जिस दौरान पूरे भारत में सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रगति पर था और सरकार का दमन चक्र तेजी से चल रहा था, उसी समय वायसराय लॉर्ड इर्विन और मि. साइमन ने सरकार पर यह दबाव डाला कि वह भारतीय नेताओं तथा विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों से सलाह लेकर भारत की संवैधानिक समस्याओं का निर्णय करे. इसी उद्देश्य से लन्दन में तीन गोलमेज सम्मेलनों का आयोजन किया गया. इन सम्मेलन का कोई आशाजनक परिणाम नहीं निकल कर सामने आया. उल्टे इससे भारत के विभिन्न वर्गों और संप्रदायों में मतभेद ही बढ़ा और सांप्रदायिकता के विकास में अत्यधिक वृद्धि हुई.
प्रथम गोलमेज सम्मेलन (12 नवम्बर, 1930 – 19 जनवरी, 1931)
प्रथम गोलमेज सम्मेलन लॉर्ड इर्विन के प्रयास से हुआ. सम्मेलन में कुल 86 प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिसमें तीन ग्रेट ब्रिटेन, 16 भारतीय देशी रियासतों और शेष 57 अन्य प्रतिनिधि थे. ब्रिटिश भारत और देशी रियासतों के प्रतिनिधियों में सर तेज बहादुर सप्रु, श्री निवास शास्त्री, डॉक्टर जयकर, सी. वाई. चिंतामणि और डा. अम्बडेकर जैसे व्यक्ति थे. सम्मेलन का उद्घाटन जॉर्ज पंचम ने किया एवं इसकी अध्यक्षता ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रैम्से मैकडोनाल्ड ने की. प्रधानमंत्री मैकडोनाल्ड ने तीन आधारभूत सिद्धान्तों की चर्चा की –
- केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा का निर्माण संघ शासन के आधार पर होगा और ब्रिटिश भारतीय प्रांत तथा देशी राज्य संघ शासन की इकाई का रूप धारण करेंगे.
- केंद्र में उत्तरदायी शासन की स्थापना होगी, किन्तु सुरक्षा और विदेश विभाग भारत के गवर्नर जनरल के अधीन होंगे.
- अतिरिक्त काल में कुछ रक्षात्मक विधान (statutory safeguards) अवश्य होंगे.
ब्रिटिश प्रधानमंत्री के सुझावों के प्रति प्रतिनिधियों की भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएं हुईं. संघ शासन के सिद्धांत को सभी प्रतिनिधियों ने स्वीकार कर लिया. देशी नरेशों ने भी संघ में सम्मिलित होना स्वीकार कर लिया.
प्रांतीय स्वतंत्रता के संबंध में भी विचारों में मतभेद नहीं था. भारतीय प्रतिनिधियों ने इसका समर्थन किया. कवेल सरंक्षण और उत्तरदायी मंत्रियों पर नियंत्रण के सबंध में पारस्परिक मतभेद पाया गया. कुछ लोगों ने केन्द्र में आंशिक उत्तरदायित्व की जगह पूर्ण उत्तरदायित्व की माँग की. श्री जयकर और श्री सप्रु ने भारत के लिए आपैनिवेशिक स्वराज की माँग की. प्रथम गोलमेज सममेलन में साप्रंदायिकता की समस्या सर्वाधिक विवादपूर्ण रही. मुसलमान पृथक् तथा सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के पक्ष में थे. जिन्ना ने अपने 14 सूत्र को सामने रखा, तो डा. अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों के लिए पृथक निवार्चक मडंल की माँग की.
इस प्रकार प्रथम गोलमेज सम्मेलन असफल रहा और 19 जनवरी, 1931 को सम्मेलन अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया. वस्तुतः कांग्रेस के बहिष्कार ने इस सममेलन को निरर्थक बना दिया था.
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