मुगल काल में संगीत कला

Sansar LochanMedieval History

मुगल सम्राटों ने संगीत के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने संगीत को राज्याश्रय देकर उसे प्रोत्साहित किया. चलिए जानते हैं कि मुगलकालीन संगीत कला का विभिन्न शासकों के समय क्या हाल-चाल था!

मुगलकालीन संगीत कला

बाबर स्वयं संगीत प्रेमी था. उसकी आत्मकथा (तुज्क-ए-बाबरी), में अनेक स्थलों पर संगीत गोष्ठियों का उल्लेख मिलता है. उसने स्वयं कई गीत लिखे जो उसकी मृत्यु के बाद भी प्रचलित रहे.

हुमायूं प्रत्येक सोमवार व बुधवार को संगीत सभा का आयोजन करके संगीत का आनन्द उठाया करता था.

अकबर के काल की सबसे बड़ी देन संगीत सम्राट तानसेन है. अकबरकालीन अनेक गायकों द्वारा रागों के नवीन प्रकार प्रचलित हुए व संस्कृत भाषा के संगीत से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद किया गया. अकबर के काल में कर्नाटक संगीत का प्रादर्भाव हुआ. तुराना, ठुमरी, गजल, कव्वाली आदि नये रागों का प्रचलन भी इसी युग में हुआ. और अधिक जानकारी के लिए पढ़ें > अकबरकालीन संगीतकला

जहांगीर के काल की विलास खां, हम्जा, खुर्रमदाद, मखू, परबीज-ए-दाद, छत्रखां इत्यादि प्रसिद्ध संगीतकार देन है.

शाहजहाँ के काल की संगीत के क्षेत्र में देन कम महत्त्वपूर्ण नहीं है. उसके काल में “शम्सुल अस्वत” नामक संगीत से सम्बन्धित ग्रन्थ रचा गया. उसके काल में ही कवि रामदा’, दीरगखां, लालखां, जगन्नाथ, भाव भट्ट इत्यादि थे.

औरंगजेब के काल में इस कला का अन्त हो गया. वह संगीत आदि कला को इस्लाम के विरुद्ध मानता था. उसने अपने काल के सभी दरबारी संगीतकारों को निकाल दिया. संगीतकारों ने विवश होकर प्रान्तीय शासकों व नवाबों के पास शरण ली. लेकिन औरंगजेब की कट्टरता की आड़ में जो संगीत को गाड़ने के लिए जो कुछ कहा था उसके बारे में अनेक कहानियां हैं. आधुनिक अनुसंधान से मालूम हुआ है कि यह बात तो सत्य है कि औरंगजेब ने गायकों को अपने दरबार से बाहर निकाल दिया था लेकिन वाद्य संगीत पर उसने कोई नहीं रोक लगाई थी. यहां तक कि औरंगजेब स्वयं एक कुशल वीणावादक था. औरंगजेब के हरम की रानियों तथा उसका अनेक सरदारों ने भी सभी प्रकार के संगीत को बढ़ावा दिया. इसीलिए औरंगजेब के शासनकाल में भारतीय संगीत पर बड़ी संख्या में पुस्तकों को रचना हुई.

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