मगध राज्य के शुंग वंश के अंतिम सम्राट देवभूति को मारकर 75 ई.पू. वासुदेव ने कण्व वंश की नींव रखी. उस समय भारत की राजनैतिक एकता नष्ट हो चुकी थी. देश की पश्चिमोत्तर सीमा पर शक वंश के राजा लगातार आक्रमण कर रहे थे. मगध राज्य में पाटलिपुत्र तथा उसके आसपास के प्रदेश ही शामिल थे.
कण्व राजवंश
शुंग वंश की भाँति ये लोग भी ब्राह्मण थे और उनका गोत्र कण्व था. इसलिए इनके वंश को कण्व वंश कहा जाता है.
पुराण बताते हैं कि यह वंश मगध में राज करता था, परन्तु इनके अधिकांश सिक्के विदिशा के आस-पास पाए जाते हैं. इससे पता चलता है कि इनकी एक राजधानी विदिशा भी रही होगी.
कण्व वंश के राजा
इस वंश में केवल राजा हुए जिनके नाम और राज्यकाल निम्नलिखित हैं –
- वासुदेव (75 ई.पू – 66 ई.पू.)
- भूमिमित्र (66 ई.पू – 52 ई.पू.)
- नारायण (52 ई.पू – 40 ई.पू.)
- सुशर्मन (40 ई.पू – 30 ई.पू.)
वासुदेव के उत्तराधिकारी भूमिमित्र के नाम के सिक्के पंचांल क्षेत्र में पाए गये हैं. “कण्वस्य” लिखे ताम्बे के सिक्के विदिशा और कौशाम्बी (वत्स क्षेत्र) में भी पाए गये हैं. भूमिमित्र ने 14 वर्ष शासन किया और उसके पश्चात् उसका बेटा नारायण 12 वर्ष तक राजा रहा. नारायण का पुत्र सुशर्मन कण्व वंश का अंतिम राजा था.
पुराणों के अनुसार, कण्व वंश के अंतिम शासक सुशर्मन को आंध्र के राजा सिन्धुक ने मारकर सातवाहन वंश की नींव रखी.