नीचे 24 जैन तीर्थंकरों के विषय में details दिए गए हैं. अक्सर परीक्षाओं में जैन धर्म से जुड़े सवाल आते रहते हैं. कभी जैन मत, जैन साहित्य, जैन धर्म के इतिहास आदि के बारे में पूछ लिया जाता है तो कभी जैन तीर्थंकरों के जीवन, उपदेश आदि से सम्बंधित सवाल आ जाते हैं. इसलिए मैंने यह Jain Tirthankara की लिस्ट बनाई है और उनके माता-पिता का नाम दिया है. उनके जीवन से जुड़ी कहानी/तथ्यों को भी बताने की कोशिश की है.
List of Jain Tirthankara
ऋषनाथ या आदिनाथ
पिता – अयोध्या नरेश
माता – मरूदेवी
पत्नी – सुनंदा और सुमंगला
उनका जन्म अयोध्या में हुआ. ऋषभ की मूर्तियाँ सर्वथम कुषानकाल में निर्मित मूर्ति मथुरा और चौसा से प्राप्त हुए हैं. कैलाश पर निर्वाण प्राप्त किया.
अजितनाथ
पिता – महाराज जितशत्रु
माता – विजय देवी
12 वर्षों की कठिन तपस्या के बाद अजित को अयोध्या में कैवल्य प्राप्त हुआ. अजितनाथ की प्रारम्भिकतम मूर्ति वाराणसी से मिली है.
संभवनाथ
पिता – श्रावस्ती के शासक जितारि
माता – सेना देवी या सुषेर्णा
दीक्षा के बाद श्रावस्ती में उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ.
अभिनंदन
पिता – महाराजा संवर
माता – सिद्धार्था
10वीं शती ई. से पहले की अभिनंदन की एक भी मूर्ति नहीं मिली है. इनकी स्वतंत्र मूर्तियाँ केवल देवगढ़, खजुराहो और नवमुनि और बारभुजी गुफाओं से मिली है.
सुमतिनाथ
पिता – अयोध्या के शासक मेघ या मेघप्रभ
माता – मंगला
20 वर्षों की कठिन तपश्चर्या के पश्चात् इन्हें कैवल्प प्राप्त हुआ. 10वीं शती ई. से पूर्व की सुमतिनाथ की कोई मूर्ति नहीं मिली है.
पद्मप्रभ
पिता – कौशाम्बी के शासक धर या धरण
माता – देवी सुशीला
कौशाम्बी के वन में कैवल्य प्राप्त हुआ. 10वीं शती ई. से पूर्व की पद्मप्रभ की एक भी मूर्ति नहीं मिली है. पद्मप्रभ की मूर्तियाँ केवल खुजराहो, छतरपुर, देवगढ़, ग्वालियर, कुम्भारिया और बारभुजी गुफा से मिली हैं.
सुपार्श्वनाथ
पिता – वाराणसी के शासक प्रतिष्ठ
माता – पृथ्वी देवी
वाराणसी के वन में वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था. मूर्तियों में सुपार्श्वनाथ की पहचान मुख्य रूप से एक, पाँच या नौ सर्पफणों के छत्र के आधार पर की गई है. अधिकांश उदाहरणों में तीर्थंकर के सर पर पांच सर्पफणों का छत्र ही दिखाया गया है. सुपार्श्वनाथ की सर्वाधिक मूर्तियाँ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में शहडोल, मथुरा, देवगढ़ और खजुराहो से मिली हैं. इस क्षेत्र में पाँच सर्पफणों के छत्र से शोभित सुपार्श्वनाथ को सामान्यतः कार्योत्सर्ग में दिखाया गया है.
चन्द्रप्रभ
पिता – चन्द्रपुरी के शासक महासेन
माता – लक्ष्मणा या लक्ष्मी देवी
दीक्षा के बाद कठिन तपस्या द्वारा चन्द्रपुरी के वन में चन्द्रप्रभ को कैवल्य प्राप्त हुआ.
सुविधिनाथ (या पुषपदंत)
पिता – सुग्रीव
माता – वामदेवी
दीक्षा के बाद काकन्दी वन में इन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ.
शीतलनाथ
पिता – महाराज दृढ़रथ
माता – नंदादेवी
श्रेयांशनाथ
पिता – विष्णु
माता – विष्णुदेवी
वासुपूज्य
पिता – वासुपूज्य
माता – जाया या विजय
विमलनाथ
पिता – कृतवर्मा
माता – श्यामा
अनंतनाथ
पिता – सिंहसेन
माता – सुयशा
धर्मनाथ
पिता – भानु
माता – सुव्रता
शांति
पिता – हस्तिनापुर के शास विश्वसेन
माता – अचिरा
एक वर्ष की कठिन तपस्या के बाद कैवल्य प्राप्त किया.
कुन्थुनाथ
पिता – वसु या सूर्यसेन
माता – श्रीदेवी
अरनाथ
पिता – सुदर्शन
माता – महादेवी
तीन वर्षों की तपस्या के बाद आम्रवृक्ष के नीचे इन्हें कैवल्य प्राप्त हुआ.
मल्लिनाथ
पिता – मिथला के शासक कुम्भ
माता – प्रभावती
श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार मल्लिनाथ नारी तीर्थंकर थीं, किन्तु दिगम्बर परम्परा में इन्हें पुरुष तीर्थंकर ही माना गया है. 11 वीं शताब्दी की उन्नाव से प्राप्त एक श्वेताम्बर मूर्ति राज्य संग्रहालय, लखनऊ में संगृहीत है. यह मल्लि की नारी मूर्ति है जिसमें वक्ष स्थल का उभार नारीवक्ष के समान है और केश-रचना भी वेणी के रूप में संवारी गई है. नारी के रूप में मल्लि के रूपायन का यह अकेला उदाहरण है. दिगम्बर परम्परा की कुछ मूर्तियाँ सतना, बारभुजी और त्रिशूल गुफाओं से मिली हैं.
मुनिसुव्रत
पिता – राजगृह के शासक सुमित्र
माता – पद्मावती
नमिनाथ
पिता – विजय
माता – वपा
नेमिनाथ (या अरिष्टनेमि)
पिता – महाराज समुद्रविजय
माता – शिवा देवी
समुद्रविजय के अनुज वसुदेव थे जिनकी दो पत्नियों रोहिणी और देवकी से क्रमशः बलराम और कृष्ण उत्पन्न हुए. इस प्रकार कृष्ण और बलराम नेमिनाथ के चचेरे भाई थे. गिरनार पर निर्वाण उपलब्ध किया.
पार्श्वनाथ
पिता – वाराणसी के महाराज अश्वसेन
माता – वामा
पार्श्वनाथ जिस समय तपस्या में लीन थे तो उसी समय उनके पूर्वजन्म के वैरी मेघमाली (या कमठ) नाम के असुर ने उनकी तपस्या में तरह-तरह के विघ्न डाले. मेघमाली ने भयंकर वृष्टि द्वारा जब पार्श्वनाथ को जल में डुबो देना चाहा और वर्षा का जल पार्श्व की नासिका तक पहुँच गया. तब उनकी रक्षा के लिए नागराज धरणेंद्र नागदेवी पद्मावती के साथ वहाँ उपस्थित हुए. धरणेंद्र ने तीर्थंकर को अपनी कुंडलियों पर उठा लिया और उनके पूरे शारीर को ढंकते हुए सर के ऊपर सात सर्पफणों की छाया की थी. जैन ग्रन्थों में पार्श्वनाथ के सर पर तीन, सात या ग्यारह सर्पफणों का छत्र दिखाए जाने का उल्लेख मिलता है. इसी कारण कभी-कभी पार्श्वनाथ के सर पर तीन और 11 सर्पफणों का छत्र भी दिखाया जाता है.
महावीर
पिता – सिद्धार्थ
माता – त्रिशला
पाव में निर्वाण उपलब्ध किया.
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