The Hindu – DECEMBER 23 (Original Article Link)
अभी हाल ही में एक सूचना अधिकार (RTI) के आवेदन द्वारा यह खुलासा हुआ है कि 2017-18 में पंजीकृत किसानों की संख्या के संदर्भ में 2016-17 की अपेक्षा 15% की कमी दर्ज की गई है. प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) क्या है, किसानों की संख्या घटने के पीछे कौन-से कारण हैं और इसे सुधारने के लिए क्या प्रयास किए जा सकते हैं, इस आर्टिकल में हम इन सब बातों पर चर्चा करेंगे.
प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
प्रधानमंत्री फसल बीमा का अनावरण जनवरी 2016 को किसानों की फसल के संबंध में उत्पन्न अनिश्चितताओं को दूर करने के लिए गया था ताकि प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके. इसके तहत किसानों से अनुमानित फसल मूल्य के कुछ भाग को प्रीमियम के तौर पर लिया जाता है और बाकी बचा प्रीमियम केंद्र-राज्य सरकारों द्वारा बीमा कंपनियों को दिया जाता है. यदि किसी प्राकृतिक कारणवश फसल खराब हो जाती है तो बीमित राशि का भुगतान बीमा कंपनियों द्वारा किसानों को कर दिया जाता है . PMFBY एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसमें सेवा कर से छूट दी गई है.
PMFBY के उद्देश्य
- किसानों को आर्थिक रूप से स्थायित्व प्रदान करना
- नई तकनीकों और नवाचार को बढ़ावा देना
- किसानों को राष्ट्र की प्रगति में सहायक बनाना
- किसानों की आत्महत्याओं, महाजनों से ऊंचे ब्याज पर ऋण के कारण होने वाले तनाव को कम करना और किसान आंदोलनों में कमी लाना
- ऋण माफी और बैंको की गैर-निष्पादित संपत्ति (Non-Performing Assets) को कम करना
योग्यता और प्रीमियम
सभी ऋणी किसानों के लिए अनिवार्य पंजीकरण
- ऋणी किसानों के लिए बीमित राशि जिला स्तरीय तकनीकी समिति द्वारा निर्धारित वित्तीय माप के बराबर होगी जिसे बीमित किसान के विकल्प पर बीमित फसल की अधिकतम उपज के मूल्य तक बढ़ाया जा सकता है. यदि अधिकतम उपज का मूल्य ऋण राशि से कम है तो बीमित राशि अधिक होगी (राष्ट्रीय अधिकतम उपज को चालू वर्ष के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के साथ गुणा करने पर बीमा राशि का मूल्य प्राप्त होता है. )
- जिन फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा नहीं की गई है, उनके मामलों में विपणन विभाग/बोर्ड द्वारा स्थापित मूल्य अपनाया जाएगा.
गैर-ऋणी किसानों के लिए स्वैछिक पंजीकरण
फसल और प्रीमियम
- फसल: खाद्यान्न, तिलहन और वाणिज्यिक फसल
- प्रीमियम : खरीफ 2%, रबी 1.5% और वाणिज्यिक 5%
कवरेज
- बुवाई से लेकर फसल काटने के 2 सप्ताह बाद तक
- बुवाई से संबन्धित जोखिम जैसे सूखा या प्रतिकूल मौसम के कारण बुवाई न हो पाना
- खड़ी फसल के दौरान ना रोके जा सकने वाले जोखिम, जैसे – सूखा, अकाल, बाढ़, सैलाब, कीट एवं रोग, भूस्खलन, प्राकृतिक आग और बिजली, तूफान, ओले, चक्रवात, आंधी, तूफान और बवंडर आदि
- कटाई के उपरांत 14 दिनों तक खेत में फसल पड़ी होने के समय या मंडियों तक पहुंचाने के दौरान होने वाले चक्रवात, बारिश और ओलावृष्टि आदि
- स्थानीय आपदाएँ – बाढ़ , भूस्खलन और मूसलाधार वर्षा आदि
अपवर्जन
निम्नलिखित जोखिमों के लिए कोई बीमा राशि नहीं दी जाएगी –
- युद्ध और आंतरिक खतरे
- परमाणु जोखिम
- दंगा
- दुर्भावनापूर्ण क्षति
- चोरी या शत्रुता का कार्य
- घरेलू या जंगली जानवरों द्वारा चरे जाना और अन्य रोके जा सकने वाले जोखिम
कार्यान्वयन एजेंसी
- बीमा कंपनियों के कार्यान्वयन पर समग्र नियंत्रण कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के परिचालन नियंत्रण के तहत भारतीय कृषि बीमा कंपनी (Agriculture Insurance Company of India Limited) द्वारा किया जाएगा जबकि AIC का प्रशासनिक नियंत्रण वित्त मंत्रालय के तहत आता है.
- सरकारी और निजी दोनों प्रकार की बीमा कंपनियाँ इसमे भाग ले सकती है. निजी कंपनियों का चुनाव राज्य सरकारो के ऊपर छोड़ दिया गया है.
- कार्यान्वयन एजेंसी का चुनाव तीन साल की अवधि के लिए किया जा सकता है जिसको आगे बढ़ाया जा सकता है.
प्रबंधन
- राज्य स्तर पर – राज्य स्तरीय समन्वय समिति
- राष्ट्रीय स्तर पर – राष्ट्रीय स्तर निगरानी समिति कृषि सहयोग और किसान कल्याण विभाग (डीएसी और परिवार कल्याण) के संयुक्त सचिव (क्रेडिट) की अध्यक्षता में
- जैसे ही बैंकों को दावों के बाद वित्तीय राशि बीमा कंपनियों से प्राप्त होगी, बैंकों या वित्तीय संस्थाओं को 1 हफ्ते में इसका निपटारा कर देना होगा
- नोडल बैंकों के बिचौलिये संबन्धित व्यक्तियों के रेकॉर्ड को आगे मिलान के लिए बीमित किसानोंं (ऋणी और गैर-ऋणी दोनों) की सूची एवं अपेक्षित विवरण संबन्धित बीमा कंपनियों की शाखाओं से प्राप्त कर सकते हैं .
- लाभार्थियों की सूची को फसल बीमा पोर्टल एवं संबंधित बीमा कंपनियों की वेबसाइट पर अपलोड किया जा सकता है
- करीब 5% लाभार्थियों को क्षेत्रीय कार्यालयों/बीमा कंपनियों के स्थानीय कार्यालयों द्वारा सत्यापित किया जा सकता है जो संबंधित जिला-स्तरीय निगरानी समिति और राज्य स्तरीय समन्वय समिति को अपना प्रतिवेदन भेजेंगे और इनमें से 10% संबंधित जिला-स्तरीय निगरानी समिति द्वारा प्रतिसत्यापित किए जायेंगें और वे अपना प्रतिवेदन राज्य सरकार को भेजेंगें.
- लाभार्थियों में से 1 से 2% का सत्यापन बीमा कंपनी के प्रधान कार्यालय/केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त स्वतंत्र एजेंसियों/राष्ट्रीय स्तर की निगरानी समिति द्वारा किया जा सकता है और वे आवश्यक रिपोर्ट केन्द्र सरकार को भेजेंगे.
फसल बीमा योजनाओं में कमी के कारण
- भारत में किसानों के हालात पहेले से चिंतनीय हैं और रोज़मर्रा के खर्च, परिवार, शादी, चिकित्सा और ऋण के बोझ के तले दबे किसानों के लिए प्रीमियम की राशि भी जुटा पाना एक कठिन कार्य है .
- भारतीय भूभाग में भौगोलिक रूप से काफी विभिन्नताएँ है और प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता कुछ स्थानों पर अधिक और कुछ पर बिलकुल नगण्य है उदाहरण – भारत के पूर्वी तट पर प्रत्येक वर्ष चक्रवातों से भारी तबाही होती है, वहीं दूसरी और हरित क्रान्ति वाले प्रांतीय भूभागों में सिंचाई के साधन होने के फलस्वरूप फसल से संबन्धित जोखिम नगण्य ही है अत: समृद्ध और सिंचाई वाले भूभागों में कम पंजीकरण अवश्यम्भावी है .
- बढ़ती जनसंख्या और छोटे होते जमीन के टुकड़ों के फलस्वरूप कृषि और बीमा पंजीकरण के प्रति उदासीनता
- जागरूकता की कमी – जिस देश में स्वास्थ्य से संबन्धित बीमा योजनाओंं की जागरूकता नहीं है और विशेषकर समाज के मध्यम और निचले वर्ग तक भी पैठ नहीं है तो कृषि बीमा योजनाओं के बारे में कैसे सोचा जा सकता है. बीमा के प्रीमियम, मिलने वाली राशि, बीमा प्रणाली और समय के बारे में भी किसान अनभिज्ञ है जो कम पंजीकरण का कारण है.
- बीमित राशि का निपटारा और समय – कम बीमित राशि का खाते में आना और लगने वाला समय भी किसानों के लिए हतोत्साह करने वाला है.
समाधान
- जागरूकता – समाज को जागरूक करना, जैसे – रेडियो , टीवी और सामाजिक नाटकों द्वारा. प्रशासनिक अधिकारियों और बीमा कंपनियों के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों को नियमित दौरा और साथ ही साथ ग्रामीण क्षेत्रो के निकट ही परामर्श की सुविधा
- वित्तीय समावेशन और ऋण की सुविधा
- सामुदायिक खेती को बढ़ावा और बीमा का पंजीकरण
- छोटे सीमांत किसानों पर अधिक ध्यान केन्द्रित करते हुए नीतियों का निर्माण
- बीमा पंजीकरण, दावों और निपटान को और सरल बनाना ताकि किसानों को दफ्तरों के चक्कर ना काटने पड़े
- विवाद की लिए एक उपयुक्त और स्थानीय निपटान प्रणाली ताकि एक अनपढ़ किसान भी अपने हक के लिए लड़े सके
- जोखिम क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देते हुए अधिक प्रयास सुनिश्चित करना
किसान है तो अन्न का भंडार है और सम्पूर्ण देश की आवश्यकताएँ पूरी हो रही हैं, अत: इस आधारभूत ढांचे को सतत बनाए रखना अनिवार्य है. बीमा योजनाओं, ऋण योजनाओं, जागरूकता कार्यक्रमों आदि को सुदृढ़ बनाना चाहिए और कृषि से द्वितीयक क्षेत्र में किसानों के उत्थान का प्रयत्न करना चाहिए. साथ ही हमें ग्रामीण क्षेत्रों के विकास की ओर प्रयासरत रहना चाहिए. तभी हम किसानरूपी अन्नदाता को उन्नति की और अग्रसर करते हुए उनका कुछ हद तक उपकार चुका सकते हैं .
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