[Sansar Editorial] भारत की Nuclear Policy और No First Use Policy के बारे में जानें

Richa KishoreSansar Editorial 2018

भारत की परमाणु नीति क्या है और क्या इसमें किसी बदलाव की जरूरत है, ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन्हें लेकर कुछ वर्षों से चर्चा हो रही है. खासकर 2014 के चुनाव के आस-पास इस policy में बदलाव को लेकर कई तरह की बातें हुईं. आइये जानते हैं परमाणु नीति (nuclear policy) के मुख्य बिंदु क्या हैं और इन्हें लेकर किस तरह की चर्चा देश में चल रही है? No First Use Policy क्या है और आज की तिथि में इसकी क्या प्रासंगिकता है, यह भी जानेंगे.

Background

भारत ने 18 मई, 1974 को पहला परमाणु विस्फोट किया. हालाँकि भारत पहले से ही कहता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है. जब भारत ने एक बार फिर 11 से 13 मई, 1998 को पोखरन में दुबारा परमाणु परीक्षण किया तो उस समय तत्कालीन प्रधानमन्त्री ने दुनिया से कहा कि भारत का यह परीक्षण शांतिपूर्ण उद्देश्य और आत्म-रक्षा के लिए है. भारत ने कहा कि भारत स्वयं किसी देश पर सबसे पहले परमाणु हमला नहीं करेंगा और भारत की इसी नीति को “No First Use” नीति की संज्ञा दी गई.

nehru vajpayee togetherपर भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण के बाद दुनिया भर में कई देश भारत के No First Use या NFU नीति को लेकर सवाल उठाने लगे.

भारत का परमाणु कार्यक्रम

1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की गई. 1957 में भारत ने मुंबई के नजदीक ट्राम्बे में पहला परमाणु अनुसंधान केंद्र स्थापित किया. 1967 में इसका नाम बदलकर भाभा परमाणु अनुसंधान कर दिया गया. 18 मई, 1974 को पोखरण में पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया. यह भारत की परमाणु शक्ति का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था.

भारत ने पोखरण 2 योजना के अंतर्गत 1998 में आणविक परीक्षण किये थे. आगे चलकर 2003 में भारत ने अपना आणविक सिद्धांत (nuclear doctrine) घोषित किया गया जिसमें कहा गया कि भारत अपनी रक्षा के लिए न्यूनतम आणविक हथियार रखेगा और किसी युद्ध में इन हथियारों का प्रयोग पहले नहीं करेगा, अपितु किसी दूसरे देश द्वारा आणविक आक्रमण के प्रतिकार में ही करेगा.

इस सिद्धांत में यह भी अंकित किया गया कि आणविक अस्त्र के प्रयोग का निर्णय प्रधानमंत्री अथवा उसके द्वारा नामित उत्तराधिकारी ही करेगा.

चर्चा में क्यों?

2014 के लोकसभा चुनाव में भारत की परमाणु नीति एक बड़ा मुद्दा बनी. BJP ने अपने घोषणापत्र में वादा किया कि भारत की परमाणु नीति का विस्तार से अध्ययन कर इसका संसोधन किया जायेगा.

पिछले दिनों 16 अगस्त, 2019 को भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यह बड़ा संकेत दिया कि आणविक अस्त्रों को पहले प्रयोग नहीं करने से सम्बंधित भारत की नीति (no first use) की समीक्षा हो सकती है और यह भविष्य की परिस्थितियों पर निर्भर होगी.

No First Use की आज की तिथि में क्या प्रासंगिकता है?

  1. भारत के दो प्रमुख पड़ोसी पाकिस्तान और चीन परमाणु शक्ति सम्पन्न हैं.
  2. इसके अलावा परमाणु संपन्न उत्तर कोरिया और रूस भी भारत से अधिक दूर नहीं हैं.
  3. No First Use नीति हमारे परमाणु कार्यक्रम के आत्मरक्षात्मक होने की बड़ी दलील है.
  4. ये बताता है कि भारत एक जवाबदेह परमाणुशक्ति है.
  5. इस नीति से न सिर्फ हमारे परमाणु कार्यक्रम की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता बढ़ी है बल्कि कई अंतर्राष्ट्रीय परमाणु संघठन हमें सिर्फ इसलिए अपना रहे हैं.

क्या भारत को No First Use Policy बदल देनी चाहिए?

भारत की अमेरिका से नजदीकी, रूस के साथ ऐतिहासिक रिश्ते और दक्षिण-पश्चिम एशिया में देशों के साथ सकारात्मक रूप से बदल रहे भारत के रिश्ते को देखकर तो ऐसा लगता है कि शायद ही भारत के द्वारा उसकी परमाणु नीति के बदलाव के बाद ये देश किसी भी तरह का ऐतराज जताएंगे. लेकिन सच कहा जाए तो लम्बी अवधि में भारत को इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. हम परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में दाखिल होने के लिए इतना प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में नीति में अचानक बदलाव तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता है. यानी कूटनीतिक दृष्टि से यह सही नहीं माना जा सकता. हाँ यह सही है कि हर नीति की समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए और अगर जरुरत पड़े तो बदलाव भी होना चाहिए. लेकिन यह बदलाव हम अंतर्राष्ट्रीय दबाव में न आकर अपनी जरूरतों के हिसाब से तय करें तो हमारे लिए अच्छा होगा.

भारत के पड़ोस में दो ऐसे देश हैं जिनके पास आणविक अस्त्र हैं. चीन पहले ही यह नीति चला रहा है कि वह केवल प्रतिकार में ही आणविक अस्त्रों का प्रयोग करेगा. संभावना है कि वह अपनी इस नीति को बदलेगा नहीं. इसलिए यदि भारत अपनी नीति बदल देता है तो संभव है कि चीन इसका लाभ उठाकर पहले आक्रमण करने की नीति अपना ले और इसके लिए भारत पर आरोप मढ़ दे. इसका लाभ उठाकर चीन अमेरिका और रूस के प्रति भी अपना सिद्धांत बदल ले.

भारत सदा अपने-आप को एक उत्तरदायी आणविक शक्ति-सम्पन्न देश के रूप में विश्व के समक्ष रखता आया है. अतः यदि वह पहले आक्रमण की नीति अपनाएगा तो उसकी इस छवि को आघात पहुंचेगा. भारत की वर्तमान नीति के कारण ही पाकिस्तान और भारत अपने-अपने आणविक अस्त्रों को युद्ध स्तर पर सुसज्जित नहीं रखते हैं और अर्थात् ये अस्त्र डिलीवरी प्रणाली से जुड़े हुए नहीं हैं. इस कारण पाकिस्तान में आणविक आतंकवाद की सम्भावना कम रहती है और इस बात का भी खतरा कम होता है कि संयोगवश कोई आणविक हथियार चल नहीं जाए.

यदि भारत यह नीति (first-strike policy) अपनाता है कि वह पहले भी आणविक हथियार चला सकता है तो पाकिस्तान भारत के आणविक आक्रमण को रोकने के लिए मिसाइल छोड़ सकता है.

भारत पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव

1974 से लेकर 1998 तक भारत की परमाणु नीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया. लेकिन इस दौरान अमेरिका समेत दुनिया के अन्य परमाणु सशक्त देश NPT यानी परमाणु अप्रसार संधि और CTBT यानी व्यापक आणविक परीक्षण प्रतिबन्ध संधि 1993 पर हस्ताक्षर करने के लिए भारत पर दबाव बनाते रहे. पर भारत ने इस भेदभावपूर्ण नीति पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. दरअसल यह संधि सिर्फ गैर परमाणु राष्ट्रों पर ही रोक लगाती है. इसलिए भारत ने NPT और CTBT पर हस्ताक्षर नहीं किए.

1998 में अटल बिहार वाजपेयी भारत के प्रधानमन्त्री बने और राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए उन्होंने भारत को बड़ी परमाणु शक्ति बनाने का नारा दिया. प्रधानमन्त्री बनने के दो महीने के भीतर ही वाजपयी ने दूसरे परमाणु परीक्षण करने के लिए निर्देश दिए.

2003 में भारत ने परमाणु नीति में बदलाव की घोषणा की और इसमें कहा गया है कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए न्यूनतम परमाणु क्षमता विकसित करेगा. पहले प्रयोग नहीं करने की यानी NFU (No First Use) को लेकर भारत अब भी अडिग है. लेकिन परमाणु हमला होने की सूरत में भारत जवाब जरुर देगा, यह भी तय है.

NSG की सदस्यता भारत के लिए महत्त्वपूर्ण क्यों?

  • यदि भारत NSG का सदस्य बन जाता है तो उसे इस समूह के अन्य सदस्यों से नवीनतम तकनीक उपलब्ध हो जाएँगे. ऐसा होने से Make in India कार्यक्रम को बढ़ावा मिलेगा और फलस्वरूप देश की आर्थिक वृद्धि होगी.
  • पेरिस जलवायु समझौते में भारत ने यह वचन दे रखा है कि वह जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाएगा और इसकी ऊर्जा का 40% नवीकरणीय एवं स्वच्छ स्रोतों से आने लगेगा.
  • इस लक्ष्य को पाने के लिए हमें आणविक ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाना होगा. यह तभी संभव होगा जब भारत की पहुँच NSG तक हो जाए.
  • विश्व में यूरेनियम के चौथे बड़े उत्पादक देश नामीबिया ने भारत को 2009 में ही आणविक ईंधन देने का वचन दिया था पर वह वचन फलीभूत नहीं हुआ क्योंकि नामीबिया ने पेलिनदाबा संधि पर हस्ताक्षर कर रखे थे जिसमें अफ्रीका के बाहर यूरेनियम की आपूर्ति पर रोक लगाई गयी है.
  • यदि भारत में NSG में आ जाता है तो नामीबिया भारत को यूरेनियम देना शुरू कर देगा.
  • NSG का सदस्य बन जाने के बाद वह NSG के मार्गनिर्देशों से सम्बन्धित प्रावधानों के बदलाव पर अपना मन्तव्य रख सकेगा. ज्ञातव्य है कि इस समूह में सारे निर्णय सहमति से होते हैं और इसलिए किसी भी बदलाव के लिए भारत की सहमति आवश्यक हो जायेगी.
  • NSG का सदस्य बन जाने के बाद भारत को आणविक मामलों में समय पर सूचना उपलब्ध हो जायेगी.

पाँच परमाणु अनुसंधान केंद्र

  • भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई
  • इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र, कलपक्कम
  • उन्नत तकनीकी केंद,र इंदौर
  • वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रान केंद्र, कलकत्ता
  • परमाणु पदार्थ अन्वेषण अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद

देश में 21 नाभकीय ऊर्जा रिएक्टर काम कर रह हैं. इनके जरिये सात हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन संभव होता है. इसके अलावा 11 और परमाणु रियेक्टरों पर काम चल रहा है. इनके पूरा होते ही भारत 8000 MW अतिरिक्त बिजली उत्पादन क्षमता हासिल कर लेगा.

परमाणु क्षमता युक्त भारत की मिसाइलें

  1. सतह से सतह >> Prithvi 1, Prithvi 2, Prithvi 3, प्रहार, शौर्य, Agni 1, Agni 2, Agni 3, Agni 4, Agni 5, Agni 6 (under development)
  2. समुद्र से सतह >> धनुष
  3. सतह से हवा>> आकाश, त्रिशूल
  4. हवा से हवा>> अस्त्र
  5. जहाज से हवा/सतह>> बराक 1 और बराक 8 (इजराइल+भारत), धनुष
  6. जमीन, पानी, हवा या युद्ध पोत >> ब्रह्मोस, निर्भय
  7. सबमरीन >> K4, सागरिका (K15)

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