नाइट्रस ऑक्साइड के बारे में
- जैसा कि हम सब जानते हैं कि नाइट्रस ऑक्साइड एक ग्रीनहाउस गैस है और यह समताप मंडल में बहुत हद तक ओजोन को क्षति पहुँचाने वाली गैसो में से एक है.
- हममें से अधिकांश नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) को “हंसने वाली गैस” के रूप में जानते हैं. इसका उपयोग बेहोश करने (anesthesia) के लिए भी किया जाता है.
- यह वास्तव में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) और मीथेन के बाद तीसरी सबसे लंबे समय तक वातावरण में रहने वाली ग्रीनहाउस गैसों में से एक है.
- अगर हम कार्बन डाइऑक्साइड के एक अणु की अवरक्त किरणों की अवशोषण क्षमता को 1 मानें तो इसकी तुलना में नाइट्रस ऑक्साइड एक अणु की अवशोषण क्षमता 200 गुनी होती है.
अध्ययन के निष्कर्ष
- प्रमुख अध्ययनकर्ता का मानना है कि पिछले दो दशकों के दौरान एन2ओ के उत्सर्जन में बहुत वृद्धि हुई है, विशेषत: 2009 के बाद से.
- 20वीं सदी के मध्य से वातावरण में एन2ओ में तेजी से वृद्धि हुई है. यह वृद्धि वातावरण में नाइट्रोजन की वृद्धि होने के कारण हुई है. 20वीं सदी के मध्य से, वातावरण में काफी हद तक नाइट्रोजन उर्वरकों का उत्पादन, नाइट्रोजन-फिक्सिंग फसलों (जैसे तिपतिया घास, सोयाबीन, अल्फला, ल्यूपिन और मूंगफली) की खेती, और जीवाश्म और जैव ईंधन के जलने से नाइट्रोजन परत (सब्सट्रेट) में वृद्धि हुई है.
- अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि 2000-2005 और 2010-2015 के मध्य एन2ओ में विश्व स्तर पर प्रत्येक वर्ष 6 टिजीएन (कुल वैश्विक उत्सर्जन का लगभग 10 फीसदी) की वृद्धि हुई है. यह संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट में प्रयोग किए गए नाइट्रोजन उर्वरक और खाद की मात्रा तथा आईपीसीसी द्वारा तय उत्सर्जन से दोगुना है.
- अध्ययनकर्ताओं के द्वारा उपयोग किए मांडल (इन्वेर्सिओन)-आधारित उत्सर्जन से, शोधकर्ताओं ने 2.3 या, 0.6% के वैश्विक उत्सर्जन का अनुमान लगाया है, जो कि संयुक्त रूप से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष उत्सर्जन के लिए 1.375% के आईपीसीसी द्वारा तय उत्सर्जन से काफी अधिक है.
नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर बढ़ने के कारण
- वैश्विक स्तर पर उर्वरकों और खाद (Manure) का उपयोग की सीमा से अधिक प्रयोग, नाइट्रस ऑक्साइड के बढ़ते स्तर के लिये सबसे अधिक उत्तरदायी है.
- नाइट्रोजन-फिक्सिंग फसलों {जैसे तिपतिया (Clover) घास, सोयाबीन, अल्फाल्फा, ल्यूपिन (Lupins), मूँगफली} की व्यापक खेती.
- जीवाश्म और जैव ईंधन का दहन.
समस्याएँ
- नाइट्रोजन की अधिक उपलब्धता ने भोजन का अधिक उत्पादन करना अवश्य संभव बना दिया है, परन्तु इसका बुरा पहलू यह है कि इसके कारण वातावरण में एन2ओ का स्तर बढ़ रहा है.
- इस गैस की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगर CO2 तथा CH4 का वातावरण में उपस्थिति समय 100 तथा 10 वर्ष है तो नाइट्रस ऑक्साइड का उपस्थिति समय 150 वर्ष होता है. इसका परिणाम यह होता है कि वातावरण में उपस्थित यौगिकों से बिना कोई अभिक्रिया किये या नमी से बिना अवक्षेपित (precipitated) हुए यह पर्यावरणीय असंतुलन बनाने के लिए सीधे समतापमंडल में प्रवेश कर जाती है.
- अध्ययन के परिणाम से स्पष्ट है कि वैश्विक स्तर पर एन2ओ के उत्सर्जन को कम करने के लिए, उन क्षेत्रों में नाइट्रोजन उर्वरक का उपयोग कम किया जाना चाहिए जहाँ पहले से ही इसका बहुत अधिक उपयोग हो रहा है. यह पूर्वी एशिया जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से आवश्यक है, जहाँ फसल की पैदावार को कम किए बिना नाइट्रोजन उर्वरक का अधिक कुशलता से उपयोग किया जाना चाहिए.
नाइट्रस ऑक्साइड के उत्पादन को कम करने की वैज्ञानिक विधियाँ
नीम-लेपित यूरिया उत्पादन
नीम-लेपित यूरिया (neem coated urea) धीमी गति से नाइट्रोजन मुक्त करता है जिससे पौधों को इसे अवशोषित करने का समय मिल जाता है, इसलिए नाइट्रोजन का इष्टतम उपयोग होता है.
नाइट्रोजन आपूर्ति का फसल माँग के साथ मिलान करना
अगर हम नाइट्रोजन की आपूर्ति का मिलान फसल की माँग के साथ करने में सफल होते हैं तो निश्चिततः हम नाइट्रस ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैस के जनन को भी कम कर पाने में सक्षम होंगे. इसके लिए विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों की आवश्यकता है जो विभिन्न फसलों के लिए खेतों में डाले जाने वाले नाइट्रोजन उर्वरकों की मात्रा को नियंत्रित करेगा.
पलिहर (fallow) अवधि को कम करना
खेतों से नाइट्रस ऑक्साइड गैस के उत्सर्जन को कम करने के उपायों में एक महत्वपूर्ण तरीका है पलिहर अवधि को बढ़ावा न देना. इसे करने से मृदा में खनिज नाइट्रोजज का संचयन घट जाता है तथा यह अल्प संचयन नाइट्रस ऑक्साइड गैस की उत्पत्ति की रोकने में भी महायक सिद्ध होता है.
उर्वरक का विभक्त (split) प्रयोग
इस प्रक्रिया क॑ तहत खेतों में निश्चित मात्रा में डाले जाने वाले उर्वरकों का प्रयोग विभकत तरीके से कई बार में किया जाता है. इसका सीधा परिणाम यह होता है कि इस तरीके से फसलों की नाइट्रोजन इस्तेमाल करने की क्षमता बढ़ जाती है जो पैदावार को बढ़ावा देती है और साथ ही साथ नाइट्रस ऑक्साइड की क्षति भी घट जाती है.
नियंत्रित निर्मुक्त उर्वरक (Control release fertilizers)
इस प्रकार के उर्वरकों का प्रयोग आजकल जापान में बहुत अधिक हो रहा है. इन उर्वरकों को एक विशेष प्रक्रिया से तैयार किया जाता है. इममें उर्वरक की सतह पर मोम (wax) का लेप लगाया जाता है. खेतों में प्रयोग करने के उपरान्त ये उर्वरक फसलों ले प्रयोग हेतु नाइट्रोजन की मात्रा को धीरे-धीरे मृदा में छोड़ते रहते हैं. जिससे उत्पादन तो बढ़ता ही है साथ ही साथ नाइट्रस ऑक्साइड की क्षति पर भी कठोर नियंत्रण होता है.
मृदा सतह के नीचे उर्वरकों का प्रयोग
ये प्रयोग जड़ों द्वाग नाइट्रोजन के सीधे अवशोषण को बढ़ावा देने हैं और परिणामस्वरूप नाइट्रस ऑक्साइड गैस के जनन को रोकते हैं.
उर्वरकों का पत्तियों पर छिड़काव
यह एक अत्याधुनिक तकनीक है. इसमें उर्वरकों के घोल को सीधे पत्तियों पर छिड़का जाता है जिससे मृदा में नाइट्रोजन उर्वरकों की मात्रा नियंत्रित रहती है जो नाइट्रस ऑक्साइड को नियंत्रित करती है.
नाइट्रीकरण संदमकों (nitrification inhibitors) का प्रयोग
यह एक तेजी से लोकप्रिय होती तकनीक है. नाइट्रीकरण संदमक ऐसे तत्त्व होते हैं जिनका प्रयोग यदि खेतों में किया जाए तो ये खाद्य शृंखला पर बिना कोई प्रभाव डाले नाइट्रीकरण जीवाणुओं को खत्म कर देते हैं या फिर उनकी सक्रियता का ह्रास करते हैं. दोनों के ही परिणामस्वरूप नाइट्रस ऑक्साइड गैस का वातावरण में उत्सर्जन कम हो जाता है.
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