दिसम्बर, 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अकस्मात् घटी कोई घटना नहीं थी, बल्कि यह राजनीतिक जागृति की चरम पराकाष्ठा थी. दरअसल, कांग्रेस के गठन के पहले भी कई राजनीतिक एवं गैर-राजनीतिक संगठनों की स्थापना हो चुकी थी.
19वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों से ही कंपनी प्रशासन में स्थायित्व के लक्षण दिखने लगे थे. प्रशासन में स्थायित्व आ जाने से पश्चिमी विचार एवं शिक्षा का भी प्रसार हुआ, जिससे लोगों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता का विकास हुआ.
प्रारम्भिक काल में संस्थाओं का स्वरूप क्षेत्रीय अथवा स्थानीय था एवं उद्देश्य सीमित रूप में स्वार्थी हितों से परिचालित रहा. इन्होंने अपनी माँग को ब्रिटिश सांसद और भारत में कम्पनी प्रशासन के सामने पत्रिकाओं, याचनाओं और प्रार्थना-पत्रों के जरिये प्रस्तुत किया.
प्रारम्भिक काल में गठित संस्थाओं द्वारा मुख्यतः निम्नलिखित मांगों को सुधार हेतु प्रस्तुत किया गया :-
- गवर्नर-जनरल की कार्यकारिणी में भारतीयों का प्रतिनिधित्व
- कम्पनी के अधीन सेवाओं का भारतीयकरण
- प्रशासनिक व्ययों में कमी
- भारत में आधुनिक शिक्षा का प्रसार
अपने अधिकारों की रक्षा एवं अपनी मांगों को प्रशासन के समक्ष रखने के लिए राजनीतिक एवं गैर-राजनीतिक संगठनों का जन्म हुआ. इन संगठनों का विवरण नीचे दिए जा रहा है.
Important political organisation before the birth of Indian National Congress (INC)
बंग भाषा प्रकाशक सभा
1836 ई. में राजा राममोहन राय के अनुयायी गौरीशंकर तरकाबागीश द्वारा स्थापित यह संगठन सरकार की नीतियों से सम्बंधित मामलों की समीक्षा करती थी. यह बंगाल में स्थापित प्रथम राजनीतिक संगठन था. संगठन का मुख्य कार्य प्रशासनिक क्रियाकलापों की समीक्षा कर उनमें सुधार लाने के लिए याचनाएं भेजना एवं देशवासियों को उनके राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूक बनाना था.
लॉर्ड होल्डर्स सोसाइटी
इसकी स्थापना बंगाल के जमींदारों (द्वारकानाथ टैगोर, राजा राधाकांत देव, राजा काली कृष्ण ठाकुर और अन्य बड़े जमींदार) ने 1838 ई. में की थी. इसके जरिये उन्होंने भूमि के अतिक्रमण व अपहरण का विरोध किया. इस प्रकार का यह पहला संगठित राजनीतिक प्रयास था. संस्था ने समस्याओं के निराकरण हेतु संवैधानिक रास्ता अपनाते हुए पहली बार संगठित रूप राजनीतिक क्रियाकलाप प्रारम्भ किया. हालाँकि संस्था के उद्देश्य सीमित थे.
बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी
1843 में स्थापित इस संस्था का उद्देश्य आम जनता के हितों की रक्षा करना तथा उन्हें बढ़ावा देना था. मात्र जमींदारों के हितों की रक्षा करने का उद्देश्य रखने वाली लैंड होल्डर्स सोसाइटी के विपरीत देश के सभी वर्ग के लोगों के कल्याण एवं ब्रिटिश प्रशास के सामने उनके अधिकारों से सम्बंधित मांगों को रखने के लिए जॉर्ज थॉमसन की अध्यक्षता में बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी की स्थापना की गई. इसके सचिव प्यारी चन्द्र मित्र थे.
इस संस्था में भारतीयों के साथ-साथ गैर-सरकारी ब्रिटिशों का भी प्रतिनिधित्व था. संस्था ने जमींदारी प्रथा की आलोचना करते हुए कृषकों से सम्बंधित मुद्दे उठाये.
ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन
1851 में लैंड होल्डर्स सोसाइटी एवं बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी के विलय के उपरान्त यह संगठन अस्तित्व में आया. इसके अध्यक्ष राधाकांत देव थे. इसके सचिव देवेन्द्रनाथ टैगोर चुने गये थे. इसकी स्थापना पहले से स्थापित संस्थाओं, जैसे – लैंड होल्डर्स सोसाइटी, बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी आदि की असफलताओं को देखते हुए दोनों संस्थाओं का विलय कर जमींदारों के हितों की रक्षा करने के लिए की गई थी. हिन्दू पेट्रियट नामक पत्रिका के जरिये इस संस्था द्वारा प्रचार किया. इस संस्था में भी जमींदार वर्ग का ही वर्चस्व बना था. संस्था द्वारा 1860 में आयकर लागू करने के विरोध तथा नील विद्रोह से सम्बन्धित आयोग के गठन की माँग की गई साथ ही 1860 में अकाल पीड़ितों के लिए धन भी एकत्रित किया. बंगाल में इसे भारत वर्षीय सभा के नाम से जाना गया.
मद्रास नेटिव एसोसिएशन
बंगाल में स्थापित ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की शाखा (26 फरवरी, 1852) के रूप में मद्रास में गजुलू लक्ष्मी नरसुचेट्टी द्वारा संस्थापित संस्था का ही नाम बदलकर 13 जुलाई, 1852 को मद्रास नेटिक एसोसिएशन कर दिया गया. सी. वाई. मुदलियार इसके अध्यक्ष और वी. रामानुजाचारी इसके सचिव थे.
ईस्ट इंडिया एसोसिएशन
लंदन में राजनैतिक प्रचार करने के उद्देश्य से दादा भाई नौरोजी द्वारा 1866 ई. में इसकी स्थापना की गई थी. इसकी बहुत-सी शाखाएँ भारत में खोली गयीं. इसका उद्देश्य भारतवासियों की समस्याओं और मांगों से ब्रिटेन को अवगत कराना तथा भारतवासियों के पक्ष में इंग्लैंड में जनसमर्थन तैयार करना था. कालान्तर में भारत के विभिन्न भागों में इसकी शाखाएँ खोली गईं.
पूना सार्वजनिक सभा
पूना सार्वजनिक सभा (मराठी – पुणे सार्वजनिक सभा) की स्थापना 2 अप्रैल, 1870 ई. को महादेव गोविंद रानडे ने की थी. पूना सार्वजनिक सभा सरकार और जनता के बीच मध्यस्थता कायम करने के लिए बनाई गई थी. भवनराव श्रीनिवास राव इस संस्था के प्रथम अध्यक्ष थे. बाल गंगाधर तिलक, गोपाल हरि देशमुख, महर्षि अण्णासाहेब पटवर्धन जैसे कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों ने इस संगठन के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. चलिए जानते हैं कि इस सभा (The Poona Sarvajanik Sabha) की स्थापना किन परिस्थितियों में हुई और इसके क्या परिणाम सामने आये.
विस्तार से पढ़ें > पूना सार्वजनिक सभा
कलकत्ता स्टूडेंट्स एसोसिएशन
छात्रों में राष्ट्रवादी भावनाओं के प्रसार और उनमें राजनीतिक जागरूकता लाने के लिए 1875 में आनंद मोहन बोस द्वारा स्टूडेंट्स एसोसिएशन की स्थापना की गयी. छात्र संघ में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की भागीदारी महत्त्वपूर्ण रही.
इंडियन लीग
1875 में शिशिर कुमार घोषित ने इसकी स्थापना की थी. अगले वर्ष (1876) में इसी संस्था का स्थान इंडियन एसोसिएशन ने ले लिया. यह कांग्रेस की पूर्ववर्ती संस्थाओं में एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी. संस्था मुख्य नेतृत्वकर्ता सुरेन्द्र नाथ बनर्जी एवं आनंद मोहन बोस थे.
इंडियन एसोसिएशन
इंडियन एसोसिएशन की स्थापना 1876 में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा आनंद बोस ने की थी. इस संस्था को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पूर्वगामी कहा गया है. भारत में प्रबल जनमत तैयार करना, हिन्दू-मुस्लीम जनसम्पर्क की स्थापना करना, सार्वजनिक कार्यक्रम के आधार पर लोगों को संगठित करना, सिविल सेवा के भारतीयकरण के पक्ष में मत तैयार करना आदि इसके प्रमुख उद्देश्य थे.
मद्रास महाजन सभा
1884 ई. में वी. राघवाचारी, जी. सुब्रमण्यम, आनंद चारलू ने मद्रास महाजन की स्थापना की. 29 दिसम्बर, 1884 से 2 जनवरी, 1885 के मध्य थियोसोफिकल सोसाइटी के सम्मेलन और मद्रास मेले के आयोजन के साथ का प्रथम सम्मेलन हुआ. सभा द्वारा की गई प्रमुख माँगें थीं –
- विधान परिषदों का विस्तार एवं उसमें भारतीयों के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना.
- न्यायपालिका का राजस्व एकत्रित करने वाली संस्थाओं से पृथक्करण.
- कृषकों की दयनीय स्थिति में सुधार लाना.
बम्बई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन
1885 ई. में बंबई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन की स्थापना फिरोजशाह मेहता, के.टी. तैलंग और बदरूद्दीन तैय्यबजी ने मिलकर की. फिरोजशाह मेहता को बॉम्बे का बेताज बादशाह माना जाता था. आम लोग को राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूक बनाना, प्रशासन संबंधी सुधार को याचनाओं, प्रार्थना-पत्रों के जरिये भारतीय प्रशासन एवं ब्रिटिश संसद के सामने रखना संस्था के मुख्य उद्देश्य थे.
अन्य संस्थाएँ
- 1862 में लंदन में पुरुषोत्तम मुदलियार ने लन्दन इंडियन कमेटी का गठन किया.
- 1865 में लंदन में ही दादाभाई नौरोजी ने लदंन इंडिया सोसाइटी की स्थापना की.
निष्कर्ष
यद्यपि, उपरोक्त सभी संस्थाएँ राजनीतिक गतिविधियों के संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रही थीं, तथापि इनमें से अधिकांश का आधार क्षेत्रीय था तथा ये संकीर्ण हितों का प्रतिनिधित्व करते थे. अधिकांश संस्थाओं की अभिजात्य दृष्टि थी. अतः आवश्यकता इसी बात की थी कि इन सभी प्रयत्नों को संगठित कर एक अखिल भारतीय संस्था की स्थापना की जाए.
अगले पोस्ट में हम पढेंगे कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कैसे हुई और उसकी आरम्भिक गतिविधियाँ क्या-क्या थीं?
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