UPSC Prelims परीक्षा के लिए Polity (राज्यव्यवस्था) का Mock Test Series का चौथा भाग दिया जा रहा है. भाषा हिंदी है और सवाल 10 हैं.
सवालों के उत्तर व्याख्या सहित नीचे दिए गए हैं. (Question Solve Karen Ya Na Karen Par Explanation Par Nazar Jarur Daudayen)
Mock Test for UPSC Prelims - Polity (राज्यव्यवस्था) Part 4
Question 1 |
- यह पूर्णतः संप्रभु निकाय थी.
- यह भारत के सम्बन्ध में ब्रिटिश संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून को निरस्त या परिवर्तित कर सकती थी.
- देशी रियासतें संविधान सभा में कभी शामिल नहीं हुईं.
1 और 2 | |
1 और 3 | |
2 और 3 | |
1, 2 और 3 |
Question 2 |
भारत सरकार अधिनियम, 1935 | |
मॉर्ले-मिन्टो सुधार, 1909 | |
भारतीय परिषद् अधिनियम, 1861 | |
भारतीय परिषद् अधिनियम, 1892 |
Question 3 |
- यह संविधान सभा जवाहर लाल नेहरु द्वारा प्रस्तुत "उद्देश्य प्रस्ताव" पर आधारित है.
- यह संविधान का भाग नहीं है.
केवल 1 | |
केवल 2 | |
1 और 2 | |
न तो 1 न ही 2 |
Question 4 |
- पिछड़े वर्गों के हित में नियुक्तियों में आरक्षण.
- संयुक्त भर्तियों के मामलों में राज्यों की सहायता करना.
- सेवाओं का वर्गीकरण और कैडर प्रबंधन.
1, 2 और 3 | |
केवल 2 | |
1 और 3 | |
केवल 3 |
Question 5 |
- राष्ट्रपति वास्तविक युद्ध या बाह्य आक्रमण से पूर्व भी राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकते हैं.
- राष्ट्रपति केवल प्रधानमन्त्री से लिखित अनुशंसा प्राप्त करने के बाद राष्ट्रपति आपात की घोषणा कर सकते हैं.
केवल 1 | |
केवल 2 | |
1 और 2 | |
न तो 1, न ही 2 |
Question 6 |
- केंद्र और राज्यों के बीच करों का बँटवारा.
- भारत की आकस्मिक निधि से व्यय.
- केंद्र द्वारा राज्यों को अनुदान देना.
1, 2 और 3 | |
1 और 3 | |
1 और 2 | |
2 और 3 |
Question 7 |
देश की विविधता | |
केंद्र और राज्यों के लिए विस्तृत प्रावधान | |
देश की विशाल जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति करना | |
स्वतंत्रता के समय भारत के नोवोदित लोकतंत्र को सुचारू रूप से कार्य करने हेतु सक्षम बनाना |
Question 8 |
- मूल अधिकार एवं विधिक अधिकार दोनों को संविधान का संरक्षण प्राप्त है.
- मूल अधिकारों को संशोधित नहीं किया जा सकता है जबकि विधिक अधिकार संशोधित किये जा सकते हैं.
केवल 1 | |
केवल 2 | |
1 और 2 | |
न तो 1 न ही 2 |
Question 9 |
- यह नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिए उपलब्ध है.
- इस अधिकार से, विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है.
केवल 1 | |
केवल 2 | |
1 और 2 | |
न तो 1 न ही 2 |
Question 10 |
- यदि नागरिक स्वेच्छा से किसी दूसरे देश की नागरिकता ग्रहण कर ले.
- यदि नागरिक सामान्य रूप से लगातार सात वर्षों से भारत के बाहर निवास कर रहा हो.
- यदि नागरिक ने भारत के संविधान के प्रति अनिष्ठा प्रदर्शित की हो.
केवल 1 | |
1 और 2 | |
2 और 3 | |
1, 2 और 3 |
व्याख्या (Explanation)
Q1. A — संविधान सभा
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 द्वारा संविधान सभा को एक पूर्ण संप्रभु निकाय के रूप में मान्यता प्रदान की गई. इसे किसी भी मनोवांछित संविधान का निर्माण करने की शक्ति प्रदान की गई है. इसके अतिरिक्त इस अधिनियम ने संविधान सभा को भारत के सम्बन्ध में ब्रिटिश संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून को निर्बाधित या परिवर्तित करने की शक्ति प्रदान की थी.
देशी रियासतों के प्रतिनिधि, जो आरम्भ में संविधान सभा से दूर रहे, वह धीरे-धीरे इसमें सम्मिलित हो गए.
Q2. C –– अध्यादेश
भारतीय परिषद् अधिनियम, 1861 द्वारा पहली बार पोर्टफोलियो प्रणाली की शुरुआत की गई. इस अधिनियम में गवर्नर जनरल की परिषद् के प्रत्येक सदस्य को किसी विशेष विभाग का पोर्टफोलियो आवंटित किया गया था. गवर्नर जनरल को आपात की स्थिति में वीटो शक्ति का प्रयोग करने एवं अध्यादेश जारी करने के लिए अधिकृत किया गया था.
Q3. A — संविधान की प्रस्तावना
कथन 1 सही है. भारतीय संविधान की प्रस्तावना “उद्देश्य प्रस्ताव” पर आधारित है. इसका मसौदा जवाहर लाल नेहरु द्वारा प्रस्तावित किया गया था एवं संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था.
कथन 2 सही नहीं है. प्रस्तावना को संविधान के अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संशोधित करने के सम्बन्ध में विवाद सर्वप्रथम ऐतिहासिक केशवानंद भारती वाद (1973) में उत्पन्न हुआ था. साथ ही यह तर्क दिया गया था कि प्रस्तावना में संशोधन नहीं किया जा सकता क्योंकि यह संविधान का भाग नहीं है. याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि प्रस्तावना में निहित, संविधान के मूल तत्त्वों या मूल विशेषताओं को समाप्त करने हेतु अनुच्छेद 368 की संशोधन शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है.
हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रस्तावना संविधान का भाग है. न्यायालय ने कहा कि पूर्व में बेरुबारी संघ (1960) मामले में दिया गया निर्णय गलत था. न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रस्तावना में संशोधन संभव है यदि इससे संविधान की “मूल संरचना” प्रभावित न हो. दूसरे शब्दों में, न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि प्रस्तावना में निहित संविधान के मूल तत्त्वों या मूल संरचना को अनुच्छेद 368 द्वारा परिवर्तित नहीं किया जा सकता है.
प्रस्तावना को अब तक केवल एक बार 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संशोधित किया गया है, जिसके अंतर्गत तीन नए शब्द – समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता जोड़े गये गये हैं. इस संशोधन को वैध माना गया.
Q4. B — संघ लोक सेवा आयोग
कथन 1 सही नहीं है. पिछड़े वर्ग के किसी भी नागरिक के पक्ष में नियुक्तियों में आरक्षण को संघ लोक सेवा आयोग के कार्यात्मक अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा जाता है. सेवाओं और पदों हेतु नियुक्तियों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों पर विचार करते समय भी संघ लोक सेवा आयोग से सलाह नहीं ली जाती है.
कथन 2 सही है. ऐसी किसी भी सेवा जिसके लिए विशेष योग्यताएँ रखने वाले उम्मीदवारों की आवश्यकता होती है, संघ लोक सेवा आयोग (यदि दो या अधिक राज्यों द्वारा ऐसा करने के लिए निवेदन किया जाता है) संयुक्त भर्ती योजना बनाने एवं संचालित करने के लिए राज्यों को सहायता प्रदान करता है.
कथन 3 सही नहीं है. संघ लोक सेवा आयोग सेवाओं का वर्गीकरण, वेतन और सेवा शर्तों, कैडर प्रबंधन, प्रशिक्षण आदि से सम्बंधित नहीं होता है. ये मामले कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के अंतर्गत कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा प्रबंधित किये जाते हैं.
Q5. A — राष्ट्रीय आपात
कथन 1 सही है. भारतीय संविधान अनुच्छेद 352 (राष्ट्रीय आपात) के अंतर्गत, राष्ट्रपति, भारत या इसके किसी भी भाग की सुरक्षा पर युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के द्वारा खतरा उत्पन्न होने की स्थिति में राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यदि राष्ट्रपति इस तथ्य को लेकर आश्वस्त है कि भविष्य में कोई खतरा उत्पन्न होने की संभवना है तो वास्तविक रूप में युद्ध या बाह्य आक्रमण घटित होने से पूर्व भी वह राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है.
कथन 2 सही नहीं है. राष्ट्रपति केवल मंत्रिमंडल से लिखित अनुशंसा प्राप्त होने पर ही राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है. इसका अर्थ है कि आपात की घोषणा केवल मंत्रिमंडल की सहमति पर ही की जा सकती है न कि केवल प्रधानमंत्री के परामर्श पर.
Q6. B — वित्त आयोग
वित्त आयोग निम्नलिखित मामलों के सन्दर्भ में राष्ट्रपति को अनुशंसा करता है :-
- केंद्र और राज्यों के बीच करों के शुद्ध आगमों का वितरण और राज्यों के बीच ऐसे आगमों का आवंटन करना.
- भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्व में सहायता अनुदान को शासित करने वाले सिद्धांत.
- राज्य वित्त आयोग द्वारा की गई अनुशंसाओं के आधार पर राज्य में पंचायतों और नगर पालिकाओं को संसाधन उपलब्ध कराने हेतु राज्य की संचित निधि का संवर्धन करना.
- राष्ट्रपति द्वारा आयोग को सुदृढ़ वित्त के हित में संदर्भित कोई अन्य मामला.
भारत की आकस्मिक निधि से व्यय कार्यकारी निर्णय के माध्यम से किया जाता है.
Q7. C — संविधान का आकार
भारतीय संविधान के वृहद् आकार की पृष्ठभूमि में किसी भी रूप में विशाल जनसंख्या का कारण निहित नहीं है. बल्कि यह भाषा, जाति और पन्थ की विविधता की रक्षा संविधान द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के आदर्शों के माध्यम से करता है. नवजात लोकतंत्र के सुचारू क्रियाकलाप हेतु यह आवश्यक था कि संविधान में ऐसी बातों का विस्तृत उल्लेख किया जाए जिन्हें अन्य देशों के संविधान में सामान्य विधाई प्रक्रिया के अंतर्गत मान लिया गया था. इन तथ्यों के प्रकाश में भारतीय संविधान में न्यापालिका के संगठन, संघ लोक सेवा आयोग, चुनाव आदि से सम्बंधित प्रावधानों को शामिल किये जाने की आवश्यकता को समझा जा सकता है.
Q8. D — मूल अधिकार एवं विधिक अधिकार
कथन 1 सही नहीं है. मूल अधिकार अन्य अधिकारों से भिन्न हैं. साधारण कानूनी अधिकारों को साधारण कानून द्वारा सुरक्षित और प्रवर्तित किया जाता है जबकि मूल अधिकारों को देश के संविधान द्वारा सुरक्षित या सुनिश्चित किया गया है.
कथन 2 सही नहीं है. साधारण अधिकार विधायिका द्वारा कानून बनाने की साधारण प्रक्रिया के माध्यम से परिवर्तित किये जा सकते हैं, किन्तु मूल अधिकार केवल संविधान को संशोधित करके ही परिवर्तित किये जा सकते हैं. इसके अतिरिक्त, सरकार का कोई अंग ऐसी कार्रवाई नहीं कर सकता है जो मूल अधिकारों का उल्लंघन करती हो. किन्तु, मूल अधिकार निरपेक्ष या असीमित अधिकार नहीं है. सरकार हमारे मूल अधिकारों के उपयोग पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकती है.
Q9. C — अनुच्छेद 21
दोनों कथन सही हैं.
अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों को उपलब्ध है.
इसकी परिधि को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय-समय पर विस्तारित किया जाता रहा है. विभिन्न मामलों जैसे – गोपालन वाद (1950), मेनका वाद (1978) आदि में इस अनुच्छेद की विस्तृत व्याख्याएँ की जाती रही हैं.
संविधान के अनुच्छेद 21 में औपचारिक रूप से वर्णित किया गया है कि इसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त किसी अन्य प्रक्रिया के माध्यम से जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है.
इस सम्बन्ध में इस अनुच्छेद की विभिन्न व्याख्याएँ की गई हैं. मेनका मामले (1978) में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि किसी व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से कानून द्वारा वंचित किया जा सकता है किन्तु शर्त है कि कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया उचित, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण हो. दूसरे शब्दों में, इसने अमेरिकी अभिव्यक्ति “विधि की यथोचित प्रक्रिया” का समावेश किया है. परिणामस्वरूप अनुच्छेद 21 के अंतर्गत संरक्षण केवल मनमाने आधार पर केवल कार्यपालिका कारवाई के विरुद्ध ही नहीं अपितु विधायिका द्वारा की गई मनमानी कार्रवाई के विरुद्ध भी उपलब्ध होना चाहिए. रामलीला मैदान घटना (2012) और सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य (2010) जैसे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक बार यह निर्णय दिया कि विधि की तात्त्विक उचित प्रक्रिया का सिद्धांत (substantive due process) एवं उचित प्रक्रिया का सिद्धांत (due process) आम तौर पर संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत भारतीय संवैधानिक कानून का भाग हैं. राजबाला बनाम हरियाणा (2015) मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने भारत में विधि की तात्त्विक उचित प्रक्रिया का सिद्धांत (doctrine of substantive due process) को दृढ़तापूर्वक अस्वीकार कर दिया.
Q10. D — नागरिकता अधिनियम
नागरिक अधिनियम, 1955 के अंतर्गत या इससे पूर्व संविधान के अंतर्गत प्राप्त की गई नागरिकता समाप्त होने के तीन कारण निर्धारित किये गये हैं – त्यागना (renunciation), पर्यवसान (termination) या वंचित करना (deprivation).
जब भारतीय नागरिक स्वेच्छा से (होशोहवास में, जानबूझकर और किसी दबाव, अनुचित प्रभाव या विवशता के बिना) किसी दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त कर लेता है तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाती है. इसलिए कथन 1 सही है. हालाँकि यह प्रावधान ऐसे युद्ध के दौरान लागू नहीं होता है जिसमें भारत संलग्न हो.
वंचन के तहत केंद्र सरकार द्वारा भारतीय नागरिकता का उस स्थिति में अनिवार्य समापन किया जाता है, यदि —
- नागरिक द्वारा धोखाधड़ी से नागरिकता प्राप्त की गई हो.
- नागरिक लगातार सात वर्षों के लिए भारत से बाहर निवास कर रहा हो. इसीलिए कथन 2 सही है.
- नागरिक ने भारत के संविधान के प्रति अनिष्ठा/अनादर प्रदर्शित किया हो. इसलिए कथन 3 सही है.
- नागरिक ने किसी युद्ध के दौरान शत्रु के साथ अवैध कारोबार या सूचना का सम्प्रेषण किया हो.
- नागरिक को पंजीकरण या प्राकृतिक/देशीयकरण के बाद पाँच वर्ष के भीतर किसी भी देश में दो वर्ष के लिए कारावास में रखा गया हो.
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