नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने इस निर्णय के आलोक में सभी हितधारकों को स्पष्ट कर दिया है कि सामुद्रिक ऊर्जा के विभिन्न रूपों, जैसे – ज्वारीय, तरंगीय, समुद्री ताप ऊर्जा परिवर्तन आदि का प्रयोग करके उत्पन्न की गई ऊर्जा को अब नवीकरणीय ऊर्जा माना जाएगा और यह ऊर्जा अ-सौर नवीकरणीय क्रय दायित्व (Renewable Purchase Obligations – RPO) के लिए योग्य माना जाएगा.
नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत के रूप में समुद्रों की सम्भावना
- धरातल के 70% भाग पर समुद्र फैले हुए हैं और इस प्रकार ये विश्व के सबसे बड़े सौर ऊर्जा के संग्राहक हैं.
- समुद्र से दो प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है – तापीय ऊर्जा (सूर्य के ताप से) और यांत्रिक ऊर्जा (ज्वारों और तरंगों से). ये ऊर्जाएँ प्रदूषणकारी नहीं हैं और साथ ही विश्वसनीय एवं बहुत पूर्वानुमेय हैं.
- ज्वार ऊर्जा : ज्वार ऊर्जा को वैकल्पिक ऊर्जा का एक अच्छा साधन माना जाता है. इसमें समुद्र के ज्वार और भाटा का लाभ उठाकर बिजली उत्पन्न की जाती है.
- समुद्री तरंग ऊर्जा : इसमें समुद्र की तरंगों की शक्ति का उपयोग कर बिजली बनाई जाती है. समुद्र की सतह पर पानी का अनुदैर्घ्य संचलन होता है. तरंग ऊर्जा के लिए इसी संचलन का उपयोग किया जाता है.
- समुद्री तापीय ऊर्जा : गहरे समुद्र की तुलना में उसकी बाहरी सतह सूरज की धूप से अधिक गर्म होती है. इस प्रकार दोनों में तापान्तर देखा जाता है. इसी तापान्तर से तापीय ऊर्जा बनती है.
- समुद्री धारा ऊर्जा : इस ऊर्जा को उत्पन्न करने के लिए समुद्र के अन्दर टर्बाइन लगा दिए जाते हैं जो समुद्री धरातल से जुड़े हुए होते हैं.
- ओस्मोटिक ऊर्जा : यह ऊर्जा लवण जल भंडार एवं मृदु जल भंडार के बीच में एक मेम्ब्रेन डालकर जल की गति से उत्पन्न की जाती है.
भारत में सामुद्रिक ऊर्जा की संभावनाएँ
भारत में अनुमानतः 12,455MW बिजली ज्वार ऊर्जा से उत्पन्न हो सकती है. यह ऊर्जा खम्भात और कच्छ क्षेत्रों और बड़े-बड़े बैकवाटरों में बराज तकनीक के माध्यम से उत्पादित हो सकती है.
जहाँ तक तरंग ऊर्जा का प्रश्न है, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कुल मिलाकर भारत के समुद्री तटों पर कम से कम 40,000MW बिजली बनाई जा सकती है. यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि हम जैसे-जैसे उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे तरंग ऊर्जा की सक्रियता बढ़ती जाती है.
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