[Sansar Editorial] कुसुम योजना – “सोलर” कृषि से किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य

Sansar LochanEnergy, Sansar Editorial 2019

भारत में किसानों को सिंचाई में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और अल्प वर्षा के कारण किसानों की फसलें नष्ट हो जाती हैं. जैसा कि हम सब जानते हैं कि सिंचाई पम्प को डीजल से चलाया जाता है जो किसानों के लिए एक बहुत बड़ा खर्चा का घर है. किसानों को सिंचाई की दिशा में आत्मनिर्भर बनाने व उनकी आय को बढ़ाने के लिए सरकार ने कुसुम योजना (किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान) प्रारम्भ किया है. कुसुम योजना की घोषणा केंद्र सरकार के आम बजट 2018-19 में की गई थी.

बिजली आपूर्ति की समस्या से किसानों के लिए सिंचाई में समस्या खड़ी हो जाती है. विदित हो कि आज की तिथि में कृषि में बिजली का औसत उपयोग 1.84 किलोवाट प्रति हेक्टेयर है जिसे 2020 तक बढ़ाकर 2.2 किलोवाट हेक्टेयर करने की योजना है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि कृषि उत्पादकता और कृषि के लिये बिजली की उपलब्धता का प्रत्यक्ष सम्बन्ध है.

यह अवश्य है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का कृषि पर आधारित स्वरूप अब परिवर्तित होने लगा है. आज कई प्रकार की गतिविधियाँ इसमें सम्मिलित हो रही हैं. परन्तु देखा जाए तो आज भी बुनियादी ढाँचे की कमी कृषि में सबसे बड़ी बाधा है. यहाँ बुनियादी ढाँचे से हमारा तात्पर्य ग्रामीण सड़कों की सघनता, सिंचाई सुविधाओं की उपलब्धता, बिजली आपूर्ति, विपणन सुविधाएँ व नेटवर्क, गोदान, शीत भण्डार, शीतगृह शृंखला, प्रसंस्करण अवसंरचना आदि से है.

solar agriculture

पृष्ठभूमि

हमारे देश में वर्ष के 365 दिनों में से लगभग 300 दिन सूर्य का प्रकाश अच्छे से भूमि पर पड़ता है. यदि हम इसे ऊर्जा के संदर्भ में देखें तो इतने दिनों में केवल और केवल सूर्य की किरणों से भारत लगभग 5, 000 खरब किलोवाट ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम है. भारत में सौर ऊर्जा उत्पन्न करने और उसके प्रयोग की क्षमता को देखते हुए पिछले कुछ वर्षों से सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत सारे कार्य किये जा रहे हैं. आज भारत के 15 राज्यों में सौर ऊर्जा की पॉलिसी हैं. ज्ञातव है कि 2009 में सर्वप्रथम गुजरात ने अपनी सोलर पॉलिसी अनावृत की थी. गुजरात की सोलर पॉलिसी कई राज्यों के लिए उदाहरण बन गई. आज गुजरात का एक गाँव और यहाँ के किसान, देश के अन्य सभी गाँवों और किसानों के लिए सौर ऊर्जा के सही प्रयोग पर एक अद्भुत् मॉडल दे रहे हैं. गुजरात के खेड़ा जिले में स्थित ढूंडी गाँव में विश्व की पहली ‘सौर सिंचाई सहकारी समिति’ का गठन किया गया है. इस समिति का नाम है ‘ढूंडी सौर ऊर्जा उत्पादक सहकारी मंडली’ (DSUUSM).

कुसुम योजना

कुसुम योजना के अनुसार बंजर भूमियों पर स्थापित सौर उर्जा परियोजनाओं से उत्पन्न बिजली में से अधिशेष अंश को किसान ग्रिडों को आपूर्ति कर सकेंगे जिससे उन्हें आर्थिक लाभ भी मिलेगा.

  1. इसके लिए, बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) को किसानों से पाँच वर्षों तक बिजली खरीदने के लिए 50 पैसे प्रति इकाई की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन राशि दी जायेगी.
  2. सरकार किसानों कोखेतों के लिए 5 लाख ऑफ़-ग्रिड (ग्रिड रहित) सौर पम्प खरीदने के लिए सब्सिडी प्रदान करेगी. केंद्र और राज्य प्रत्येक सौर पम्प पर 30% सब्सिडी प्रदान करेंगे. अन्य 30% ऋण के माध्यम से प्राप्त होगा, जबकि 10% लागत किसान द्वारा वहन की जायेगी.
  3. 7,250 MW क्षमता केग्रिड से सम्बद्ध (ग्रिड-कनेक्टेड) खेतों के पम्पों का सौरकरण (Solarisation) किया जाएगा.
  4. सरकारी विभागों के ग्रिड से सम्बद्ध जल पम्पों का सौरकरण किया जाएगा.

अपेक्षित लाभ

  • यह कृषि क्षेत्र को डीजल-रहित बनाने में सहायता करेगा. यह क्षेत्रक लगभग 10 लाख डीजल चालित पम्पों का उपयोग करता है.
  • यह कृषि क्षेत्र में सब्सिडी का बोझ कम कर DISCOMs की वित्तीय स्थिति में सुधार करने में सहायता करेगी.
  • विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा उत्पादनको प्रोत्साहन.
  • ऑफ-ग्रिड और ग्रिड कनेक्टेड, दोनों प्रकार के सौर जल पम्पों द्वारा सुनिश्चित जल स्रोतों के प्रावधान के माध्यम से किसानों को जल-सुरक्षा.
  • नवीकरणीय खरीद दायित्व लक्ष्यों को पूरा करने के लिए राज्यों का समर्थन करना.
  • छतों के ऊपर और बड़े पार्कों के बीच इंटरमीडिएट रेंज में सौर ऊर्जा उत्पादन की रिक्तियों को भरना.
  • ऑफ-ग्रिड व्यवस्था के माध्यम से पारेषण क्षति (transmission loss) को कम करना.

भूजल का कम दोहन

कृषि में किसान ज्यादातर आवश्यकता से अधिक भू-जल का प्रयोग करते हैं. जहाँ उन्हें मात्र 3 घंटे मोटर चलाना है, वहाँ वे 4-5 घंटे चलाते रहते हैं. इसके कारण शनैः शनैः भू-जल का स्तर बहुत कम होता जा रहा है. इसके अतिरिक्त आकस्मिक आपदाकाल में (जैसे सूखा या बाढ़ आने पर) यदि किसानों की फसल नष्ट हो जाती है उनके पास कमाई का कोई अन्य साधन नहीं होता. ऐसी परिस्थिति में किसान बैंकों या साहूकारों के चंगुल में फंस जाते हैं और कर्ज के तले दब जाते हैं. कुसुम योजना के चलते किसान निर्धारित समय में ही पानी निकालेंगे और बाकी समय में उत्पादित होने वाली ऊर्जा से उनकी अतिरिक्त कमाई होगी.

आगे की राह

किसानों को सौर ऊर्जा के उत्पादन हेतु प्रोत्साहित करके और उनके द्वारा उत्पादित अतिरिक्त बिजली को विद्युत ग्रिड या वितरण कम्पनियों (DISCOMs) को बेचकर किसानों की आय में वृद्धि के साथ-साथ कृषि सम्बन्धी गतिविधियों में चिरस्थायित्व का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है. हम जानते हैं कि मवेशियों के गोबर और कृषि के ठोस अपशिष्ट का प्रयोग करके कम्पोस्ट, जैव-गैस और जैव-सीएनजी जैसे कार्बनिक जैव-एग्रो संसाधन निर्मित करने करने के लिए गोवर्धन योजना का अनावरण किया गया है.

यदि पूरे देश में कुसुम योजना सही ढंग से लागू हो जाये और किसान सौर ऊर्जा का प्रयोग पूर्ण रूप से कृषि में करने लगे तो न केवल वर्तमान बिजली की खपत कम होगी, बल्कि 28 हजार मेगावाट अतिरिक्त बिजली उत्पादन का सपना भी पूरा हो जाएगा. किसान इस योजना का लाभ उठाकर अपने खेतों के ऊपर या खेतों की मेड़ों पर सोलर पैनल लगा कर  सौर ऊर्जा बना सकती है.

सौर ऊर्जा के सही प्रयोग से अब किसानों को पहले से कहीं अधिक लाभ पहुंचेगा. किसानों को अब सिंचाई के लिए डीज़ल वाले पंप पर पैसा खर्च करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. इससे कृषि में लागत काफ़ी कम हो जायेगी और साथ-साथ कंपनी, जो किसानों से बिजली का क्रय करेगी, उसके लिए किसानों को प्रति यूनिट के हिसाब से हर महीने धन प्राप्त होगा. किसानों के लिए यह अतिरिक्त आय का जरिया साबित होगा.

दरअसल, सौर ऊर्जा के माध्यम से किसानों के पास दिन में भी बिजली उपलब्ध होती है. उन दिनों जब उन्हें सिंचाई के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं पड़ती, वे अधिशेष बिजली DISCOMs को बेच देते हैं. हम आशा करते हैं कि भारतीय किसान उन मामलों में ड्रिप सिंचाई का उपयोग करेंगे, जहाँ यह उपयुक्त है ताकि कृषि में कार्बन इंटेनसिटी को कम किया जा सके.

यदि सरकार सम्पूर्ण देश में कुसुम योजना को सफलतापूर्वक लागू कर दे तो हम किसानों की आय दुगुनी करने के लक्ष्य को अवश्यमेव पूरा कर लेंगे. पूरे देश में लगभग 21 मिलियन डीज़ल-पंप के स्थान पर सोलर पंप लगाये जा सकते हैं. पूरे देश में यदि कुसुम योजना सही ढंग से लागू हो जाती है तो कृषि के लिए बिजली की सब्सिडी का बोझ हट जायेगा, किसानों की आय में वृद्धि होगी, देश में ऊर्जा उत्पादन अधिकतम होगा और साथ ही, भू-जल की खपत को नियंत्रित करने में हम सक्षम हो सकेंगे.

Tags : energy sufficiency and sustainable irrigation access to farmers, kusum yojana 2019 in Hindi

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