शकों के बाद पार्थियन लोग भारत में आए. (शक के बारे में पढ़ें > शक वंश). अनेक भारतीय संस्कृत के मूल पाठों में एक साथ इन दोनों कबीलों के लिए “शक-पहलव” संज्ञा का प्रयोग किया गया है. इस तरह इंडो-पार्थियनों को ‘पहलव (पह्लव)’ कहा गया है. इनके शासन को सुरेन साम्राज्य (Suren Kingdom) के नाम से भी जाना जाता है. पार्थियन भारत में ईरान (फारस) से आए. ये लोग ई० सं० से दो सौ वर्ष पूर्व भारत में आए और उत्तर-पश्चिमी भारत के कतिपय स्थानों में उनका शासन लगभग सौ वर्ष तक रहा.
मिथ्रीडेट्स प्रथम पार्थियन सम्राट था, जिसने भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश पर आक्रमण किया था. उसने बेक्ट्रियन सेना (उस समय इस क्षेत्र पर बेक्ट्रियन शासक डिमेट्रियस का शासन था) को परास्त कर सिन्धु और झेलम के बीच के प्रदेश को जीत लिया. मिथ्रेडेट्स की मृत्यु के पश्चात् पार्थियन साम्राज्य के प्रांतीय शासक अपने-अपने प्रदेशों के स्वतन्त्र शासक बन गए. पार्थिया के एक और महत्त्वपूर्ण शासक ने सिन्ध और पंजाब राज्यों को संगठित कर उन्हें शक्तिशाली बनाया. भारत में पार्थियनों के शासन के विषय में विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं है. भारतीय पार्थियन शासकों में एक प्रसिद्ध शासक माउस हुआ. उसकी राजधानी तक्षशिला थी. वह एक महान राजा था. इतिहासकारों का कहना है कि उसने ‘महाराज़ाधिराज’ की उपाधि धारण की थी. उसके बाद मिथ्रेडेट्स द्वितीय भी एक प्रसिद्ध शासक हुआ. उसने शकों को पराजित किया था. एजेज प्रथम और एजेज द्वितीय भी इस वंश के प्रसिद्ध शासक थे. पर इस वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक गॉन्डोफर्नी था, जिसने 20 ई० से 45 ई० तक शासन किया. उसने अपने राज्य की स्थिति सुदृढ़ बनाने का भरसक प्रयत्न किया और उसे इस कार्य में सफलता भी मिली. सिन्ध और पंजाब में उसका पूर्ण प्रभुत्व था.
गॉन्डोफर्नी की मृत्यु के बाद पार्थियन राज्य की शक्ति घटती ही रही और धीरे-धीरे इस राज्य का पतन हो गया. कुषाण जाति ने इस जनगण के साम्राज्य का अंत किया; वह तथ्य दो अभिलेखों से प्रमाणित होती है.
हजारा जिले के पंजतर अभिलेख (65 ई. के) में “महाराज कुषाण का राज्य” लिखा है तथा तक्षशिला अभिलेख (79 ई. के) में शासक के लिए “महाराज राजाधिराज देवपुत्र कुषाण” लिखा है.
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