विश्व पर्यावरण दिवस की वैश्विक मेजबानी इस बार भारत को मिली है और हमारे कन्धों पर अब दुनिया को प्लास्टिक से मुक्त बनाने की जिम्मेदारी है. आज हम प्लास्टिक के जानलेवा असर की बात करेंगे. प्लास्टिक हमारी जिंदगी का आवश्यक हिस्सा बन चुका है. प्लास्टिक ने हमारा जीवन जितना आसान किया है उतना ही इसकी वजह से हमें कई मुश्किलों का सामना कर पड़ रहा है. प्लास्टिक का प्रयोग हम अपने दैनिक जीवन में रोज जाने-अनजाने करते रहे हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लास्टिक हमारे जीवन के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है. खासकर वह प्लास्टिक जिसे एक बार इस्तेमाल करके फेक दिया जाता है जिसमें थैलियाँ, पैकेजिंग और पानी की बोतलें शामिल होती हैं. अगर हमने प्लास्टिक के अति-प्रयोग को रोका नहीं तो शायद प्लास्टिक किसी दिन हमारे अंत की वजह भी बन जाएगा. चलिए जानते हैं प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में. इस essay को Hindi medium के स्टूडेंट ज्यादा से ज्यादा शेयर करें जिससे कि हम सरकार के Beat Plastic Pollution की मुहिम में कम से कम अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हो सकें.
दैनिक जीवन में प्लास्टिक का आक्रमण
हर इंसान प्लास्टिक का किसी न किसी रूप में प्रयोग जरुर कर रहा है. हवा, पानी के अलावा जो चीज हमारे जीवन पर सबसे अधिक असर डाल रही है वह है प्लास्टिक. अक्सर हमारे दिन की शुरुआत प्लास्टिक से बनी कुर्सी पर बैठकर, प्लास्टिक की मेज पर प्लास्टिक के प्लेट में परोसे गए नाश्ते से होती है. हम जिस कार या वाहन में घर से निकलते हैं, उसे बनाने में प्लास्टिक का अच्छा-खासा इस्तेमाल होता है. दफ्तर पहुँच कर जिस कंप्यूटर पर हम काम करते हैं, उसका एक बड़ा हिस्सा प्लास्टिक है. यहाँ तक जिस की-बोर्ड से मैं टाइप कर रहा हूँ, वह भी प्लास्टिक का ही बना है. प्लास्टिक यानी पोलिमर की लोकप्रियता की वजह इसकी सरलता से उपलब्धता, कम कीमत, अधिक टिकाऊपन और हल्का वजन है. इसके अलावा आसानी से इसे किसी भी रूप में ढाला जा सकता है. इस पर हवा, पानी या मौसम असर नहीं करते. यह न आसानी से टूटता है और न गलता है. लेकिन सच मानिए तो इसकी विशेषता ही आज पूरे पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हो रही है.
प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग
1950 में दुनिया-भर में प्लास्टिक उत्पादन 1.5 million टन था. 2015 आते-आते यह 322 million टन हो गया. यह हर साल औसतन 8.6% की दर से बढ़ रहा है. पिछले कुछ वर्षों में जैसे-जैसे प्लास्टिक का प्रयोग बढ़ा है, वैसे-वैसे इसकी वजह से दिक्कतें भी बढ़ी हैं. हमारे मोहल्ले की नालियाँ और नहरें प्लास्टिक से भरे पड़े हैं. पशु-पक्षी और जलीय प्राणी इसकी कीमत चुका रहे हैं. जलीय जीवन, पर्यावरण और पारिस्थितिकी को प्लास्टिक से जो नुक्सान हो रहा है उसकी भरपाई कर पाना अब मुश्किल प्रतीत हो रहा है. खासकर समुद्री जल को इससे बेहद ज्यादा नुक्सान हुआ है. समुद्र में पन्नी, पैकेजिंग और बोतल के अलावा मछुवारों के जाल, मशीनों के टुकड़े और खिलौनों के ढेर तैर रहे हैं. जल के बहाव के साथ इकट्ठे हुए प्लास्टिक के ढेर किसी बड़े टापू से नजर आते हैं. इसके आलावा पानी में माइक्रो-प्लास्टिक भी हैं जो आसानी से नजर नहीं आते. आशंका जताई जा रही है कि 2050 तक समुद्र में 850 metric ton प्लास्टिक कचड़ा इकठ्ठा हो जायेगा. 2050 में सभी समुद्र और महासागरों में मौजूद मछलियों का अनुमानित वजन सिर्फ 821 million metric ton ही रह जाएगा. यानी समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक की मात्रा होगी. अर्थात् हम एक ऐसे प्लास्टिकमय भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ हम धरती में बिखरे प्लास्टिक की ढेर में हम दफन हो जायेंगे.
प्रदूषित होता समुद्र
प्लास्टिक अपने उत्पादन से लेकर इस्तेमाल तक सभी अवस्थाओं में पर्यावरण और समूचे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है. प्लास्टिक का निर्माण पेट्रोलियम पदार्थों से प्राप्त तत्वों और रसायनों से होता है. इसलिए यह अपने उत्पादन की अवस्था से लेकर प्रयोग के दौरान और कचरे के रूप में फेके जाने तक कई तरह की रासायनिक क्रियाएँ करके जहरीला असर पैदा करता है जो मनुष्यों से लेकर जीव-जन्तुओं तक के लिए घातक है. प्लास्टिक कचरे का केवल 15% हिस्सा ही धरती की सतह पर बचा रह पाता है और बाकी सारा कचरा समुद्र में जाकर जमा हो जाता है. इसे खाकर न केवल समुद्री जीव-जन्तु मर रहे हैं बल्कि यह समुद्री नमक में भी जहर घोल रहा है.
वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ हर साल करीब 8 million ton प्लास्टिक कचरा जमीन से समुद्र में जाता है. प्लास्टिक के ये कचरे जमीन से समुद्र में कई तरह से पहुँचते हैं. इनमें समान्यतः माइक्रो-प्लास्टिक के रूप में प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े, फाइबर के रूप में सिंथेटिक कपड़ों से निकले प्लास्टिक के धागे, फोम के रूप में खाने की चीजें और चाय-कॉफ़ी के कप के अलावा साबुन और कॉस्मेटिक के माइक्रो-बीड्स शामिल होते हैं. सीवर और नालियों के जरिये प्लास्टिक के कचरे बहकर समुद्र में जाते हैं. वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की वजह से भी बहुत-सारा प्लास्टिक कचरा समुद्र में पहुँचता है. बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन और उससे जुड़ी गतिविधियों के कारण भी बहुत-सारे प्लास्टिक कचरे पैदा होते हैं जो आखिरकार समुद्र में ही पहुँचते हैं. फिशिंग और कोस्टल टूरिज्म भी समुद्र में इकठ्ठा हो रहे प्लास्टिक कचरे के लिए जिम्मेदार हैं.
प्रतिबंध आवश्यक क्यों?
प्लास्टिक के प्रदूषण और प्लास्टिक के कचरे के प्रबंधन आज चिंता के विषय बने हुए हैं क्योंकि इनका प्रत्यक्ष प्रभाव जलवायु और पर्यावरण पर पड़ता है. विश्व-भर में प्रतिवर्ष लाखों टन प्लास्टिक उत्पादित हो रहे हैं जो जैविक रीति से नाशवान नहीं होते. इसलिए विश्व-भर में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को बंद करने के लिए रणनीतियाँ अपनाई और लागू की जा रही हैं.
Statistics
- हर साल पूरी दुनिया में 500 अरब प्लास्टिक बैगों का इस्तेमाल किया जाता है.
- हर साल 8 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में पहुँचता है जो हर मिनट एक कूड़े से भरे ट्रक के बराबर प्लास्टिक कचरे के बराबर है.
- पिछले एक दशक के दौरान उत्पादित की गई प्लास्टिक की मात्रा पिछली एक शताब्दी/100 वर्ष में उत्पादित की गई प्लास्टिक की मात्रा से ज्यादा थी.
- हम जो प्लास्टिक इस्तेमाल करते हैं उसमें से 50% प्लास्टिक का सिर्फ एक बार ही उपयोग होता है जो सबसे ज्यादा खतरनाक है.
- हर मिनट 10 लाख प्लास्टिक की बोतलों की खरीददारी होती है.
- इंसान जितना कचरा उत्पादित कर रहा है उसमें से 10% प्लास्टिक कचरा ही है.
भारत की समुद्री रेखा 7500 km. से ज्यादा है. देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा समुद्र से लगते इलाकों में रहता है जो प्लास्टिक से उपजे प्रूदषण का सबसे अधिक सामना कर रहा है. समुद्र के किनारे बसे कुछ महत्त्वपूर्ण इलाके हैं –
- पोरबंदर
- सोमनाथ
- भवनगर
- सूरत
- दमन
- मुंबई
- गोवा
- उडुप्पी
- कोच्चि
- तिरुवनंतपुरम
- रामेश्वरम
- पुदुचेरी
- चेन्नई
- विशाखापत्तनम
- पुरी
प्लास्टिक का वर्गीकरण
प्लास्टिक का आकार के हिसाब से वर्गीकरण किया जाता है –
- 25 mm से अधिक – मैक्रोप्लास्टिक
- 5-25 mm – मेसोप्लास्टिक
- 0.1 – 5 mm – माइक्रोप्लास्टिक
जहाँ मैक्रोप्लास्टिक समुद्र में बड़े ढेर के रूप में तैर रहे हैं वहीं माइक्रोप्लास्टिक पानी में घुल जाते हैं और हमारी खाद्य श्रृंखला को प्रदूषित करते हैं.
दुनिया भर में हर साल लाखों टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है. अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका “साइंस एडवान्सेस रिपोर्ट” के मुताबिक़ लाखों टन उत्पादित प्लास्टिक में केवल 9% ही रिसायकल की जाती हैं. 12% प्लास्टिक जला दी जाती हैं और हमारे हवा को जहरीला बनाती हैं. जबकि 79% इधर-उधर बिखरकर हमारे पर्यावरण को दूषित करती हैं.
प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम के लिए भारत द्वारा किये गये प्रयास
- अभी तक प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए भारत के 22 राज्यों और संघीय क्षेत्रों ने कमर कस ली है. इसके लिए उन्होंने प्लास्टिक के एकल प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है.
- हाल ही में पुडुचेरी ने मार्च 1, 2019 से एकल प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया है.
- इन सभी प्रयासों के सकारात्मक परिणाम हुए हैं. उदाहरण के लिए, बेंगलुरु में जहाँ पहले प्रत्येक दिन दो टन प्लास्टिक कचरे जमा होते थे, अब वहाँ 100 किलो से भी कम ऐसे कचरे निकलते हैं.
- लोगों ने स्वेच्छा इस दिशा में काम किये हैं, जैसे – प्लास्टिक कचरा कम करना, प्लास्टिक की चीजों को फिर से उपयोग में लाना और कचरे को छाँटना आदि.
- प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम के लिए किये गये भारत के संकल्प को Beat Plastic Pollution नाम से जाना जाता है जिसको विश्व-भर में सराहना मिली है. विदित हो कि विगत वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर भारत ने यह संकल्प लिया था कि वह 2022 तक एकल प्रयोग वाले प्लास्टिक का पूर्ण उन्मूलन कर देगा.
प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के तरीके
- प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल को बंद करना होगा. इसके बदले हम कपड़े या इको-फ्रेंडली बैग का इस्तेमाल कर सकते हैं.
- प्लास्टिक प्लेट और चम्मच ये दोनों बहुतायत से इस्तेमाल हो रहे हैं. हम इनकी जगह स्टील या धातु के प्लेट का इस्तेमाल कर सकते हैं.
- आजकल कपड़ों में भी सिंथेटिक फैब्रिक का प्रयोग हो रहा है. ये सस्ते और आकर्षक होते हैं. इनकी जगह अगर हम कॉटन के कपड़ों का इस्तेमाल करें तो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक बड़ा कदम होगा.
- बच्चों के खिलौने को प्लास्टिक के नहीं बल्कि लकड़ी या दूसरे इको-फ्रेंडली चीजों से बनानी चाहिए.
- होटल या ऑनलाइन आर्डर के जरिये आपके पास जो खाना पहुँचता है उसकी पैकिंग में प्रायः प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है. इसलिए कोशिश करें कि खाना पैक न कराएँ.
- हम हर मिनट 10 लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीद रहे हैं जो पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हैं. कोशिश करें कि पुनः प्रयोग में लाये जाने वाले बोतलों का इस्तेमाल करें.
- पैकेज फ़ूड में प्लास्टिक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है. इसलिए पैकेज फ़ूड की जगह स्थानीय उत्पादों को खरीदने की आदत डालें.
- प्लास्टिक उत्पादों की रीसाइकिलिंग के लिए हमें उन्हें सही जगह ठिकाने लगाने की भी जरूरत है. इसलिए डस्टबिन का प्रयोग करें.
- स्टोरेज के लिए प्लास्टिक उत्पादों का इस्तेमाल न करें. इनके बदले काँच या मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.
- इसके अलावा सजावटी सामान प्लास्टिक के न हों, यह भी ध्यान में रहे.
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