हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों ने मिशन शक्ति का सफल संचालन करते हुए पृथ्वी की निम्न कक्षा (low earth orbit – LEO) में अवस्थित एक जीवंत उपग्रह को मार गिराया है. आज हम A-SAT के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे.
मिशन शक्ति क्या है?
- मिशन शक्ति एक संयुक्त कार्यक्रम है जिसका संचालन रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने मिलकर चलाया है.
- इस अभियान के अंतर्गत एक उपग्रह नाशक (anti-satellite – A-SAT) अस्त्र छोड़ा गया जिसका लक्ष्य भारत का ही एक ऐसा उपग्रह था जो अब काम में नहीं आने वाला था.
- मिशन शक्ति का संचालन ओडिशा के बालासोर में स्थित DRDO के अधीक्षण स्थल से हुआ.
माहात्म्य
ऐसी विशेषज्ञ और आधुनिक क्षमता प्राप्त करने वाला भारत विश्व का मात्र चौथा देश है और इसका यह प्रयास पूर्णतः स्वदेशी है. अभी तक केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास ही अन्तरिक्ष में स्थित किसी जीवंत लक्ष्य को भेदने की शक्ति थी.
क्या परीक्षण से अन्तरिक्ष में मलबा पैदा हुआ?
यह परीक्षण जान-बूझकर पृथ्वी की निम्न कक्षा (lower earth orbit – LEO) में किया गया जिससे कि अन्तरिक्ष में कोई मलबा न रहे. जो कुछ भी मलबा बना वह क्षयग्रस्त हो जाएगा और कुछ सप्ताह में पृथ्वी पर आ गिरेगा.
पृथ्वी की निम्न कक्षा (Low Earth Orbit) क्या है?
पृथ्वी की जो कक्षा 2,000 किमी. की ऊँचाई तक होती है उसे निम्न कक्षा (Low Earth Orbit – LEO) कहा जाता है. यहाँ से कोई उपग्रह धरातल और समुद्री सतह में चल रही गतिविधियों पर नज़र रख सकता है. ऐसे उपग्रह का प्रयोग जासूसी के लिए हो सकता है. अतः उससे युद्ध के समय देश की सुरक्षा पर गंभीर खतरा हो सकता है.
पृष्ठभूमि
- समय के साथ-साथ अन्तरिक्ष भी एक युद्ध क्षेत्र में रूपांतरित हो रहा है. अतः अन्तरिक्ष में स्थित शत्रु उपग्रहों के संहार की क्षमता अत्यावश्यक हो गयी है. ऐसे में एक उपग्रह नाशक (A-SAT) हथियार से अन्तरिक्ष तक भेदने में भारत की सफलता का बड़ा माहात्म्य है.
- ध्यान देने योग्य बात है कि अभी तक किसी देश ने किसी अन्य देश के उपग्रह पर A-SAT नहीं चलाया है. सभी देशों ने अपने ही बेकार पड़े उपग्रहों को लक्ष्य बनाकर A-SAT का सञ्चालन किया है जिससे विश्व को पता लग सके कि उनके पास अन्तरिक्ष में युद्ध करने की क्षमता है.
- आगामी कुछ दशकों में सेनाओं के लिए A-SAT मिसाइल सबसे शक्तिशाली सैन्य अस्त्र बनने वाला है.
भारत की ऐसी क्षमता की आवश्यकता क्यों?
- भारत एक ऐसा देश है जिसके पास बहुत दिनों से और बहुत तेजी से बढ़ते हुए अन्तरिक्ष कार्यक्रम हैं. पिछले पाँच वर्षों में इसमें देखने योग्य बढ़ोतरी हुई है. स्मरणीय है कि भारत ने मंगल ग्रह पर मंगलयान नामक अन्तरिक्षयान सफलतापूर्वक भेजा था. इसके पश्चात् सरकार ने गगनयान अभियान को भी स्वीकृति दे दी है, जो भारतीयों को बाह्य अन्तरिक्ष में ले जाएगा.
- भारत ने 102 अन्तरिक्षयान अभियान हाथ में लिए हैं जिनके अंतर्गत अग्रलिखित प्रकार के उपग्रह आते हैं – संचार उपग्रह, पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह, प्रायोगिक उपग्रह, नौसैनिक उपग्रह, वैज्ञानिक शोध और खोज के उपग्रह, शैक्षणिक उपग्रह और अन्य छोटे-छोटे उपग्रह.
- भारत का अन्तरिक्ष कार्यक्रम देश की सुरक्षा, आर्थिक प्रगति एवं सामाजिक अवसरंचना की रीढ़ है.
- मिशन शक्ति यह सत्यापित करने के लिए संचालित हुई कि भारत के पास अपनी अन्तरिक्षीय सम्पदाओं को सुरक्षित रखने की क्षमता है. विदित हो कि देश के जो हित बाह्य अन्तरिक्ष में हैं उनकी रक्षा का दायित्व भारत सरकार पर ही है.
निहितार्थ
- मिशन शक्ति का MTCR (Missile Technology Control Regime) अथवा अन्य ऐसी संधियों में भारत की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
- A-SAT तकनीक प्राप्त हो जाने से आशा की जाती है कि भविष्य में भारत इसका प्रयोग घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य के लिए भी कर सकेगा.
अन्तरिक्ष के मलबे के निपटारे के लिए तकनीकें
अन्तरिक्ष में घूमते हुए मलबों के लिए विभिन्न देश कुछ उपाय कर रहे हैं. इन उपायों में प्रमुख हैं – नासा का अन्तरिक्ष मलबा सेंसर (Nasa’s Space Debris Sensor), रिमूव डेबरी उपग्रह, डी-ऑर्बिट मिशन (Deorbit mission) आदि.
नासा का अन्तरिक्ष मलबा सेंसर (Nasa’s Space Debris Sensor)
NASA का अन्तरिक्ष मलबा सेंटर एक अंतर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष केंद्र पर लगाया गया है. यह सेन्सर मिलीमीटर के आकार के भी टुकड़ों का पता लगा लेता है और यह बता देता है कि मलबे के किसी टुकड़े का आकार, घनत्व, वेग और परिक्रमा पथ क्या है. साथ ही यह बता देता है कि यह टुकड़ा अन्तरिक्ष से आया है या मनुष्य द्वारा निर्मित उपग्रह का अंश है.
रिमूव डेबरी उपग्रह
RemoveDebris नाम की परियोजना यूरोपियन यूनियन द्वारा चलाई जा रही है. इस परियोजना का उद्देश्य अन्तरिक्ष मलबे को निबटाने से सम्बंधित तकनीकों का परीक्षण करना है जिससे कि आगे चलकर अन्तरिक्ष को ऐसे मलबों से कुशलतापूर्वक मुक्त किया जा सके. योजना के अंतर्गत RemoveSAT नामक एक अति-लघु उपग्रह छोड़ा जायेगा जो अन्तरिक्ष में जाकर वहाँ के मलबों को पकड़ेगा और परिक्रमा पथ से अलग कर देगा.
डी-ऑर्बिट मिशन (Deorbit mission)
डी-ऑर्बिट मिशन का कार्य पथभ्रष्ट अन्तरिक्षीय मलबे को पकड़ना है. इनके अतिरिक्त और तकनीकें भी अपनाई जा रही हैं जिनमें एक तकनीक ऐसी भी है जिससे शक्तिशाली लेजर किरण छोड़कर मलबे के पिंड को नष्ट किया जा सकता है.
आगे की राह
बाह्य अन्तरिक्ष में हथियारों की होड़ ऐसी वस्तु है जिसको प्रोत्साहन नहीं मिलना चाहिए. भारत की यह नीति रही है कि अन्तरिक्ष का उपयोग मात्र शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए होना चाहिए. भारत बाह्य अन्तरिक्ष (outer space) को रणभूमि बनाने के विरुद्ध रहा है तथा अन्तरिक्ष में स्थित संपदाओं की रक्षा और सुरक्षा के लिए जो भी अंतर्राष्ट्रीय प्रयास होते हैं उसका वह पक्षधर रहा है.
भारत इस बात पर विश्वास रखता है कि बाह्य अन्तरिक्ष मानव मात्र के लिए एक विरासत है जिसपर सभी का अधिकार है. जो देश अन्तरिक्ष में उपग्रह छोड़ते हैं, उनका यह कर्तव्य है कि वे अन्तरिक्ष तकनीक एवं उसके अनुप्रयोगों का लाभ पूरी मानवता तक पहुँचाने में सहायता करेंगी.
बाह्य अन्तरिक्ष में हथियारों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय कानून क्या है?
- अमेरिका, रूस और चीन समेत सभी देशों ने 1967 की आउटर अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) पर हस्ताक्षर किए थे.
- भारत ने इस संधि पर 1982 में हस्ताक्षर किये थे.
- समझौते के अनुसार कोई भी देश अंतरिक्ष में क्षेत्राधिकार नहीं दिखा सकता.
- यह समझौता किसी भी देश को पृथ्वी की कक्षा या उससे बाहर परमाणु हथियार या हथियार रखने से रोकता है.
- चंद्रमा और मंगल जैसे ग्रहों, जहाँ मानव की पहुँच हो सकती है, के संदर्भ में यह संधि और भी कठोर है. इन ग्रहों में कोई भी देश सैन्य अड्डों का निर्माण नहीं कर सकता है या किसी भी प्रकार का सैन्य संचालन नहीं कर सकता है या किसी अन्य प्रकार के पारंपरिक हथियारों का परीक्षण नहीं कर सकता है.
- पर साथ ही साथ यह संधि बैलिस्टिक मिसाइलों के अंतर-महाद्वीपीय प्रयोग को प्रतिबंधित नहीं करती है जो लक्ष्य को भेदने के लिए पृथ्वी की कक्षा से बाहर भी चले जाते हैं.
- इस संधि की इस चूक का लाभ उठाकर कोई देश अन्तरिक्ष का युद्ध के लिए उपयोग कर सकता है.
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