1857 की क्रांति के पश्चात् भारत में राष्ट्रीयता की भावना का उदय तो अवश्य हुआ लेकिन वह तब तक एक आन्दोलन का रूप नहीं ले सकती थी, जबतक इसका नेतृत्व और संचालन करने के लिए एक संस्था मूर्त रूप में भारतीयों के बीच नहीं स्थापित होती. सौभाग्य से भारतीयों को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) के रूप में ऐसी ही संस्था मिली. यूँ तो पहले भी छोटी-मोटी संस्थाओं का प्रादुर्भाव हो चुका था. जैसे 1851 ई. में “ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन” तथा 1852 में “मद्रास नेटिव एसोसिएशन” की स्थापना की गई थी. इन संस्थाओं का निर्माण होने से राजनीतिक जीवन में एक चेतना जागृत हुई. इन संस्थाओं के द्वारा नम्र भाषा में सरकार का ध्यान नियमों में संशोधन लाने के लिए आकर्षित किया जाता था, लेकिन साम्राज्यवादी अंग्रेज हमेशा इन प्रस्तावों को अनदेखा ही कर देते थे.
कांग्रेस-पूर्व काल की राष्ट्रवादी माँगें
- प्रशासन के अधीन सिविल सेवाओं का भारतीयकरण
- प्रेस की स्वतंत्रता (वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट – 1878 का निरसन)
- सैन्य व्ययों में कटौती
- ब्रिटेन से आयात होने वाले सूती वस्त्रों पर आयात शुल्क आरोपित करना.
- भारतीय न्यायाधीशों को भी यूरोपीय नागरिकों आपराधिक मुकदमों की सुनवाई का अधिकार देना (इल्बर्ट बिल विवाद).
- भारतीयों को भी यूरोपियों के समान हथियार रखने का अधिकार देना.
- अकाल और प्राकृतिक आपदाओं के समय पीड़ितों की सहायता करना प्रशासन का कर्तव्य
- ब्रिटिश मतदाताओं को भी भारतीय समस्याओं से अवगत कराना जिससे ब्रिटिश संसद भारतीय हितों के संरक्षक दल का बहुमत हो.
कांग्रेस की स्थापना
ब्रिटिश सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति के कारण भारतीयों ने 1857 का आन्दोलन किया और उसके बाद भारतीयों का विरोध कभी रुका नहीं, चलता ही रहा. श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी एवं आनंद मोहन बोस ने 1876 ई में “इंडियन एसोसिएशन” नामक एक संस्था की स्थापना की. उसके बाद पूना में एक “सार्वजनिक सभा” नामक संस्था का निर्माण किया गया. भारतीय आन्दोलन प्रतिदिन शक्तिशाली हो रहा था. A.O. Hume ने 1883 ई. में कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातकों के नाम एक पत्र प्रकाशित किया, जिसमें भारत के सामजिक, नैतिक एवं राजनीतिक उत्थान के लिए एक संगठन बनाने की अपील की गई थी. A.O. Hume के प्रयास ने भारतवासियों को प्रभावित किया और राष्ट्रीय नेताओं तथा सरकार के उच्च पदाधिकारियों से विचार-विमर्श के पश्चात् Hume ने “इंडियन नेशनल यूनियन” की स्थापना की.
बाद में बंगाल में “नेशनल लीग” मद्रास में “महाजन सभा” और बम्बई में “प्रेसीडेंसी एसोसिएशन” की स्थापना इसी क्रम में की गयी. इसके बाद Hume इंगलैंड गए और वहाँ ब्रिटिश प्रेस तथा सांसदों से बातचीत कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्थापना की पृष्ठभूमि तैयार कर ली. कांग्रेस (INC) का प्रथम अधिवेशन 28 दिसम्बर, 1885 ई. को बम्बई में हुआ जिसके प्रथम अध्यक्ष श्री व्योमेशचन्द्र बनर्जी थे.
1890 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रथम महिला स्नातक कादम्बनी गांगुली ने कांग्रेस को संबोधित किया. इसके उपरान्त संगठन में महिला भागीदारी हमेशा बढ़ती ही गई.
इस प्रकार कांग्रेस के रूप में भारतीयों को एक माध्यम मिल गया जो स्वतंत्रता की लड़ाई में उनका नेतृत्व करता रहा. राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम चरण 1885 से 1905 तक का उदारवादी युग के नाम से पुकारा जाता है.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक उद्देश्य
प्रारम्भ में कांग्रेस का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा करना था अथवा राष्ट्रीयता के माध्यम से सुधार लाना था. कांग्रेस के प्रारंभिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं – –
i) भारत के विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय हित के काम में संलग्न व्यक्तियों के बीच घनिष्ठता और मित्रता बढ़ाना.
ii) आनेवाले वर्षों में राजनीतिक कार्यक्रमों की रुपरेखा तैयार करना और उन पर सम्मिलित रूप से विचार-विमर्श करना.
iii) देशवासियों के बीच मित्रता और सद्भावना का सम्बन्ध स्थापित करना तथा धर्म, वंश, जाति या प्रांतीय विद्वेष को समाप्त कर राष्ट्रीय एकता का विकास एवं सुदृढ़ीकरण करना.
iv) महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक सामजिक प्रश्नों पर भारत के प्रमुख नागरिकों के बीच चर्चा एवं उनके सम्बन्ध में प्रमाणों का लेख तैयार करना.
v) भविष्य के राजनीतिक कार्यक्रमों की रूपरेखा सुनिश्चित करना.
vi) राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक मुद्दों शिक्षित वर्गों को एकजुट करना.
पार्टी के पार्टी के अध्यक्षों की सूची/अधिवेशन
- व्योमेशचन्द्र बनर्जी – 29 December 1844 – 1906 1885 बम्बई
- दादाभाई नौरोजी – 4 September 1825 – 1917 1886 कलकत्ता
- बदरुद्दीन तैयबजी – 10 October 1844 – 1906 1887 मद्रास
- जॉर्ज यूल – 1829–1892 1888 अलाहाबाद
- विलियम वेडरबर्न – 838–1918 1889 बम्बई
सेफ्टी वॉल्व थ्योरी
सेफ्टी वॉल्व थ्योरी (Safety Valve Theory) का सिद्धांत सर्वप्रथम लाला लाजपत राय ने अपने पत्र “यंग इंडिया” में प्रस्तुत किया. गरमपंथी नेता लाला लाजपत राय द्वारा 1916 में यंग इंडिया में प्रकाशित अपने एक लेख के माध्यम सुरक्षा वॉल्व की परिकल्पना करते हुए कांग्रेस द्वारा ब्रिटिश प्रशासन के विरुद्ध अपनाई गई नरमपंथी रणनीति पर प्रहार किया और संगठन को लॉर्ड डफरिन के दिमाग की उपज बताया गया. उन्होंने संगठन की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य भारतवासियों को राजनीतिक स्वतंत्रता दिलाने के स्थान ब्रिटिश साम्राज्य के हितों की रक्षा और उस आसन्न खतरों से बचना बताया. उनका कहना था कि कांग्रेस ब्रिटिश वायसराय के प्रोत्साहन ब्रिटिश हितों के लिए स्थापित एक संस्था जो भारतीयों का प्रतिनिधित्व नहीं करती.
1857 के विद्रोह का नेतृत्व विस्थापित भारतीय राजाओं, अवध के नवाबों, तालुकदारों और जमींदारों ने किया था. इस विद्रोह स्वरूप भी अखिल भारतीय नहीं था एवं नेतृत्वकर्ता के रूप में सामान्य जन की भागीदारी सीमित रूप में थी. कांग्रेस की स्थापना के समय तक स्थिति में बदलाव आ चुका था और इस ब्रिटिश प्रशासन के शोषण के विरुद्ध समाज प्रत्येक वर्ग हिंसक मार्ग अपनाने को तैयार था.
हिंसक क्रान्ति घटित होने वाली सभी दशाओं की उपस्थिति के ही कांग्रेस की स्थापना और आगे किसी होने वाले विप्लव का टल जाना सेफ्टी वॉल्व मिथक की सत्यता का समर्थन करता है.
कांग्रेस का उद्भव – विभिन्न मत
वस्तुतः कांग्रेस की स्थापना का मूल विचार कहाँ और कैसे उत्पन्न हुआ था, यह विवादास्पद विषय है. इस सम्बन्ध में विभिन्न मत निम्नलिखित हैं –
सुरक्षा नली के रूप में
कांग्रेस की स्थापना लाला लाजपतराय और सर विलियम वेडरबर्न के अनुसार ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा के लिए एक सुरक्षा नली के रूप में की गई थी. अंग्रेजों के शोषण, अत्याचारों, विशेष रूप से लिटन के दमनात्मक कार्यों से भारतीयों के रोष में निरंतर वृद्धि हो रही थी. ह्यूम को गृह सचिव होने के कारण पुलिस की गुप्त रिपोर्टों को पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ था और उसे भारत के आंतरिक, भूमिगत षड्यंत्रों आदि के बारे में ज्ञान हो गया था, अतः ब्रिटिश साम्राज्य के लिए सुरक्षा साधन की आवश्यकता थी. ह्यूम का उद्देश्य एक राजभक्त राजनीतिक संगठन को स्थापित करना था जिससे भारत के बुद्धिजीवी को अराजकतापूर्ण कार्यों से अलग रखा जा सके.
कल्याणकारी संस्था
ऐनी बेसेंट का कहना है कि उन्होंने भारत के कल्याण के लिए अखिल भारतीय संस्था की स्थापना का विचार बनाया.
डफरिन का षड्यंत्र
कांग्रेस के प्रथम सभापति व्योमेशचन्द्र बनर्जी द्वारा 1898 ई. में यह विचार प्रकट किया गया था कि कांग्रेस की स्थापना के पीछे वायसराय लॉर्ड डफरिन का षड्यंत्रकारी विचार था. उसने ह्यूम से कहा था कि सामाजिक संस्था के पीछे, जो ह्यूम का मूल विचार था, के स्थान पर विपक्ष की भूमिका निभाने वाली एक राजनीतिक संस्था की स्थापना की जाए.
रूस का भय
नन्दलाल चटर्जी ने 1950 ई. में यह विचार व्यक्त किया है कि रूस के भय के कारण कांग्रेस की स्थापना की गई थी. रूस ने 1884 ई. में मर्व पर तथा 1885 ई. में पंजदेह पर अधिकार कर लिया था. इससे इंग्लैंड में भारतीय साम्राज्य के बारे में चिंता हुई. इससे इंग्लैंड में भारतीय साम्राज्य के बारे में चिंता हुई.
भारत की राष्ट्रीय संस्था
अधिकांश विद्वानों का मत है कि कांग्रेस की स्थापना भारत की राष्ट्रीय चेतना का स्वाभाविक विकास था. इन विद्वानों का मानना है कि ह्यूम पर सुरक्षा नली का आरोप लगाना तथा उसे साम्राज्यवादी रक्षक के रूप में चित्रित करना उचित नहीं है. वह एक उदारवादी व्यक्ति था और भारतीयों के प्रति उसने आरम्भ से ही मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाया था. इसलिए उन्होंने भारतीयों के हितार्थ एक राष्ट्रीय संगठन का सुझाव दिया था.
Source: NCERT, Wikipedia, NIOS, IGNOU
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