प्रस्तावना के अनुसार भारतीय राज्य की प्रकृति की विवेचना कीजिए. प्रस्तावना का क्या महत्त्व है?
Analyse the nature of Indian State in light of the Preamble. What is the significance of the Preamble?
क्या करें?
✅प्रस्तावना के इतिहास का परिचय दें।
✅प्रश्न का पहला भाग, प्रस्तावना के अनुसार वर्णित भारत की प्रकृति से संबंधित है, इसलिए प्रस्तावना में दिए गए शब्दों का ही प्रयोग करें।
✅इसके महत्त्व के लिए, हम वर्तमान के उदाहरणों के साथ SPECIAL (सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, अंतर्राष्ट्रीय, प्रशासनिक, भाषाई, आदि) जैसे कई आयामों का उपयोग कर सकते हैं।
क्या नहीं करें?
❌महत्त्व बताते समय वर्तमान उदाहरण का उल्लेख नहीं करना
Syllabus :- भारतीय संविधान
उत्तर
प्रस्तावना
अमेरिकी संविधान ने सबसे पहले अपने संविधान में, प्रस्तावना (Preamble) प्रस्तुत की थी और कई देशों ने इसे अपनाया था, इसलिए भारत ने भी इसे अपनाया। प्रस्तावना शब्द का तात्पर्य है- ‘भूमिका देना.” जब इसका उपयोग संविधान के संदर्भ में किया जाता है तो इसे संविधान की प्रस्तावना के रूप में देखा जाता है।
मुख्य विषयवस्तु
भारतीय संविधान की प्रस्तावना पंडित जवाहरलाल नेहरू के उद्देश्य प्रस्ताव के आधार पर तैयार की गई थी। प्रस्तावना के अनुसार भारतीय राज्य की प्रकृति को संक्षेप में निम्न रूप प्रस्तुत किया जा सकता है –
प्रस्तावना के अनुसार भारतीय राज्य की प्रकृति:
संप्रभुता
- भारत, ना तो किसी देश पर आश्रित है और न किसी देश का उपनिवेश, इसके ऊपर कोई प्राधिकरण नहीं है और भारत बाहरी ताकतों के हस्तक्षेप के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र, राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता इसकी संप्रभुता के लिए कोई बाधा नहीं है।
समाजवादी
- इसे 1976 में 42वें संविधान संशोधन दवारा संविधान में जोड़ा गया था.
- समाजवाद के भारतीय ब्रांड पर इसका जोर यानी- लोकतांत्रिक समाजवाद, जो मार्क्सवादी और गांधीवादी विचारधारा का एक संयोजन है।
धर्म निरपेक्ष
- इसे भी 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा ही जोड़ा गया था।
- धर्मनिरपेक्षता की सकारात्मक अवधारणा को भारत द्वारा अपनाया गया है जिसमें सभी धर्मों को उनकी जनसंख्या की परवाह किए बिना, समान दर्जा सुनिश्चित किया जाता है।
प्रजातांत्रिक
- भारत ने संसदीय लोकतंत्र को अपनाया जहां विधायिका द्वारा कार्यपालिका को जिम्मेदार ठहराया जाता है।
- यह स्वयं राजनीतिक और सामाजिक लोकतंत्र को भी समाहित करता है।
गणतांत्रिक
- राज्य का प्रमुख शासक चुना जाता है और वंश के आधार पर किसी का दावा नहीं होता है।
- इसका अर्थ यह भी है कि राजनीतिक संप्रभुता, लोगों के भीतर है न कि राजा/शासक जैसे व्यक्ति में।
कुछ राजनीतिक वैज्ञानिक इसकी गैर-न्यायसंगत प्रकृति के कारण प्रस्तावना की आलोचना करते हैं। इसकी कुछ चिंताओं के बावजूद, इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है.
प्रस्तावना का महत्त्व (Importance of Preamble)
बडलूप्रिंट (खाका) के रूप में भूमिका
भारत अपनी स्वतंत्रता के बाद अंग्रेजों के शोषणकारी शासन के कारण तनाव में था, इस प्रकार उसके पास बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी थी। इस प्रकार अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर ने ठीक ही कहा था कि संस्थापको के सपने और उनकी आकांक्षाओं को व्यक्त करने के लिए प्रस्तावना पेश की गई थी।
उदाहरण के लिए, 1971 के युद्ध के दौरान भारत, बाहरी हस्तक्षेप से पूरी तरह से संप्रभु नहीं था। लेकिन बाहरी दबाव के बावजूद भी अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण दर्शाता है कि हम एक संप्रभु देश हैं और इस प्रकार प्रस्तावना मेँ वर्णित प्रकृति को पूरा करते हैं।
विकास के मापदंड के रूप में कार्य
- प्रस्तावना, समाज की लोकतांत्रिक समाजवादी प्रकृति को उजागर करती है; यह समाज के सभी वर्गों के समग्र विकास को सुनिश्चित कर सकती है।
- उदाहरण के लिए मनरेगा, पीएम-किसान योजना, पीडीएस हमारी समाजवादी प्रकृति को उजागर करता है।
राजनीतिक महत्त्व
- न्यायालय कुछ मामलों में न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रस्तावना का उपयोग करते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला जिसमें वो उपराज्यपात्र के ऊपर, दिल्ली सरकार की भूमिका को बरकरार रखते है, लोकतंत्र की सच्ची भावना को दर्शाता है.
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यह उत्तर संक्षेप में है —इस उत्तर को थोड़ा और बड़ा कर के, कुछ पॉइंट और जोड़ कर आप कमेंट में लिख सकते हैं.
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