UPSC Prelims परीक्षा के लिए Polity (राज्यव्यवस्था) का Mock Test Series का तीसरा भाग दिया जा रहा है. भाषा हिंदी है और सवाल 10 हैं.
सवालों के उत्तर व्याख्या सहित नीचे दिए गए हैं. (Question Solve Karen Ya Na Karen Par Explanation Par Nazar Jarur Daudayen)
Mock Test for UPSC Prelims - Polity (राज्यव्यवस्था) Part 3
Question 1 |
- धर्म और राज्य को अनिवार्य रूप से पूर्णतः पृथक होना चाहिए.
- व्यक्तियों और समुदायों दोनों को धर्म की स्वतंत्रता होनी चाहिए.
केवल 1 | |
केवल 2 | |
1 और 2 | |
न तो 1 न ही 2 |
Question 2 |
- 42वें
- 44वें
- 97वें
1, 2 और 3 | |
2 और 3 | |
1 और 3 | |
1 और 2 |
Question 3 |
- संसद द्वारा अनुमोदन के बाद वित्तीय आपातकाल, वापस लिए जाने तक अनिश्चित काल के लिए लागू रहता है.
- वित्तीय आपातकाल के दौरान, भारत की समेकित निधि पर भारित वेतनों में कटौती नहीं की जा सकती.
- पहली बार इसकी घोषणा 1991 के वित्तीय संकट के दौरान की गई थी.
केवल 1 | |
1 और 2 | |
2 और 3 | |
1, 2 और 3 |
Question 4 |
- आम चुनाव के बाद त्रिशंकु विधानसभा के मामले में.
- जब मंत्रिपरिषद ने त्यागपत्र दे दिया हो और कोई अन्य दल बहुमत सिद्ध कर मंत्रिपरिषद का गठन करने में असमर्थ हो.
- भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण राज्य में कुशासन की स्थिति में.
1 और 2 | |
केवल 3 | |
2 और 3 | |
1, 2 और 3 |
Question 5 |
- विधेयक को स्वीकृति प्रदान करना.
- विधेयक को अस्वीकृत करना.
- विधेयक को पुनर्विचार हेतु संसद को वापस लौटाना.
केवल 1 | |
1 और 2 | |
केवल 3 | |
उपर्युक्त में से कोई नहीं |
Question 6 |
- इसे संविधान संशोधन द्वारा समाप्त किया जा सकता है.
- सीधे सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने के अधिकार को किसी भी परिस्थिति में निलंबित नहीं किया जा सकता.
केवल 1 | |
केवल 2 | |
1 और 2 | |
न ही 1 न ही 2 |
Question 7 |
- यह एक संवैधानिक संस्था है.
- भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश ही इसका अध्यक्ष बनाया जाता है.
- इसकी सिफारिशें सरकार पर बाध्यकारी होती हैं.
केवल 2 | |
1 और 2 | |
केवल 3 | |
1, 2 और 3 |
Question 8 |
- सभी संविधान संशोधन विधयेक केवल संसद में ही पेश किये जा सकते हैं.
- किसी निजी सदस्य द्वारा संविधान संशोधन विधेयक पेश किया जा सकता है.
केवल 1 | |
केवल 2 | |
1 और 2 | |
न तो 1 न ही 2 |
Question 9 |
- नगरपालिका चुनाव
- राष्ट्रपति पद
- उप-राष्ट्रपति पद
- लोकसभा अध्यक्ष
2 और 3 | |
2, 3 और 4 | |
केवल 1 | |
उपर्युक्त में से कोई नहीं |
Question 10 |
- इन्टेलिजेन्स ऑफिसर द्वारा गोपनीय सामग्री को प्रकट करना.
- भाषण द्वारा लोगों को हथियार उठाने के लिए उकसाना.
- ऐसा भाषण जो लोक सभा में सरकार की स्थिरता में बाधा उत्पन्न करे.
- न्यायालय की अवमानना.
1, 2 और 4 | |
1 और 3 | |
2, 3 और 4 | |
1, 2, 3 और 4 |
व्याख्या (Explanation)
Q1. B
धर्मनिरपेक्षता की पश्चिमी अवधारणा का आशय है व्यक्तिगत स्वतंत्रता और नागरिक अधिकार जैसे मूल्यों की सुरक्षा करने के लिए राज्य और धर्म का पारस्परिक अपवर्जन. अन्य शब्दों में धर्म और राज्य को अनिवार्य रूप से पूर्णतः पृथक होना चाहिए. इसलिए कथन 1 सही नहीं है.
धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा में सम्मिलित हैं –
भारतीय संविधान सभी धार्मिक समुदायों को अनेक अधिकार प्रदान करता है जैसे – शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और अनुरक्षण करने का अधिकार. भारत में धर्म की स्वतंत्रता का अर्थ व्यक्तियों और समुदायों दोनों के लिए धर्म की स्वतंत्रता है. इसलिए कथन 2 सही है.
भारत में धार्मिक रूप से स्वीकृत कुछ प्रथाएँ विद्यमान थीं जैसे अस्पृश्यता, जो व्यक्तियों को गरिमा और आत्मसम्मान से वंचित करती थीं. इस प्रकार की प्रथाओं की जड़ें इतनी गहरी और व्यापक थीं कि राज्य के सक्रिय हस्तक्षेप के बिना उनके उन्मूलन की कोई संभावना न थी. अतः राज्य को धार्मिक विषयों में हस्तक्षेप करना पड़ा. वस्तुतः इस प्रकार के हस्तक्षेप सदैव नकारात्मक नहीं होते. राज्य उनके द्वारा चलाये जाने वाले शैक्षिक संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान कर धार्मिक समुदायों की सहायता कर सकता है. इस प्रकार, राज्य स्वतंत्रता और समानता जैसे मूल्यों को बढ़ावा देकर धार्मिक समुदायों की सहायता कर सकता है या उनके कार्यों को बाधित कर सकता है.
Q2. A
1976 के 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में चार नए निदेशक तत्त्वों को जोड़ा गया. ये निदेशक तत्त्व राज्य से माँग या अपेक्षा करते हैं –
- बच्चों के लिए स्वस्थ विकास के अवसर सुनिश्चित करना. (अनुच्छेद 39)
- समान न्याय को बढ़ावा देना और गरीबों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करना. (अनुच्छेद 39A)
- उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाना. (अनुच्छेद 43A)
- पर्यावरण की सुरक्षा एवं सुधार करना तथा वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा के उपाय करना. (अनुच्छेद 48A)
- 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 के द्वारा एक और निदेशक तत्त्व जोड़ा गया, जो राज्य से यह अपेक्षा करता है कि वह आय, प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों में विद्यमान असमानताओं को कम से कम करें. (अनुच्छेद 38)
- 86वें संशोधन अधिनियम, 2002 के द्वारा अनुच्छेद 45 की विषय-वस्तु में परिवर्तन किया गया और प्राथमिक शिक्षा को अनुच्छेद 21A के अंतर्गत मूल अधिकार बनाया गया. संशोधित निदेशक तत्त्वों में राज्य से यह अपेक्षा की गई है कि वह सभी बच्चों के लिए छ: वर्ष की आयु तक देखभाल और शिक्षा उपलब्ध कराये.
- 97वें संशोधन अधिनियम, 2011 के द्वारा सहकारी समितियों से सम्बंधित एक नया निदेशक तत्त्व जोड़ा गया. इसमें राज्य से यह अपेक्षा की गई है कि वह सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त गठन, स्वायत्त संचालन, लोकतांत्रिक नियंत्रण और व्यावसायिक प्रबंधन को बढ़ावा दे. (अनुच्छेद 43B)
Q3. A
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 360 “वित्तीय आपातकाल” से सम्बंधित है. यह राष्ट्रपति को वित्तीय आपात की घोषणा करने का अधिकार देता है यदि राष्ट्रपति सन्तुष्ट हो जाते हैं कि ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं जिसके कारण भारत या उसके किसी क्षेत्र की आर्थिक स्थिरता या साख खतरे में है.
कथन 1 सही है : वित्तीय आपात की घोषणा करने वाला प्रस्ताव जारी होने की तिथि से दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए. संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किये जाने के बाद वित्तीय आपात अनिश्चितकाल के लिए तब तक लागू रहता है जब तक इसे वापस न लिया जाए. इसके दो निहितार्थ हैं :
- इसकी अधिकतम समय सीमा निर्धारित नहीं की है और
- इसे जारी रखने के लिए संसद की पुनःमंजूरी की आवश्यकता नहीं है.
वित्तीय आपात की घोषणा को मंजूरी देने वाला प्रस्ताव, संसद के किसी भी सदन द्वारा साधारण बहुमत अर्थात् उक्त सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से पारित किया जा सकता है. राष्ट्रपति द्वारा वित्तीय आपात की घोषणा को एक अनुवर्ती घोषणा द्वारा किसी भी समय निरस्त किया जा सकता है. इस प्रकार की घोषणा के लिए संसद की अनुमति आवश्यक नहीं होती है.
कथन 2 सही नहीं है : वित्तीय आपात के दौरान राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और भत्तों में कटौती के लिए निर्देश जारी कर सकता है.
कथन 3 सही नहीं है : अभी तक कभी भी वित्तीय आपात की घोषणा नहीं की गई है.
Q4. B
राज्य में राष्ट्रपति शासन का आरोपण निम्नलिखित स्थितियों में उचित होगा –
- जब विधानसभा के आम चुनावों के बाद, कोई भी दल बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता है, अर्थात “त्रिशंकु” विधानसभा की स्थिति आ गई है.
- जब विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल सरकार बनाने से मना कर देता है और राज्यपाल के पास विधानसभा में बहुमत प्राप्त कर सकने वाली किसी अन्य गठबंधन सरकार का विकल्प उपलब्ध न हो.
- जब मंत्रिपरिषद विधानसभा में अपनी हार के बाद त्यागपत्र दे दे और अन्य कोई दल बहुमत के अभाव में सरकार बनाने की अवस्था में न हो.
- जहाँ राज्य सरकार केंद्र सरकार के किसी संवैधानिक निर्देश को मानने से इनकार कर दे.
- जहाँ राज्य स्वयं विघटनकारी गतिविधियों (internal subversion) में लिप्त हो. उदाहरण के लिए सरकार जान-बूझकर संविधान व कानून के विरुद्ध कार्य करे और इसका परिणाम एक हिंसक विद्रोह के रूप में फूट पड़े.
- भौतिक विखंडन अर्थात् जहाँ सरकार जान-बूझकर अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने से मना कर दे, फलस्वरूप राज्य की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो जाए.
निम्नलिखित स्थितियों में राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना अनुचित होगा :
- जहाँ मंत्रिपरिषद त्यागपत्र दे दे अथवा सदन में बहुमत के अभाव में पदच्युत कर दी जाए और राज्यपाल एक वैकल्पिक सरकार की संभावनाओं की छान-बीन किये बिना राष्ट्रपति शासन लागू करने की अनुशंसा करे.
- जब राज्यपाल मंत्रिपरिषद को प्राप्त समर्थन के सम्बन्ध में अपना निर्णय ले और मंत्रिपरिषद को सदन में बहुमत सिद्ध करने की अनुमति दिए बिना राष्ट्रपति शासन लागू करने की अनुशंसा करे.
- जब विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल, लोकसभा के आम चुनावों में भारी हार का सामना करे. जैसा 1977 और 1980 में हुआ था.
- वह आंतरिक गड़बड़ी जिसमें राज्य विघटन या अशांति के लिए उत्तरदयी न हो.
- राज्य में कुप्रशासन या मंत्रिपरिषद के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप हो या राज्य में वित्तीय संकट हो.
- जहाँ राज्य सरकार को खुद की गलती सुधारने के लिए पूर्व चेतावनी नहीं दी गई हो. यह केवल तब सही माना जायेगा जब कोई ऐसी अकस्मिक स्थिति उत्पन्न हो जाए जिसके परिणाम विनाशकारी हों.
- जहाँ सत्तारूढ़ दल के द्वारा आंतरिक समस्याओं को सुलझाने या किसी ऐसे असंगत उद्देश्य के लिए इस शक्ति का प्रयोग किया जाए जो संविधान द्वारा प्रदत्त निर्देशों से कोई समानता नहीं रखती.
Q5. A
आवश्यकता के अनुरूप, संसद के दोनों सदनों द्वारा विधिवत पारित और राज्य विधायिकाओं द्वारा अनुमोदित होने के बाद संविधान संशोधन विधयेक को अनुमति के लिए राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है. राष्ट्रपति के लिए विधयेक पर अपनी अनुमति देना अनिवार्य है. राष्ट्रपति न तो विधेयक पर अपनी अनुमति रोक सकता है और न ही संसद को पुनर्विचार के लिए वापस लौटा सकता है. (24वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 द्वारा राष्ट्रपति के लिए संवैधानिक संशोधन विधयेक पर अपनी सहमति देना अनिवार्य बना दिया गया है). इसलिए कथन 1 सही है और 3 सही नहीं है.
Q6. D
दोनों कथन सहीं नहीं हैं.
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अवधारित किया गया है कि संविधान का आधारभूत ढाँचा होने के कारण अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचारों का अधिकार) को संविधान संशोधन द्वारा न तो संकुचित किया जा सकता है और न ही हटाया जा सकता है.
संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए सीधे सर्वोच्च न्यायालय जाने के अधिकार को राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद 359) के दौरान राष्ट्रपति द्वारा निलम्बित किया जा सकता है. इस प्रकार, अनुच्छेद 32 को न तो संकुचित किया जा सकता है और न ही हटाया जा सकता है किन्तु अस्थाई रूप से निलम्बित अवश्य किया जा सकता है.
Q7. A
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एक सांविधिक (न कि संवैधानिक) निकाय है. वर्ष 1993 में संसद द्वारा अधिनियमित कानून अर्थात् मानवाधिकार सुरक्षा अधिनियम, 1993 के तहत इसकी स्थापना की गई थी.
आयोग बहु-सदस्यीय संस्था है जिसमें एक अध्यक्ष और चार सदस्य होते हैं. इसका अध्यक्ष भारत का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए और सदस्यों में एक सर्वोच्च न्यायालय का सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय का सेवारत या सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश और मानव अधिकारों के सम्बन्ध में ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले दो व्यक्ति होने चाहिए. इन पूर्णकालिक सदस्यों के अतिरिक्त आयोग में चार पैनल सदस्य भी होते हैं अर्थात् राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष शामिल हैं.
आयोग के कार्यों की प्रकृति मुख्य रूप से अनुशंसात्मक है. इसके पास मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले लोगों को दंडित करने और पीड़ित को मौद्रिक क्षतिपूर्ति प्रदान करने सहित कोई भी राहत प्रदान करने का अधिकार नहीं है. उल्लेखनीय है कि इसकी अनुशंसाएँ संबोधित सरकार या प्राधिकरण पर बाध्यकारी नहीं होती हैं किन्तु इसकी अनुशंसाओं पर की गई कार्यवाही के सम्बन्ध में इसे एक माह के भीतर सूचित किया जाना चाहिए.
Q8. C
संविधान के अनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन की प्रक्रिया वर्णित है. अनुच्छेद 368 दो प्रकार के संशोधनों की व्यवस्था करता है. पहली विधि यह कि संशोधन संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत से किया जा सकता है. दूसरी विधि में संसद के विशेष बहुमत और आधे राज्य विधान मंडलों के साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है. संवैधानिक संशोधन केवल संसद में ही आरम्भ किये जाते हैं. अन्य सभी विधेयकों की भाँति इसे भी राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा जाता है लेकिन इस मामले में, राष्ट्रपति को इसे पुनर्विचार के लिए वापस भेजने की शक्ति प्राप्त नहीं है. यह विधेयक या तो किसी मंत्री द्वारा या किसी निजी सदस्य द्वारा पुरःस्थापित किया जा सकता है और इसके लिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होती.
Q9. A
केवल विकल्प 2 और 3 सही हैं.
निर्वाचन आयोग निम्नलिखित के चुनाव आयोजित कराने हेतु जिम्मेदार हैं –
- संसद
- राज्य विधायिकाएँ
- राष्ट्रपति पद
- उप-राष्ट्रपति पद
नगरपालिका तथा पंचायत-स्तर के चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा आयोजित किये जाते हैं.
लोकसभा अध्यक्ष क चुनाव लोकसभा सदस्यों द्वारा पहले से चुने गये सदस्यों में से ही किया जाता है.
Q10. A
अनुच्छेद 19(2) यह वर्णित करता है कि राज्य वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त प्रतिबंध आरोपित कर सकता है. युक्तियुक्त प्रतिबंध आरोपित किये जाने के आधार इस प्रकार हैं :-
- भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों से मित्रवत सम्बन्ध, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या नैतिकता, न्यायालय की अवमानना, मानहानि या अपराध के लिए उकसाना.
- इंटेलिजेंस ऑफिसर द्वारा गोपनीय दस्तावेज को लीक/उजागर किया जाना, जिससे राज्य की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो जाए.
- भाषण द्वारा लोगों को हथियार उठाने के लिए उकसाना – यह लोक व्यवस्था के अंतर्गत आता है.
- ऐसा भाषण जो लोकसभा में सरकार की स्थिरता में बाधा उत्पन्न करे – यह किसी भी श्रेणी के अंतर्गत नहीं आता है, इसलिए इसपर युक्तियुक्त प्रतिबंध आरोपित नहीं किया जा सकता.
- न्यायालय की अवमानना.
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