नूरजहाँ से जुड़े तथ्य : मुगल शासन पर प्रभुत्व

Sansar LochanMedieval History

नूरजहाँ मिर्जा ग्यास बेग की पुत्री थी जो मूलतः एक ईरानी था. नूरजहाँ का असली नाम मेहरुन्निसा था. नूरजहाँ का पिता मिर्जा ग्यास बेग अकबर के काल में आगरा आया और धीरे-धीरे उसने अपनी योग्यता और बुद्धि के बल पर 300 का मनसब प्राप्त किया. कालान्तर में उसे काबुल का दीवान बना दिया गया.

noor jahan

नूरजहाँ एक सुन्दर और बुद्धिमान स्त्री थी. वह अपनी माता के साथ शाही महल में कभी-कभी जाया करती थी. उसके रूप और सौन्दर्य को देखकर शाहजहाँ सलीम (जहाँगीर) उस पर मोहित हो गया. वह उससे विवाह करना चाहता था लेकिन अकबर ने इसका विरोध किया तथा मेहरुन्निसा का विवाह अलीकुली बेग इस्ताजलू (शेर अफगन) के साथ कर दिया गया. अकबर ने शेर अफगन को बर्दमान का सूबेदार नियुक्त कर दिया. जब जहाँगीर को शेर अफगन के अत्याचारों एवं विद्रोही प्रवृत्ति का समाचार मिला तो उसने 1607 ई० में बंगाल के एक नए गवर्नर कुतुबुद्दीन को, जो जहाँगीर के लिए प्रिय पुत्र, दयाल भाई तथा उपयोगी मित्र के सम्मान था, उसे दण्ड देने को भेजा.

1607 ई० की लड़ाई में शेर अफगन मारा गया ओर मेहरुन्निसा वापस आगरा आ गयी. 1611 ई० में जहाँगीर ने मेहरुन्निसा से विवाह किया और उसे पहले तो नूरमहल तथा बाद में नूरजहाँ की उपाधि दी. जहाँगीर के साथ विवाह होने के वाद नूरजहाँ ने राजनीति एवं प्रशासन संबंधी कार्यों में बड़ी रुचि ली.

जहाँगीर तथा तत्कालीन मुगल शासन पर नूरजहाँ के प्रभुत्व को लेकर इतिहासकारों में बहुत मतभद है. डा० विंसेट स्मिथ जैसे विदेशी इतिहासकार नूरजहाँ के राजनैतिक प्रभुत्व को प्रमाणित करने के लिए कहते हैं कि, “सिंहासन के पीछे वास्तविक शक्ति नूरजहाँ थी.” डा० स्मिथ के अनुरूप विचार रखने वाले इतिहासकार जहाँगीर की आत्मकथा से उसके उस कथन को उद्धृत करते हैं जिसमें उसने कहा है, “जब नूरजहाँ के पास तख्त की बागडोर है, मुझे केवल आधा सेर मांस और प्याला शराब की ही आवश्यकता है.”

इसके विपरीत जो इतिहासकार नूरजहाँ के अत्यधिक राजनैतिक प्रभा को स्वीकार नहीं करते हैं वे कहते हैं कि, “जहाँगीर की आत्मकथा से स्पष्ट है, 1622 ई० में अपने स्वास्थ्य गिरने तक जहाँगीर स्वयं राजनैतिक निर्णय लिया करता था. नूरजहाँ का प्रभाव सिर्फ शाही घराने तक ही सीमित था.”

नूरजहाँ के प्रभुत्व को निम्न दो कालों में विभाजित किया जा सकता है :

राजनतिक प्रभुत्व का प्रथम काल (1611 ई० से 1622 ई० तक)

इस काल में नूरजहाँ की राजनैतिक भूमिका अधिक प्रभावशानी नहीं थी. चूंकि मिर्जा ग्यास बेग के एक पुत्र ने सम्राट जहाँगीर के पुत्र खुसरो के विद्रोह (अप्रैल मई 1606 ई०) में में भाग लिया था. इसलिए उसे (इतमाद्दौला को) दीवान के पद से हटा दिया गया था लेकिन शीघ्र ही उसे उसका पद वापस दे दिया गया. नूरजहाँ से विवाह के बाद जहाँगीर ने अपन ससुर इतमाद्दौला को प्रमुख दीवान बना दिया. इसके अतिरिक्त नूरजहाँ के परिवार के अन्य सदस्यों का मंसब बढ़ा दिया गया. निःसंदेह इतमाद्दौला कुशल, वफादार तथा कर्तव्यनिष्ठ था. यह दस वर्षों तक मुगल सम्राट का प्रमुख सलाहकार बना रहा. नूरजहाँ के भाई आसफखां को खान ए-सामां के पद नियुक्त किया गया. उसी को पुत्री अर्जमंद बानू बेगम का विवाह शाहजादा खुरंम (शाहजहाँ) से हुआ. कुछ आधुनिक इतिहासकारों की राय है कि दरबार में अपने पिता इतमाद्दौला, भाई आसफखां, अपणी माँ अस्मत बेगम, तथा शाहजहाँ खुर्रम की सहायता से नूरजहाँ ने अपना एक छोटा-सा दल बना लिया था जिसका सम्राट जहाँगीर पर इतना नियंत्रण ही गया था कि उसके

समर्थन के बिना कोई भी कार्य या निर्णय आगे नहीं बढ़ सकता था. नूरजहाँ के गुट के प्रभाव के बारे में सर टामस रो (जिसे सम्राट जेम्स प्रथम ने भेजा और जो जहाँगीर के दरबार में 1615 से 1618 तक रहा) ने लिखा है, “इस समय सारी शक्ति नूरजहाँ के गुट के हाथ में थी. उसके भाई आसफखां तथा उसी भाई (आसफ खां) के दामाद खुर्रम की सहायता के बिना कोई भी कार्य करवाना असम्भव था. उसका प्रभुत्व इतना बढ़ गया था कि महाबत खां जैसे प्रबल अमीर भी उससे भय खाते थे. जहाँगीर तो राज-काज को छोड़कर दिन-रात विलासता में डूबा रहता था.”

सर टामस रो कथन पूर्णतया ठीक नहीं कहा जा सकता क्योंकि जहाँगीर ने इन वर्षों में कुछ ऐसे व्यक्तियों की भी पदोन्नति की जो नूरजहाँ के गुट में शामिल नहीं थे. शाहजहाँ और आसफखां की जो उन्नति हुई उसका केवल मात्र कारण नूरजहाँ की सिफारिश नहीं थी बल्कि उन की अपनी योग्यता भी थी.

नूरजहाँ के अतिरिक्त जहाँगीर अपने पुत्र खुर्रम (शाहजहाँ) को स्वयं बहुत चाहता था, वास्तव में खुसरो के विद्रोह तथा उसको गिरफ्तारी के बाद शहजादा खुर्रम जहाँगीर का सर्वाधिक प्रिय पुत्र बन चुका था. जहाँगीर अगर शासन प्रबन्ध के प्रति पूर्णतया उदासीन हो जाता तो उसके काल में साहित्य, कला एवं अन्य क्षेत्रों में जो प्रगति हुई वह कभी भी नहीं हो सकती थी. 1622 ई० तक नूरजहाँ की राजनीतिक भूमिका स्पष्ट नहीं है. सम्भवतः उसका निजी प्रभाव अधिकतर शाही घराने पर था. उसने फारसी परम्पराओं पर आधारित नए फैशनों का प्रचलन किया. इतिहासकार खफीखां ने लिखा है, “नूरजहाँ द्वारा चलाए हुए फैशन बहुत देर तक ऊंचे घराने में प्रचलित रहे.” नूरजहाँ इस काल में सम्राट जहाँगीर की बराबर की साथी थी और वह उसे अपने साथ शिकार पर भी ले जाता था इस कारण वह कई बार लोगों के अनुरोध पर उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए सम्राट से सिफारिश कर देती थी. इसके बावजूद इस काल में जहाँगीर पूर्णतया नूरजहाँ या उसके दल पर निर्भर नहीं था.

प्रभुत्व का दूसरा काल (1622 से 1627 ई० तक)

नूरजहाँ के राजनैतिक प्रभुत्व का दूसरा काल 1622 ई० में शुरू हुआ. 1622 ई० से जहाँगीर के स्वास्थ्य में निरंतर गिरावट भा रही थी. उसके बीमार होने के बाद नूरजहाँ की राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं बढ़ गयीं. पीटर मण्डी बड़े सुन्दर ढंग से लिखता है “वह उससे शादी करके उसी का कैदी हो गया और इस प्रकार उसने उस पर राज करते हुए सब पर राज किया. वह सारी सत्ता अपने पास रखना चाहती थी. इसी कारण उसके गुट में फूट पड़ गई. एक गुट नूरजहाँ का बना रहा जिसमें उसका दामाद शहरयार प्रमुख था. वह उसे जहाँगीर का उत्तराधिकारी भी बनवाना चाहती थी. दूसरा गुट उसके भाई आसफ खां तथा शाहजहाँ (खुर्रम) का था. उसने जहाँगीर को सलाह दी कि वह शाहजहाँ खुर्रम को कन्धार अभियान पर भेजे. खुर्रम ने अपने पिता के विरुद्ध (1622 ई०) विद्रोह कर दिया. खुर्रम को यह मालूम होने लगा कि जहाँगीर पूरी तरह नूरजहाँ की मुट्ठी में है परिणामस्वरूप नूरजहाँ के राजनैतिक हस्तक्षेप ने मुगल घराने में गृहयुद्ध शुरू कर दिया. नूरजहाँ ने इस काल में उन सभी उच्च अधिकारियों के विरुद्ध सन्देह रखा जो उससे राजनीतिक मतभेद रखते थ. सम्भवत : उसी के कहने पर जहाँगीर ने महाबतखां को दरबार में हिसाब-

किताब देने के लिए बुलाया क्योंकि महाबतखां की मित्रता शाहजादा परवेज के साथ बढ़ रही थी जिसे नूरजहाँ अपने दामाद शहरयार एवं स्वयं के लिए खतरनाक मानती थी. स्वाभिमानी महाबत खां ने सम्राट के विरुद्ध विद्रोह कर दिया. नूरजहाँ ने महाबतखां के विद्रोह को असफल बनाने में बड़ी कूटनीति से काम लिया तथा जहाँगीर को उसकी कैद से छुड़ाकर अपनी महान राजनैतिक सूझ-बूझ का परिचय दिया. उसगे जहाँगीर को मृत्यु के बाद अपने दामाद शहरयार को आगरा से बुलाकर लाहौर में सम्राट घोषित किया. लेकिन नूरजहाँ इस प्रयत्न में सफल नहीं हुई क्योंकि आसफखां ने उसकी चाल विफल करने के लिए खूसरो के लड़के दावरबख्श को कठपुतली के रूप में खाली सिंहासन पर बैठा दिया ताकि दक्षिण से शाहजादा खुर्रम को आगरा तक पहुँचने के समय मिल सके. खुर्रम को दक्षिण से शीघ्र बुलवा लिया गया. उसने आते ही शहरयार को पकड़ लिया तथा उसे धंधा करवा कर जेल में डाल दिया. नूरजहाँ के लिए एक निरिचत राशि तय कर दी गई और वह राजनीति से संन्यास लेकर बाद में 18 वर्ष तक जीवन व्यतीत करती रही.

नूरजहाँ की राजनैतिक भूमिका का प्रभाव

नूरजहाँ की राजनीतिक भूमिका के अच्छे और बुरे दोनों तरह के प्रभाव पड़े.

अच्छा प्रभाव

(1) नूरजहाँ की राजनीतिक भूमिका का सबसे अच्छा प्रभाव यह पड़ा कि जहाँगीर ने धीरे-धीरे उसके प्रभाव में आकर मदिरापान की मात्रा कम कर दी इसी के फलस्वरूप वह अधिक समय तक जी सका.

(2) नूरजहाँ ने जहाँगीर के साथ राजनीतिक क्षेत्र में सहयोग देकर उसके प्रशासनिक कार्यभार को कम करने में मदद दी.

(3) उसने कई बार गरीब और दुखी महिलाओं को सरकारी सहायता देकर उनका कल्याण किया.

(4) उसने वेश भूषा, फैशन, शृंगार के क्षेत्र में नवीन डिजाइनों एवं वस्तुओं का आविष्कार कर इन क्षेत्रों में नवीन तथा क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने में सफलता प्राप्त की. उसी के चलाए फैशनों को पर्याप्त समय तक उच्च वर्ग की महिलाओं ने अपनाया.

(5) उसने महाबतखां के विद्रोह को मुगल सम्राट की गिरी हुई प्रतिष्ठा को बचाया. महाबत खां की पराजय नूरजहाँ की सबसे बड़ी विजय थी.

बुरा प्रभाव

नूरजहाँ की राजनीतिक भूमिका के अच्छे प्रभावों के साथ- साथ कुछ घातक प्रभाव भी पड़े :

(1) नूरजहाँ ने अपने प्रथम प्रभुत्व काल में अपन पिता भाई तथा अन्य सम्बन्धियों को ऊँचे पद तथा मनसब दिलाने में जो अपने प्रभाव का प्रयोग किया. उसने निश्चित रूप से अन्य उच्च पदाधिकारी असंतुष्ट हुए तथा दरबार के वातावरण में थोड़ा-बहुत तनाव आया.

(2) उसने अपने प्रभुत्व के दूसरे काल में खुर्रम के स्थान पर शहरयार का पक्ष लेकर खुर्रम जैसे योग्य तथा वफादार शाहजादे को आत्मरक्षा के लिए अपने ही पिता के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए विवश किया. इसलिए कन्धार मुगलों के हाथों से जाता रहा.

(3) नूरजहाँ के सन्देह के कारण महाबत खां जैसे स्वामिभक्त सरदार एवं कर्तव्यनिष्ठ पुरुष को विद्रोह का झण्डा खड़ा कर सम्राट को बंदी बना लेने के लिए विवश होना पड़ा. नूरजहाँ को गलत नीतियों के कारण सम्राट का सम्मान धूल में मिला दिया.

(4) उसने जहाँगीर की मौत के बाद शहरयार (जिसका उपनाम नैशुदनी अथवा निखट्ट था) को सम्राट घोषित कर एक बार पुन: मुगल में परिवार गृहयुद्ध छिड़वा दिया. शाहजहाँ ने उसे वकील आसफखां की सहायता से सरलता से मात दे दी.

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