Fatal fires: the need for strict safety norms
अभी हाल में मुंबई स्थित ESIC अस्पताल में फैली आग के कारण जान-माल की हानि ने पुनः इस प्रश्न को ज्वलंत कर दिया है कि हमारे अस्पताल इतने असुरक्षित क्यों हैं? क्यों जीवनदायी संस्थानो में जीवन बचाने की अपेक्षा जीवन का ही अंत हो जाता है? क्यों हमारे देश में ही इस प्रकार के मामलों में मृत्युओं की संख्या अत्यधिक है? अस्पतालोंं में होने वाली इन घटनाओं की ज़िम्मेदारी और जवाबदेही किसकी है और इस समस्या का क्या समाधान किया जा सकता है?
मानकों का उल्लंघन
मुंबई में हुई आगजनी की घटना प्रत्यक्ष रूप से मानकों के पालन जुड़ी हुई है क्योंकि सम्बंधित अस्पताल अग्नि विभाग के अनापत्ति प्रमाणपत्र (No Objection Certificate) के बिना संचालित हो रहा था. विदित हो कि भारतीय संविधान के अनुसार स्वास्थ्य राज्य सरकार का विषय (Public health and sanitation; hospitals and dispensaries) है परंतु केंद्र सरकार भी केंद्र-प्रायोजित योजनाओ के जरिये स्वास्थ्य पर अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह विभिन्न योजनाओं द्वारा करती है, जैसे – राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना आदि.
मूलभूत सुविधाओं और आधारभूत ढांचा खड़ा करने का और विनियमन का अधिकार राज्य सकरार के पास है जो निजी अस्पतालोंं को भी विनियमित करती है. मुंबई में हुई घटना भी राज्य सरकार के पाले में आती है. कैसे एक अस्पताल ढीले-ढाले विनियमन के चलते एक शमशान घाट के रूप में परिवर्तित हो गया और यदि नियमों का कार्यान्वयन और विनियमन ईमानदारी और ज़िम्मेदारी से किया जाता तो इस घटना से बचा जा सकता था. इसी ढीले विनियमन के कारण चिकित्सा संस्थान और अस्पताल इतने असुरक्षित होते जा रहे हैं. दरअसल यह मामला नया नहीं है, कुछ दिन पहेले कलकत्ता में भी एसा ही मामला सामने आया था जहाँ लगभग 90 लोग मृत्यु के मुँह में समा गए थे. पर ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकारो ने इससे अभी तक कोई सबक नहीं लिया है.
विनियमन से संबन्धित दूसरा कारण है भवनों का आकार. एक बहुमंज़िला इमारत से रोगियों को सुरक्षित बाहर निकालना दूसरी सबसे बड़ी बाधा है क्योंकि आग ऊपर की और फैलती है और एक-एक करके पूरी इमारत को अपनी चपेट मे ली लेती है. यदि आप छोटे शहरों में सरकारी अस्पतालोंं को देखें तो भवनों का निर्माण क्षैतिज स्तर पर अधिक और ऊर्ध्वाधर स्तर पर कम होता है और यदि दुर्भाग्यवश वहाँ आग की घटना घटती भी है तो इमारत को खाली करना थोड़ा सरल होता है और जनसाधारण भी उसमें अपना योगदान दे सकता है. दूसरी तरफ, बहुमंज़िला इमारत से बाहर निकालने के लिए कुशल बल की आवश्यकता पड़ती है. बड़े महानगरो में जमीन की कमी के कारण या रियल स्टेट के दामों के कारण अस्पतालोंं का प्रसार ऊर्ध्वाधर स्तर पर अधिक और क्षैतिज स्तर पर कम किया जाता है जिसके करण एक छोटे शॉर्ट सर्किट से लगी आग भी पलभर में विकराल रूप धारण कर लेती है. ऐसी घटनाएँ महानगरों में ही अधिक देखी जाती हैं और इसके पीछे सबसे बड़ी वजह समय पर अग्निशमन दल का न पहुँचना क्योंकि शहरों में अत्यधिक भीड़ होने के कारण वहाँ पहुँचने में देर हो ही जाती है.
हमारा देश आबादी में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है अत: रोगियों की संख्या भी अन्य देशों की अपेक्षा अधिक होती है. स्वास्थ्य की उपेक्षा, शारीरिक सुविधाओं की उपेक्षा कर भौतिक सुविधाओं को वरीयता देना, प्रदूषित वातावरण, सड़कों पर होने वाली लापरवाहीपूर्ण एवं शराब-जनित दुर्घटनाएँ, रोड रेज, वित्तीय समस्या या लापरवाही के कारण बीमारी का अंतिम क्षण में उपचार आदि एसे कई कारण हैं जिसके चलते भारतीय अस्पतालों में रोगियों की संख्या विकसित देशों के अपेक्षाकृत अधिक है. कई लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले होते हैं तो वित्तीय समस्याओं के कारण अस्पतालोंं के खर्च भी नहीं उठा सकते. सोचिए यदि सभी लोग उपचार कराने में समर्थ हो जाएँ तो पहेले से ही रोगियों के बोझ तले दबे अस्पतालों में पैर रखने की जगह भी नहीं मिलेगी.
सुरक्षात्मक उपाय
- अस्पतालोंं में आग से होने वाली घटनाओं से निपटने के लिए और ज़िम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार को संगठित होकर कार्य करना चाहिए.
- अस्पतालोंं की इमारत में निर्माण-संबन्धित त्रुटि, अग्निशमन की व्यवस्था, निकासी की समुचित व्यवस्था आदि की नियमित जाँच होनी चाहिए.
- अस्पताल बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप और लालफीताशाही के वैध और गुणवत्तापरक मानकों के साथ संचालित हों, यह सुनिश्चित करना चाहिए.
- भारतीय गुणवत्ता परिषद् अर्थात् क्वॉलिटी काउंसिल ऑफ इंडिया ने नेशनल एक्रिडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स बनाया हुआ है. यह बोर्ड देश के अपने 683 मानकों का पालन करने वाले सभी अस्पतालोंं को मान्यता देता है और एंट्री लेवल के अस्पतालोंं के लिए 150 मानक निर्धारित हैं. इन मानकों का पालन ठीक तरह से हो रहा है या नहीं, इसकी जाँच भी एक विशेष अंतराल पर होती रहनी चाहिए. चूँकि मानक कई हैं इसलिए चूक होना स्वाभाविक है.
- तत्काल आग से निपटने के लिए प्रत्येक महानगर में स्थित अस्पतालोंं में अलग से अग्निशमन दल का गठन होना चाहिए . अग्निशमन दल तत्काल कार्रवाई करते हुए फैलती हुई आग को कुछ हद तक रोक सकते हैं ताकि अधिक से अधिक लोगों को इमारत से सुरक्षित बाहर निकाला जा सके .
- स्वच्छता के विषय में, स्वास्थ्य बीमा योजनाओ के बारे में, बच्चों और माताओं के टीकाकरण के संदर्भ में, ट्रैफिक नियमो के उल्लंघन पर ठोस कार्रवाई एवं कठोर दंड का प्रावधान और स्वास्थ्य संबंधी नियमित परीक्षण आदि के विषय में लोगों को अधिक जागरूक करने के लिए प्रयासरत होने चाहिए ताकि अस्पतालों में रोगियों की संख्या मे कुछ कमी आ सके.
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