नागपुर के निकट नगरधन में हुई पुरातात्विक खुदाइयों से रानी प्रभावतीगुप्त के अधीन वाकाटक शासन के समय के जीवन, धार्मिक धारणाओं और व्यापारिक प्रथाओं का पता चलता है.
खुदाई में पाई गई महत्त्वपूर्ण वस्तुएँ
- एक अंडाकार मुहर मिली है जो उस समय की है जब प्रभावतीगुप्त वाकाटक वंश की रानी थी.
- इस मुहर में उस रानी का नाम ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ है.
- मुहर में शंख का चित्र बना हुआ है. विद्वानों का कहना है कि गुप्त राजा वैष्णव थे, इस तथ्य को यह चित्र दर्शाता है.
- यहाँ पर प्रभावतीगुप्त द्वारा निर्गत एक ताम्रपत्र भी मिला है जिसमें रानी के दादा समुद्रगुप्त और पिता चन्द्रगुप्त द्वितीय का उल्लेख है.
- विद्वानों का विचार है कि वाकाटक ईरान और उससे भी आगे भूमध्यसागर तक व्यापार किया करते थे. इसलिए यहाँ जो मुहर मिली है वह वाकाटक राजधानी के द्वारा व्यापार के लिए दी गई राजसी अनुमति की द्योतक हो सकती है.
रानी प्रभावतीगुप्त कौन थी?
- वाकाटक के शासक अपने समय के अन्य वंशों के साथ वैवाहिक गठजोड़ बनाने के लिए जाने जाते हैं. इन गठजोड़ों में सबसे महत्त्वपूर्ण गठजोड़ वह था जिसमें वाकाटक राजा रूद्रसेन द्वितीय का विवाह चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावतीगुप्त से हुआ था.
- विवाह के उपरान्त प्रभावतीगुप्त को पटरानी (Chief Queen) की मान्यता मिली हुई थी.
- विद्वानों का कथन है कि प्राचीन भारत में प्रभावतीगुप्त एक सशक्त शासिका थीं और एक महिला रानी के रूप में प्राचीन भारत में उनका अलग स्थान है. वस्तुतः रुद्रसेन द्वितीय के निधन के उपरान्त उसने 10 वर्ष शासन किया और तब जाकर उसका बेटा प्रवरसेन द्वितीय सिंहासन पर बैठा.
- महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में वैष्णव धर्म के प्रचार में प्रभावतीगुप्त ने एक धुरीण भूमिका निभाई थी.
वाकाटक वंश से संबंधित तथ्य
- वाकाटक वंश का राज मध्य और दक्षिण भारत में तीसरी से लेकर पाँचवीं शताब्दियों तक चला.
- वाकाटक वंश का राजपाट उत्तर में मालवा और गुजरात के दक्षिण छोरों से लेकर दक्षिण में तुंगभद्रा नदी तक तथा साथ ही पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में वर्तमान छत्तीसगढ़ तक फैला हुआ था.
- सातवाहन वंश के उपरान्त वाकाटक वंश ही दक्कन में राज करने वाला एक बड़ा वंश था. इसी काल में उत्तर भारत में गुप्त वंश का राज चल रहा था.
- वाकाटक नरेश शैव पन्थ के अनुयायी थे.
- नगरधन वाकाटक राज्य की राजधानी था.
- उस समय गणेश की पूजा प्रचलित थी.
- पशुपालन उस समय का एक प्रमुख व्यवसाय था. वहाँ जिन घरेलू पशुओं के अवशेष मिले हैं, वे हैं – गाय-गोरु, बकरी, भेंड़, सूअर, बिल्ली, घोड़ा और मुर्गा-तीतर आदि.
- UNESCO द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित अजंता की गुफाओं में स्थित शिलाओं को काटकर बनाए गये विहारों और चैत्यों का निर्माण वाकाटक नरेश हरिषेण के राज्य में हुआ था.
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