आज हम जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 (Jammu & Kashmir Reorganisation Bill 2019 in Hindi) के विषय में चर्चा करेंगे.
भारतीय संघ में जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति (special status) को समाप्त करते हुए केंद्र सरकार ने संविधान में वर्णित सभी प्रावधानों को उस राज्य में लागू कर दिया है और साथ ही उसको दो संघीय क्षेत्रों (Union Territories) में विभाजित कर दिया है.
इस सन्दर्भ में केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने पिछले दिनों दो संकल्प और दो विधेयक संसद में अनुमोदनार्थ प्रस्तुत किया. ये हैं –
- धारा 370 (Article 370) से सम्बंधित 1954 के तात्कालिक राष्ट्रपति के आदेश का अवक्रमण करते हुए वर्तमान राष्ट्रपति के द्वारा निर्गत आदेश संविधान (जम्मू और कश्मीर में लागू) आदेश, 2019 / Constitution (Application to Jammu & Kashmir) Order, 2019 {संदर्भ. अनुच्छेद 370 (1)}
- संविधान की धारा 370 की समाप्ति के विषय में संकल्प {संदर्भ. अनुच्छेद 370 (3)}
- जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 {संदर्भ. संविधान की धारा 3}
- जम्मू-कश्मीर आरक्षण (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2019
पृष्ठभूमि
अभी तक जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित विधायी कार्य के लिए संसद को केवल अवशिष्ट शक्तियाँ ही थीं, जैसे – आतंक और अलगाववादी गतिविधियों को रोकने के लिए कानून बनाना, विदेश और देश के अन्दर की यात्रा पर कर लगाना तथा संचार से सम्बंधित कानून बनाना.
मुख्य परिवर्तन
- राष्ट्रपति ने संविधान की धारा 370 में प्रदत्त अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए इसके प्रावधानों को बदल दिया है जिसके फलस्वरूप अब सभी केन्द्रीय कानून और संधियाँ जम्मू-कश्मीर में भी लागू होंगी.
- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को संघीय क्षेत्र बना दिया गया है. जम्मू-कश्मीर में विधान सभा रहेगा और लद्दाख में विधान सभा नहीं होगा.
- राष्ट्रपति ने जो अधिसूचना निर्गत की है उसके अनुसार संविधान के सभी प्रावधान उनके संशोधनों, अपवादों एवं परिवर्तनों के साथ जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में लागू हो गये हैं.
- जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 में उपराज्यपाल को व्यापक शक्तियाँ दी गई हैं और मुख्यमंत्री पर यह दायित्व दिया गया है कि वह सभी प्रशासनिक निर्णयों और कानून से सम्बंधित प्रस्तावों से उपराज्यपाल को अनिवार्य रूप से अवगत कराएगा.
- सभी केन्द्रीय कानूनों के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर राज्य के कानून अब नए संघीय क्षेत्रों पर लागू होंगे.
- जम्मू कश्मीर (J&K) एवं लद्दाख की सम्पत्तियों और दायित्वों का बँटवारा एक केन्द्रीय समिति के सुझाव के अनुसार एक वर्ष में कर दिया जाएगा.
- राज्य लोक उपक्रमों तथा स्वायत्त निकायों में काम करने वाले कर्मचारी अगले एक वर्ष तक अपने पदों पर बने रहेंगे जब तक उनके विषय में नया निर्णय नहीं लिया जाएगा.
- दोनों संघीय क्षेत्रों की पुलिस और विधि व्यवस्था केंद्र के हाथ में होगी.
- धारा 370 के उपवाक्य (3) के परन्तुक (proviso) में वर्णित शब्दावाली “संविधान सभा” को सुधारकर अब उसे “विधान सभा” कर दिया गया है.
जम्मू-कश्मीर संघीय क्षेत्र की विधायी शक्तियाँ
- विधि व्यवस्था और पुलिस को छोड़कर राज्य सूची में वर्णित सभी विषयों पर जम्मू-कश्मीर की विधान सभा संघीय क्षेत्र के पूरे भूभाग के लिए अथवा उसके किसी अंश के लिए कानून बना सकती है.
- यदि संसद द्वारा और विधान सभा द्वारा बनाए गये कानूनों में यदि कोई विसंगति है तो संसद का क़ानून माना जाएगा और विधान सभा का कानून निरस्त हो जाएगा.
- मुख्यमंत्री का यह काम होगा कि वह मंत्रिमंडल द्वारा संघीय क्षेत्र के प्रशासन से सम्बंधित लिए गये निर्णयों और कानून बनाने के प्रस्तावों को उपराज्यपाल को बतायेगा और अन्य ऐसी सूचनाएँ उपलब्ध कराएगा जिन्हें उपराज्यपाल चाहे.
उपराज्यपाल की भूमिका एवं शक्तियाँ
- संविधान की धारा 239 के अंतर्गत राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में उपराज्यपाल (Lieutenant Governor – LG) की नियुक्ति करेगा.
- जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 में प्रावधान है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों संघीय क्षेत्रों के लिए एक ही उपराज्यपाल होगा.
- लद्दाख में विधान सभा नहीं होगा, इसलिए वहाँ केंद्र उपराज्यपाल की सहायता के लिए परामर्शियों की नियुक्ति करेगा.
- जहाँ तक जम्मू-कश्मीर संघीय क्षेत्र की बात है वहाँ का उपराज्यपाल अखिल भारतीय सेवाओं एवं भ्रष्टाचार निरोधी ब्यूरो से सम्बद्ध मामलों के साथ-साथ उन सभी विषयों पर अपने विवेक के अनुसार काम करेगा जो विधान सभा के क्षेत्राधिकार के बाहर आते हैं.
- उपराज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करेगा और मुख्यमंत्री के सहयोग से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करेगा. उपराज्यपाल ही मुख्यमंत्री और मंत्रियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाएगा.
- उपराज्यपाल को यह शक्ति होगी कि वह आदेश निकाले जो उतना ही प्रभावी होंगे जितना कि विधान सभा द्वारा पारित कोई अधिनियम.
प्रभाव
- जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 का सदन में उपस्थापित किया जाना इस बात का प्रमाण है कि 1954 के आदेश के दिन लद गये. विदित हो कि उस आदेश में धारा 3 के साथ एक परन्तुक जोड़ा गया था जिसके अनुसार “राज्य के क्षेत्रफल को बढ़ाने-घटाने अथवा उसका नाम बदलने अथवा उसकी चौहद्दी संशोधित करने के बारे में संसद में कोई भी विधेयक नहीं लाया जा सकता जब तक कि विधान सभा सहमति न दे दे.”
- 1954 के आदेश के समाप्त होते ही राज्य की विधान सभा की शक्तियाँ समाप्त हो गई हैं और संसद द्वारा आरक्षण सहित अन्य विषयों पर बनाए गये कानून जम्मू-कश्मीर में उसी तरह लागू होंगे जिस तरह देश के अन्य भागों में लागू होते हैं.
- केंद्र सरकार का कहना है कि उसने प्रस्ताव के द्वारा एक पुराने भेद-भाव को समाप्त किया है और जम्मू-कश्मीर के निवासियों तथा देश के अन्य नागरिकों के बीच की खाई को पाटने का काम किया है.
- संविधान की धारा 352 में एक उपवाक्य के द्वारा यह प्रावधान किया गया था कि जम्मू-कश्मीर की सरकार की सहमति के बिना आंतरिक विप्लव अथवा आसन्न खतरे को छोड़कर किसी भी आधार पर आपातकाल जम्मू-कश्मीर में नहीं लगाया जा सकता. 1954 के आदेश के निरस्त हो जाने के कारण यह प्रावधान भी समाप्त हो गया है.
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 लाने के पीछे का तर्क
- धारा 370 ने जम्मू-कश्मीर को भारत में सच्चे तौर पर विलय को रोक रखा था.
- धारा 370 पक्षपातपूर्ण धारा थी क्योंकि यह लिंग, वर्ग, जाति और उत्पत्ति स्थान के आधार पर भेद-भाव करती थी.
- इस धारा की समाप्ति के पश्चात् जम्मू-कश्मीर में निजी निवेश का मार्ग प्रशस्त हो गया है जो अंततः यहाँ विकास की सम्भावनाओं को बढ़ाएगा.
- निवेश बढ़ने पर रोजगार का सृजन होगा तथा यहाँ का सामाजिक-आर्थिक परिवेश बेहतर होगा.
- पूरे भारत वर्ष के लोग जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में जमीन खरीदने में निवेश करेंगे और बहुदेशीय कम्पनियाँ यहाँ उद्योग लगा सकती हैं जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी.
चुनौतियाँ – Jammu & Kashmir Reorganisation Bill
- भारत सरकार के प्रस्तावों पर आपत्ति करने वाले लोग इनके विरुद्ध न्यायालय जाएँगे.
- भारत सरकार के निर्णय के विरुद्ध जम्मू-कश्मीर राज्य के लोगों में प्रतिक्रिया हो सकती है तथा इस प्रकार की प्रतिक्रिया देश के अन्य भागों में भी हो सकती है. ऐसी प्रतिक्रियाओं को सरकार कैसे संभालती है यह देखने का विषय होगा.
एक सामान्य राज्य और संघीय क्षेत्र (UT) में अंतर
- राज्यों में एक चुनी हुई सरकार होती है, परन्तु संघीय क्षेत्र में चुनी हुई सरकार होने पर भी प्रशासन उपराज्यपाल के अधीन होता है.
- साधारण राज्यों में प्रशासन मुख्यमंत्री के अधीन होता है, किन्तु संघीय क्षेत्रों में (जहाँ विधान सभा नहीं हो) यह काम राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक प्रशासक देखता है.
- राज्यों में कार्यकारी प्रमुख राज्यपाल होता है जबकि संघीय राज्यों में राष्ट्रपति ही कार्यकारी प्रमुख होता है.
- साधारण राज्य में कानून बनाने के लिए एक विधानसभा होती ही होती है, परन्तु किसी संघीय क्षेत्र में ऐसा होना अनिवार्य नहीं है.
- साधारण राज्यों को शक्तियाँ संघीय पद्धति के अनुसार केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति वितरण के आधार प्राप्त होती हैं, जबकि संघीय क्षेत्र के मामले में शक्तियाँ भारत सरकार के हाथ में केन्द्रित होती हैं.
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