मकर संक्रांति का त्यौहार देश के विभिन्न हिस्सों में मनाया जा रहा है. वैदिक हिंदू दर्शन के अनुसार, मकर संक्रांति सूर्य का त्यौहार है जो सभी ग्रहों के राजा माने जाते हैं. मकर संक्रांति सूर्य के उत्तरायण होने के अवसर पर मनाया जाता है. यह त्यौहार अच्छी फसल, खुशहाली और सौभाग्य प्रदान करने के लिए प्रकृति के प्रति आभार के तौर पर मनाया जाता है. देश के अलग-अलग हिस्सों में यह त्यौहार अलग-अलग नाम से मनाया जाता है. इस त्यौहार को कहीं पोंगल तो कहीं बिहू तो कहीं होगी लोहड़ी के तौर पर मनाया जाता है.
यह सभी भारतीय लोकजीवन के पर्व हैं. यह बदलते मौसम का उत्सव है. मकर संक्रांति के मौके पर लोग नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं, मंदिरों में पूजा अर्चना करते हैं. उत्तरायण के इस पर्व के मौके पर लोग भरपूर फसल के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हैं. यह त्यौहार आपसी सद्भाव, प्रेम और भाईचारे का देश देता है.
मकर संक्रांति के त्यौहार के 1 दिन पहले देश के कई हिस्सों में लोहड़ी का पर्व पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस मौके पर छोटे से लेकर बड़े परवर के सदस्य लोहड़ी जलाने के साथ नाच-गाकर पर्व बनाते हैं. मूंगफली और रेवड़ी बाँटकर खुशियां मनाई जाती हैं.
भारत त्यौहारों का देश
भारत त्यौहारों का देश है. देश भर में विभिन्न नामों और रूपों के तहत मनाए जाने वाले त्यौहार हमारे किसानों की अथक मेहनत के लिए हमारे सम्मान के प्रतीक हैं. यह त्यौहार उनके परिवार और समुदाय के साथ नई फसल की खुशी साझा करने के प्रतीक हैं. सभी समुदाय आपसी प्रेम, स्नेह और भाईचारे की भावना के साथ इन त्यौहारों को मनाते हैं. देश के भौगोलिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक एकीकरण में इस तरह के त्यौहार का अमूल्य योगदान है.
मकर संक्रांति का त्यौहार जनवरी महीने के मध्य में मनाया जाता है. जनवरी महीने के मध्य में भारत के लगभग सभी प्रांतों में फसलों से जुड़ा कोई ना कोई त्यौहार मनाया जाता है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार में मकर संक्रांति या तिल संक्रांति, असम में बिहू, तमिलनाडु में पोंगल, पंजाब में लोहड़ी, झारखंड में सरहुल और गुजरात में पतंग का पर्व आदि सभी त्यौहार खेती और फसलों से जुड़े हुए हैं.
पश्चिमी भारत में मकर संक्रांति
पश्चिमी भारत में मकर संक्रांति को उत्तरायण के नाम से मनाते हैं. यहां त्यौहार पर पतंग उड़ाने का चलन है. पूरे गुजरात और राजस्थान में आसमान इस दिन रंग-बिरंगी पतंगों से ढका हुआ नजर आता है. सामाजिक रूप से पतंग उड़ाने के दौरान लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने का भी मौका मिलता है. दरअसल, इस समय देश के अलग-अलग हिस्सों में फसलों की कटाई हो जाती है. लोगों के घरों में नई फसल से तैयार अनाज पहुंच जाता है. लोग इस मौके पर प्रकृति का आभार जताने के लिए त्यौहार मनाते हैं.
उत्तर भारत में मकर संक्रांति
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार में मकर संक्रांति का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. लोग नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं, दान करते हैं और तिल और गुड़ से बने मीठे व्यंजन खाते हैं. बिहार और झारखंड में इस दिन विशेष रूप से दही चूड़ा और तिलकुट खाने की परंपरा है. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, दिल्ली, उत्तराखंड और हरियाणा जैसे राज्यों के ज्यादातर घरों में इस दिन खिचड़ी बनती है.
लोहड़ी
लोहड़ी का पर्व उत्तर भारत में मनाया जाने वाला मुख्य पर्व है. यह पर्व पंजाबी और सिख धर्म के लोगों का प्रमुख त्यौहार है. यह फसल उत्सव के रूप में मनाया जाता है. आजकल लोहड़ी का पर्व पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन पंजाब और हरियाणा में इस पर्व की खासी धूम देखने को मिलती है. किसान अपनी फसल को अग्नि देवता को समर्पित कर लोहड़ी का पवित्र पर्व मनाते हैं. घरों के बाहर लोग आज जलाते हैं और चारों और ढोल-नगाड़ों की थाप पर घेरा बनाकर नाचते हैं और एक-दूसरे को लोहड़ी की बधाई देते हैं. इस दिन लोग गुड़, चूड़ा, मूंगफली आदि खाते हैं.
बिहू
बिहू का त्यौहार असम में मनाया जाने वाला मुख्य त्यौहार है. हर साल जनवरी में यहाँ के लोग इस त्यौहार को पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाते हैं. यह इसानों के लिए एक प्रमुख पर्व है क्योंकि इस पर्व के दौरान किसान अपने फसलों की कटाई कर भगवान् का शुक्रिया अदा करते हैं. बिहू के पर्व के दौरान महिलाएँ नए अनाज के स्वादिष्ट पकवान बनाती हैं.
दक्षिण भारत में पोंगल
पोंगल मकर संक्रांति का दूसरा नाम है जो दक्षिण भारत में धूम-धाम से मनाया जाता है. इस दिन सूर्य देव की पूजा करने का काफी महत्त्व माना गया है. इस दिन लोग प्रकृति के प्रति अपना आभार जताते हैं और प्रकृति को फसलें पैदा करने के लिए धन्यवाद देते हैं. तमिलनाडु में पोंगल का त्यौहार देखते ही बनता है. तमिल में “पोंगल” शब्द का अर्थ होता है तेजी से उबलना. इसलिए आज के दिन उबलते दूध में चावल और गुड़ डालकर बनाया गया पकवान बनाया जाता है जिसका नाम पोंगल ही होता है. सबके दरवाजों पर रंगोली बनी होती है. लोग इस दिन बारिश, सूर्य, जानवरों और खेत की पूजा करते हैं.
मकर संक्रांति एक खगोलीय घटना
मकर संक्रांति एक खगोलीय घटना है. एक ऐसी घटना जिसमें सौरमंडल का सीधा असर हमारी जिंदगी पर पड़ता है. कहते हैं कि मनुष्य का जीवन उसका भोग और मोक्ष मूलक जीवन भौतिक और आध्यात्मिक जीवन सूर्य पर ही निर्भर करता है. इस दिन सूर्य मकर रेखा को संक्रांत करता है. सूर्य धनु से मकर राशि में जाता है. भारत में सूरज संक्रांति के साथ ऊष्म-धर्मा होता है यानी सूर्य की किरणें सीधी पड़ने लगती हैं. इसका असर यह होता है कि धीरे-धीरे ऊष्मा बढ़ने लगती है और दिन बड़ा होने लगता है. सूर्य के उत्तरायण होने से काम के घंटे बढ़ने लगते हैं और कृषि का वातावरण बनने लगता है जो किसानों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आता है.
सूर्य सभी 12 राशियों पर संक्रांत करता है लेकिन धनु से मकर राशि पर सूर्य के संक्रांत का इतना महत्व क्यों है यह सवाल बेहद दिलचस्प है. दरअसल, मकर संक्रांति भारत को संपूर्ण ब्रह्मांड के भूगोल से जोड़ता है. सूर्य के दो अहम संक्रांति मकर और कर्क अयन से यानी गति से जुड़ी हुई है. संक्रांति सूर्य के उत्तर और दक्षिणायन से जुड़ी हुई है. उत्तर और दक्षिणायन को ही हम उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव कहते हैं. मकर और कर्क संक्रांति सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन होने की प्रक्रिया से जुड़ी हुई है. एक से प्रकाश और ऊष्मा बढ़ती है तो दूसरी से घटती है. इसी प्रकार दो और संक्रांतियाँ मेष और तुला भी होती हैं जब दिन और रात बराबर होते हैं.
यह पर्व 14 तारीख को मनाया जाए या 15 तारीख को?
धनु राशि से मकर राशि में सूर्य के प्रवेश के बाद सूर्य उत्तरायण होने लगता है. 15 साल पहले मकर राशि में प्रवेश करते ही सूर्य उत्तरायण होता था लेकिन 15 साल बाद गति के खिसकने से सूर्य उत्तरायण पहले हो जाता है और मकर संक्रांति बाद में होती है. पहले यह 14 से 15 जनवरी को होती थी, वहीं 70 साल पहले 13 से 14 जनवरी को होती थी. 100 साल पहले 12 या 13 को संक्रांति आती थी. स्वामी विवेकानंद का जन्म मकर संक्रांति के दिन ही हुआ था यानी तब संक्रांति 12 तारिख को होती थी. अब 14 की रात को सूर्य उत्तरायण होता है और इसलिए संक्रांति 15 जनवरी को होती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सूर्य का अयन खिसकता है.
ग्रह-नक्षत्र में मकर संक्रांति का प्रभाव
सूर्य के उत्तरायण होने के साथ ही ग्रह नक्षत्र में भी अहम बदलाव होने लगता है. संक्रांति के बाद ज्योतिष शास्त्र राशि, ग्रह और नक्षत्र की चाल में बदलाव बताता है. सूर्य 14 जनवरी की आधी रात के बाद 2:07 पर अपने पुत्र यानी शनि के राशि मकर में प्रवेश करने जा रहे हैं. मकर संक्रांति का महापुण्यकाल इस बार सुबह 7:00 से 9:30 तक रहेगा. इस साल की बात करें तो सूर्य ग्रह 15 जनवरी को अपने शत्रु ग्रह शनि की राशि मकर में गोचर करेगा. सूर्य को ज्योतिष शास्त्र में आत्मा, सरकारी नौकरी, उच्च पद, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, नेतृत्व क्षमता का कारक माना जाता है. यह तुला राशि में नीच और मेष राशि में उच्च का होता है जबकि सिंह राशि का यह स्वामी है. सूर्य के गोचर को संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है. सूर्य का यह गोचार इस बार सभी की राशियों पर शुभ-अशुभ प्रभाव डालेगा.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन देवलोक में भी दिन का आरंभ होता है. इसलिए इसे देवायन भी कहा जाता है. इस दिन देवलोक के दरवाजे खुल जाते हैं. इसलिए मकर संक्रांति के अवसर पर दान-धर्म और जप-तप करना बहुत ही उत्तम माना गया है. इस दिन स्नान का भी बेहद महत्व है. आज के दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देते हैं. मकर संक्रांति बेशक एक खगोलिया घटना है लेकिन यह हमारी जिंदगी से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है. इसके बाद आने वाले बदलाव को हम पर्व के तौर पर ही मनाते हैं. सूर्य रात्रि में संक्रमित होता है इसलिए इस पर्व को दिन में मनाया जाता है. यही वजह है कि रात्रि में पुण्य कार्य नहीं किया जाता.
इस पर्व का महत्त्व
हमारे देश में मकर संक्रांति एक धार्मिक पर्व कम और सामाजिक ज्यादा है. यह पर्व बिना किसी उपवास, किसी तरह के कर्मकांड और पुरोहित के बिना किया जाता है. पूजा है पर पुरोहित के बिना, क्रियाएं हैं लेकिन कर्मकांड के बिना एवं स्नान है लेकिन छुआछूत के बिना. यह पर्व हमें समरसता और ऊर्जा से भर देता है.
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