अफगानिस्तान (Afghanistan) में 20 वर्ष के पश्चात् एक बार पुनः तालिबान (Taliban) का वर्चस्व आ गया है. हाल ही में काबुल (Kabul) पर तालिबान के कब्जे के पश्चात् राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) देश छोड़कर भागना पड़ा और वहाँ की जनता भी अपनी जान बचाने में जुट गए हैं.
अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा तो हो गया, परन्तु अब आगे क्या होगा? भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा और वहाँ की मासूम अफगानी जनता पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? आइए समझते हैं…
भारत-अफगानिस्तान संबंध
भारत और अफगानिस्तान के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों के आधार पर एक दृढ़ रिश्ता है. अफगानिस्तान और भारत के लोग, प्राचीन समय से ही व्यापार और वाणिज्य के जरिये साझा सांस्कृतिक मूल्यों और समानताओं के आधार पर शांतिपूर्ण सहअस्तित्व में रह रहे हैं.
अफगानिस्तान एक भूआबद्ध देश है जिसकी सीमा पाक-अधिकृत कश्मीर से सटी हुई है. मध्य एशिया के देशों में पहुँचने के लिए अफगानिस्तान एक महत्त्वपूर्ण देश है. अफगानिस्तान समाज अभी भी कबीलों में विभाजित है. अफगानिस्तान भारत का एक परम्परागत मित्र रहा है. अफगानिस्तान विदेशी शक्तियों के हस्तक्षेप के कारण अस्थिर राज्य बन गया. इसकी शुरुआत सोवियत संघ द्वारा 1979 में सैनिक हस्तक्षेप से हुई. सोवियत संघ का मुकाबला करने के लिए अमेरिका ने कबीलों को हथियार, प्रशिक्षण एवं अन्य संसाधन मुहैया कराये.
सोवियत सेनाओं की अफगानिस्तान से वापस के पश्चात् ये समूह आपस में संघर्षरत हो गए तथा आतंकवादी समूहों का समर्थन करने लगे. अफगानिस्तान की सत्ता पर 1996 में कट्टरपंथी मुजाहिद्दीन काबिज होने में सफल रहे जिन्हें तालिबान भी कहा जाता है.
9/11 की घटना के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में ऑपरेशन एन्ड्योरिंग फ्रीडम शुरू किया जिससे तालिबान के शासन का 2001 में अंत हो गया. वहाँ लोकतांत्रिक शासन स्थापित किया गया.
इतिहास
- सोवियत अफगान युद्ध (1979-89) के दौरान भारत सोवियत समर्थित अफगानिस्तान लोकतांत्रिक गणराज्य को मान्यता देने वाला एकमात्र दक्षिण एशियाई राष्ट्र था. साथ ही भारत ने इसके बाद अफगानिस्तान के राष्ट्रपति नजीबुल्लाह की सरकार को मानवीय सहायता भी उपलब्ध करायी जोकि सोवियत सेनाओं की वापसी के बाद भी जारी रही.
- 1990 के दशक में एक संक्षिप्त अवरोध को छोड़ दें तो अफगानिस्तान के साथ भारत के संबंध ऐतिहासिक रूप से अच्छे रहे हैं, जो वर्ष 1950 की मैत्री संधि (Treaty of Friendship) से आगे बढ़े थे। भारतीय हितों और प्रभाव को तब धक्का लगा जब पाकिस्तान द्वारा समर्थित तालिबान ने वर्ष 1996 में काबुल पर कब्जा कर लिया। लेकिन वर्ष 2001 में अमेरिकी आक्रमण के बाद जैसे ही तालिबान को सत्ता से बेदखल किया गया, भारत ने पुनः अपनी खोई हुई स्थिति वापस प्राप्त कर ली।
- 1999 में, भारत तालिबान विरोधी उत्तरी गठबंधन के प्रमुख समर्थकों में से एक बन गया.
- 2005 में, भारत ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) में अफगानिस्तान की सदस्यता का प्रस्ताव रखा. दोनों देशों ने इस्लामी आतंकवादियों के खिलाफ रणनीतिक और सैन्य सहयोग भी विकसित किया.
- 2011 में भारत के साथ अफगानिस्तान के पहले सामरिक भागीदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.
- भारत अफगानों के नेतृत्व में और अफगान स्वामित्व वाले अफगान संविधान के ढांचे के भीतर राष्ट्रीय सुलह की प्रक्रिया का समर्थन करता है.
- कुछ वर्षों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अफगानिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, आमिर अमानुल्लाह खान अवार्ड से सम्मानित किया गया.
संस्थाओं और बुनियादी ढांचे के निर्माण में भारत का योगदान
- भारत अवसंरचना, शिक्षा और कृषि के क्षेत्र में विविध विकास परियोजनाओं में अफगानिस्तान में छठा सबसे बड़ा सहयोगकर्ता है.
- भारत ने अफ़गानिस्तान के पुनर्निर्माण और पुनर्वास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
- गत वर्षों में भारत ने अफ़गानिस्तान को दो अरब डॉलर की आर्थिक सहायता उपलब्ध करायी थी.
- अफ़गानिस्तान में भारत की विकास परियोजनाओं को मुख्यतः चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:- i) बड़ी आधारभूत परियोजनाएं, ii) मानवीय सहायता; iii) क्षमता निर्माण की पहल; और iv) लघु विकास परियोजनाएं.
कुछ बड़ी परियोजनाएँ
- ईरानी सीमा के लिए माल और सेवाओं की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए जरांज से डेलाराम तक 218 किमी सड़क का निर्माण
- पुल-ए-खुमरी से काबुल तक 220KV DC ट्रांसमिशन लाइन और चिम्ताला में एक 220/110/20 केवी सब-स्टेशन का निर्माण,
- हेरात प्रांत में सलमा बांध का निर्माण
- अफगान संसद का निर्माण
अफगानिस्तान के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए अन्य पहलें
- भारत-अफगानिस्तान वायु गलियारा (India-Afghanistan Air Corridor)
- विदेशी व्यापार हेतु कराची बंदरगाह पर निर्भरता को कम करने के लिए हार्ट ऑफ़ एशिया सम्मेलन, 2016 में भारत और अफगानिस्तान के बीच रियायती एयर कार्गो सुविधाओं की घोषणा की गई.
- अफगानिस्तान-पाकिस्तान व्यापार और पारगमन समझौता (Afghanistan-Pakistan Transit Trade Agreement)
- इस समझौते के तहत, अफगानिस्तान में उत्पादित वस्तुओं को वाघा (भारत) तक पारगमन की अनुमति प्रदान की जायेगी तथा इसके बदले में, अफगानिस्तान पाकिस्तान को मध्य एशियाई गणराज्यों (CARs) के लिए पारगमन मार्ग की अनुमति प्रदान करेगा.
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा (International North South Transport Corridor : INSTC)
- हालाँकि अफगानिस्तान INSTC का सदस्य नहीं है, फिर भी INSTC चाबहार से जरांज और डेलाराम के माध्यम से अफगानिस्तान में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देगा. हाल ही में, भारत ने INSTC के तीव्र कार्यान्वयन के लिए रूस के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये.
INSCT वर्ष 2002 में सेंट पीटर्सबर्ग में हस्ताक्षर किया गया एक मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर है जिसके संस्थापक सदस्य ईरान, रूस और भारत हैं. बाद में INSTC का विस्तार करते हुए इसमें 11 नए सदस्यों को जोड़ा गया, जो हैं – अजरबैजान, आर्मेनिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकस्तान, तुर्की, यूक्रेन, बेलारूस, ओमान, सीरिया और बुल्गारिया (पर्यवेक्षक सदस्य राष्ट्र) को शामिल किया गया है.
इसका लक्ष्य समुद्री मार्ग के माध्यम से भारत और ईरान को और उसके बाद ईरान के जरिये कैस्पियन सागर से होते हुए मध्य एशिया से जोड़ना है.
भारत- अफगानिस्तान के आधारभूत ढाँचे के विकास में व्यापक मदद कर रहा है. भारत ने जेरांग-देलराम सड़क परियोजना या सलमा बाँध शक्ति परियोजना स्थापित करने में, इंदिरा गाँधी शिशु स्वास्थ्य केंद्र के निर्माण, काबुल में हबीबी स्कूल की स्थापना आदि में महत्त्वपूर्ण सहायता दी है. इसके अतिरिक्त भारत-अफगानिस्तान में कृषि, बैंकिंग, कंप्यूटर, खनन, स्वास्थ्य क्षेत्र आदि में सहायता के लिए बार-बार प्रतिबद्धता व्यक्त की है.
वर्ष 2014 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापस के बाद तालिबान अफगानिस्तान में अपना प्रभाव पुनः स्थापित करने का प्रयास कर रहा है. तालिबान का मुख्य नेता मुल्ला उमर अगस्त, 2015 में मारा गया जिससे तालिबान की ताकत कमजोर हुई है.
भारत ने अफगानिस्तान से सांस्कृतिक आदान-प्रदान हेतु जून 2014 में उदार वीजा नीति की घोषणा की थी. दोनों देशों के बीच 2011 से ही सामरिक भागीदारी समझौता है. 2014 में अफगानिस्तान में राष्ट्रपति पद के चुनाव में अशरफ गनी अहमदजई नए राष्ट्रपति चुने गये. अशरफ गनी ने अप्रैल, 2015 में भारत की यात्रा की थी. इस यात्रा के दौरान भारत ने अफगानिस्तान को तीन चीतल हेलिकॉप्टर भेंटस्वरूप दिए. इसके अतिरिक्त रक्षा, कृषि, शिक्षा, ऊर्जा, सुरक्षा आदि अनेक मुद्दों पर दोनों देशों के नेताओं के बीच महत्त्वपूर्ण वार्ता हुई.
25 दिसम्बर, 2015 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक उच्चस्तरीय शिष्टमंडल के साथ अफगानिस्तान की यात्रा की. उन्होंने अफगानिस्तान के नए संसदीय भवन का उद्घाटन भी किया. अफगान सेना के शहीद जवानों के पाँच सौ बच्चों को स्कॉलरशिप की घोषणा की. भारत ने अफगानिस्तान को चार MI 25 हेलिकॉप्टर उपहार स्वरूप प्रदान किये. दोनों ही देशों ने ईरान चाबहार पत्तन को अफगानिस्तान से जोड़ने के लिए प्रस्तावित योजना में तेजी लाने पर सहमति जताई.
भारत ने अफगानिस्तान में लघु श्रेणी के 92 विकास योजनाओं के निर्माण में सहयोग पर सहमति प्रदर्शित की. वर्तमान में अफगानिस्तान से भारत द्विपक्षीय व्यापार 1 बिलियन डॉलर से भी कम है. अफगानिस्तान, रूस तथा मध्य एशिया तक पहुँचने का सबसे लघु मार्ग प्रदान करता है. अत: अफगानिस्तान से व्यापार की व्यापक संभावनाएँ हैं. अफगानिस्तान दक्षेस का सदस्य है. भारत ने अफगानिस्तान के साथ 2005 में अधिमान्य व्यापार समझौता किया था.
सामरिक भागीदारी समझौते
- अमेरिका और पाकिस्तान के प्रयासों के बावजूद अफगानिस्तान के साथ एक सामरिक भागीदारी समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला पहला देश भारत था.
- भारत ने वर्ष 2011 में हस्ताक्षरित रणनीतिक भागीदारी समझौते में “अफगानी सुरक्षा बलों हेतु प्रशिक्षण के साथ-साथ उपकरण उपलब्ध कराने और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों” में सहयोग करने का वादा किया था.
- तालिबान का सामना करने के लिए सामरिक नीति के एक भाग के रूप में, भारत ने तीन आक्रमणकारी हेलिकॉप्टर Mi-25 उपहार स्वरूप दिए हैं (जिसमें भविष्य में एक और यूनिट देने का विकल्प भी है).
- भारत ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के माध्यम से तुर्कमेनिस्तान से प्राकृतिक गैस लाने के लिए तापी पाइपलाइन परियोजना पर भी हस्ताक्षर किए हैं.
व्यापारिक सम्बन्ध
- भारत और अफ़गानिस्तान का द्विपक्षीय व्यापार 2014-15 में 684.47 मिलियन अमेरिकी डॉलर था.
- भारत और अफ़गानिस्तान के व्यापार में मुख्य बाधा पाकिस्तान द्वारा स्थल मार्ग की सुविधा न देना है.
- अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान ने, 2011 में, अफ़गानिस्तान पाकिस्तान ट्रांजिट और व्यापार समझौते (APTTA) पर हस्ताक्षर किए, जो दोनों की राष्ट्रीय सीमाओं तक दोनों देशों को बराबर पहुँच देता है.
- वर्तमान में पाकिस्तान भारत जाने वाले अफ़गान ट्रकों को वाघा बॉर्डर तक ही आने देता है जबकि महज 1 कि मी दूर ही स्थित अटारी पर भारतीय चौकी तक ट्रकों को आने की अनुमति नहीं दी जाती.
भारत – अफगानिस्तान संबंधों का महत्त्व
- भारत के लिए अफगानिस्तान का सामरिक महत्त्व बहुत ही ज्यादा है. सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि, काबुल में एक मित्रवत् एवं स्थिर शासन व्यवस्था वस्तुतः पाकिस्तान के कुत्सित राजनीतिक उद्देश्यों के खिलाफ़ भारत को प्राप्त एक भू-राजनीतिक लाभ है.
- अफगानिस्तान ऊर्जा समृद्ध मध्य एशिया के लिए प्रवेश द्वार है. अफगानिस्तान दक्षिण एशिया और मध्य एशिया तथा दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व के केंद्र पर स्थित है.
- देश के लिए बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण की योजनाएँ भारतीय कंपनियों के लिए बहुत से अवसर प्रदान करती हैं.
- अफगानिस्तान में तेल और गैस के महत्त्वपूर्ण भंडार हैं.
- अफगानिस्तान में रेयर अर्थ मटेरियल के समृद्ध स्रोत हैं.
आगे की राह
अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हमारे देश के लिए शुभ संकेत नहीं है. यह भारत के खिलाफ चीन-पाक गठजोड़ को मजबूत करेगा. हमें अतिरिक्त सतर्क रहने की आवश्यकता है.
तालिबान को आधिकारिक तौर पर भारत ने कभी मान्यता नहीं दी. भारत की प्राथमिकता अभी अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालने की होनी चाहिए. अफ़ग़ानिस्तान में लगभग 1700 भारतीय रहते हैं. पिछले कुछ दिनों में काफ़ी लोगों के अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने की खबरें आई है. उसके बाद भारत को देखना होगा कि तालिबान का रवैया आने वाले दिनों में कैसा है? दुनिया के अन्य देश तालिबान को कब और कैसे मान्यता देते हैं और तालिबान वैश्विक स्तर पर कैसे अपने लिए जगह बनाता है,यह एक देखने लायक बात है. भारत तालिबान से तभी बातचीत शुरू कर सकता है, जब तालिबान भी बातचीत के लिए राज़ी हो.
पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने अफ़ग़ानिस्तान में पुनर्निर्माण से जुड़ी परियोजनाओं में करीब तीन अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है. संसद से लेकर सड़क और बाँध बनाने तक कई परियोजनाओं में सैकड़ों भारतीय पेशेवर काम कर रहे हैं. लेकिन उससे भी ज्यादा चिंता इस बात की होगी कि भारत ने अफगानिस्तान में जो निवेश किया है, उसका क्या होगा. इसके अतिरिक्त पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ की वजह से अफगानिस्तान उन दोनों देशों के करीब जा सकता है. अगर ऐसा होता है तो ये भारत के लिए चिंता की बात होगी. लेकिन यह साफ है कि उसकी विचारधारा धार्मिक कट्टरपंथ की है और वह चीन के विचारों से मेल नहीं खाती. चीन भी यह बात बहुत अच्छी तरह से समझता है.
कई लोगों को तालिबान की बर्बरता का सामना करना पड़ रहा है. लोगों को यह भी भय सता रहा है कि अब वहाँ शरिया कानून लागू कर दिया जाएगा और मध्यकालीन प्रथाएँ लागू कर दी जाएँगी. मीडिया भी तालिबान से डर गई है. कई मीडिया हाउस बंद हो चुके हैं तो कई ने कुछ दिनों के लिए अपने ऑपरेशन को रोक दिया है. चिंता यह भी है कि तालिबान फिर से सांस्कृतिक गतिविधियों, संगीत, नृत्य और यहाँ तक कि फिल्मों पर भी फिर से प्रतिबंध लगा सकता है. तालिबान की वापसी के साथ ही महिलाओं, विपक्षी खेमे के राजनेताओं, सरकारी अधिकारी-कर्मचारी और पत्रकारों में अधिक भय दिख रहा है.
जब अफगानिस्तान की सरकार चली गई है और तालिबान ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है तो भारत सरकार से हम एक परिपक्व राजनीतिक, रणनीतिक और कूटनीति प्रतिक्रिया की अपेक्षा करते हैं.