सरकार का कहना है कि मनमोहन सिंह सरकार द्वारा जारी किए गए तेल बांडों (oil bonds) ने तेल विपणन कंपनियों की वित्तीय स्थिति को कमजोर कर दिया है और सरकार के राजकोषीय बोझ को बढ़ा दिया है. वर्तमान सरकार का कहना है कि UPA सरकार ने पेट्रोलियम बांड की बकाया राशि का भुगतान नहीं किया था. कांग्रेस सरकार ने 2014 से पहले पेट्रोल (Petrol) की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए 1.34 लाख करोड़ के तेल बांड जारी किए. अब वर्तमान सरकार को इस वर्ष तेल के लिए 20,000 करोड़ का भुगतान करना होगा. बांड की परिपक्वता अवधि 15 वर्ष है. अब वर्तमान सरकार उस बकाया राशि का ब्याज और मूलधन चुका रही है जिससे पेट्रोल की दरों में वृद्धि हुई है. यह एक तर्क है जिसे 2018 के बाद से प्रायः दोहराया गया है.
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लॉकडाउन खुलने और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की माँग में बढ़ोतरी के साथ, इसकी कीमत भी बढ़ रही है और इस बढ़ोतरी ने भारत में ईंधन की खुदरा कीमत को पिछले सभी रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. पेट्रोल और डीजल की कीमतों में तीव्रता से बढ़ोतरी के कारण, केंद्र सरकार पर ईंधन पर उच्च करों में कटौती का दबाव बन रहा है. पेट्रोल के खुदरा बिक्री मूल्य का 58 प्रतिशत और डीजल के खुदरा बिक्री मूल्य का 52 प्रतिशत कर है. हालाँकि, सरकार करों में कटौती करने के लिए अनिच्छुक ही रहती है क्योंकि पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है, विशेष रूप से ऐसे समय में जब महामारी ने कॉर्पोरेट कर जैसे अन्य करों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है.
तेल बांड क्या हैं? – Oil Bond in Explained in Hindi
- केंद्र सरकार के पास तेल कंपनियों, उर्वरक कंपनियों, भारतीय खाद्य निगम जैसी संस्थानों को विभिन्न बॉण्ड जारी करने का अधिकार है.
- तेल की बढ़ती कीमतें आम जनता के सिर पर न पड़ें इसके लिए केंद्र सरकार सब्सिडी दिया करती थी अर्थात् अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में इसकी कीमतें चाहे जो भी हों देश में सरकारें अपने अनुसार उसे नियंत्रण कर सकती थीं.
- तेल बांड सरकार द्वारा तेल विपणन कंपनियों को नकद सब्सिडी के बदले में जारी विशेष प्रतिभूतियां हैं.
- ये बॉन्ड 15 से 20 साल की अवधि जैसे लंबे समय के लिए होते हैं और इसके लिए कंपनियों को ब्याज भी दिया जाता है ताकि महंगे तेल का बोझ जनता पर न पड़े.
- तो अपने राजकोष पर बोझ डाले बग़ैर केंद्र की यूपीए सरकार ने 2005 से लेकर 2010 तक तेल कंपनियों को ऑयल बॉण्ड जारी किए अर्थात् तात्कालीन सरकार को कैश नहीं खर्च करने पड़े.
- तेल की बढ़ती कीमतों का बोझ आम जनता के सिर पर न पड़े, इसके लिए पहले केंद्र सरकार सब्सिडी दिया करती थी अर्थात् अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमतें चाहे जो भी हों देश में सरकारें अपने अनुसार उसे नियंत्रण कर सकती थीं.
सरकारें ऑयल बॉण्ड क्यों जारी करती हैं?
तेल के दामों पर नियंत्रण करने के लिए सरकार तेल कंपनियों को इस तरह के बांड जारी करती है जिससे उस पर भी बोझ न पड़ जाए या हम यूँ कह सकते हैं कि एक तरह से राजकोषीय भोझ को टालने के लिए सरकार द्वारा ऐसा कदम उठाया जाता है जिसका भुगतान भविष्य में किया जाता है. सरकार इन बांड का सहारा तब लेती हैं जब वे खतरे में होती है अर्थात् उनका राजकोषीय घाटा अप्रत्याशित कारणों से बहुत बढ़ जाता है. उनकी आमदनी कम और खर्चा अचानक अधिक हो जाता है.
इस प्रकार के बांडों को केंद्रीय बजट में “अप्रत्यक्ष व्यय” (‘below the line’ expenditure) माना जाता है और इसका उस वर्ष के वित्तीय घाटे पर कोई असर नहीं पड़ता है, लेकिन वे सरकार के समग्र ऋण को बढ़ाते ही हैं. हालांकि, इन बांडों का ब्याज भुगतान भविष्य के वर्षों में राजकोषीय घाटे की गणना का एक हिस्सा बन जाता है.
पृष्ठभूमि
- तेल की बढ़ती कीमतों का राजकोष पर बोझ न पड़े इसके लिए वर्ष 2005 से 2010 के बीच केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने तेल कंपनियों को ऑयल बॉन्ड निर्गत किए. इसका लाभ यह हुआ कि तत्कालीन सरकार को कंपनियों को नकद सब्सिडी नहीं देनी पड़ी और यह आगामी कई सालों में किश्तों में चुकाना था.
- वर्ष 2008 में आई आर्थिक मंदी के पश्चात् जब यूपीए सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया तो इस जून 2010 से ही ऑयल बॉन्ड निर्गत किया जाना भी बंद कर दिया गया, या कह सकते हैं कि इसकी जरूरत ही नहीं रह गई.
- पहले पेट्रोल व डीज़ल की कीमतें केंद्र सरकार तय करती थी. वह तेल विपणन कंपनियों को उनका घाटा पाटने के लिए सब्सिडी देती थी. बाद में आर्थिक उदारीकरण के नाम पर 2010 में पेट्रोल की कीमतों से यह व्यवस्था हटा ली गई, तेल विपणन कंपनियों से कहा गया कि वे बाज़ार की दर पर तेल बेचें.
- इसके बाद अक्टूबर 2014 में अर्थात् मोदी सरकार के आने के बाद डीज़ल पर से भी यह व्यवस्था हटा ली गई. साल 2017 में डायनमिक फ़्यूल प्राइसिंग सिस्टम लागू कर दिया गया. इसके बाद पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें नित्य परिवर्तित होने लगीं. हर रोज़ सुबह 6 बजे से पेट्रोल पंप पर नई कीमतों के मुताबिक यह ग्राहकों तक पहुंचती है.
महत्त्वपूर्ण जानकारी
केंद्र पेट्रोल (Petrol) और डीजल पर उत्पाद कर लगाता है, जबकि राज्य उस पर वैट लगाते हैं. सरकार को इस उत्पाद शुल्क का उपयोग पीएम गरीब कल्याण योजना जैसी योजनाओं के लिए करना चाहिए जिससे जरूरतमंद लोगों को मुफ्त खाद्यान्न, पीएम आवास योजना, उज्ज्वला योजना का लाभ प्राप्त हो सके.
Video Speech in Hindi
2018 में बीजेपी ने अपने official twitter account के जरिये एक बात रखी थी जिसमें कहा गया था कि पेट्रोलियम की कीमतों पर अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा क्या और किया क्या? वे कहते थे कि पैसे पेड़ों पर नहीं उगा करते और 1.3 लाख करोड़ रुपये के ऑयल बॉण्ड का बिल बिना भरे ही वो चले गए. मोदी सरकार ने वो सारे बिल ब्याज़ समेत भरे. ऐसा कहना है,मेरा नहीं है, ऐसा कहना है BJP के official twitter account का…2018 में.
आप जानते ही होंगे कि Sansar Daily Current Affairs – DCA में मैंने कई बार चर्चा की है इस शब्द के बारे में – ऑइल बांड. आज मैं इस विडियो के माध्यम से संक्षेप में आपको समझाने की कोशिश करने वाला हूँ कि ऑइल बांड क्या है?
दरअसल केंद्र सरकार के पास तेल कंपनियों, उर्वरक कंपनियों, भारतीय खाद्य निगम जैसी संस्थानों को विभिन्न बॉण्ड जारी करने का अधिकार है.
भारत में पेट्रोल, डीज़ल के जो price होते हैं उनको बढ़ाना हमेशा से ही राजनीतिक तौर पर एक संवेदनशील मुद्दा माना जाता रहा है. तेल की बढ़ती कीमतें आम जनता के सिर पर न पड़ें इसके लिए केंद्र सरकार सब्सिडी दिया करती थी. यानी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इसकी कीमतें चाहे जो भी हों देश में सरकारें अपने मुताबिक उसे कंट्रोल कर सकती थीं.
अब सवाल यह उठता है कि कण्ट्रोल कैसे किया करती थीं? तो इसके लिए हमें पृष्ठभूमि में जाना पड़ेगा यानी BJP सरकार के पहले जो UPA सरकार थी, उनके क़दमों के विषय में जानना पड़ेगा कि वो ऐसा करती थी जिससे अभी के सरकार को इसका खामयाजा भुगतना पड़ रहा है.
यहाँ पर एक बात और बता दूँ कि UPSC एसपरेंट होने के नाते —आप यह सब में बिल्कुल मत पड़ियेगा कि UPA सरकार ठीक थी—BJP सरकार अच्छा काम नहीं कर रही…या BJP सरकार अच्छा कदम उठा रही है और UPA सरकार बेकार थी…
यह सब हमारा काम नहीं है सोचना., हमें politics में नहीं पड़ना, सिर्फ सच को समझना है और पेपर में जरूरी आँकड़ों को परीक्षक के सामने रखना ही हमारा एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए.
तो हुआ यूँ कि पूर्ववर्ती सरकार अर्थात् UPA सरकार तेल कम्पनियों को ऑइल बांड जारी करती थी. ऑयल बॉण्ड वो सिक्योरिटी होती हैं, जिसे सरकारें नकद के बदले तेल कंपनियों को दिया करती थीं. अब आप पूछियेगा कि बांड क्या होता है? इसके बारे में भी मैंने अपने ब्लॉग पर लिख रखा है, आप इस विडियो के description में जाकर इस विषय में पढ़ सकते हैं क्योंकि यदि इसके बारे में लम्बा चर्चा करूँगा तो विडियो काफी लम्बी हो जायेगी.
फिर भी संक्षिप्त और सरल भाषा में कहूँ तो बांड वो कागजात होते हैं जिनको किसी को नकद के बदले दिया जाता है….और बांड प्राप्त करने वाले किसी विशेष अवधि के बाद उसको cash करा सकते हैं…with interest or without interest, वो deal पर निर्भर करता है.
यानी यदि मेरे पास नकद नहीं है और आप मेरे सर पर सवार हो जाते हैं कि मुझे कैश दो —कैश दो….तो मैं आपसे कहूँगा भैया तू यह बांड रख —इसको बाद में भंजा लेना…तुझे सूद के साथ पैसा मिल जाएगा क्योंकि अभी मेरे पास कुछ भी पैसे नहीं हैं चाहे तू मेरा कुछ भी उखाड़ ले मैं नहीं दे पाऊंगा तो नहीं दे पाउँगा….तो यह है बांड. मगर मैंने सिर्फ उदाहरण के लिए बताया है …आम आदमी के पास बांड-वांड नहीं होंते.
तो मैं ऑइल बांड की बात कर रहा था ….तो कुछ साल पहले UPA सरकार ने oil companies को Oil bonds देकर झुनझुना थमाया था और इसमें सरकार द्वारा oil companies को कहा गया कि तू आम जनता को सही रेट पर तेल दे….चाहे वर्ल्ड मार्किट में जो भी दाम हो……तू घाटे में ही तेल बेच…मगर आम जनता को पॉकेट से ज्यादा नहीं देना पड़े…और तुझे जो घाटा होगा उसे मैं सूद समेत बाद में लौटाऊँगा और इसके ऐवज में तू मेरा यह बांड रख …एक प्रमाण के रूप में …
तो वही कागजात ऑइल बांड कहलाता है जिसकी आये दिन चर्चा होती रहती है अखबारों में…ये बांड काफी long term वाला था—यानी लम्बी अवधि वाला था….जिसको बहुत बाद में जाकर कैश कराया जा सकता था. पर इधर हुआ यूँ कि UPA सरकार की 2014 में विकेट गिर गई और आ गई BJP सरकार…तो जाहिर सी बात है कि यदि BJP सरकार ज्यादा टिक गई तो अब ऑइल कम्पनियां उससे ही पैसे की माँग करेगी वो भी सूद सहित….और वही हुआ. BJP सरकार काफी टिक भी गई और oil companies ने अपने पैसे मांगने के लिए भीड़ भी लगा दी.
एक चीज बताना भूल गया मैं कि UPA सरकार के दौरान देश में आर्थिक मंदी आ गई…उसके बाद जब यूपीए सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का निर्णय लिया यानी इसे डीरेग्युलेट कर दिया गया. तो फलस्वरूप हुआ यह किर ऑयल बॉण्ड भी जारी किया जाना जून 2010 से ख़त्म हो गया.
सरकारी नियंत्रण समाप्त करने का अर्थ था कि जैसे-जैसे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें बढ़ेंगी, देश में तेल कंपनियां उसी हिसाब से उनकी कीमतें बाज़ार में रखेंगी. यानी तेल की कीमतों का बोझ सीधे आम उपभोक्ता के कंधों पर आ गया.
हाँ तो मैं कह रहा था कि 2014 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ और मोदी सरकार ने उसी वर्ष अक्तूबर में डीज़ल को भी सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया.
शुरू-शुरू में हर तीन महीने पर इनकी कीमतों में बदलाव हुआ करता था लेकिन 15 जून 2017 से डायनामिक फ्यूल प्राइस सिस्टम को लागू कर दिया गया जिससे रोज़ ही तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव होने लगा. अब हर रोज़ सुबह 6 बजे से पेट्रोल पंप पर नई कीमतों के मुताबिक यह ग्राहकों तक पहुँचने लगी.
आपको एक UPSC एसपरेंटके रुप में यह भी जानना चाहिए कि तेल का सफ़र आप तक जा कर कैसे सम्पन्न होता है….तो संक्षेप में इसे भी बता दूँ कि पहले रीफाइनरी के जरिये कच्चे तेल से पेट्रोल,डीजल और अन्य पेट्रोलियम पदार्थ निकाले जाते हैं, फिर आता है नंबर तेल कम्पनियों का…ये अपना मुनाफा बनाकर पेट्रोल पम्प तक तेल पहुँचाती हैं….और फिर पेट्रोल पम्प का मालिक पहले से fixed commission rate लगा कर अपना लाभ कमाता है …और फिर हमारी कार और बाइक की टंकी में यह तेल आता है—जिसमें हम excise duty और VAT टैक्स दोनों pay करते हैं.
अब यदि सरकार के बजट आंकड़ों को देखें तो पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के दौरान जारी किए क़रीब 1.31 लाख करोड़ के ऑयल बॉण्ड का भुगतान तेल कंपनियों को मार्च 2026 तक किए जाने हैं….सुनने में ही काफी बड़ा अमाउंट लगता है. अब सरकार इसे कैसे मैनेज करेगी, यह तो वही जाने.
खैर आपको मुझे यह बताना था कि ऑइल बांड होता क्या है—मुझे politics में नहीं पड़ना, कि कौन सही है और कौन गलत—हमें हमेशा UPSC एसपरेंटके चश्में से इन सब चीजों को देखना है न कि political चश्मे से…
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तो चलिए मिलते हैं नेक्स्ट विडियो में कुछ ऐसे ही information के साथ..जय हिन्द…