Private property is a human right: Supreme Court
पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी कि निजी संपत्ति रखना किसी नागरिक का एक मानवाधिकार है और सरकार उस संपत्ति का अधिग्रहण बिना उचित प्रक्रिया अपनाए और बिना वैध प्राधिकार के नहीं कर सकती है.
सर्वोच्च न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियाँ
- सरकार किसी नागरिक की निजी संपत्ति में प्रवेश करके उस संपत्ति पर अपने स्वामित्व का दावा प्रतिकूल दखल (adverse possession) के नाम पर नहीं कर सकती है.
- यदि सरकार इस प्रकार निजी भूमि को हड़प लेती है और फिर इसे अपना भूखंड मानती है तो वह भी एक अतिक्रमणकारी (encroacher) मानी जायेगी.
- भारत एक कल्याणकारी राज्य है अतः संपत्ति का अधिकार यहाँ एक मानवाधिकार है.
- एक कल्याणकारी राज्य प्रतिकूल दखल के आधार पर किसी की संपत्ति पर अतिक्रमण नहीं कर सकता है. ज्ञातव्य है कि 12 वर्ष से अधिक किसी संपत्ति पर अवैध दखल होने पर संपत्ति को हड़पने वाले को उस पर कानूनी स्वत्त्व पाने के लिए प्रयास करने की अनुमति देता है.
मामला क्या है?
1967 में सड़क बनाने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार ने हमीरपुर जिल में एक व्यक्ति की 4 एकड़ जमीन बलपूर्वक हड़प ली थी और उसके लिए 52 वर्ष बीत जाने पर भी क्षतिपूर्ति नहीं दी.
अपीलकर्ता को ज्ञात नहीं था कि ऐसे मामले में उसका अधिकार क्या है और कानून उसे स्वामित्व देता है अथवा नहीं. इसलिए उसने हड़पी हुई जमीन के लिए क्षतिपूर्ति हेतु कोई मुकदमा नहीं किया. बाद में उसने मुकदमा दर्ज किया है तो उसे उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया जिस कारण उसे सर्वोच्च न्यायालय आना पड़ा.
संपत्ति का अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 31 के मूलरूप में संपत्ति के अधिकार को एक मौलिक अधिकार बताया गया था. परन्तु 1978 में इसके लिए 44वाँ संवैधानिक संशोधन हुआ और संपत्ति का अधिकार एक मौलिक अधिकार नहीं रह गया. फिर भी संविधान का अनुच्छेद 300A अपेक्षा करता है कि सरकार किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति अपने हाथ में लेने के पहले समुचित प्रक्रिया और कानूनी शक्ति का अनुपालन करे. संपत्ति का अधिकार अब न केवल एक संवैधानिक अथवा वैधानिक अधिकार समझा जाता है वरन् यह एक मानवाधिकार भी माना जाता है.
Tags : A citizen’s right to own private property is a human right. Right to property.