आज हमने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (The Regional Comprehensive Economic Partnership – RCEP) के विषय में DCA (2 अगस्त, 2019) में चर्चा की. वहाँ हमने लिखा था कि –
भारत ने अभी तक क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं. आसियान देशों के नेतृत्व में 16 देशों का एक समूह यह प्रयास कर रहा है कि भारत उसे हस्ताक्षरित कर दे.
आज इस एडिटोरियल के जरिये क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के विषय में और भी विस्तार में जानेंगे. इस एडिटोरियल को लिखने के पीछे हमारा ध्येय यह है कि आपको यह पता लगे कि भारत के परिप्रेक्ष्य में RCEP का महत्त्व क्या है?
वैसे हमने DCA में भी इसकी चर्चा की थी. DCA में ज्यादातर हम संक्षेप में आपके समक्ष तथ्यों को प्रस्तुत करते हैं ताकि Prelims और Mains का तड़का आपको एक साथ मिले. पर संसार एडिटोरियल में दिए गये आर्टिकल को हम मेंस के परिप्रेक्ष्य में लिखते हैं. क्योंकि मुख्य परीक्षा में RCEP के विषय में आपसे तथ्यात्मक प्रश्नों को नहीं पूछा जाएगा.
आपसे यह पूछा जाएगा कि RCEP को लेकर भारतीय किसानों को क्या चिंता है? यदि चिंता है भी तो क्यों है? यह भारतीय कृषि और भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव डालेगा. हम इन्हीं तथ्यों की आज चर्चा करेंगे.
सरल भाषा में कहा जाए तो आरसीईपी कुछ देशों का एक ऐसा समूह है जिनके बीच में एक मुक्त व्यापार समझौता हो रहा है. इस समझौते से जुड़ने के बाद कोई भी देश बिना आयात शुल्क दिए इन देशों के बीच व्यापार कर सकता है.
पहले DCA में दिए गए कुछ तथ्यों को फिर से Revise कर लेते हैं.
RCEP से सम्बंधित कुछ तथ्य
- RCEP आसियान के दस सदस्य देशों (ब्रुनेई, म्यांमार, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम) तथा आसियान से सम्बद्ध अन्य छ: देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड) के लिए प्रस्तावित है.
- RCEP के लिए वार्ताएँ कम्बोडिया में नवम्बर 2012 में आयोजित आसियान के शिखर सम्मलेन में औपचारिक रूप आरम्भ की गई थीं.
- RCEP का लक्ष्य है अधिकांश शुल्कों और गैर-शुल्क अड़चनों को समाप्त कर वस्तु-व्यापार को बढ़ावा देना. अनुमान है कि ऐसा करने से क्षेत्र के उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर गुणवत्ता युक्त उत्पादनों के अधिक विकल्प प्राप्त हो सकेंगे. इसका एक उद्देश्य निवेश से सम्बंधित मानदंडों को उदार बनाना तथा सेवा व्यापार की बाधाओं को दूर करना भी है.
- हस्ताक्षरित हो जाने पर RCEP विश्व का सबसे बड़ा निःशुल्क व्यापार हो जायेगा. विदित हो कि इस सम्बद्ध 16 देशों की GDP $50 trillion की है और इन देशों में साढ़े तीन अरब लोग निवास करते हैं.
- भारत की GDP-PPP $9.5 trillion की है और जनसंख्या एक अरब तीस लाख है. दूसरी ओर चीन की GDP-PPP $23.2 trillion की है और जनसंख्या एक अरब 40 लाख है.
इसमें चीन की इतनी रूचि क्यों हैं?
चीन वस्तु-निर्यात के मामले में विश्व का अग्रणी देश है. इस बात का लाभ उठाते हुए वह चुपचाप अधिकांश व्यापारिक वस्तुओं पर से शुल्क हटाने की चेष्टा में लगा रहता है और इसके लिए कई देशों पर दबाव बनाता रहता है. उसका बस चले तो व्यापार की 92% वस्तुओं पर से शुल्क समाप्त ही हो जाए. इसलिए चीन RCEP वार्ता-प्रक्रिया में तेजी लाने से और शीघ्र से शीघ्र समझौते को साकार रूप देने में लगा हुआ है.
RCEP के माध्यम से मुक्त एशिया-प्रशांत व्यापार क्षेत्र (Free Trade Area of the Asia-Pacific – FTAAP) स्थापित करने का लक्ष्य है जिसमें 21 देश होंगे. इन देशों में एशिया-प्रशांत देशों के अतिरिक्त अमेरिका और चीन भी हैं, किन्तु भारत नहीं है.
RCEP को लेकर भारत की चिंताएँ
यद्यपि RCEP पर सहमति देने के लिए भारत पर बहुत दबाव पड़ रहा है, परन्तु अभी तक भारत इससे बच रहा है. इसके कारण निम्नलिखित हैं –
- ASEANआयात शुल्कों को समाप्त करना चाह रहा है जो भारत के लिए लाभप्रद नहीं होगा क्योंकि इसका एक सीधा अर्थ होगा की चीनी माल बिना शुल्क के भारत में आने लगेंगे. यहाँ के उद्योग को डर है कि ऐसा करने से घरेलू बाजार में गिरावट आएगी क्योंकि चीनी माल अधिक सस्ते पड़ेंगे.
- भारत का यह भी जोर रहा है कि RCEP समझौते में सेवाओं, जैसे – पेशेवरों को आने-जाने के लिए दी जाने वाली कामकाजी VISA, को भी उचित स्थान दिया जाए. अभी तक सेवाओं से सम्बंधित प्रस्ताव निराशाजनक ही रहे हैं क्योंकि ऐसी स्थिति में कोई भी सदस्य देश सार्थक योगदान करने के लिए तैयार नहीं होगा.
RCEP में भारत की भागीदारी से क्या भारतीय किसान सच में प्रभावित हो जाएँगे?
हाल ही में कई किसान संगठनों ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी, रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) को लेकर अपनी नाराज़गी प्रकट की हैं. ये संगठन कह रहे हैं कि यह RCEP समझौता कृषि पर आधारित लोगों की आजीविका को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा. विशेषकर, इस समझौते का सबसे बुरा प्रभाव भारतीय दुग्ध उत्पादन क्षेत्र पर पड़ेगा.
किसानों का क्या कहना है?
भारतीय किसानों को यह आशंका है कि यदि यह समझौता पूरी तरह से लागू हो जाए तो देश को 60 हजार करोड़ के राजस्व की हानि होगी. आरसीईपी देश समूह भारत पर इसलिए जोर डाल रहा है कि इसमें यदि भारत आ जाता है तो उसे भी 92 प्रतिशत व्यापारिक वस्तुओं पर शुल्क हटाने के लिए भारत को बाध्य होना पड़ेगा. वैसे यह सच है कि आसियान ब्लॉक देशों के साथ सस्ते आयात को स्वीकृति देकर भारत को 2018-19 में 26 हजार करोड़ रुपए की हानि हुई है.
किसानों के कुछ प्रमुखजन का कहना है कि RCEP व्यापार समझौता, विश्व व्यापार संगठन से भी अधिक खतरनाक साबित हो सकता है. भारत चाहता है कि आरसीईपी के अन्तर्गत व्यापार करने वाली वस्तुओं पर शुल्क को 92% से घटा कर 80% कर दिया जाए.
नुक्सान होगा कैसे?
इसे कुछ इस तरह से समझिये कि यदि —
भारत “पुदीन हरा” को चीन को 100 रु. में बेचता है यानी निर्यात करता है. चीन उसमें बिना शुल्क लगाए उसे स्वीकार कर लेता है और अपने लोकल मार्केट में बेचने लगता है.
पर चीन यह चाहता है कि मैंने यदि कोई शुल्क नहीं लगाया तो भारत भी हमारे उत्पाद में शुल्क नहीं लगाए. इसलिए वह “Made in China” सस्ती घड़ी भारत को निर्यात करने लगता है.
भारत में धड़ाधड़ चीनी घड़ियाँ बिकने लगती हैं…
इससे यहाँ का घरेलू बाजार बिगड़ जाएगा. घरेलू बाजार से मतलब यदि यहाँ Made in India कोई कम्पनी घड़ी बना रही है …तो उन्हें प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा.
किसानों का कहना है कि भारत का अधिकांश असंगठित डेयरी सेक्टर वर्तमान में 15 करोड़ लोगों को आजीविका प्रदान करता है. RCEP समझौता लागू हो जाने से न्यूजीलैंड सरलता से भारत में दुग्ध उत्पाद निर्यात करने लगेगा. कल्पना करें कि यदि अन्य देश भी अपने-अपने दुग्ध उत्पाद यहां झोंकने लगेंगे तो क्या परिणाम होगा.
वैसे हम सब जानते हैं कि भारत पहले से ही दुग्ध उत्पादन में एक आत्मनिर्भर देश है. परन्तु आरसीईपी के माध्यम से विदेशी कम्पनियाँ, जैसे – फोंटरा, दानोन आदि अपने अधिक से अधिक उत्पादों को यहाँ खपाने का प्रयास करेंगी. ऐसी स्थिति में, हम उन वस्तुओं का आयात क्यों करें, जिनकी हमें आवश्यकता ही नहीं है. डेयरी के अतिरिक्त, आरसीईपी विदेशी कंपनियों को महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे बीज और पेटेंट में भी छूट प्रदान करेगा. इससे जापान और दक्षिण कोरिया से आने वाले बीजों, दवाइयों, और कृषि रसायनों का प्रभुत्व बढ़ जाएगा.
यदि जनसंख्या के आधार पर देखा जाए तो क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी अब तक का सबसे बड़ा विदेशी व्यापार समझौता साबित होगा. दरअसल, भारत के आ जाने के बाद RCEP दुनिया की 49 फीसदी आबादी तक पहुँच सकेगा और विश्व व्यापार का 40 प्रतिशत इसमें सम्मिलित होगा, जो विश्व की एक तिहाई सकल घरेलू उत्पाद के समान होगा.
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी का वर्तमान स्वरूप भारत के लिए हानिकारक क्यों?
- भारत में चालू खाता घाटा (current account deficit – CAD) GDP के 8% तक पहुँच गया है. इस स्थिति में यदि RCEP का समझौता अपने वर्तमान स्वरूप में रह जाता है तो इसका अर्थ यह होगा कि भारत को अपने राजस्व के अच्छे-खासे भाग से हाथ धोना पड़ेगा.
- वर्तमान RCEP चीनी माल की भारत में पहुँच बढ़ा देगा जिस कारण देश के निर्माण प्रक्षेत्र को आघात पहुंचेगा. स्मरणीय है कि 2017-18 में चीन के साथ व्यवसाय में भारत को 63 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा झेलना पड़ा था.
- आसियान के साथ भी भारत की यही दशा है अर्थात् हम जितना निर्यात करते हैं, उससे अधिक आयात करते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि भारत की अर्थव्यवस्था सेवा प्रधान है.
- RCEP से सम्बद्ध देश कई उत्पादों पर सीमा पार शुल्क घटाने की माँग करते हैं और भारतीय बाजार में ज्यादा पहुँच बनाना चाहते हैं जिसके लिए भारत तैयार नहीं है.
- भारत अन्य जगहों पर भी मोर्चा हारता हुआ दिख रहा है. ये हैं – सिंगापुर का वित्तीय एवं तकनीकी हब, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के कृषि और दूध उत्पाद, दक्षिण-पूर्व एशिया देशों के प्लांटेशन और चीन और अमेरिका के साथ दवा-व्यापार.
- विश्व व्यापार संगठन में भारत डिजिटल व्यापार पर चर्चा नहीं होने देता. पर उसका पक्ष कमजोर है क्योंकि ई-कॉमर्स चर्चा का एक अंग है
- यदि निवेशों का आना-जाना मुक्त कर दिया जाया तो इसका लाभ बहुत कम भारतीय उठा पायेंगे और दूसरी ओर अमेरिका, सिंगापुर, जापान और चीन के निवेशकों को बहुत लाभ पहुँच सकता है.
- भारत की चिंता है कि RCEP ऐसे समझौतों का रास्ता खोल सकता है जिनसे TRIPS समझौते के संदर्भ में भारत को हानि पहुँच सकती है. इसका फल यह होगा कि कृषि बीज और दवा निर्माण के मामले में विश्व के बड़े-बड़े प्रतिष्ठान बाजी मार जाएँगे.
वैसे हम सब जानते हैं कि भारत सेवाओं के उदारीकरण पर बल दे रहा है, जिसमें अल्पकालिक कार्य के लिये पेशेवरों के आने–जाने के नियमों को सरल बनाना सम्मिलित है. ऐसे में आपकी क्या राय है? क्या भारत को RCEP में हस्ताक्षर कर देना चाहिए?