केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 31 से बढ़ाकर 34 करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल संख्या CJI (Chief Justice of India) समेत 34 हो जाएगी.
आवश्यकता
सर्वोच्च न्यायालय में 59,331 वाद लम्बित चल रहे हैं. न्यायाधीशों के अभाव के कारण कानूनी विषयों से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण वादों में निर्णय करने के लिए संविधान बेंच गठित करने में भी बाधा खड़ी हो रही है.
वर्तमान स्थिति
उच्च न्यायालयों के लिये न्यायाधीशों के 1079 स्वीकृत पद हैं. इनमें से अभी स्थाई न्यायाधीशों के 235 पदों सहित 409 पद रिक्त हैं. सरकार अगर आर्थिक सर्वेक्षण में किये गये सुझाव को स्वीकार करके न्यायाधीशों के 93 नये पदों का सृजन करने का भी निर्णय लेती तो इनकी संख्या शायद 1,172 हो जाती. ऐसा होने पर उच्च न्यायालयों में लंबित मुकदमों के निपटाने की गति तीव्र हो सकती थी. उच्चतम न्यायालय में इस समय न्यायाधीशों के स्वीकृत 31 पदों में से एक भी रिक्त नहीं है. बेहतर होता यदि सरकार एक बार उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के सभी पदों पर नियुक्तियाँ करके इसके लिये एक नया रिकार्ड अपने नाम कर लेती. अगर उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों का एक भी पद रिक्त नहीं हो या यह कहा जाये कि इन रिक्तियों पर तेजी से नियुक्तियाँ की जायें तो शायद इनमें लंबित मुकदमों का निपटारा तेजी से करना संभव होगा.
पृष्ठभूमि
सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) अधिनियम, 1956 में मूलतः अधिकतम 10 न्यायाधीशों (मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर) के पदों का प्रावधान किया गया था. कालांतर में संशोधनों यह संख्या 1960 में 13 और 1977 में 17 कर दी गई थी. 1988 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 26 कर दी गई थी. तत्पश्चात् 2009 में यह संख्या बढ़ाकर 31 कर दी गई जो अभी तक चल रही थी.
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने ही ऐसा अनुरोध किया था —
भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर सर्वोच्च न्यायालय में जजों की संख्या में वृद्धि करने के लिए माँग की थी. CJI रंजन गोगोई ने हाल ही में कहा था कि न्यायाधीशों की संख्या में कमी के चलते कानून के सवालों से सम्बंधित कई मामलों में निर्णय लेने के लिए आवश्यक संवैधानिक पीठों का गठन नहीं किया जा रहा है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से यह भी अनुरोध किया था कि वे उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 साल तक बढ़ाने और सर्वोच्च न्यायालय की क्षमता को बढ़ाने पर विचार करें. CJI ने 2 अलग-अलग पत्र लिखे थे जिसमें लंबित मामलों के बैकलॉग की समस्या से निपटने हेतु आग्रह भी किया गया है.
संविधान क्या कहता है?
संसदीय विधान के माध्यम से ही ये क्षमता बढ़ाई जा सकती है.
- संविधान के अनुच्छेद 224 (3) और 124 (2) के अनुसार उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के मामले में 65 वर्ष है.
- सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी.
- सर्वोच्च न्यायालय में जजों की क्षमता संसद द्वारा अनुच्छेद 124 (1) के अनुसार तय की जायेगी जिसमें कहा गया है कि भारतीय संविधान निर्दिष्ट करता है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भारत का मुख्य न्यायाधीश तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश को मिलाकर 31 न्यायाधीश होने चाहिएँ और सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना, गठन, अधिकारिता, शक्तियों के विनिमय से सम्बंधित विधि निर्माण की शक्ति भारतीय संसद को प्राप्त है.
- संविधान के अनुच्छेद 128 और 224A के अनुसार सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को नियुक्तियाँ प्रदान की जाती हैं.
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क्या मात्र न्यायाधीशों की संख्या बढ़ा देने से परिस्थिति में सुधार आ जाएगा?
जजों की अनुमोदित संख्या बढ़ाने के साथ निचली अदालतों में आधारभूत ढांचे को भी सुदृढ़ करना होगा. रिक्त पदों पर जजों की नियुक्ति में विलम्ब होने पर भी सरकार व सुप्रीम कोर्ट एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं. सरकार ने हाल में लोकसभा में कहा था, निचली अदालतों में जजों का चयन व नियुक्ति हाईकोर्टों और संबंधित राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई आशा करते हैं कि केंद्र सरकार उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र मौजूदा 62 से बढ़ा कर 65 करने के उनके प्रस्ताव को भी स्वीकार कर लेगी. इसका तात्कालिक लाभ यह यह सकता है कि तीन वर्ष तक सेवानिवृत्ति रुक जाएगी. इस अंतराल में बेहतर जजों से खाली पदों को भरा जा सकता है. नए मुख्य न्यायाधीश इस प्रक्रिया को जारी रख कर भारतीय न्यायापालिका का चेहरा बदल सकते हैं.
चिंता का विषय
आज की तिथि में 24 उच्च न्यायालय में 43 लाख से अधिक मामले लंबित हैं और इसके पीछे प्रमुख कारण है कि हाई कोर्ट जजों की कमी. वर्तमान में 399 पद या 37% स्वीकृत पद खाली हैं. वर्तमान रिक्तियों को तुरंत भरने की जरूरत है. हालाँकि सभी हितधारकों द्वारा किए गए सर्वोत्तम कोशिशों के बाद भी कार्य-न्यायाधीश- क्षमता को स्वीकृत न्यायाधीश क्षमता के करीब लाना न्यायाधीशों को नियुक्त किए बिना असंभव है.
एक न्यायाधीश को विकसित होने में समय लगता है और जब तक वह अभ्यास करने के लिए समृद्ध अनुभव के आधार पर नवीन विचारों को रखने की स्थिति में होता है, वह स्वयं को सेवानिवृत्ति के निकट पाता है. यदि सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय का न्यायाधीश 62 वर्ष से अधिक आयु पर वैधानिक न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्य कर सकते हैं तो वे 65 वर्ष की आयु तक उच्च न्यायालय में भी कार्य कर सकते हैं. आशा है कि इस सरकार के इस कदम से अधिक कार्यकाल के लिए अधिक अनुभव वाले न्यायाधीशों की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित होगी.
अदालतों में दीवानी और आपराधिक मामलों की तादाद बीते कुछ वर्षों के दौरान तेजी से बढ़ी है. इस पर समय-समय पर चिंता तो जताई जाती रही है.
लंबित मामलों की बढ़ती संख्या के मुद्दे पर अक्सर न्यायपालिका को आलोचना का शिकार होना पड़ता है. परन्तु वह उसके लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार नहीं है. न्यायतंत्र को प्रभावी बनाने में कार्यपालिका की भी जिम्मेदारी है.
क्या किया जाना चाहिए?
- अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या कम करने के लिये सरकार को उच्च न्यायालयों के साथ ही अधीनस्थ न्यायपालिका में भी न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने और पहले से रिक्त पदों पर नियुक्तियां करने के काम को गति प्रदान करना चाहिए.
- साथ ही अदालतों में बुनियादी सुविधायें बढ़ाने पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए.
- इसके अतिरिक्त, उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के पद रिक्त होने से कम से कम छह महीने पहले ही ऐसे पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया भी शुरू की जानी चाहिए. अगर न्यायाधीशों के रिक्त पदों की संख्या न्यूनतम रखनी है तो इसके लिये उच्च न्यायालय की कोलेजियम को छह महीने पहले इसकी कवायद शुरू करनी होगी और मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल की संतुति की औपचारिकता के पश्चात् अपनी सिफारिशें समय से उच्चतम न्यायालय भेजनी होंगी.