देश की शासन-पद्धति किसी भी प्रकार की हो, चाहे वह संसदात्मक हो या अध्यक्षात्मक…सही मायने में शासन का जो असली काम होता है…जो वास्तविक काम होता है….उसे कर्मचारी-वर्ग द्वारा ही किया जाता है जो कि स्थाई रूप से सरकारी सेवा में रहते हैं…आप भी कभी ऑफिसर बनोगे तो सब काम आप ही करोगे. हम जानते हैं कि संसद कानून बनाने का काम करती है, कार्यपालिका नीति का निर्धारण का कार्य करती है, परन्तु कानूनों और राजकीय नीति को क्रियात्मक रूप देना कर्मचारी-वर्ग का ही काम है. देश का शासन सुचारू रूप से तभी चल सकता है जब हमारे कर्मचारी वर्ग योग्य, निष्पक्ष और ईमानदार हों. यही कारण है कि हमारे देश में केन्द्रीय (central) और राज्य-स्तरों (state-level) पर योग्य, कुशल और ईमानदार कर्मचारियों के चयन हेतु लोक सेवा आयोग (Public Service Commission) की स्थापना की गई है.
लोक सेवा योग की आवश्यकता
लोकतंत्र के विकास के प्रारम्भिक दिनों में अधिकांश लोक-सेवा के सदस्य राजनीतिज्ञों एवं गिने-चुने व्यक्तियों की अनुकम्पा (पैरवी के द्वारा) प्राप्त कर अपना पद प्राप्त करते थे. इसके चलते योग्य और ईमानदार लोग बेचारे सरकारी पद प्राप्त करने में वंचित रह जाते थे. पदों के मिल जाने के बाद भी लोगों की कार्य-क्षमता और योग्यता की ओर कोई भी कर्मचारी ध्यान नहीं देता था, क्योंकि पदोन्नति (promotion) के लिए भी पैरवी चलती थी. बस राजनीतिज्ञों का अनुग्रह प्राप्त कर लो और हो गया promotion….इन दुर्गणों से बचने के लिए ही हमारे देश में लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई है.
भारत जैसे देश में लोक सेवा आयोग की तो सच पूछिए और भी ज्यादा आवश्यकता है. एक तो भारत देश हमारा विशाल देश है…जिसमें अनेक जातियाँ, अनेक संस्कृति, विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले लोग रहते हैं. ऐसे में यदि लोक-सेवाओं के नियोजन में राजनीतिक विचार या अनुग्रह की प्रधानता होगी तो हमारा देश गर्त में चला जायेगा. सरकारी कर्मचारी देश और जनता के नौकर हैं, सरकार के नहीं. हाँ जरुर, वे संविधान और कानून के अधीन किसी भी सरकारी आदेश को मानने के लिए मजबूर हैं. पर आप ही सोचिये यदि उनका selection राजनीतिक आधार पर होगा तो वे अपने से ऊपर के अधिकारी की बात, जो कि शायद दूसरे दल से हो, इतनी आसानी से नहीं मानेंगे…और पूरा विभाग राजनीतिक अखाड़ा बन कर रह जायेगा. इसलिए यदि कर्मचारियों का चयन लोक सेवा आयोग द्वारा होगा तो उनकी ईमानदारी पर कोई शक नहीं करेगा.
लोक सेवा आयोग का गठन
भारतीय संविधान (Indian Constitution<<के बारे में पढ़ें) की धारा 315 से 323 (in Part XIV) में लोक सेवा आयोग की व्यवस्था की गई है. संविधान के अनुसार संघ के लिए एक संघीय लोक सेवा आयोग(UPSC) और राज्य के लिए राजकीय लोक सेवा आयोग (State Service Public Commission) की व्यवस्था है, परन्तु दो या अधिक राज्य चाहे तो संयुक्त लोक सेवा आयोग की व्यवस्था है, परन्तु दो या अधिक राज्य चाहे तो संयुक्त लोक सेवा आयोग की स्थापना की जा सकती है और उनकी प्रार्थना पर कानून द्वारा ऐसी व्यवस्था की जा सकती है – UPSC can ask you such questions in Prelims)
संघ लोक सेवा आयोग का गठन
अनुच्छेद 315 के द्वारा संघ में संघीयसेवा आयोग की स्थापना की गई है. इसमें एक अध्यक्ष और सात अन्य सदस्य होते हैं. अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है. इनका कार्यकाल, पदभार ग्रहण करने की तिथि से छह साल तक अथवा 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक होता है (Source Wikipedia, UPSC). इसमें कम-से-कम आधे सदस्य (working or retired) ऐसे अवश्य हो जो कम-से-कम 10 वर्षों तक सरकारी सेवा का अनुभव प्राप्त कर चुके हैं.
आयोग का कोई भी सदस्य उसी पर दुबारा नियुक्त नहीं किया जा सकता. संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission) का अध्यक्ष संघ या राज्यों में अन्य किसी पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है. आयोग के सदस्यों का वेतन राष्ट्रपति द्वारा विनियमित होता है. आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के उपरान्त उनकी सेवा की शर्तों को उनके हित के विरुद्ध बदला नहीं जा सकता. इस समय अध्यक्ष का वेतन (7th pay commission के बाद) 2.5 लाख और सदस्यों का वेतन 2.25 लाख है, जो भारत सरकार की संचित निधि (consolidated fund) से दिया जाता है.
आयोग के सदस्यों की उनके दुराचार के लिए राष्ट्रपति आवेश द्वारा हटाया भी जा सकता है. यदि राष्ट्रपति को किसी भी सदस्य के खिलाफ दुराचार की रिपोर्ट मिले तो वह विषय न्यायालय (न्यायालय <<के बारे में पढ़ें) के पास विचारार्थ प्रस्तुत होगा. न्यायालय की सम्मति मिलने पर उस सदस्य को पदच्युत किया जायेगा.
निम्नलिखित कारणों के उपस्थित होने पर राष्ट्रपति आयोग के किसी भी सदस्य को हटा सकता है – – – >>
- यदि वह व्यक्ति दिवालिया सिद्ध हो.
- यदि अपने कार्यकाल में वह कोई दूसरा पद स्वीकार कर ले.
- शारीरिक अस्वस्थता के कारण कार्य करने के लिए अक्षम हो गया हो.
- यदि भारत या राज्य-सरकार के साथ करार किये गये किसी contract के साथ उसका सम्बन्ध हो या उससे कोई लाभ प्राप्त हो रहा हो.
राजकीय लोक सेवा आयोग का संगठन
राजकीय लोक सेवा-आयोग (State Public Service Commission) के सदस्यों को राज्यपाल (राज्यपाल <<के बारे में पढ़ें) नियुक्त करता है. राज्यपाल को ही सदस्यों की संख्या और सेवा की शर्तों को निर्धारित करने का अधिकार है. इसमें भी आधे सदस्य ऐसे होंगे जो कम-से-कम 10 साल तक सरकारी कर्मचारी रह चुके हों. इनके वेतन, भत्ता आदि राज्य की संचित निधि से दिए जाते हैं. इनके भी सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का है किन्तु कोई भी सदस्य 62 वर्ष की उम्र के बाद अपने पद नहीं रह सकते. (UPSC में अधिकतम उम्र सीमा 65 और यहाँ 62 है, याद रखियेगा)
आयोगों के कार्य – Functions
अनुच्छेद 320 के अनुसार आयोग के निन्मलिखित कार्य हैं –
- संघ तथा राज्यों की सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाओं का आयोजन करना. संघीय आयोग संघ में और राजकीय आयोग राज्य में परीक्षाओं का आयोजन करता है.
- यदि एक या अधिक राज्य संघीय लोक सेवा आयोग को संयुक्त नियोजन अथवा भर्ती के लिए आग्रह करें तो राज्यों को इस प्रकार की योजनायें बनाने में सहायता देना.
- निन्मलिखित मामलों में संघीय लोक सेवा आयोग से संघ सरकार तथा राजकीय लोक सेवा आयोग से राज्य सरकार राय लेती है –
- असैनिक सेवाओं में बहाली के तरीके से सम्बंधित किसी भी मामले में,
- उनकी तरक्की तथा बदली में,
- सरकारी कर्मचारियों के अनुशासन सम्बन्धी मामलों में,
- किसी कर्मचारी के ऐसे दावे पर कि कर्त्तव्य पालन के सम्बन्ध में कोई कानूनी कार्रवाई की गई हो, तो उसमें स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने में जो भी खर्च हुआ है, उसे सरकार से कितना मिलना चाहिए,
- सरकारी कर्मचारी की यदि कर्त्तव्य पालन के सिलसिले में किसी प्रकार की चोट या क्षति पहुँची हो, तो क्षति पूर्ति के सम्बन्ध में,
- राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट अन्य किसी विषय में.
अनुच्छेद 321 के मुताबिक़ संसद् संघीय लोक सेवा आयोग तथा राजकीय विधानमंडल राजकीय लोक सेवा आयोग के कार्यक्षेत्र बढ़ा सकते हैं. राष्ट्रपति या राज्यपाल अपने-अपने क्षेत्राधिकार में ऐसे नियम बना सकते हैं कि किसी सेवा के सम्बन्ध में लोक सेवा आयोग की सलाह लेना आवश्यक नहीं है. परन्तु इन नियमों को 14 दिनों के अन्दर संसद् या विधानमंडल के सामने रखना पड़ता है. संसद् या विधानमंडल को अधिकार है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल के ऐसे नियम को स्वीकार करे या रद्द करे.
आयोगों के प्रतिवेदन
संघीय लोक सेवा आयोग (UPSC) को प्रतिवर्ष अपने कार्यों के सम्बन्ध में एक प्रतिवेदन तैयार कर राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत करना पड़ता है. ठीक इसी सरकार राजकीय लोक सेवा आयोग भी प्रतिवर्ष अपना प्रतिवेदन तैयार कर राज्यपाल के सामने प्रस्तुत करता है. उक्त प्रतिवेदनों को सरकारी विज्ञापन के साथ सम्बन्धित विधायिका यानी संसद् के दोनों सदनों और राज्य के विधान-मंडलों के सामने प्रस्तुत किया जाता है.