भारत में संघीय संसद की व्यवस्था (Federal Parliament System) की गई है. संसद के दो सदन हैं – लोक सभा (Lok Sabha) और राज्यसभा (Rajya Sabha). राज्यसभा संसद का उच्च और द्वितीय सदन है. भारत में संघात्मक शासन की व्यवस्था है, अतः संघों की इकाइयों के प्रतिनिधित्व के लिए संसद में एक सदन का होना आवश्यक है. इसी कारण, भारत में द्विसदनात्मक प्रणाली अपनाई गई है. जैसा कि राज्यसभा के नाम से ही स्पष्ट है कि यह संघ के राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है और इसके सदस्य विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं. यह एक स्थाई सदन है और कभी भंग नहीं होता, किन्तु इसके 1/3 सदस्य प्रति दो वर्ष के बाद स्थान खाली कर देते हैं, जिनकी पूर्ति नए सदस्यों से होती है.
राज्यसभा में अधिक-से-अधिक 250 सदस्य हो सकते हैं. इनमें अधिक-से-अधिक 238 राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों की ओर से निर्वाचित और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं. ये 12 सदस्य ऐसे होते हैं जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला सामजिक सेवा इत्यादि का विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रहता है. राज्यों के प्रतिनिधि-सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रीति से होता है. राज्यों के प्रतिनिधि अपने राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा निर्वाचित होते हैं. यह निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्दति (proportional representation procedure) से तथा एकल संक्रमणीय मत विधि (single transferable vote method) के अनुसार होता है. संघीय क्षेत्रों के प्रतिनिधियों का निर्वाचन संसद द्वारा बानाए गए कानून के अनुसार होता है.
संयुक्त राज्य अमेरिका में सीनेट (Senate) के सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन होता है लेकिन भारत में राज्यसभा के गठन के विषय में संविधान-निर्माताओं ने एक ओर दक्षिण अफ्रीका की अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली और दूसरी ओर आयरलैंड की मनोनयन प्रणाली को अपनाया है. जहाँ अमेरिका की सीनेट में प्रत्येक राज्य बराबर संख्या में अपने प्रतिनिधियों को चुनकर भेजता है, वहां भारत के प्रत्येक राज्य को विभिन्न संख्या में राज्यसभा में अपने प्रतिनिधियों को भेजने का अधिकार है. विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों की संख्या उस राज्य की जनसंख्या के आधार पर निश्चित की गई है.
राज्यसभा की सदस्यता के लिए योग्यताएँ और अयोग्यताएँ
इस सभा के सदस्य के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ आवश्यक हैं –
i) उसे भारत का नागरिक होना चाहिए.
ii) उसकी आयु 30 वर्ष से कम न हो
iii) उसमें वे अन्य योग्यताएँ भी हों, जो संसद विधि द्वारा निश्चित करे
राज्यसभा की सदस्यता के लिए अभ्यर्थी को निम्नलिखित अयोग्यताओं से मुक्त होना जरुरी है –
- भारत सरकार या राज्य सरकार के अंतर्गत लाभ का पद न ग्रहण करे
- पागल या दिवालिया न हो
- विदेशी न हो
- संसद की किसी भी विधि द्वारा अयोग्य न ठहराया गया हो
राज्यसभा के सदस्यों के वेतन एवं भत्ते
संसद सदस्यों का Basic Pay 50,000 रु. है. इसके अलावा उन्हें दैनिक भत्ता, निर्वाचन सम्बन्धी भत्ता, कार्यकाल व्यय भत्ता, यात्रा भत्ता, टेलीफ़ोन भत्ता आदि के लिए पैसे अलग से मिलते हैं. वेतन का detail जानने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं>> Rajya Sabha Members Salary and Allowance
राज्यसभा के पदाधिकारी
भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है. राज्यसभा के सदस्य अपने में से किसी एक को उपसभापति नियुक्त करते हैं. इसका कार्यकाल 5 वर्ष है. वह इस अवधि के पूर्व भी त्यागपत्र देकर अलग हो सकता है अथवा पदच्युत किया जा सकता है. राज्यसभा प्रस्ताव पास कर उपसभापति को पदच्युत कर सकती है, परन्तु ऐसे प्रस्ताव पर लोक सभा की स्वीकृति भी आवश्यक है. उपसभापति राज्यसभा का सदस्य न रहने पर स्वयं त्यागपत्र देने अथवा पदच्युत किये जाने पर अपने पद पर नहीं रहेगा. सभा अयोग्यता अथवा अविश्वास का प्रस्ताव पास कर उपसभापति को पदच्युत कर सकती है. लेकिन इस प्रस्ताव की सूचना उसे 14 दिन पूर्व मिलनी चाहिए.
राज्यसभा के अधिकार और कार्य
राज्यसभा के अधिकारों को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा जा सकता है –
1. विधान-सम्बन्धी अधिकार
धन विधेयक को छोड़कर अन्य कोई भी विधेयक संसद के दोनों सदनों में से किसी एक सदन में पहले उपस्थित किया जा सकता है. कोई विधेयक तभी कानून बन सकता है जब वह संसद के दोनों सदनों से पारित हो जाए. यदि दोनों सदनों में मतभेद हो, तो राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुला सकता है. संयुक्त बैठक में दोनों सदनों के सदस्यों के बहुमत से जो भी निर्णय हो जाए, वही अंतिम निर्णय समझा जायेगा. इस तरह की संयुक्त बैठक सर्वप्रथम मई 1961 में दहेज़-निषेध विधेयक पर विचार करने के लिए हुई थी, क्योंकि इसपर दोनों सदनों में मतभेद हो गया था. उसी तरह मई 1978 में बैंक सेवा (निरसन) विधेयक भी संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में पारित हुआ था. राज्यसभा किसी भी सामान्य विधेयक को पारित करने में अधिक-से-अधिक 6 महीनों तक विलम्ब कर सकती है.
2. वित्त-सम्बन्धी अधिकार
वित्त-सम्बन्धी विषयों में राज्यसभा बिल्कुल शक्तिहीन है. धन विधेयक केवल लोक सभा में उपस्थित किया जा सकता है. लोक सभा द्वारा स्वीकृत होने पर वह राज्यसभा में भेज दिया जाता है. राज्यसभा उसपर 14 दिनों के भीतर अपना मत प्रकट करेगी. यदि वह ऐसा नहीं करे, तो लोक सभा द्वारा पारित विधेयक ही विधि बन जाता है. यदि राज्यसभा कुछ सिफारिशें करें, तो उन्हें मानना या न मानना लोक सभा की इच्छा पर निर्भर है. उदाहरण के लिए, अपने जीवन में पहली बार 28 जुलाई, 1977 को राज्यसभा ने वित्त विधेयक को संशोधनों के साथ लोक सभा को वापस कर दिया, परन्तु लोक सभा ने 2 अगस्त, 1977 को राज्यसभा के संशोधन को बहुमत से ठुकरा दिया. राज्यसभा धन अथवा वित्त विधेयक को पारित करने में अधिक से अधिक 14 दिनों तक विलम्ब कर सकती है.
3. संविधान में संशोधन का अधिकार
संविधान में संशोधन लाने के सम्बन्ध में दोनों सदनों को सामान अधिकार प्राप्त है. संशोधन का प्रस्ताव पास होने के लिए दोनों सदनों के सदस्यों का स्पष्ट बहुमत तथा उपस्थित और मत देनेवाले सदस्यों का 2/3 बहुमत होना आवश्यक है. चूँकि दोनों सदनों में मतभेद होने पर यह संयुक्त अधिवेशन (Joint Session) द्वारा निर्णित होगा, अतैव इस क्षेत्र में राज्य सभा का अधिकार नगण्य है.
4. प्रशासकीय अधिकार
जहाँ तक शासन-सम्बन्धी अधिकारों का सम्बन्ध है, हम देखते हैं कि मंत्रिमंडल, जो देश का वास्तविक शासक है, लोक सभा के प्रति उत्तरदाई है. हाँ, राज्यसभा के सदस्य भी मंत्री नियुक्त हो सकते हैं, फिर भी, राज्यसभा प्रश्नों, प्रस्तावों और वाद-विवादों द्वारा मंत्रिमंडल के कार्यों पर कुछ अंश में नियंत्रण रख सकती है.
5. विविध अधिकार
इसके अतिरिक्त, राज्यसभा को कुछ और भी अधिकार प्राप्त हैं. राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग (impeachment) लगाने का अधिकार लोक सभा के सामान ही इसे प्राप्त है. उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों के किसी भी न्यायाधीश को हटाने का अधिकार लोक सभा के साथ इस सभा को भी है. महाभियोग का प्रस्ताव दोनों सदनों में किसी एक के सामने रखा जा सकता है. यह सभा 2/3 बहुमत से एक पस्ताव पास कर राज्य सूची के किसी विषय पर विधायन का अधिकार संसद को दे सकती है. आपातकालीन समय में राष्ट्रपति द्वारा जो भी उद्घोश्नाएँ होंगी उनका अनुमोदन लोक सभा के साथ-ही-साथ राज्यसभा द्वारा भी होना आवश्यक है. राष्ट्रपति के निर्वाचन में इस सभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं. उपराष्ट्रपति का निर्वाचन तो दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में ही होता है. स्पष्ट है कि राज्यसभा को अनेक अधिकार प्राप्त हैं पर फिर भी लोक सभा की तुलना में इसके अधिकार बहुत कम हैं.