[संसार मंथन 2021] मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Governance | GS Paper 2/Part 01

Sansar LochanGS Paper 2 2021 Governance

Based on the Daily Current Affairs of 02 Jan, 2021. From this link you can visit all questions of 2nd Jan, 2021 – SMA Assignment 52 Click here

Q1.भारत में भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कुछ आवश्यक प्रणालीगत सुधारों का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए। (GS Paper 2)

Briefly analyse some of systemic reforms needed to fight corruption in India.

क्या न करें

❌प्रणालीगत सुधार के बाहर अन्य सुधारों की चर्चा मत करें. विश्लेषण में भले लिख सकते हैं कि हमें सबसे पहले अपने अन्दर सुधार करना चाहिए.

❌प्रणालीगत सुधार का अर्थ समझने में गलती नहीं करें. यहाँ सिस्टम में क्या सुधार करना है, यह पूछा जा रहा है. 

क्या करें

✅आँकड़ों का प्रयोग अवश्य करें

✅भ्रष्टाचार रोकने की आवश्यकता क्यों है, भूमिका में संक्षेप में अवश्य चर्चा करें

✅नैतिक मूल्य की चर्चा विश्लेषण में अवश्य करें

नीचे जो पॉइंट लिखा है उसे आप अपने उत्तर में अपने शब्दों में विस्तार से लिख सकते हैं

  1. लोकपाल की स्थापना
  2. कार्यपालिका की शक्ति पर नियंत्रण
  3. नवाचार के माध्यम से उपभोक्ता और सुविधा के बीच दूरी समाप्त करना
  4. लोगों को मिलने वाली सुविधाओं के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करना
  5. सरकारी क्रय, लाइसेंस और अन्य बड़े-बड़े सार्वजनिक लेन-देन को पारदर्शी बनाना
  6. ई-सेवाओं को कारगर बनाना
  7. सिविल सेवकों को आर्थिक उत्प्रेरण देना (सिंगापुर में सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वालों को निजी क्षेत्र में काम कर रहे लोगों जैसा वेतन और सुविधाएँ मिलती हैं)
  8. मेधा पर आधारित नियुक्तियाँ सुनिश्चित करना
  9. चुनाव में राजनीतिक दल को दिए जाने वाले चंदे की प्रणाली में सुधार करना
  10. न्यायपालिका में लंबित मामलों के निपटारे के लिए न्यायिक सुधार सुनिश्चित करना
  11. प्रशासन में लंबित मामलों के लिए भी आवश्यक उपाय करना
  12. घूस देने वालों को घूस लेने वालों के समान दोषी मानना

उत्तर

आज देश में भ्रष्टाचार एक आदत बन गया है. भ्रष्टाचार की परिभाषा भी इतना विस्तृत रूप ले चुकी है कि उसको परिभाषित करना भी आज की तिथि में सरल नहीं है. परन्तु भ्रष्टाचार का संबंध हर छोटे-बड़े स्तर पर इतना व्यापक हो चुका है कि रावण की तरह इसके भी कई मुख देखे जा सकते हैं. ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार सिर्फ भारत में ही व्याप्त है, यह तो एक वैश्विक घटना है और सर्वव्यापी है. ग्लोबल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स 2019 में भारत के स्थान (80वाँ) में कोई सुधार नहीं हुआ. सूचकांक में भारत का स्थान 2018 में 78वाँ, 2017 में 81वाँ और 2016 में 79वाँ.

भारत में आज भ्रष्टाचार के उन्मूल की बात, उसे जड़ से खत्म करने की बात, भ्रष्टाचार पर अंकुश की बात हर ओर हो रही है. एक नई विचारधारा का भी प्रारम्भ हमारे देश में हो चुका जो कि आने वाले भविष्य के लिए एक अच्छा संकेत है.  परन्तु जागरुकता का यह विचार मात्र विचार बनकर ही न रह जाए, उसके लिए आवश्यक है कि धरातल पर आकर एक ऐसे कानून का निर्माण की जाए जिससे कि भ्रष्टाचार पर पूर्णरूपेण अंकुश लग सके. 

भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए एक पारदर्शी जवाबदेह एकरूप प्रणाली का होना अत्यंत आवश्यक है, जो जनभावनाओं व जनआकांक्षाओं के अनुरूप बने. अच्छी नौकरशाही और अच्छा प्रशासन किसी भी देश के विकास की रीढ़ की हड्डी होती है.  जब तक यह हड्डी ही मजबूत नहीं होगी तब तक भ्रष्टाचार रूपी दानव बढ़ेगा.  इसलिए भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए प्रणालीगत सुधार आज की  माँग है.

दूसरी बात, भ्रष्टाचार का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है बिल्कुल बहते झरने की तरह. यह बात हर प्रबुद्ध व्यक्ति जानता-समझता है. झरने के तल को साफ कर हम झरने को शुद्ध नहीं कर सकते. उसके लिए तो हमें झरने के निकास स्थल से सफाई अभियान प्रारम्भ करना होगा. अगर देश का शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व भ्रष्टाचार-मुक्त होगा तो वह नौकरशाही और नीचे के भ्रष्टाचार पर भी रोक लगा सकेगा. यह प्रक्रिया नीचे से ऊपर की तरफ कारगर नहीं हो सकती. इसलिए बड़े-बड़े भव्य मंचों से जो लोग भ्रष्टाचार मिटाने की बातें करते हैं, उन्हें और उनके निकट के लोगों को भ्रष्टाचार से पूर्ण रूप से मुक्त होना होगा.

हमारे देश में भ्रष्टाचार की सजा बहुत कम है. इसलिए भ्रष्टाचार में संलिप्त व्यक्ति तनिक भी नहीं डरता. लंबी कानूनी लड़ाई के पश्चात् दो-चार वर्ष की सजा हो भी गई तो इससे उन्हें कोई ख़ास परहेज नहीं.  भारतीय दंड विधान में न्यायालय के पेशकार की सौ पचास रुपए की रिश्वत लेने की सजा और करोड़ों का घोटाला करने की सजा लगभग एक है. भ्रष्टाचार के लिए उम्रकैद की सजा होनी चाहिए.

हम भ्रष्टाचार को अत्यंत सीमित अर्थ में ही लेते हैं. लेकिन हमें यह समझना होगा कि भारत में ऐसे कई भ्रष्टाचार हैं जो कानूनी दायरे में नहीं आतीं. उन्हें हम कानून-सम्मत भ्रष्टाचार कह सकते हैं. उदाहरणार्थ, जब लाखों लोग मुंबई के फुटपाथों पर जीते हैं, तब जनप्रतिनिधियों का आलीशान बंगलों में रहना भी भ्रष्टाचार ही है. सरकार बनाने के लिए विधायकों को रिश्वत देना अपराध है, लेकिन मंत्रिपद का लालच या बोर्ड निगम का अध्यक्ष बनाने का सौदा अपराध नहीं! न्यूनतम मजदूरी हम एक सौ बीस रुपए तय करते हैं तो छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करना कानूनसम्मत भ्रष्टाचार का ही एक रूप है. इसलिए कानून की धाराओं के अनुसार जो भ्रष्टाचार हो रहे हैं, उन पर रोक लगना तो आवश्यक है ही, कानूनसम्मत भ्रष्टाचार पर भी रोक लगना जरूरी है. चूंकि हम यह सवाल नहीं उठाते, इसलिए आम जनता, कहिए गरीब जनता, भ्रष्टाचार-विरोधी लड़ाई से निर्लिप्त रह जाती है.

भ्रष्ट व्यक्ति को दंड देकर ही हम भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगा सकते. इसके लिए आवश्यक है कि हम जीवन मूल्य के रूप में ईमानदारी को फिर से प्रतिष्ठित करें. लोग कहेंगे कि यह तो आदर्श की बातें हैं. लेकिन ये जीवनादर्श ही देश को बचा सकते हैं, कानून नहीं.

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