NRC Draft 2017 और नागरिकता संशोधन विधेयक 2016

Sansar LochanBills and Laws: Salient Features, Polity Notes, Sansar Editorial 2018

भारत सरकार के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त ने National Register of Citizen (NRC) का पहला draft जारी किया है. इससे असम में रहने वाले कानूनी और गैर-कानूनी लोगों की पहचान हो सकेगी. असम देश का अकेला राज्य है जिसके पास NRC है. सरकार का दावा है कि NRC की पूरी प्रकिया 2018 के अन्दर तक पूरी कर ली जाएगी. इसके लिए आवेदन की प्रक्रिया मई 2015 से शुरू हुई थी. आज हम आपको बतायेंगे कि –

  1. NRC क्या है और यह अचानक क्यूँ चर्चा में आ गया है?
  2. ये आँकड़े क्यूँ जारी किये?
  3. 1951 में जब पूरे देश के लिए NRC बनायी गई थी तो इस वक्त सिर्फ असम ही क्यों NRC है?
  4. नागरिकता संशोधन विधेयक क्या है?
  5. नागरिकता संशोधन विधेयक और NRC की बीच क्यों हो रहा है टकराव?

क्या है मामला?

नए साल के आगाज के बीच असम में आधी रात NRC का पहला ड्राफ्ट जारी किया गया. रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़ NRC में नाम शामिल कराने के लिए 3.9 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था, इनमें से 1.9 करोड़ लोगों को पहले ड्राफ्ट में ही जगह मिल गई है. RGI के मुताबिक़ ये 1.9 करोड़ वे हैं जिनकी जाँच पूरी हो चुकी है. बाकी के नामों की कई स्तरों में जाँच होनी बाकी है. जैसे यह जाँच पूरी होगी NRC का final draft जारी कर दिया जायेगा.

असम में रहने वालों के बीच तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. कुछ लोगों को लगता है कि जिनके नाम NRC के मसौदे में नहीं हैं, उनकी नागरिकता खतरे में पड़ सकती है. लेकिन सच्चाई यह है कि यह final NRC नहीं है. नामों की जाँच करने की एक लम्बी प्रक्रिया है इसलिए पहले मसौदे में कई नाम छूट गए हैं. हालाँकि राज्य सरकार का कहना है कि रजिस्टर में जगह न पाने वाले लोगों को देश से बाहर कर दिया जायेगा.

Background

1947 में जब भारत देश आजाद हुआ तो सरकार को नागरिकों की पहचान की जरुरत महसूस हुई. आजाद भारत में 1951 में पहली जनगणना हुई तो इसमें गाँव-गाँव जाकर हर एक व्यक्ति के बारे में बुनियादी जानकारी जुटाई गई जिसके आधार पर उनकी नागरिकता की पहचान हुई. इन आँकड़ों को deputy comissioner और sub-divisional officer के दफ्तर में रखा जाता था. लेकिन गृह मंत्रालय के आदेश के बाद 1960 के दशक में NRC के सारे आँकड़े पुलिस को सौंप दिए गए जिसके बाद NRC कभी update नहीं किया गया.

जब यह मामला 2013 में सुप्रीम कोर्ट पहुँचा तो सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2014 में आदेश दिया कि NRC के updation का काम 31 जनवरी, 2016 तक पूरा हो जाना चाहिए. मगर NRC authority इस आदेश का अनुपालन नहीं कर पाई और उसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया पर निगाह रखे हुए है और उसी के निगरानी में NRC के updation का काम चल रहा है.

फिर अब क्यों जरुरत है NRC की?

बांग्लादेश घुसपैठियों (illegal migrants of Bangladesh) का मुद्दा जब बढ़ने लगा तो नागरिकों की पहचान की जरुरत पड़ने लगी. ऐसा माना जा रहा है कि असम में बांग्लादेश से आये कई लोग अवैध रूप से रह रहे हैं. इसलिए NRC का मुद्दा उठाया जा रहा है.

NRC

  1. NRC को पूरे देश में पहली और आखिरी बार 1951 में तैयार किया गया था.
  2. लेकिन इसके बाद इसे update नहीं किया गया था.
  3. NRC में भारतीय नागरिकों का लेखा-जोखा दर्ज होता है.
  4. 2005 में केंद्र, राज्य और All Assam Students Union के बीच समझौते के बाद असम के नागरिकों की दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई. ये पढ़ें >> असम समझौता
  5. मौजूदा प्रकिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रही है.
  6. सुप्रीम कोर्ट ने करीब दो करोड़ दावों की जांच के बाद 31 December तक NRC को पहला draft जारी करने का निर्देश दिया था.
  7. कोर्ट ने जांच में करीब 38 लाख लोगों के दस्तावेज संदिग्ध पाए थे.

कौन है असम का असली नागरिक?

  • 1951 में जिन लोगों के नाम NRC में थे उनके संतानों के नाम NRC के updated list में शामिल किये जायेंगे.
  • असम में लाखों लोगो को यह साबित करना है कि उनके माता-पिता 24 मार्च, 1971 में बांग्लादेश बनने से पहले ही असम में आकर रहने लगे थे.
  • यदि legacy data में किसी को अपना नाम नहीं मिलता है तो इसके लिए विशेष प्रबंध किये गए हैं. 24 मार्च, 1971 से पहले के मतदाता सूची, जमीन के कागजाद, नागरिकता प्रमाण पत्र, शरणार्थी पंजीकरण प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, LIC policy, सरकार की तरफ से जारी कोई licence या प्रमाण पत्र, सरकारी नौकरी के दस्तावेज, बैंक या पोस्ट ऑफिस में खाते, जन्म प्रमाण पत्र, शिक्षा बोर्ड या विश्वविद्यालय के सर्टिफिकेट और अदालत के दस्तावेजों को legacy data के लिए मान्य करार दिया गया है.

NRC के सामने चुनौती

असम और पश्चिम बंगाल राज्यों के सीमावर्ती इलाकों में कथित बांग्लादेशियों और मूल निवासियों की पहचान एक मुश्किल काम है. इन इलाकों में सीमा के दोनों तरफ रहने वाले लोगों का रहन-सहन और भाषा एक जैसी है. ऐसे में कई बार स्थानीय लोगों को भी पुख्ता कागजात दिखाकर अपनी नागरिकता साबित करनी पड़ती है. इन इलाकों में बांग्लादेशी और भारतीयों का भेद कर पाना कठिन है. इसे लेकर तमाम तरह की राजनीति होती है. कई बार विवाद साम्प्रदायिक रुख ग्रहण कर लेता है. ऐसे में घुसपैठ रोकने और भारतीय नागरिकों के हितों की सुरक्षा से जुड़ी सरकारी कोशिशों पर भी सवाल उठने लगते हैं.

नागरिकता संशोधन विधेयक

केंद्र सरकार के एक विधेयक (The Citizenship (Amendment) Bill, 2016) को लेकर असम में तरह-तरह के अनुमान लगाये जा रहे हैं और इस विधेयक का नाम है नागरिकता संशोधन विधेयक. विपक्षी दल इस नागरिकता संशोधन विधेयक का यह कहकर विरोध कर रही हैं कि ये NRC के नियम-कायदों से मेल नहीं खाता. कौन-सा विधेयक है ये और इसमें क्या है, चलिए जानते हैं.

  1. केंद्र सरकार ने 2016 में एक ऐसा विधेयक लाया जिसको लेकर असम में सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है.
  2. ये विधेयक है नागरिकता संशोधन विधेयक 2016
  3. इस विधेयक में कुछ प्रावधान ऐसे हैं जो NRC में नाम दर्ज कराने के नियमों से मेल नहीं खाते.
  4. हालाँकि विधेयक अभी संसद से पारित नहीं हुआ है लेकिन इसे लेकर कई तरह के कयास लगाये जा रहे हैं.
  5. 19 जुलाई, 2016 को गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने यह विधेयक लोक सभा में पेश किया.
  6. विधेयक के जरिये नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया जायेगा.
  7. विधेयक में नागरिकता हासिल करने के प्रावधानों में संशोधन करने का प्रावधान है.
  8. नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 में अवैध प्रवासी उन्हें माना गया है जो गैर-पासपोर्ट के बिना भारत में प्रवेश करता है या फिर स्वीकृत समय से ज्यादा दिनों बाद भी भारत में रहता है.
  9. इसमें कुछ समूहों का जिक्र किया गया है जिनके साथ अवैध प्रवासियों की तरह व्यवहार नहीं किया जायेगा.
  10. विधयेक में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेशी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसियों और ईसाइयों के लिए ख़ास प्रावधान किये गए हैं. ये लोग अगर 6 साल से भारत में रह रहे हैं तो नागरिकता के लिए दावेदारी पेश कर सकते हैं.
  11. अन्य लोगों के लिए यह अवधि 11 साल है.

NRC Draft 2017 और नागरिकता संशोधन विधेयक के बीच टकराव

विधेयक के इस प्रावधान को लेकर असम में काफी विवाद हो रहा है. असम के कई राजनैतिक समूहों का कहना है कि केंद्र सरकार की इस विधेयक और NRC के तहत नागरिकता के प्रावधानों में टकराव है. मौजूदा कानून के तहत 24 मार्च, 1971 से पहले भारत आये विदेशियों को ही NRC में जगह दी जा सकती है. लेकिन यदि केंद्र सरकार का नागरिकता संशोधन विधेयक पारित हो गया तो बांग्लादेश से आने वाले गैर-मुस्लिम 6 साल में ही नागरिकता के दावेदार हो जायेंगे.

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