुक्त राज्य अमेरिका का निर्णय इसकी दीर्घकालिक तटस्थता के विरुद्ध जाता है. इसके साथ ही इजराइल के पक्ष में इसका निर्णय फिलिस्तीन, पश्चिमी एशिया और अफ़ग़ानिस्तान में शान्ति के लिए मध्यस्थ के रूप में इसकी भूमिका को कम कर सकता है.
- टू-स्टेट सोल्यूशन को जटिल बनाना : यह टू-स्टेट सोल्यूशन हेतु लम्बे समय से किये जा रहे राजनयिक प्रयासों जैसे मैड्रिड सम्मेलन और ओस्लो समझौते की प्रभावकारिता को कम कर सकता है.
- धार्मिक तनाव में वृद्धि : येरुशलम न केवल यहूदी धर्म के लिए सबसे पवित्र स्थल है, बल्कि इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र तीर्थस्थल और प्रमुख ईसाई तीर्थस्थल भी है. अतः येरुशलम पर मुस्लिम दावे कमजोर पड़ जाने की आशंका से मुस्लिम विश्व में व्यापक विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं.
- क्षेत्रीय संघर्ष : हमास ने तृतीय इन्तिफादा (आक्रामक अहिंसक प्रतिरोध) घोषित कर दिया है तथा ईरान और सीरिया द्वारा फिलिस्तीन का प्रत्यक्ष समर्थन किया गया है. इससे इस क्षेत्र में अस्थिरता और अनिश्चितता में वृद्धि हुई है.
भारत का अमेरिका के विरुद्ध मतदान
संयुक्त राज्य अमेरिका की दबाव रणनीति के बावजूद भारत ने मतदान से अलग रहने के बजाय संयुक्त राज्य अमेरिका के विरुद्ध मतदान किया. यह निम्नलिखित पहलुओं को दर्शाता है :-
- यह भारत की गुटनिरपेक्ष नीति और फिलिस्तीनी पक्ष के समर्थन के अनुरूप है.
- यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति में “एक संतुलन शक्ति से एक अग्रणी शक्ति के रूप में परिवर्तन” का भी द्योतक है. इससे पूर्व भारत ने चागोस द्वीपसमूह पर मॉरिशस की संप्रभुता के दावे का समर्थन किया था और राज्य अमेरिका के विरोध के बावजूद ICJ की सदस्यता ग्रहण की थी.
- फिलिस्तीन के समर्थन के माध्यम से भारत ने SCO, BRICS जैसे प्रमुख समूहों और प्रमुख यूरोपीय देशों के मत को समर्थन प्रदान किया.
- पश्चिमी एशियाई देशों की शांति और स्थिरता में भारत के महत्त्वपूर्ण हित अन्तर्निहित हैं जिसके कारण इस प्रकार के कदम उठाये जाने अनिवार्य हैं.
सहयोग के क्षेत्र
इजराइल की लचीली निर्यात नीति तकनीकी हस्तांतरित की भारतीय माँगों को पूरा करती है, जो सरकारों के समग्र विकास एजेंडे का एक महत्त्वपूर्ण भाग है.
इजराइल की तकनीकी क्षमता अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्संसाधन (reprocessing), अलवणीकरण, कृषि, अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण (recycling), स्वास्थ्य, जैव प्रौद्योगिकी और नैनोटेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में काफी बेहतर है.
रूसी अर्थव्यवस्था एवं उसके रक्षा उद्योग में अनेक कमियाँ विद्यमान हैं तथा अमेरिका और यूरोप द्वारा भारत को रक्षा हथियारों की आपूर्ति (NPT पर भारत के हस्ताक्षर करने से इन्कार करने को देखते हुए) पर संदेह बना हुआ है. इस कारण इजराइल के महत्त्व में वृद्धि हुई है, क्योंकि भारत और इजराइल दोनों ही परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों ने NPT पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं.
भारत-इजराइल के मध्य आतंकवादरोधी सहयोग काफी मजबूत है और आतंकवाद पर एक संयुक्त कार्य समूह के माध्यम से पिछले कुछ वर्षों में यह निरंतर बढ़ा है. इस क्षेत्र में खुफिया जानकारी पर सहयोग इस साझेदारी का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व रहा है.
अमेरिका और इजराइल के मध्य घनिष्ठ सम्बन्धों से भारत को लाभ मिल सकता है.
पर्यटन भी द्विपक्षीय सम्बन्धों का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है. प्रत्येक वर्ष 30-35 हजार इजराइली व्यापारिक पर्यटन और अन्य उद्देश्यों के लिए भारत की यात्रा पर आते हैं और लगभग 40,000 भारतीय तीर्थ यात्रा के लिए प्रत्येक वर्ष इजराइल की यात्रा पर जाते हैं.
मतभेद
इरान के सम्बन्ध में मतभेद
जहाँ एक ओर इजराइल, ईरान को अपने अस्तित्व पर एक खतरा मानता है, वहीं दूसरी तरफ भारत के साथ ईरान के ऐतिहासिक सम्बन्ध हैं. भारत, ईरान को अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया में प्रवेश के लिए चाबहार बंदरगाह के माध्यम से एक वैकल्पिक मार्ग की प्राप्ति और ऊर्जा की आपूर्ति पर सहयोग प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण मानता है.
अरब जगत के संदर्भ में भिन्न दृष्टिकोण
इजराइल के अरब जगत के साथ अन्तर्निहित मतभेद हैं जबकि भारत के वहाँ महत्त्वपूर्ण हित विद्यमान हैं. संयुक्त राष्ट्र में भारत द्वारा किया गया मतदान येरुशलम पर अमेरिका के कदम के विरुद्ध है, जो अन्तर्निहित वास्तविकताओं की एक झलक है.
चीन पर पक्ष
एशिया में चीन, इजराइल का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है तथा चीन के इजराइल के साथ मजबूत प्रौद्योगिकी और निवेश सम्बन्ध विद्यमान हैं.
पाकिस्तान के संदर्भ में
पाकिस्तान को लेकर इजराइल के हित इसी में निहित हैं कि वह संबंधों की संभावना में लचीलापन रखे, जबकि भारत और पाकिस्तान के बीच गंभीर तनाव विद्यमान हैं.
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के संदर्भ में मतभेद
भारत और इजराइल के मध्य प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, एंड-यूजर अग्रीमेंट और प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते से सम्बंधित मुद्दों पर मतभेद विद्यमान हैं. इसका कारण भारत द्वारा “मेक इन इंडिया” की नीति पर अधिक ध्यान दिया जाना है. भारतीय घरेलू उद्योग की चिंताओं के कारण मुक्त व्यापार समझौते (FTA) लंबित हैं.
निष्कर्ष
भारत और इजराइल के मध्य द्विपक्षीय सम्बन्ध एशिया और मध्य-पूर्व में तेजी से विकसित हो रही भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के आधार पर संचालित होंगे. ऐसे में इजराइल को एशियाई फलक पर अपनी प्रतिक्रिया पर विचार करना होगा. इसके बावजूद भारत-इजराइल के बीच संबंधों की व्यापकता और गहनता चीन-इजराइल सम्बन्धों जैसी नहीं है, जो मुख्य रूप से व्यापार और वाणिज्य से संचालित हैं. भारत को इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए कि आने वाले वर्षों में चीन का ही प्रभाव बढ़ेगा. अतः भारत-इजराइल सम्बन्धों में आर्थिक और व्यापारिक सम्बन्धों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
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