Q1. क्या आपको लगता है कि इन्टरनेट शटडाउन हमारी वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को ठेस पहुँचाती है और सरकार को इसके वैकल्पिक उपायों को प्राथमिकता देनी चाहिए? इस कथन पर अपना तर्कपूर्ण मंतव्य दीजिए.
Do you think that internet shutdown hurts our right to freedom of speech and expression and Government should lend priority to its alternative options? Give your logical opinion on this statement.
क्या न करें
❌ऐसा उत्तर नहीं होना चाहिए जिसमें आपके मत के विषय में पता ही नहीं चले (highly diplomatic kind of)
❌ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए कि यह प्रश्न आपसे क्यों पूछा गया है, आप उसका उल्लेख कीजिए ही नहीं अर्थात् करंट में क्या चल रहा था वह लिखना जरूरी है.
❌कई छात्र प्रश्न के दूसरे भाग को लिखना भूल जाते हैं जैसे कि इस प्रश्न में वैकल्पिक उपाय के बारे में पूछा गया है.
क्या करें
✅परिभाषा से प्रारम्भ करें
✅सम्बन्धित संविधान के अनुच्छेद का (यदि याद हो तो) उल्ल्लेख जरूर कीजिए
✅अपना मत स्पष्ट कीजिए.
✅निष्कर्ष में दोनों पक्षों (पक्ष-विपक्ष) का उल्लेख जरूर कीजिये भले ही आपका मत कुछ और हो.
इन्टरनेट शटडाउन
उत्तर :-
इन्टरनेट शटडाउन के माध्यम से सरकार द्वारा सूचना के प्रवाह पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए किसी विशिष्ट जनसांख्यिकी क्षेत्र या स्थान में इन्टरनेट या इलेक्ट्रॉनिक संचार को अवरुद्ध किया जाता है.
हम सभी जानते हैं कि इन्टरनेट के माध्यम से वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत एक मूल अधिकार है. हम यह भी जानते हैं कि इन्टरनेट के माध्यम से व्यापार एवं कारोबार करने की स्वतंत्रता भी अनुच्छेद 19(1)(g) के अंतर्गत संवैधानिक रूप से एक संरक्षित अधिकार है.
हाल के दिनों में कश्मीर में इन्टरनेट के उपयोग पर प्रतिबंध लगाये जाने से देश-विदेश के बुद्धिजीवी यह सवाल उठाने लगे कि एक लोकतांत्रिक देश में सबसे लम्बे समय तक इन्टरनेट शटडाउन का लगाया जाना कहाँ तक उचित है?
भले ही लोग प्रथम दृष्टया यह कहें कि सरकार द्वारा इन्टरनेट शटडाउन के माध्यम से नागरिक स्वतंत्रता और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों पर प्रहार किया जाता है पर यह भी सच है कि कानून और व्यवस्था सँभालने वाले प्रशासक द्वारा इन्टरनेट शटडाउन का उपयोग प्रयोग मात्र एक निवारक उपाय के रूप में किया जाता है. किसी विशिष्ट प्रदेश में उत्पन्न किसी विशेष परिस्थिति जैसे – सामूहिक विरोध प्रदर्शन, नागरिक अशांति को नियंत्रित करने, शान्ति और सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु गलत सूचना के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए यह एक अंतिम उपाय के रूप में प्रयोग किया जाता है. सरकार को कभी-कभी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जो सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न कर सकती हैं.
इन्टरनेट शटडाउन के द्वारा हेट स्पीच (घृणा-वाक्), फर्जी खबरों (फेक न्यूज़) आदि को स्वतः रोका जा सकता है. जब व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से अफवाहें विघटनकारी भूमिका निभाना शुरू करती हैं, तब ऐसी कुछ चरम स्थितियों में वहाँ पर इंटरनेट शटडाउन करना आवश्यक हो सकता है।
इसलिए मेरा यह मानना है कि भले ही वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारा मूल अधिकार है पर देश की सुरक्षा सबसे सर्वोपरि है. यदि हम आम नागरिक इस बात को अच्छी तरह से समझ लें कि सरकार यह सब कुछ हमारे लिए और हमारी सुरक्षा हेतु ही कर रही है तो हमारे द्वारा क्षण-भर के लिए संविधान द्वारा प्रदत्त अपने अधिकारों को भूल जाना गलत नहीं होगा.
यह भी सच है कि कई बार सरकार न केवल असंतोष या असहमति व्यक्त करने पर अंकुश लगाती है, बल्कि सूचना के प्रसार पर अत्यधिक नियंत्रण और प्रसंग या घटनाक्रम के ऊपर प्रभुत्व स्थापित कर लेती है जैसा हमने 1975 में आपातकाल के दौरान देखा था.
निष्कर्ष के रूप में हम यही कह सकते हैं कि इन्टरनेट शटडाउन अस्थाई अवधि के लिए होना चाहिए न कि अनिश्चित काल के लिए. धारा 144 के अंतर्गत प्रतिबंध लगाये वाले सभी आदेश सरकार द्वारा प्रकाशित किये जाना चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय ने भी जनवरी 2020 को यह निर्दिष्ट किया था कि इन्टरनेट शटडाउन के सम्बन्ध में कोई भी आदेश न्यायिक संवीक्षा के अधीन होना चाहिए. सरकारों को ऐसी कार्रवाई करने से पूर्व इन्टरनेट शटडाउन के लागत के प्रभाव का एक लागत-लाभ विश्लेषण भी कर लेना चाहिए क्योंकि भारत को अभी तक इसके चलते 2.8 बिलियन डॉलर की क्षति उठानी पड़ी है.
कमेंट में आप कुछ पॉइंट और जोड़ सकते हैं.
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