लॉर्ड कर्जन (1899-1905) : आन्तरिक नीति (Domestic Policy)

Sansar LochanModern History

लॉर्ड कर्जन भारत के योग्य एवं प्रभावशाली ब्रिटिश शासकों में अपना स्थान रखता है. कम्पनी के शासन की समाप्ति के उपरान्त जितने भी वायसराय भारत में आये उनमें लॉर्ड कर्जन सबसे अधिक योग्य था. वह यद्यपि 1899 ई० में वायसराय के पद पर प्रतिष्ठित हुआ तथापि उसके पहले भी वह कई बार भारत का भ्रमण कर चुका था. उसके बारे में कहा जाता है कि भारत की परिस्थतियों के बारे में वह इतना अधिक जानता था जितना कि उस समय में कोई भी यूरोपियन शायद ही जानता होगा.

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लॉर्ड कर्जन बड़ी ही विलक्षण प्रतिभा का व्यक्ति था और उसकी कल्पना बड़ी ही ऊँची थी. वह परिश्रमी और दृढ़निश्चयी था. कार्यक्षमता तथा कार्यकुशलता उसमें उच्च कोटि की थी और साथ-ही वह स्वेच्छाचारी तथा स्वतंत्र विचार का व्यक्ति था. आत्मविश्वास एवं आत्मबल का उसमें अभाव न था और अहम भाव की उसमें प्रचुरता थी. वह भारत का शुभचिंतक था और उसके कल्याण की योजनायें उसके मस्तिष्क में विद्यमान थीं. उस समय भारत में जिन चीजों की आवश्यकता थी उसे वह भलीभाँति समझता था और उन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसने यहाँ के शासन में पूर्ण रूप से सुधार करने का प्रयत्न किया. ऐसे ही योग्य एवं प्रतिभावान वायसराय से भारतीयों को बड़ी आशा थी और वह उन आशाओं की पूर्ति की क्षमता रखता था, क्‍योंकि वह भारतीयों की अवस्था से पूर्णतया परिचित था.

लॉर्ड कर्जन के सुधारों से शासन का कोई अंग अछूता न रहा, परन्तु दुर्भाग्य की बात यह थी कि उसे भारत की स्थिति का व्यावहारिक ज्ञान अन्त तक नहीं हो सका. वह सर्वदा एक ऐसे अंगरेज अधिकारी की भाँति रहा जो एक विजेता राज्य द्वारा एक विजित राज्य को देखभाल के लिए भेजा गया था. उसने भारतीयों की भावना को समझने का कोई प्रयत्न नहीं किया. भारतीयों की योग्यता एवं क्षमता में उसका बिल्कुल विश्वास न था और उसके विचार में उनका नैतिक स्तर निम्न कोटि का था. वह उनपर अविश्वास के साथ-साथ घृणा करने लगा और उनकी भावनाओं पर कुठराघात करने लगा. उसकी सहानुभूति शासन की ओर थी न कि उन व्यक्तियों की तरफ जिनपर शासन करने के लिए वह भारत भेजा गया था. इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीयों में भी प्रतिक्रिया आरम्भ हो गयी और वे उसकी सद्भावना पर भी अविश्वास करने लगे तथा उसे घोर घृणा की दृष्टि से देखने लगे. प्रतिभाशून्य होते हुए भी लॉर्ड रिपन जितना अधिक लोकप्रिय हो गया था, प्रतिभासम्पन्न होते हुए भी लॉर्ड कर्जन उतना ही अलोकप्रिय हो गया था.

लॉर्ड कर्जन की आन्तरिक नीति (Domestic Policy of Lord Curzon)

आन्तरिक नीति में कर्जन का एकमात्र लक्ष्य शासन के सम्पूर्ण ढाँचे में बदलाव करके उसे शक्तिशाली बनाना था. वह भारतीयों की समस्याओं को समझ गया था और उन्हें सुलझाने के लिए वह उनकी सहायता नहीं लेना चाहता था, वरन्‌ उनकी उपेक्षा कर उनकी भावनाओं की परवाह किये बिना सुधार किया जो उसकी सबसे बड़ी भूल थी. अपने शासनकाल में उसने विभिन्‍न सुधार किये जिनमें से अनेक शासन के लिए उपयोगी साबित हुए और कई ऐसे भी साबित हुए जिन्होंने भारतीय जनता में तीव्र असन्तोष उत्पन्न किये.

कर्जन ने अपनी सुधार-योजनाओं को बड़े ही व्यवस्थित रूप से लागू करना शुरू किया. जब वह शासन सम्बन्धी किसी समस्या को लेता था तब उसकी जाँच के लिए एक आयोग नियुक्त कर देता था. शासन के सम्बन्ध में उसकी यह धारणा थी कि प्रत्येक विभाग की एक निश्चित नीति होनी चाहिए और उस विभाग के सारे कार्य उसी नीति के अनुसार होना चाहिए. कर्जन का यह शासन सम्बन्धी सिद्धान्त उसकी विलक्षण प्रतिभा तथा उसकी मस्तिष्क की उर्वरता के परिचायक हैं. उसने निम्नलिखित क्षेत्रों में सुधार किये :

किसानों की सुरक्षा

किसानों की रक्षा एवं कल्याण के लिए कई योजनायें बनायीं गयीं. उसने कृषि-बैंक खुलवाये तथा 1904 ई० में “दि को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटीज ऐक्ट” बनाया जिसके द्वारा किसानों को ठीक ब्याज पर कर्ज देने की व्यवस्था की गयी. किसान साधारणतया महाजनों से भारी ब्याज पर कर्ज लिया करते थे. सहकारी समितियों की स्थापना से इस विषय में उनको सहायता देने का प्रयतलल किया गया. पंजाब के किसानों की स्थिति को सुधारने के लिए 1900 ई० में कर्जन ने दि पंजाब लैंड एलियनेशन ऐक्ट” बनाया जिसके अनुसार यह निश्चित किया गया कि कोई भी साहूकार कर्ज के बदले में बिना सरकार की अनुमति के किसी किसान की भूमि पर अधिकार नहीं कर सकता था.

लगान-व्यवस्था के दोषों को समाप्त करने के लिए 1902 ई० में तीन सिद्धान्त निर्धारित किये गये. पहला, लगान में धीरे-धीरे वृद्धि की जाय. दूसरा, लगान को वसूल करते समय इस बात पर ध्यान रखा जाय कि कृषि को किसी प्रकार से हानि तो नहीं हुई थी और तीसरा, स्थानीय संकट के समय किसानों को तुरन्त सहायता दी जाय. इन सिद्धान्तों के अनुसार, 1905 ई० में उसने “सस्पेंशन एण्ड रेमिशन्स रेजोलूशन” बनाया जिसके अनुसार प्रान्तीय सरकारों के लिए यह नियम निर्धारित किया गया कि लगान की वसूली को समाप्त करने के लिए आधी फसल का खराब होना आवश्यक था.

कृषि-सुधार

किसानों की स्थिति सुधारने के लिए कर्जन ने सिचाई की योजना में वृद्धि की. सिंचाई के लिए 20 वर्षों में 44 करोड़ रुपये खर्च किये जाने की व्यवस्था की गयी. कृषि की उन्नति के लिए कर्जन ने वैज्ञानिक ढंग से कृषि करने को प्रोत्साहित किया. इस उद्देश्य की पूर्त्ति के लिए पूसा नामक स्थान में एक कृषि अनुसंधान संस्थान खोला गया. इस प्रकार लॉर्ड कर्जन ने कृषि और किसानों की स्थिति में सुधार लाने का प्रयत्न किया.

आर्थिक सुधार

कर्जन ने कई आर्थिक सुधार किये. उसने 1899 ई० में अंगरेजी स्वर्ण मुद्रा को कानूनी मुद्रा घोषित कर दिया और उसकी विनिमय की दर 15 प्रति पौण्ड निश्चित कर दी. इसका परिणाम हुआ कि अब बाहर से सोना भारत आने लगा. भारत की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ. कर्जन को कर के भार में कमी करने का अवसर प्राप्त हो गया. जिन प्रान्तों में अकाल के कारण लोगों को बड़ी क्षति पहुँची थी, उनमें करों में कमी कर दी गयी. व्यापार तथा व्यवसाय की उन्नति के लिए नया विभाग खोला गया. कर्जन ने भी आर्थिक विकेन्द्रीकरण की नीति का समर्थन किया और उसे आगे बढ़ाया.

प्रशासन में सुधार

कर्जन की दृष्टि प्रशासकीय दोषों पर भी पड़ी. शासन के कार्य में देर न हो, उसके लिए उसने प्रशासकीय सचिवालयों के कार्य करने की पद्धति में परिवर्तन किया. कामों को शीघ्र करने के लिए कुछ नियम बनाये गये और विभिन्‍न विभागों के अध्यक्षों को पारस्परिक विचार-विमर्श द्वारा कार्य करने का आदेश दिया गया, जिससे कार्य में विलम्ब न हो.

पुलिस विभाग में सुधार

पुलिस विभाग के दोषों को जानने के लिए उसने एक कमीशन नियुक्त किया. इस कमीशन ने इस बात की सिफारिश की कि प्रत्येक सिपाही का वेतन कम-से-कम इतना होना चाहिए कि वह अपनी जीविका अच्छी तरह से चला सके. सिपाहियों और अफसरों को पर्याप्त शिक्षा के लिए विशेष प्रकार के ट्रेनिंग स्कूल खोले गये. भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कमीशन ने अपराधों का घटनास्थल पर जाँच करने के लिए और बिना किसी कानूनी आधार के किसी व्यक्ति को सन्देह मात्र में गिरफ्तार न करने का सुझाव दिया. इन सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए पुलिस विभाग के कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि की गयी. उच्च अधिकारियों की नियुक्ति प्रत्यक्ष की जाने लगी तथा उनकी शिक्षा के लिए ट्रेनिंग स्कूल खोले गये.

स्थानीय स्वशासन की उपेक्षा और बंगाल का विभाजन

लॉर्ड कर्जन ने कुछ प्रान्तों को पुनर्संगठित किया और पश्चिमोत्तर उत्तरी-पश्चिमी-सीमा-प्रान्त का निर्माण किया. शासन की कार्यक्षमता के आधार पर लॉर्ड कर्जन ने लॉर्ड रिपन द्वारा स्थानीय स्वशासन की स्थापित प्रणाली पर आघात किया और उनके अधिकारों में कमी कर दी, जिससे वह बड़ा अलोकप्रिय हो गया. उसका दूसरा निंदनीय कार्य बंगाल का विभाजन था. इस विभाजन के द्वारा बंगाल को दो भागों में बाँटा गया-पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल. बंगाल-विभाजन का भारत में तीव्र विरोध हुआ, क्योंकि भारतीयों ने अनुभव किया कि सरकार बंगाल की राष्ट्रीय भावना को तोड़कर मुख्यतया हिन्दू और मुसलमानों में फूट डालना चाहती है. बंगाल के शिक्षित वर्गों के घोर विरोध के बावजूद कर्जन ने अपने निश्चय में कोई परिवर्त्तन नहीं किया और इसी कारण वह भारतीयों की घृणा का पात्र हो गया. भारतीयों ने राष्ट्रीय आन्दोलन दिया जन-आन्दोलन में परिवर्तित कर दिया और अन्त में 1911 ई० में इस विभाजन को समाप्त कर दिया गया.

भारतीयों के लिए प्रशासन में स्थान नहीं

कर्जन भारतीयों को उच्च तथा उत्तरदायीपूर्ण पदों के लिए सर्वथा अयोग्य समझता था. उसकी यह धारणा थी कि भारतीयों में शासन करने के उन सभी गुणों का अभाव होता है जो एक अंगरेज में पाया जाता है. अतः उसने सभी उच्च पदों को अंगरेजों के लिए सुरक्षित रखने का निश्चय किया और प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा नियुक्त करने के स्थान पर उसने मनोनीत करने की व्यवस्था का अनुसरण किया. लॉर्ड कर्जन का कार्य भारतीयों के लिए असन्तोष का बहुत बड़ा कारण बन गया.

रेलों में वृद्धि और श्रमजीवियों के हितों की रक्षा

केन्द्रीय सरकार की आय में वृद्धि करने के लिए रेलों को आय का एक प्रमुख साधन बनाने का निश्चय किया गया. इसके लिए लोक सेवा विभाग को समाप्त कर रेलवे विभाग का सारा कार्य एक रेलवे बोर्ड को सौंप दिया गया, जिसमें कुल तीन सदस्य थे. श्रमजीवियों के हितों की रक्षा की ओर भी लॉर्ड कर्जन आकृष्ट हुआ. उनकी सुरक्षा के लिए माइन्स ऐक्ट तथा आसाम श्रमजीवी कानून पास करवाया गया.

दुर्भिक्ष का सामना

लॉर्ड कर्जन को दुर्भिक्ष तथा महामारी के प्रकोप का समाना करना पड़ा. दुर्भिक्ष पीड़ितों की कर्जन ने बड़ी सहायता की, परन्तु महामारी के प्रकोप को नहीं रोक सका और यह उसके शासन के अन्त तक चलता रहा.

शिक्षा में सुधार

लॉर्ड कर्जन ने शिक्षा में भी परिवर्तन करने का प्रयत्न किया. उस समय राष्ट्रीय आन्दोलन की भावना तीव्र होती जा रही थी और कर्जन यह न चाहता था कि कॉलेज और विश्वविद्यालय राजनीतिक आन्दोलन का केन्द्र स्थल बनें. 1904 ई० में उसने विश्वविद्यालय विधेयक पास करवाया जिसके द्वारा यह निश्चय हुआ कि विश्वविद्यालय को केवल परीक्षा लेने का काम नहीं करना चाहिए, वरन्‌ योग्य अध्यापक नियुक्त करके अनुसंधान तथा अध्यापन कार्य करना चाहिए.

उसने कृषि-शिक्षा तथा औद्योगिक शिक्षा पर बड़ा बल दिया और स्त्री-शिक्षा में अपनी रुचि दिखलायी. .शिक्षा के क्षेत्र में लॉर्ड कर्जन का एक बड़ा ही प्रशंसनीय कार्य, जिसके लिए भारतवासी उसके बड़े ऋणी हैं – प्राचीन स्मारकों की सुरक्षा का था. इसके लिए कर्जन ने पुरातत्त्व विभाग की स्थापना की.

इस प्रकार स्पष्ट है कि कर्जन ब्रिटिश साम्राज्य का भक्त था. इसमें कोई सन्देह नहीं कि भारतीयों में जो असन्तोष फैला उसके लिए लॉर्ड कर्जन बहुत अंशों में उत्तरदायी था. वह भारतीयों को घोर घृणा की दृष्टि से देखता था. उसके शासन सम्बन्धी आदर्श बड़े उच्च थे और उनको वह विध्न-बाधाओं की चिन्ता न करके सम्पन्न करने का प्रयत्न करता था. उसने जो कुछ किया, अत्यन्त द्रुतगती से और लोकमत की उपेक्षा करके किया. मोंटेग्यू ने उसके सम्बन्ध में लिखा है कि “लॉर्ड कर्जन एक ऐसे मोटर ड्राइवर की भाँति था जिसने सारी शक्ति तथा समय उसके मशीन के विभिन्‍न पुर्जों की पॉलिस करने में लगा दिया, परन्तु वह उसे बिना किसी गन्तव्य के चलाता रहा.”

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