What is Permanent Commission for Women – Explained in Hindi
सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार की आपत्तियों को किनारे रखते हुए आदेश दिया है कि सेना के 10 स्ट्रीमों में कार्यरत महिला अधिकारियों को सभी दृष्टि से उनके पुरुष सहकर्मियों के बराबर रखा जाए.
पृष्ठभूमि
सर्वोच्च न्यायालय ने जिस वाद में यह आदेश दिया वह सबसे पहले 2003 में दिल्ली उच्च न्यायालय में महिला अधिकारियों ने दायर किया था. वहाँ उन्हें 2010 में मनचाहा आदेश भी मिला था, परन्तु उस आदेश का पालन नहीं किया गया और भारत सरकार ने उसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.
महिला अधिकारियों की आपत्ति क्या थी?
सेना के पुरुष शोर्ट सर्विस कमीशन अधिकारी दस वर्ष की सेवा के अनंतर स्थायी कमीशन का विकल्प दे सकते थे. परन्तु यह विकल्प महिला अधिकारियों को उपलब्ध नहीं था. इस प्रकार वे किसी प्रकार की कमांड नियुक्ति से बाहर रखी जाती हैं. साथ ही उनको सरकारी पेंशन नहीं मिलता है क्योंकि 20 वर्ष की सेवा पूरी करने के उपरान्त भी सरकारी पेंशन देय होती है.
भारत सरकार का मंतव्य था कि एक तो महिलाएँ कठिन जगहों पर काम करने के लिए शारीरिक रूप से सक्षम नहीं होतीं, वहीँ दूसरी ओर उनके साथ मातृत्व और बच्चों की देखभाल की समस्या रहती है. साथ ही परिवार से अलग तैनाती बच्चों की पढ़ाई, गर्भावस्था के कारण काम से लम्बी अवधि तक दूर रहना आदि ऐसी बाते हैं जिनके कारण उनको स्थायी कमीशन नहीं मिलना चाहिए.
एक आपत्ति यह भी थी कि सेना मुख्यतः पुरुषों की सेवा है जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाला सैनिक महिला अधिकारी के आदेश को मानने में कोताही बरत सकता है.
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपान का निहितार्थ
- अब महिला अधिकारी सभी कमांड नियुक्तियों के लिए योग्य हो जाएँगी और आगे प्रोन्नति के लिए उनके रास्ते खुल जाएँगे.
- इसका एक अर्थ यह भी है कि जूनियर रैंक की महिला अधिकारी वही प्रशिक्षण पाठ्यक्रम कर सकती हैं जो पुरुष करते हैं. अब उन्हें संवेदनशील स्थानों पर नियुक्त किया जा सकता है जो उच्चतर प्रोन्नति के लिए आवश्यक होता है.
Tags : What was the issue with women officers? What is Permanent Commission? Significance and implications of this judgment.