राष्ट्रीय संसाधन कार्यक्षमता नीति (Draft National Resource Efficiency Policy – NREP) प्रारूप को लागू करने में हुई प्रगति को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस पर मन्तव्य मानने की समयसीमा को एक महीना बढ़ा दिया है.
इस नीति का उद्देश्य संसाधनों के उपयोग को इस प्रकार कार्यक्षम बनाना है कि पर्यावरण पर न्यूनतम दुष्प्रभाव पड़े.
राष्ट्रीय संसाधन कार्यक्षमता नीति के मुख्य तथ्य
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अन्दर एक राष्ट्रीय संसाधन कार्यक्षमता प्राधिकरण (National Resource Efficiency Authority – NREA) का गठन किया जाएगा.
- इस प्राधिकरण को सहयोग देने के लिए एक अन्तर-मंत्रालयी राष्ट्रीय संशोधन कार्यक्षमता बोर्ड (Inter-Ministerial National Resource Efficiency Board) बनाया जाएगा.
- प्रारूप में प्रस्ताव है कि पुनः चक्रित सामग्रियों (recycled materials), लघु एवं मध्यम उद्यमों को दिए जाने वाले हरित ऋणों एवं कचरा निपटाने संयंत्रों के लिए दिए जाने वाले कम ब्याज वाले ऋणों के लिए कर का लाभ दिया जाएगा.
- नई नीति में Material Recovery Facilities (MRF) स्थापित करने का प्रावधान है.
- निर्माताओं और सेवा प्रदाताओं को कहा जाएगा कि वे पुनः चक्रित अथवा नवीकरणीय सामग्रियों का अधिक से अधिक प्रयोग करें.
- राष्ट्रीय नीति के पीछे मूलभूत विचार यह है कि देश की अर्थव्यवस्था को चक्रीय अर्थव्यवस्था (circular economy) के रूप में ढाला जाए जहाँ उपलब्ध संसाधनों का उपयोग अधिक सक्षमतापूर्वक होवे.
- इसके लिए प्रारूप में 6R के सिद्धांत को अपनाने की बात कही गई है. यहाँ पर 6R का अभिप्राय है – Reduce (घटाना), Reuse (फिर से प्रयोग करना), Recycle (पुनः चक्रित करना), Redesign (नए सिरे से रूपांकित करना), Re-manufacture (दुबारा बनाना) और Refurbish (नया रूप देना).
- नीति में ‘green public procurement’ पर बल दिया गया है. इसका अभिप्राय है कि ऐसे उत्पाद ख़रीदे जाएँ जिनसे पर्यावरण को कम क्षति पहुँचती हो, जैसे – पहले से उपयोग किये गये कच्चे माल और स्थानीय स्तर से प्राप्त माल.
- प्रस्तावित नीति में देश को Zero Landfill दृष्टिकोण अपनाने को कहा गया है. इसका अर्थ यह हुआ कि बड़ी मात्रा में कचरा उत्पन्न करने वालों को सामग्रियों का आदर्शतम उपयोग करने के साथ-साथ कचरे का बेहतर प्रबंधन भी करना चाहिए.
राष्ट्रीय संसाधन कार्यक्षमता प्राधिकरण (NREA) के कार्य
- विभिन्न प्रक्षेत्रों के द्वारा सामग्रियों के पुनः चक्रण, फिर से प्रयोग और कम से कम कचरा के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्यक्षम रणनीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन करना.
- पुराने कच्चा माल को फिर से उपयोग करते समय गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए मानक तैयार करना.
- विभिन्न प्रक्षेत्रों और अलग-अलग क्षेत्रों में हो रहे सामग्रियों के उपयोग, उत्पन्न हो रहे कचरे, पुनः चक्रित वस्तुओं और कचरा फेके जाने के बारे में डेटाबेस संधारित करना और कार्यान्वयन पर नजर रखना.
संसाधन कार्यक्षमता (Resource Efficiency) किसे कहते हैं?
थोड़ी से थोड़ी सामग्री से अधिक से अधिक बनाना ही संसाधन कार्यक्षमता कहलाता है. व्यवहार में इस नीति को अपनाने से पर्यावरण पर कम दुष्प्रभाव पड़ता है और समाज पर इसका बोझ कम होता है.
इसमें कचरे को संसाधन के रूप में ढाल दिया जाता है और अर्थव्यवस्था को चक्रीय रूप दिया जाता है. वस्तुतः संसाधन कार्यक्षमता और चक्रीय अर्थव्यवस्था दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. साथ ही ये सतत विकास के प्रधान सिद्धांत भी हैं.
भारत के समक्ष चुनौतियाँ
- भारत में प्रति एकड़ 1,580 टन संसाधनों का दोहन होता है जबकि विश्व के लिए यह औसत 450 टन/एकड़ है. फिर भी भारत में उत्पादकता कम ही रहती है.
- देश में पानी तेजी से घट रहा है और वायु की गुणवत्ता भी बिगड़ रही है जिस कारण मानव जीवन के समक्ष खतरा उत्पन्न हो गया है.
- भारत में 147 मिलियन हेक्टेयर भूभाग में व्यापक मृदा क्षरण देखा जाता है.
- कुछ सर्वाधिक आवश्यक सामग्रियों में से लगभग 100% के लिए भारत आयात पर निर्भर है, जैसे – कोबाल्ट, तांबा, लिथियम आदि जो उन्नत तकनीक से जुड़े उद्योगों के लिए आवश्यक हैं.
- देश में प्रसंस्कृत होने वाले कच्चे तेल का 80% विदेश से आता है. कोकीन कोयला का 85% ही आयात पर निर्भर है.
- अधात्विक खनिजों का खनन भी चुनौतियों से भरा हुआ है.
- देश में रिसायकिलिंग की दर 20-25% है जबकि यूरोप के विकासशील देशों में यह प्रतिशत 70 है. 2030 तक भारत में भौतिक वस्तुओं की खपत दुगुनी हो जायेगी. उस समय रिसायकिलिंग की दशा और भी बुरी हो सकती है.
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